'हम तो भूल जाएं, बाहर वाले भूलने दें तब तो'

- Author, इक़बाल अहमद
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
दिल्ली की एक निचली अदालत ने गुरूवार को दिए अपने फ़ैसले में बहुचर्चित बटला हाउस मुठभेड़ में मारे गए दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की मौत के लिए शहज़ाद अहमद को दोषी क़रार दिया.
फ़ैसले के बाद बटला हाउस इलाक़े के लोगों में मायूसी छा गई. कई लोगों ने तो यहां तक कह दिया कि उन्हें पहले से ही इस बात की आशंका थी कि अदालत का फ़ैसला शहज़ाद अहमद के ख़िलाफ़ जाएगा.
ग़ौरतलब है कि 13 सितंबर, 2008 को दिल्ली में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे. उसके लगभग एक सप्ताह बाद 19 सितंबर को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने बटला हाउस इलाके में स्थित फ़्लैट नंबर एल-18 में मुठभेड़ कर साजिद और आतिफ़ को मार दिया था. उसी मुठभेड़ में पुलिस इस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की भी मौत हुई थी.
उस समय पुलिस ने दावा किया था कि साजिद और आतिफ़ ने ही अपने साथियों के साथ मिलकर दिल्ली में बम धमाके किए थे. पुलिस के अनुसार साजिद और आतिफ़ के कुछ साथी मुठभेड़ के समय भागने में सफल हो गए थे.
फ़रवरी 2010 में शहज़ाद अहमद को उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ में यूपी पुलिस ने गिरफ़्तार किया था. बाद में दिल्ली पुलिस ने शहज़ाद अहमद को अपनी हिरासत में ले लिया था और दिल्ली की अदालत में इसी मामले में मुक़दमा चल रहा था जिसपर गुरूवार को अदालत ने फ़ैसला सुनाया.
मनीषा सेठी: मानवाधिकार कार्यकर्ता

बटला हाउस मुठभेड़ के बाद जामिया विश्वविद्यालय के कुछ शिक्षकों ने एक संगठन बनाया था जिसका नाम है जामिया टीचर्स सॉलिडैरिटी एसोसिएशन. मनीषा सेठी उसकी अध्यक्ष हैं और बटला हाउस मुठभेड़ के ख़िलाफ़ वो पिछले पांच साल से संघर्ष कर रही हैं.
मनीषा का कहना है कि ये मुक़दमा बटला हाउस मुठभेड़ के फ़र्ज़ी होने या न होने के बारे में नहीं है. ये मुक़दमा सिर्फ़ इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की मौत के बारे में है और इसमे आतिफ़ और साजिद की मौत के बारे में कोई बात नहीं हो रही है.
मनीषा का कहना था, ''निराशा तो है यक़ीनन बहुत निराशा है, लेकिन हम हताश नहीं है हमारा कैंपेन जारी रहेगा. ये तो लोअर कोर्ट (निचली अदालत) है. 2012 में दिल्ली हाई कोर्ट से लाजपत नगर बम धमाके पर एक फ़ैसला आया था जिसमें लोअर कोर्ट से जिन दो लोगों को मौत की सज़ा मिली थी, उन्हें अदालत ने बरी कर दिया.''
मसीह आलम: स्थानीय निवासी और पेशे से वकील

एल-18 के ठीक बग़ल में रहने वाले पेशे से वकील मसीह आलम का कहना है कि इस फ़ैसले के बाद पूरे इलाक़े में मायूसी छाई हुई है. मसीह आलम का कहना है कि वे उन कुछ गिने चुने लोगों में हैं जिन्होंने 19 सितंबर 2008 को सब कुछ अपनी आंखों से देखा था.
मसीह आलम कहते हैं, ''इसको यहां के लोग न भूले हैं और न आगे भूलेंगे. इस एनकाउंटर की वजह से यहां के लोग जॉब (नौकरी) में, एडमिशन (दाख़िले) में दिक़्क़त का सामना करते हैं. जैसे ही जामिया नगर या बटला हाउस का पता लोग देखते हैं तो फिर याद ताज़ा हो जाती है और सबको उसी नज़र से देखा जाने लगता है.''
क़्यामुद्दीन: स्थानीय निवासी और पेशे से व्यवसायी

क़्यामुद्दीन का कहना है कि अगर वे पांच साल पहले हुई <link type="page"><caption> मुठभेड़</caption><url href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/02/120210_batla_congress_pp.shtml" platform="highweb"/></link> को भूलना भी चाहें तो बाहर (बटला हाउस के बाहर रहने वाले) वाले हमें भूलने नहीं देंगे.
क़्यामुद्दीन कहते हैं, ''जब भी कहीं आपका बायो-डेटा लगेगा, आपसे पूछा जाएगा कि आप बटला हाउस के रहने वाले हैं. बटला हाउस का मतलब एल-18 है. लेकिन जहां तक अदालत के फ़ैसले का सवाल है हम उसको सिर पर रखते हैं और अदालत जो करेगी अच्छा करेगी.''
अमानतुल्लाह: स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता

बटला हाउस इलाक़े में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अमानतुल्लाह का कहना है कि शहज़ाद अहमद को दोषी क़रार दिए जाने से केवल वे ही नही बल्कि पूरे इलाक़े के लोग दुखी हैं.
अमानतुल्लाह के अनुसार उन्हें पहले से इस बात की आशंका थी कि अदालत का फ़ैसला शहज़ाद के ख़िलाफ़ होगा.
बीबीसी से बातचीत के दौरान उनका कहना था, ''हुक़ूमत ने ये कहते हुए न्यायिक जांच नहीं करवाई क्योंकि इससे पुलिस का मनोबल कम होगा. लेकिन अब तो अदालत के फ़ैसले के बाद पुलिस का मनोबल बढ़ गया है तो अब सरकार न्यायिक जांच करवा दे.''
अमानतुल्लाह के अनुसार अदालत के फ़ैसले पर उन्हें पूरा यक़ीन है और हमेशा रहेगा लेकिन उनकी लड़ाई जारी रहेगी और निचली अदालत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ वो हाई कोर्ट जाएंगे.
मोहम्मद फ़िरोज़ आलम: स्थानीय निवासी

मोहम्मद फ़िरोज़ आलम जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय के सेवा निवृत्त प्रोफ़ेसर हैं. बीबीसी से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि अदालत का फ़ैसला तो सबको मानना है लेकिन इस पूरे मामले की जांच ठीक से होनी चाहिए.
फ़िरोज़ आलम का कहना था, ''मुसलमानों को तो सरकार ने अपना ज़रख़रीद (ख़रीदा हुआ) समझ रखा है और हमारे नेता तो बिल्कुल 'बिकाऊ' हैं. पूरे मुहल्ले के लोग यहां तक की रिक्शे वाले का भी कहना है कि पुलिस वाले आपस में गोलियां चला रहे थे. इस मामले की जांच के लिए क्या कोई भी यहां आया. उन्होंने यहां आकर सब चीज़ों को मालूम किया?.''
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