यूजीसी और विश्वविद्यालय शिक्षकों में ठनी

- Author, दिव्या आर्य
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुछ शिक्षकों ने एक प्रेस वार्ता कर यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन पर यूनिवर्सिटी की स्वायत्तता ख़त्म करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है.
पत्रकारों को संबोधित करते हुए दिल्ली यूनिवर्सिटी की एग्ज़िक्यूटिव काउंसिल के सदस्य, आदित्य नारायण मिश्रा ने कहा कि यूजीसी का अधिकार क्षेत्र सुझाव देने और कॉलेज चलाने की निधि देने तक सीमित है न कि पाठ्यक्रम तय करने के फ़ैसले लेने का.
मिश्रा ने कहा, "यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम से जुड़े फ़ैसले लेने का हक़ विश्वविद्यालय की अकैडेमिक काउंसिल, एग्ज़िक्यूटिव काउंसिल और देश के राष्ट्रपति को है. पर अब इसमें हस्तक्षेप किया जा रहा है, जिससे सभी शिक्षक आहत हैं."
ग़ौरतलब है कि साल 2013-14 से पहले में स्नातक डिग्री के लिए तीन साल का पाठ्यक्रम था, जिसे एफ़वाययूपी (फोर ईयर यूनिवर्सिटी प्रोग्राम) के तहत चार साल का कर दिया गया.
अब यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन यानी यूजीसी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राधानाचार्यों को निर्देश लिख इसे दोबारा तीन साल का करने को कहा है.
इस निर्देश में यूजीसी ने कहा है कि, "दिल्ली विश्वविद्यालय में इस साल से छात्रों को एक बार फिर तीन साल के पुराने पाठ्यक्रम के तहत भर्ती किया जाए, और पिछले साल लागू किए गए चार साल के एफ़वाययूपी पाठ्यक्रम में पढ़ाई कर रहे छात्रों की पढ़ाई को भी तीन साल के मुताबिक ढाला जाए."
'धमकी'

मंगलवार से दिल्ली विश्वविद्यालय में इस साल के दाख़िले शुरू होने हैं लेकिन अब इस नए निर्देश के मुताबिक आज शाम तक प्राधानाचार्यों को अपनी स्वीकृति यूजीसी को भेजनी होगी वर्ना कॉलेजों को ‘कठिन परिणाम’ के लिए तैयार रहने को कहा गया है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़्यादातर कॉलेजों में शिक्षकों, कर्मचारियों की तनख़्वाह के अलावा बाक़ी ख़र्च भी यूजीसी की ग्रांट से ही पूरे किए जाते हैं. ऐसे में निर्देश में कही गई इस बात को निधि घटाने या वापस लेने की धमकी माना जा रहा है.
दरअसल पाठ्यक्रम में बदलाव कर उसे तीन साल का करने के लिए विश्वविद्यालय के शिक्षकों के दोनों संगठन, अकैडेमिक काउंसिल और एग्ज़िक्यूटिव काउंसिल को, एक अध्यादेश पारित करना होगा.
महज़ यूजीसी के प्राधानाचार्यों को भेजे निर्देश से ये बदलाव नहीं हो सकता. पर 'कठिन परिणाम की धमकी' के चलते कॉलेज दबाव में हैं.
छात्रों में असमंजस

