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कर्नाटक में कांग्रेस के वो पांच वादे और उन्हें गढ़ने वाली टीम
- Author, इमरान क़ुरैशी
- पदनाम, बीबीसी हिंदी के लिए
कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को जीत की दहलीज पर पहुंचाने का श्रेय एआईसीसी महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला की अगुवाई वाले रणनीतिक ग्रुप को दिया जा रहा है.
इस ग्रुप में पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और केपीसीसी अध्यक्ष डीके शिवकुमार थे. लेकिन इसके साथ एक बैकरूम टीम भी थी जिसकी अगुवाई अनुभवी चुनावी रणनीतिकार सुनील कनुगोलू और पूर्व आईएएस अधिकारी शशिकांत सेंथिल कर रहे थे.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री कृष्णा बायरे गौड़ा ने बीबीसी को बताया, "सुरजेवाला और सुनील इस चुनाव में तालमेल बिठाने वाले मुख्य व्यक्ति थे."
जब सुरजेवाला को एआईसीसी महासचिव इंचार्ज कम्युनिकेशंस के पद से कर्नाटक का इंचार्ज बनाया गया, उसके ठीक बाद ही जनता की नब्ज़ टटोलने का सबसे पहला फैसला लिया गया.
इसी अध्ययन के आधार पर पार्टी को पता चला कि लोगों की मुख्य परेशानी आर्थिक थी.
इसी से सबक लेकर सिद्धारमैया, शिवकुमार और सुरजेवाला की तिकड़ी ने 'पांच गारंटी' पर काम करना शुरू किया.
कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) के वर्किंग प्रेसिडेंट सलीम अहमद ने बीबीसी को बताया, "सुरजेवाला ने एक महत्वपूर्ण बिंदु पर ज़ोर दिया कि लोग कभी ये नहीं देखते कि पार्टी मेनिफ़ेस्टो में क्या लिखा गया है. इसलिए वही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सुझाव दिया कि हमें बुनियादी मुद्दों को तय करना चाहिए और इस बात पर अभियान चलाना चाहिए कि पार्टी क्या क्या गारंटी दे सकती है."
'पांच गारंटी' का वादा ऐसे आया सामने
इस तरह ग़रीब परिवारों को 200 यूनिट फ़्री बिजली देने की पहली गारंटी सामने आई. इसके बाद सिद्धारमैया ने ग़रीब परिवारों को हर महीने 10 किलो चावल की गारंटी देने सुझाव दिया.
अहमद कहते हैं, "आप जानते ही होंगे कि बीजेपी सरकार ने सिद्धारमैया की पुरानी अन्न भाग्य स्कीम के तहत दिए जाने वाले 7 किलो चावल की मात्रा कम करके चार किलो कर दिया था. इसने ग़रीबों को वाक़ई तकलीफ़ पहुंचाई."
सिद्धारमैया 2013-2018 तक पांच साल राज्य में मुख्यमंत्री रहे थे.
इसके बाद महिलाओं के मद्देनज़र अन्य वायदे आए.
जैसे परिवार चलाने वाली महिलाओं को हर महीने 2000 रुपये की मदद, स्नातक की पढ़ाई करने वाल युवाओं को दो साल तक 2,000 रुपये और डिप्लोमा होल्डर्स को दो साल तक 1500 रुपये प्रति माह बेरोज़गारी भत्ता दिए जाने का वादा.
और अंत में राहुल गांधी ने महिलाओं को फ़्री बस पास मुहैया कराने का ऐलान किया.
कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बीबीसी से कहा, "सबसे अहम बात ये रही कि सुरजेवाला ने दो ताक़तवर शख़्सियतों सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच संतुलन बनाए रखने में भूमिका निभाई."
'पे-सीएम' अभियान
नाम न ज़ाहिर करते हुए एक अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने कहा, "एक समय ऐसा भी आया जब मेनिफ़ेस्टो कमेटी के चेयरमैन डॉ. परमेश्वरा ने पहली चार गारंटियों को जारी करने का विरोध किया. लेकिन सुरजेवाला का तर्क कि इतने लंबे मेनिफ़ेस्टो को कोई नहीं पढ़ेगा, बाकी लोग राज़ी हो गए."
वो बताते हैं, "अधिकांश फ़ैसले सुनील कनुगोलू और शशिकांत सेंथिल से सलाह मशविरे के बाद ही लिये गए."
लेकिन ये भ्रष्टाचार को निशाना बनाने वाला अभियान ही था, जिसमें सुनील कनुगोलू की अगुवाई वाली बैकरूम की टीम ने बासवराज बोम्मई की सरकार को बुरी तरह परेशान किया.
ये पूरा अभियान स्टेट कांट्रैक्टर एसोसिएशन के उस पत्र पर खड़ा किया गया, जिसे उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा था और आरोप लगाया था कि टेंडर पास करने के लिए उनसे 40% कमीशन देने को मजबूर किया जा रहा है.
टीम ने लोकप्रिय यूपीआई ऐप के क्यूआर कोड की कॉपी करते हुए पे-सीएम अभियान चलाया ताकि लोगों को ये ठोस संदेश दिया जा सके कि ये एक भ्रष्ट सरकार है.
इसके पोस्टर पूरे बेंगलुरु शहर में चिपकाए गए और ऐसा करते हुए जब कुछ पार्टी कार्यकर्ता गिरफ़्तार हुए तो कांग्रेस नेताओं ने सरकार को चुनौती दी और शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे शीर्ष नेताओं ने खुद जाकर पोस्टर चिपकाना शुरू किया, प्रदर्शन किया और गिरफ़्तारी दी.
कांग्रेस ने सेट किया एजेंडा
भ्रष्टाचार के आरोपों और गारंटी के वायदे की असरदार काट बीजेपी कभी नहीं कर पाई.
एक मीटिंग में पीएम मोदी ने 'रेवड़ी कल्चर' का ज़िक्र किया. लेकिन जब बीजेपी ने अपना मेनीफ़ेस्टो
जारी किया तो उसमें उगाडी, गणेण चतुर्थी और दीपावली पर तीन गैस सिलेंडर मुफ़्त देने का वादा किया गया था.
कई राजनीतिक विश्लेषकों ने इसका ज़िक्र किया है कि कांग्रेस ने इस बार उसी तरह एजेंडा सेट किया जैसा पिछले नौ सालों में बीजेपी करती आ रही थी.
सुनील कनुगोलू
- सुनील कनुगोलू प्रशांत किशोर की शुरुआती टीम में थे.
- इस टीम ने 2014 में नरेंद्र मोदी की जीत की रणनीति बनाई थी.
- बाद में सुनील इससे अलग हो गए. उन्होंने तमिलनाडु की पार्टियों के लिए भी चुनाव अभियान की रणनीति बनाई
शशिकांत सेंथिल
- सेंथिल एक आईएएस अफ़सर थे. और इस्तीफ़ा देने से पहले वो दक्षिण कन्नड़ ज़िले के डिप्टी कमिश्नर थे.
- उन्हें महसूस कि, "ऐसे समय में जब विविधता वाले लोकतंत्र के बुनियादी उसूलों से एक एक कर समझौता किया जा रहा हो, एक नौकरशाह के रूप में काम जारी रखना अनैतिक था."
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