राघौगढ़ में तो केवल राजा साहेब, छोटे राजा और बाबा साहेब

- Author, इक़बाल अहमद
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, राघौगढ़ से
मध्यप्रदेश के गुना ज़िले के अंतर्गत आने वाली राघौगढ़ विधान सभा सीट कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह की पारंपरिक सीट है.
इस बार यहां से दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्द्धन सिंह चुनाव लड़ रहे हैं.
दिग्विजय सिंह को यहां के लोग राजा साहेब, दरबार, दिग्गी राजा या हुकुम के नाम से पुकारते हैं जबकि उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह को छोटे साहब कहा जाता है.
दिग्विजय सिंह पहली बार 1977 में यहां से विधायक बने थे. उसके बाद से कांग्रेस ये सीट कभी नहीं हारी और इस पर उन्हीं के परिवार या फिर उनके किसी क़रीबी का क़ब्ज़ा रहा है.
लक्ष्मण सिंह यहां से सांसद रह चुके हैं और फ़िलहाल प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष हैं.
लक्ष्मण सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह इस समय राघौगढ़ नगर पालिका के अध्यक्ष हैं.
मैदान में महाराज

विक्रमादित्य को बड़े बाबा साहेब कहा जाता है. ग़ौरतलब है कि दिग्विजय सिंह ने भी अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत नगर पालिका के अध्यक्ष के रूप में की थी.
परिवार के सबसे छोटे जयवर्द्धन सिंह को छोटे बाबा साहेब या महाराज कुंवर के नाम से पुकारा जाता है.
मध्य प्रदेश चुनाव कवर करने के दौरान जब मैं राघौगढ़ पहुंचा को एक चाय की दुकान में बातचीत के दौरान एक स्थानीय निवासी ने राघौगढ़ की चुनावी परिस्थिति के बारे में कहा, ''यहां न तो कांग्रेस न भाजपा, यहां सिर्फ़ राजा साहेब, छोटे राजा और बाबा साहेब हैं.''
'पिता नहीं चाहते थे'

हालांकि जयवर्द्धन इसको नकारते हुए कहते हैं कि उनके पिता या उनके काका लक्ष्मण सिंह आज जो भी हैं वो सिर्फ़ कांग्रेस पार्टी के आशीर्वाद से हैं.
वो ये भी बताना नहीं भूलते कि उनके पिता दिग्विजय सिंह जब पहली बार प्रदेश के अध्यक्ष बने थे तो वो राजीव गांधी के आशीर्वाद से ही बने थे और आज उनका परिवार जो कुछ भी है वो सब कुछ नेहरू-गांधी परिवार की ही देन है.
चार बहनों के बाद परिवार में जन्मे इकलौते पुत्र 27 वर्षीय जयवर्द्धन अमरीका के कोलंबिया विश्वविद्यालय से पढ़ाई करके भारत लौटे हैं.
राजनीति तो उनके ख़ून में है लेकिन फिर भी उनके मुताबिक़ दिग्विजय सिंह उन्हें राजनीति में नहीं आने देना चाहते थे.
बहुत ज़िद करने के बाद वो इसके लिए तैयार हुए.
धुआंधार प्रचार

वो कहते हैं, ''मेरे पिता ने कहा था राजनीति में मत आओ. राजनीति में पूरे परिवार को त्याग करना पड़ता है. लेकिन मेरे बहुत ज़िद करने पर उन्होंने कहा कि पहले ग्रामीण क्षेत्रों में जाओ.''
''मैंने पिछले तीन सालों में दो पदयात्राएं की हैं और अपने क्षेत्र के सभी 450 गांवों का दौरा चुनाव से एक महीने पहले ही पूरा कर लिया.''
लेकिन इसके बावजूद वो प्रचार में कोई कमीं नहीं कर रहे हैं. उनके प्रचार की शुरुआत लगभग नौ बजे सुबह क़िले के परिसर में ही बनी मंदिर में पूजा से होती है.
इस दौरान क्षेत्र के दूर दराज़ इलाक़ों से अलग-अलग मांगों के साथ आए बहुत सारे लोग उनके बाहर निकलने का इंतज़ार करते रहते हैं.
वो कई लोगों के दरख़ास्त को ले लेते हैं और उन पर कार्रवाई का वादा करते हुए क्षेत्र के दौरे पर निकल जाते.
अर्जियों की भरमार

