पाकिस्तानी जिन्हें है भगत सिंह, गंगाराम पर नाज़

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- Author, शीराज़ हसन
- पदनाम, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए, पाकिस्तान से
आज भारत-पाकिस्तान के संबंध देखकर यह कल्पना करना मुश्किल लगता है कि कभी ये दोनों देश एक ही थे.
मगर पाकिस्तान में भगत सिंह और सर गंगाराम के गांवों में आकर लगता है कि आज़ादी की जंग भारत-पाकिस्तान दोनों की साझा विरासत थी.
भगत सिंह और सर गंगाराम का जन्म पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के शहर फ़ैसलाबाद (उस समय के लाइलपुर) की तहसील जड़ानवाला में हुआ था.
अप्रैल 1851 को जड़ानवाला के गांव गंगापुर में जन्मे सर गंगाराम को एक तरह से लाहौर का संस्थापक कहा जाता है.
गंगापुर
आज भी लाहौर में उनकी डिजाइन की गई नेशनल कॉलेज ऑफ आर्ट्स, लाहौर संग्रहालय और जनरल पोस्ट ऑफ़िस जैसी कई इमारतें हैं. लाहौर के प्रसिद्ध सर गंगाराम अस्पताल की बुनियाद उन्होंने ही रखी थी.
<link type="page"><caption> (भगत सिंह का घर और गलियां)</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2014/05/140513_bhagat_singh_ancestral_village_home_gallery_aa.shtml" platform="highweb"/></link>
सर गंगाराम के पैतृक गांव का नाम गंगापुर भी उन्हीं के नाम पर है.

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गांव के एक ज़मींदार शकील अहमद शाकिर का परिवार 1880 से इस गांव में है. वह कहते हैं कि उनके नाना, दादा ने सर गंगाराम के साथ काम किया था.
उन्होंने बताया, "विभाजन के बाद पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों के नाम पर रखे गए सड़कों और जगहों के नाम बदले गए, पर यहां के लोगों ने गांव का नाम नहीं बदलने दिया. सर गंगाराम की सेवा हिंदू, सिख और मुसलमानों सभी के लिए थी."

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सर गंगाराम ने गंगापुर में कोऑपरेटिव फ़ॉर्मिंग सोसायटी की बुनियाद रखी थी और इसके लिए 56 एकड़ उपजाऊ ज़मीन दान की थी. आज गंगापुर में इससे होने वाली आमदनी से परमार्थ (तरक़ीयाती) के काम किए जा रहे हैं.

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जिस घर में गंगाराम रहते थे, वह काफ़ी अच्छी हालत में है और गांव के लोगों का मानना है कि इसे पुस्तकालय में बदल देना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां भी सर गंगाराम के बारे में जान सकें.
गांव के एक सामाजिक कार्यकर्ता राव दिलदार कहते हैं, ''गांव के लोग सर गंगाराम का बहुत सम्मान करते हैं क्योंकि उन्हीं की बदौलत इस गांव में खुशहाली है".
भगतपुर

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गंगापुर से लगभग 20 किलोमीटर दूर फ़ैसलाबाद-जड़ानवाला रोड पर आज़ादी के एक नायक भगत सिंह का गांव बंगा है. अब यह गांव भगतपुर के नाम से जाना जाता है.
भगत सिंह का पैतृक घर गांव के नंबरदार जमात अली विर्क की मिल्कियत है. विभाजन के बाद उनके दादा सुल्तान मुल्क को यह घर मिला था.

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जमात अली कहते हैं, "बंटवारे के बाद भगत सिंह के भाई कुलबीर सिंह 1985 में पहली बार यहां आए थे. उन्होंने हमें बताया था कि यह घर भगत सिंह के परिवार का है."
उनका कहना था कि भगत सिंह के हाथ का लगाया हुआ आम का पेड़ आज भी गांव में है.

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जमात अली के मुताबिक़ भगत सिंह इस धरती का बेटा है. गांव के लोग उसे हीरो मानते हैं क्योंकि उसने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी.
वे कहते हैं, "हम समझते हैं कि जब तक आज़ादी के इतिहास में भगत सिंह का नाम न आए, इतिहास पूरा नहीं होता."
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