बिहार मिड डे मील: नौ दिन चले अढ़ाई कोस

- Author, अमरनाथ तिवारी
- पदनाम, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए
बिहार के शिक्षा मंत्री प्रशांत कुमार शाही के गांव में भी स्कूलों की हालत ख़स्ता है.
गाँव में दो स्कूल हैं लेकिन मूलभूत ज़रूरतें किसी की पूरी नहीं, प्राथमिक स्कूल के पास तो इमारत, पीने के पानी जैसी चीज़ें भी नहीं हैं.
खाना बनाने और राशन रखने की व्यवस्था वही है जो धर्मसती गंडामन गांव में थीं.
सरकार के स्थिति सुधारने के <link type="page"><caption> दावों को जवाब</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/08/130802_politics_on_middaymeal_mishap_rd.shtml" platform="highweb"/></link> धर्मसती गंडामन गांव के नज़दीक का एक गांव देता है- जहां लोगों ने मध्याह्न भोजन परोसने पर स्कूल जलाने की धमकी दी है.
बारिश मतलब छुट्टी
बिहार के शिक्षा मंत्री प्रशांत कुमार शाही का गांव अंगौता सिवान ज़िले में पड़ता है.
गोपालगंज ज़िले की सीमा से लगे गांव में एक प्राथमिक और एक माध्यमिक स्कूल है.
प्राथमिक स्कूल शाही के घर से आधा किलोमीटर से भी कम दूरी पर स्थित है.
स्कूल में 159 <link type="page"><caption> बच्चों का दाखिला</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/08/130806_bihar_pmch_children_discharged_rd.shtml" platform="highweb"/></link> है लेकिन स्कूल के पास न तो इमारत है और न ही किचन.
कक्षाएं खुले में पेड़ के नीचे लगती हैं. बच्चे ज़मीन पर बैठते हैं और छह <link type="page"><caption> शिक्षकों के लिए</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/07/130724_bihar_mid_day_teachers_an.shtml" platform="highweb"/></link> प्लास्टिक की कुर्सियां हैं.

पढ़ाई बिना ब्लैकबोर्ड के होती है हालांकि मुख्य अध्यापिका नीतू कुमारी कहती हैं, “हमारे पास ब्लैकबोर्ड हैं लेकिन वह किसी के घर रखे हुए हैं.”
स्कूल का किचन स्कूल के पास ही सिंचाई विभाग के एक खाली ट्यूबवेल के कक्ष में है.
स्कूल के पास पीने के पानी का इंतज़ाम तक नहीं है. पीने के पानी के लिए पास ही में पीर बाबा की मज़ार में लगे हैंडपंप का सहारा लेना पड़ता है.
खाना खाने के लिए बच्चों को बर्तन अपने घर से लाने पड़ते हैं.
क्योंकि पानी से बचने का कोई इंतज़ाम नहीं है इसलिए बारिश के दिन स्कूल बंद रहता है.
स्कूल में खाना बनाने वाली दो महिलाएं हैं चंद्रवती देवी और शिव दुलारी.
सफाई और स्वच्छता के सवालों पर मौन रहती हैं या गर्दन हिलाकर हां-ना में जवाब देती हैं.
गंडामन वाला हादसा उन्होंने सुना है और खाना बनाते वक्त सावधानी बरतने के सवाल का जवाब हां में देते वक्त वो प्रधान अध्यापिका का चेहरा देखती हैं.
पढ़ाई नहीं खाना

मुख्य अध्यापिका और एक शिक्षक प्रवीण कुमार राय दावा करते हैं कि खाना बनाते वक्त पूरी सावधानी बरती जाती है.
शिक्षक कहते हैं, “बच्चों को खाना परोसने से पहले हम खुद चख कर देखते हैं.”
इसके साथ ही वह सवाल पूछते हैं, “इन छोटे-छोटे बच्चों की ज़िंदगी के साथ कौन खेलना चाहेगा.”
खाने का कच्चा सामान गांव में स्थित चंदेश्वर शाह की दुकान से ख़रीदा जाता है और इसे मुख्य अध्यापिका नीतू कुमारी के घर पर रखा जाता है.
यह पूछने पर कि क्या उन्हें गंडामन जैसे किसी हादसे का डर नहीं लगता?
नीतू कहती हैं, “और चारा ही क्या है? हमारे पास स्कूल की इमारत नहीं है और खाने का सामान खुले में नहीं छोड़ा जा सकता.”
स्कूल में कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है और नज़दीकी पुलिस स्टेशन यहां से 13 किलोमीटर दूर नौतन में है.
स्कूल के शिक्षक और विद्यार्थी कहते हैं कि गंडामन हादसे के बाद से उनकी दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं आया है.
राय कहते हैं, “कुछ दिन तक कुछ बच्चों ने खाना खाने से इनकार कर दिया था लेकिन फिर शुरू कर दिया.”

हालांकि शिक्षक स्वीकार करते हैं कि उस हादसे के बाद स्कूल का सारा ध्यान पढ़ाई के बजाय <link type="page"><caption> मध्याह्न भोजन</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/07/130725_mid_day_meal_dp.shtml" platform="highweb"/></link> पर केंद्रित हो गया है.
नीतू कहती हैं, “आप खुद ही देख सकते हैं कि पिछले छह साल से स्कूल के नाम पर क्या सुविधाएं उपलब्ध हैं और वह भी शिक्षा मंत्री के अपने गांव में.”
भगवान ही मालिक
गंडामन हादसे के बाद राज्य सरकार ने सभी प्राथमिक <link type="page"><caption> स्कूलों</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/07/130724_bihar_school_midday_scheme_ns.shtml" platform="highweb"/></link> को माध्यमिक स्कूलों में मिलाने का ऐलान किया था.
लेकिन मुख्य अध्यापिका कहती हैं, “हम इस फ़ैसले से ख़ुश नहीं हैं, न ही बच्चे वहां जाना चाहते हैं.”
माध्यमिक स्कूल शिक्षा मंत्री के बड़े घर के ठीक बाहर है. स्कूल की अपनी इमारत है लेकिन रसोई नहीं.
स्कूल के प्रधानाचार्य दिनेश मिश्रा कहते हैं, “स्कूल के पास जो भी ज़मीन थी उसमें कक्षाएं बन गईं. अब न खेल का मैदान है न किचन की जगह.”
स्कूल के पास किसी और की ज़मीन पर मध्याह्न भोजन बनाया और खिलाया जाता है.

मिश्रा कहते हैं, “किचन के छप्पर और खाने की अन्य ज़रूरतों की राशि भी हर साल वापस चली जाती है.”
हालांकि वह कहते हैं कि खाना बनाते हुए ख़ास ऐहतियात बरती जाती हैं लेकिन फिर बुदबुदाते हैं, “भगवान ही मालिक है.”
“जला देंगे स्कूल”
16 जुलाई को मध्याह्न भोजन हादसा जिस मसरख ब्लॉक में हुआ था वहां ज़्यादातर स्कूलों में विद्यार्थियों और अभिभावकों ने मध्याह्न भोजन बंद करवा दिया है.
धर्मसती गंडामन गांव के नज़दीक रतनकोठी गांव में एक गांववासी कहते हैं, “हम उन्हें स्कूल में खाना नहीं परोसने देंगे, यह हमारे बच्चों को मार देता है.”
वह आगे कहते हैं, “अगर उन्होंने स्कूल में खाना परोसा तो हम स्कूल को जलाकर ख़ाक कर देंगे.”
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