नए सेशन में तीन साल का पाठ्यक्रम लागू होने से सबसे ज़्यादा डर और परेशानी उन छात्रों को हो रही है जिन्होंने पिछले साल एफ़वाययूपी के तहत दाख़िला लिया था.
आरुषि मलिक तय नहीं कर पा रही कि वह खुशी मनाएं या गम. वह कहती हैं, "मैंने एफ़वाययूपी के तहत एक साल पढ़ाई की, पर कोर्स बिल्कुल पसंद नहीं आया, अगर यह चार से तीन साल का हो जाए तो बहुत अच्छा है. पर इसका मतलब अगर यह हुआ कि बचे हुए तीन साल की पढ़ाई दो साल में ठूंस दी जाएगी, तो ये बहुत बुरा और मुश्किल होगा."
आरुषि ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ़ वोकेशनल स्टडीज़ में पिछले साल इंग्लिश ऑनर्स की पढ़ाई शुरू की लेकिन एक साल की पढ़ाई के बाद अब उन्हें यह नहीं पता कि यह ख़त्म कब होगी.
यह भी नहीं पता कि पढ़ाई क्या रूप लेगी और उसमें कौन से कोर्स या पेपर रहेंगे, "मैं तो इस चार साल वाले पाठ्यक्रम के हमेशा ख़िलाफ़ रही हूं पर अब हमारा बैच क्या करे, हम बीच में फंस गए हैं, हमें कुछ छूट मिलनी चाहिए, ताकि हमारी पढ़ाई भी पूरी हो और कम समय में बहुत सारा कोर्स ख़त्म करने का दबाव भी न पड़े."
जल्दबाज़ी
पिछले साल अंडरग्रेजुएट पढ़ाई का दिल्ली विश्वविद्यालय का चार साल का पाठ्यक्रम आरुषि के बैच से लागू हुआ, अभी वे इस बदलाव के आदी हुए थे कि अब फिर पाठ्यक्रम में बदलाव की संभावना सामने खड़ी है.
जानकी देवी कॉलेज में एफ़वाययूपी के तहत पढ़ाई कर रहीं सोनाली काएरा इस सबके लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर, दिनेश सिंह की जल्दबाज़ी को क़सूरवार मानती हैं.
सोनाली कहती हैं, "उन्हें ये बदलाव करना ही था, तो सोच-समझ कर, नए पेपर और कोर्स अच्छे से तय करने के बाद करना चाहिए था, पिछले साल तो हमें पहले सेमेस्टर के अंत तक यह ही नहीं पता था कि आने वाले सेमेस्टर्स में हम कौन से विषय पढ़ने वाले हैं."
अब पाठ्यक्रम दोबारा बदले जाने की सोच भर से वह परेशान हैं, उन्हें डर है कि यह फिर छात्रों के लिए मुसीबत बन जाएगा.
विरोध
चार साल के पाठ्यक्रम को बहुत जल्दबाज़ी में लागू करने के आरोप लंबे समय से लगते रहे हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय के कई शिक्षकों ने पाठ्यक्रम को तय करने की प्रक्रिया में कुछ ही टीचर्स को शामिल करने और ज़्यादातर को इससे बाहर रखने की शिकायत भी की है.
लेकिन इस अफ़रा-तफ़री में आए यूजीसी के निर्देश से भी हैरानी है. शहीद भगत सिंह कॉलेज के प्राधानाचार्य, पीके खुराना के मुताबिक जब तक विश्वविद्यालय यानी वाइस चेयरमैन की ओर से निर्देश नहीं आता, वह कोई कदम नहीं उठाएंगे.
पीके खुराना ने बीबीसी को बताया, "यूनिवर्सिटी और यूजीसी के कार्यक्षेत्र साफ़ तय हैं, यूनिवर्सिटी कॉलेज को बताती है कि पाठ्यक्रम से अध्यापकों की तनख़्वाह तक, सारा काम कैसे करना है. वहीं यूजीसी कॉलेज को पैसे देती है."
उनके मुताबिक नए साल के लिए कौन से पाठ्यक्रम के तहत दाख़िला किया जाए यह फ़ैसला विश्वविद्यालय की ओर से कॉलेजों को बताया जाना चाहिए.

दाख़िला
ज़ाहिर है इस सारी रस्साकशी में आरुषि और सोनाली जैसे छात्र अधर में लटका महसूस कर रहे हैं. उन्हीं के बैच की माननी शर्मा पीजीडीएवी कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस ऑनर्स की छात्रा हैं.
एफ़वाययूपी के बारे में उनकी राय भी ख़ास अच्छी नहीं है और वह उसके हटाए जाने की संभावना से खुश हैं, पर आगे क्या? इस सवाल का जवाब न मिलने से वह भी हैरान हैं.
माननी कहती हैं, "अगर नए छात्रों के लिए तीन साल का कोर्स हो गया और हमारा चार साल ही रहा, तो यह तो हमारे लिए बहुत बुरा होगा."
और उनका क्या जो इस साल दाख़िला ले रहे हैं. जैसे राशि वर्धन जिन्होंने इंगलिश ऑनर्स और कॉमर्स ऑनर्स के लिए फ़ॉर्म भरा है.
वह कहती हैं, "चार साल की पढ़ाई तो समय की बर्बादी जैसा लगता है, अगर तीन साल का कोर्स नहीं हुआ तो मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में दाख़िला ही नहीं लूंगी."
इसी अनिश्चितता के चलते राशि ने इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय और एपीजे संस्थान में भी फ़ॉर्म भरा है और प्रवेश परीक्षा दी है. ज़ाहिर है कि छात्र हर तरह की संभावना के लिए तैयार रहना चाहते हैं, और वह दिल्ली विश्वविद्यालय के फ़ैसले का इंतज़ार नहीं कर सकते.
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