रास्ते में अगर कोई बुज़ुर्ग मिल जाए तो उसको प्रणाम करना नहीं भूलते, किसी किसी को गले लगाते और एक बूढ़े समर्थक को तो उन्होंने गाड़ी की अगली सीट पर अपने साथ बिठा लिया.
रास्ते में अगर ढेर सारे लोग अपनी मांगों की फेहरिस्त उन्हें सौंपने की कोशिश करते हैं तो थोड़ा ग़ुस्से और थोड़ी मासूमियत के साथ उनसे कहते हैं, ''यार सिर्फ़ चार दिन रुक जा, फिर सब कर देंगे.''
ग़ौरतलब है कि मध्यप्रदेश में 25 नवंबर को चुनाव होने वाले हैं.
क्षेत्र की प्रगति के लिए अपनी योजना के बारे में पूछे जाने पर कहते कि रोज़गार लाने के लिए सबसे ज़रूरी है कि वातावरण सही हो. उनके अनुसार अगर वातावरण सही हो तो उद्योग ख़ुद-ब-ख़ुद खिंचे चले आते हैं.
इरादा रिकॉर्ड तोड़ने का

अपनी हर सभा में एक ही बात कहते हैं कि एक-एक वोट क़ीमती है और सभी को 25 नवंबर को हर काम छोड़ कर वोट डालने की अपील करते हैं.
वो ख़ुद तो नहीं कहते लेकिन उनके समर्थक कहते हैं कि वो 54 हज़ार
वोटों से जीत कर अपने पिता के रिकॉर्ड को तोड़ना चाहते हैं.
1998 में दिग्विजय सिंह ने इसी सीट से 54 हज़ार वोटों से जीत हासिल की थी. लेकिन दिग्विजय सिंह उस समय मुख्यमंत्री थे जबकि जयवर्द्धन का ये पहला चुनाव है.
उनके समर्थक दावा करते हैं कि उनके विरोधी भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार राधेश्याम धाकड़ की ज़मानत ज़ब्त हो जाएगी.
'लड़ाई किले और किसान की'
इन तमाम दावों को ख़ारिज करते हुए भाजपा उम्मीदवार राधेश्याम धाकड़ अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हैं.
बीबीसी से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि ये क़िले और किसान के बीच की लड़ाई है.
धाकड़ कहते हैं, ''जनता ने सोच लिया है कि क़िले और किसान के बीच का जो चुनाव है वो चुनाव अब जनता लड़ रही है. लगता है कि इस बार क़िला हारेगा और किसान जीतेगा.''
धाकड़ के अनुसार, ''34 साल से इस क्षेत्र पर कांग्रेस का शासन रहा है लेकिन गांव में सड़कें नहीं है, बिजली नहीं तार नहीं. कहीं कोई विकास नहीं है.''
धाकड़ के तमाम दावों और आरोपों को नज़रअंदाज़ करते हुए जयवर्द्धन अपनी जीत को महज़ औपचारिकता मानते हुए अभी से आगे की बात करते हैं.
'सब कुछ ठीक ठाक है'

बातों-बातों में कह गए कि मध्यप्रदेश कांग्रेस में काफ़ी सारे मज़बूत नेता रहे हैं लेकिन उनमें एकता की कमी है.
लेकिन फ़ौरन ही अपने बयान पर मानो सफ़ाई देते हुए कहते हैं कि अब सबकुछ ठीक है और पिछले छह महीनों से उन नेताओं में एकता भी है क्योंकि कांग्रेस को मध्यप्रदेश जीतना है तो वो एकता से ही हो सकता है.
इस चुनाव में अपने पिता दिग्विजय सिंह की भूमिका में पूछे जाने के बारे में कहते हैं कि वो पार्टी हाईकमान के आदेशों का पालन कर रहे हैं.
लेकिन एक बात उन्होंने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा कि दिग्विजय सिंह अब राष्ट्रीय राजनीति में ही रहेंगे वो प्रदेश में नहीं आएंगे.
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