सरल जीवन की याद दिलाता ये सवारी म्यूजियम

क्रिस्ले डीसिल्वा डायस के अनुसार गोवा में आम लोगों के लिए जल्दी ही ऐसा खास संग्रहालय खुलने वाला है जिसमें भारत के कोने कोने से लाई गईं करीब 70 अनोखी गाड़ियां शामिल होंगी.
आपने घोड़ागाड़ी, पालकी और इक्का तो देखी होगी. मगर क्या आपने पहियों पर चलने वाली ऐसी कोई गाड़ी कभी देखी है जो स्कूली बच्चों को ले जाती हो या जिस पर दहेज का सामान सहेजने वाला संदूक बना हो?
यदि इन सबको देखना हो तो गोवा के तटीय गांव बेनॉलिम में 'गोवा चकरा' नाम से शुरू होने वाले संग्रहालय में आइए. यहां ऐसी और इस तरह की कई और दुर्लभ पहिया गाड़ियों को जल्दी ही देखा जा सकेगा.
20 साल की कड़ी मेहनत
'गोवा चकरा' नाम का ये अनोखा संग्रह 750 वर्ग मीटर की नई इमारत में बनाया गया है. यहां मंदिर जाने वाला रथ, ऊंटगाड़ी, संदूक गाड़ी, मुर्दागाड़ी, बंजारा गाड़ी, टमटम (हल्का, दो पहियों वाला तांगा जिसे घोड़ा खींचता है) और कुछ घोड़ा गाड़ियां होगीं.
इसके अलावा कई तरह के पहिए जिनमें मिट्टी के पहिए, चरखा और पुरानी गाड़ी शामिल हैं, तथा बच्चों के लकड़ी के बने खिलौने भी यहां रखे गए हैं.

संग्रहालय के संस्थापक और निरीक्षक विक्टर ह्यूगो गोम्स का कहना है, "गोवा चकरा पहियों पर टिकी एक अदभुत दुनिया है."
"भारत पहियों के विकास की कहानी है. इसीलिए पहिए को हमारे राष्ट्रीय झंडे पर जगह दी गई है. हमारे इतिहास में भी पहिए का महत्व है. मेरा यह संग्रह पहियों की, जन्म से विकसित होने तक की दास्तां बयां करता है."
पहियों को संग्रहित करने के 45 साल के गोम्स का इस दीवानेपन के पीछे उनकी 20 साल की कड़ी मेहनत है. ये गाड़ियां या तो टूटी पड़ी थीं या कबाड़ बन चुकी थीं. उन्होंने इन गाड़ियों को खरीदा.

जगह जगह से इन विशेष गाड़ियों को जुटाने में सालों लगाए. फिर इन्हें खास सामग्री से आकर्षक आकार दिया.
मरम्मत
टूटे और कबाड़ हो चुके इन गाड़ियों को गोम्स और जसवंत सिंह ने मिलकर जीवन दिया और खूबसूरत आकार में ढाला. जसवंत सिंह एक कारपेंटर हैं जो दशकों से गोम्स के साथ काम कर रहे हैं.
गोम्स ने बताया कि हर पहिएगाड़ी को खरीदने के समय इसके मूल स्थान की पहचान की गई और गोवा चकरा में उसकी पहचान के साथ रखा गया.
उन्होंने कहा, "सिंह और मैंने लकड़ी से जुड़ा काम संभाला जबकि चमकाने और बुनने का काम दूसरे लोगों ने किया. "

गोम्स को इन गाड़ियों में से दक्षिणी भारत की 9 मी लंबी मंदिर गाड़ी खास पसंद है. इस गाड़ी की मरम्मत अभी चल रही है.
यह म्यूजियम पुराने चीजों के प्रति लगाव, प्रेम और जुनून का नाम है.
पैसे चुकाने में 18 साल लग गए
गोम्स बताते हैं कि एक गाड़ी को गोवा चकरा तक लाने में उन्हें दो दशक लग गए.
साल 1990 में गोम्स को उत्तरी भारत में कई कबाड़े में तब्दील हो चुकी गाड़ियां दिखीं. वे जब इसे खरीदने पहुंचे तो गाड़ी के मालिक ने इसके लिए 70 हजार रुपए मांगे.
तब उनके पास मात्र 2000 रुपए थे. उन्होंने ये पैसे गाड़ी के मालिक को दिए और उसे किसा और को बेचने से मना कर दिया.
पूरे पैसे चुकाने में तकरीबन 18 साल लग गए. अफसोस जब वे गाड़ी लेने गए तो वह टुकड़े टुकड़े हो चुकी थी.
किसी गाड़ी को फिर से उसके आकार में लाना और उसका दस्तावेजीकरण करना अपने आप में एक चुनौती है.
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