रघुराम राजन: अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चुनौती

भारतीय रिजर्व बैंक उदारीकरण के बाद सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण दौर से गुज़र रहा है. इन हालात में 5 सितंबर से रिजर्व बैंक के गवर्नर की ज़िम्मेदारी संभालने जा रहे रघुराम राजन के लिए यह तलवार की धार पर चलने जैसा है.
<link type="page"><caption> रघुराम राजन</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/08/130806_raghuram_rajan_rbi_governor.shtml" platform="highweb"/></link> दुनिया भर में पहली बार उस समय चर्चा में आए जब 2008 में वैश्विक आर्थिक मंदी की उनकी भविष्यवाणी सच साबित हुई.
राजन ने यह भविष्यवाणी 2005 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में मुख्य अर्थशास्त्री रहते हुए की थी.
अब उन्हें यह साबित करना है कि संकट की भविष्यवाणी करने के साथ ही अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने की महारत भी उन्हें हासिल है.
भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय चालू खाता घाटा, रुपये में गिरावट, विदेशी निवेश में कमी और विकास दर में कमी जैसे चौतरफा दबावों से जूझ रही है.
शानदार कैरियर

राजन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) नई दिल्ली, भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के छात्र रह चुके हैं.
एक छात्र के रूप में वह हर जगह गोल्डमेडलिस्ट रहे हैं और यह महज इत्तफाक नहीं है कि बतौर गवर्नर उन्हें जिन चुनौतियों का सामना करना है उसमें सोने के आयात को नियंत्रित करना भी शामिल है.
रिजर्व बैंक से राजन का जुड़ाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि एक दशक बाद रिजर्व बैंक का गवर्नर कोई अर्थशास्त्री होगा. उनका कार्यकाल 3 वर्ष का है.
उन्हें एक युवा गवर्नर के रूप में देखा जा रहा है, जो रिजर्व बैंक की कार्य संस्कृति में शामिल सरकारी तौर-तरीकों की जगह अधिक पेशेवर माहौल को तरजीह देंगे.
जीवन के 50 बसंत पार कर चुके राजन की उम्र उनके पूर्ववर्ती गवर्नर डी. सुब्बाराव के मुकाबले 13 साल कम है.
राजन 5 सितंबर को गवर्नर के रूप में विधिवत काम शुरू करने से पहले रिजर्व बैंक में तीन सप्ताह के लिए विशेष कार्याधिकारी के रूप में काम करेंगे.
चुनौतियाँ
राजन के सामने सबसे बड़ी चुनौती भारत को 1991 जैसे भुगतान संतुलन के संकट से बचाना है.
रुपये की गिरावट के कारण एक ओर आयात महंगे होते जा रहे हैं, और दूसरी ओर विदेशी निवेशक भारत में निवेश करने से कतरा रहे हैं. ऐसे में सरकार के सामने विदेशी देनदारी चुकाने को लेकर संकट पैदा हो सकता है.
सिर्फ मई में ही रुपये में 15 प्रतिशत की ज़ोरदार गिरावट देखी गई.
देश की विकास दर घटकर पांच प्रतिशत रह गई है, जो पिछले एक दशक के दौरान सबसे कम है.
महंगाई के मोर्चे पर चुनौतियाँ लगातार बनी हुई हैं. ऐसे में केन्द्रीय बैंक मौद्रिक नीति के जरिए उद्योगों को राहत देने की स्थिति में नहीं है. अगर हालात सुधरते नहीं हैं तो बेरोजगारी और बैंकिंग क्षेत्र में एनपीए बढ़ने का खतरा है.
विदेशी निवेशकों के रोकना भी बड़ी चुनौती है क्योंकि बढ़ते राजकोषीय घाटे और महंगाई के कारण उनकी पूंजी की कीमत घटती जा रही है.
उम्मीदें

रघुराम राजन को उनकी साफगोई के लिए जाना जाता है. गवर्नर के रूप में उनके नाम की घोषणा के बाद उन्होंने कहा कि, “मेरे पास आर्थिक कठिनाइयों को दूर करने के लिए कोई जादू की छड़ी नहीं है.”
लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि “यह चुनौतीपूर्ण परिवेश है और हम इन चुनौतियों से पार पा लेंगे.”
राजन को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में मुख्य अर्थशास्त्री रहते हुए वित्तीय संकटों से निपटने का लंबा अनुभव है.
राजन कई बार स्थापित मान्यताओं को गलत साबित करते हुए खुद को सही साबित कर चुके हैं. उम्मीद है कि इस बार भी ऐसा ही होगा.
हालांकि, इन संकटों को परास्त करने के लिए उनकी तरकश में तीरों की कमी है और ऐसा तभी हो सकता है जब सरकार सकारात्मक दिशा में आर्थिक सुधारों को बढ़ावा दे.
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