अमूल नंदिनी विवादः दूध पर क्यों उबल रही है कर्नाटक की राजनीति?

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- Author, इमरान क़ुरैशी
- पदनाम, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
भारत के सबसे बड़े दूध ब्रांड अमूल के बैंगलुरू में दूध बेचने के प्रस्ताव से खड़ा हुआ हंगामा कर्नाटक चुनाव में मुद्दा बन गया है. अमूल के इस प्रयास को कर्नाटक मिल्क फ़ेडेरेशन (केएमएफ़) के ब्रांड नंदिनी के क्षेत्र में घुसपैठ के रूप में देखा जा रहा है.
ये बहस अमूल की तरफ़ से एक अधिकारिक ट्वीट करने के बाद शुरू हुई है. इसमें अमूल ने अपनी योजना के बारे में बताया था. अब मीडिया और सोशल मीडिया में इसे पश्चिमी राज्य गुजरात के ब्रांड के दक्षिणी राज्य कर्नाटक में अपने पैर पसारने की कोशिश के रूप में पेश किया जा रहा है और इस पर तीखी बहस हो रही है. राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो ये क्षेत्रीय अस्मिता का मुद्दा बन गया है.
अमूल के इस क़दम पर इसलिए भी सवाल उठाए जा रहे हैं क्योंकि दूध उत्पादन संघों के बीच एक अलिखित आपसी समझ ये है कि एक सहकारी संघ दूसरे सहकारी संघ दूसरे सहकारी संघ के क्षेत्र में दख़ल नहीं देगा और दूसरे राज्यों में पैर नहीं पसारेगा.
लेकिन दूध सहकारी कारोबार में काम करने वाले अन्य ब्रांड के मुक़ाबले अमूल का नज़रिया अलग है.
क्या अमूल और नंदिनी प्रतिद्वंदी हैं?

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अमूल के प्रबंध निदेशक जेएन मेहता ने बीबीसी से कहा, "हम नंदिनी को चोट पहुंचाने के लिए अपने दूध का दाम कम नहीं कर रहे हैं. हमारी नज़र में नंदिनी एक बहुत मज़बूत ब्रांड है. हमारा दूध मुंबई से लेकर दिल्ली और चंडीगढ़ तथा देश के अन्य शहरों में 54 रुपए लीटर बिकता है. ये बैंगलुरू में भी इसी दाम पर बिकेगा. नंदिनी अपना दूध 39 रुपए लीटर बेचती है."
टेटरापैक दूध, लस्सी और चॉकलेट जैसे अमूल के उत्पाद बैंगलुरू और समूचे कर्नाटक की दुकानों पर बिकते हैं.
मेहता कहते हैं, "वास्तव में, अमूल की आईसक्रीम बैंगलुरू, हासन और बेल्लारी में केएमएफ़ के तीन प्लांटों में उत्पादित होती है. बैंगलुरू और दक्षिण भारत के बाज़ार में अपने ग्राहकों की मांग पूरी करने के लिए हम रोज़ाना नंदिनी से तीस से पैंतीस हज़ार लीटर आईसक्रीम ख़रीदते हैं. हमारे नंदिनी के साथ बहुत अच्छे रिश्ते हैं क्योंकि हमारा मिशन और मूल्य एक ही हैं."
केएमएफ़ के प्रबंध निदेशक बीसी सतीश ने बीबीसी हिंदी से कहा, "जब हमारे पास अतिरिक्त दूध होता है, तब हम अन्य सहाकरी उत्पादकों का उनके उत्पादन में सहयोग करते हैं. इसे को-पैकिंग कहते हैं, हम अमूल और अन्य कारोबारी समूहों केसाथ ऐसा करते हैं. जब हमारे पास अतिरिक्त दूध होता है तो अमूल हमसे पनीर, चीज़ या ऐसे अन्य उत्पाद ख़रीदता है."
अमूल ई-कॉमर्स प्लेटफार्म के ज़रिए बैंगलुरू में ताज़ा दूध बेचने की योजना पर काम कर रहा है. मेहता कहते हैं, "हमने ये महसूस किया कि जिन शहरों में हम दूध नहीं बेचते हैं, वहां भी जब हमने ई-कॉमर्स के डाटा का विश्लेषण किया तो ग्राहकों ने हमें रेस्पांड किया. हम अपने उत्पाद बनाने के लिए नंदिनी का दूध और अधिक इस्तेमाल करेंगे."

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वहीं केएमएफ़ के लिए तर्क देते हुए एक पूर्व अधिकारी ने बीबीसी से अपना नाम न ज़ाहिर करते हुए कहा कि सहकारी संघों के बीच हमेशा से ये अलिखित सहमति थी कि जब तक एक बाज़ार में उत्पाद की कमी नहीं होगी तब तक दूसरा सहकारी संघ वहां दूध उपलब्ध नहीं करवाएगा.
मेहता भी ये मानते हैं कि सहकारी संघों के बीच एक अलिखित समझ थी लेकिन अमूल के ताज़ा क़दम का बचाव करते हुए वो कहते हैं कि अमूल दूध के दाम कम नहीं कर रहा है. वो कहते हैं, "अपने उत्पाद बनाने के लिए भी हम नंदिनी का दूध ख़रीद रहे हैं."
बैंगलुरू में दूध का रोज़ाना बाज़ार तीस से पैंतीस लाख लीटर का है. ये पहली बार नहीं है जब कर्नाटक अमूल से दूध की आपूर्ति ले रहा है. अमूल हुबली-धारवाड़ में रोज़ाना दस हज़ार लीटर तक दूध बेचता है. वहीं नंदिनी उत्तर कर्नाटक में रोज़ाना 1.3 लाख लीटर दूध बेचती है.
अमूल पाउच में तरल दूध तेरह राज्यों में बेचता है. इनमें गुजरात, दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, तेलंगना शामिल हैं. वहीं केएमएफ़ आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, गोवा और महाराष्ट्र में दूध बेचती है.

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सतीश के मुताबिक, केएमएफ बैंगलुरू में रोज़ाना 26 साख लीटर दूध बेचती है जबकि बैंगलुरू में कुल खपत 33 लाख लीटर की है. वो कहते हैं कि जब मांग सर्वोच्च स्तर पर होती है तो रोज़ाना 94.30 लाख लीटर तक दूध की ख़रीद होती है.
सतीश कहते हैं, "उदाहरण के लिए, ओनम के समय केएमएफ़ रोज़ाना चार लाख लीटर दूध केरल को वहां के सहकारी संघ की मांग पर उपलब्ध करवाती है. पड़ोसी राज्यों के बीच दूध के मामले में ऐसा सहयोग हमेशा से होता रहा है."
केएमएफ़ के पूर्व प्रबंध निदेशक प्रेमानंद एसए ने बीबीसी से कहा, "अगर वो बाज़ार में दाख़िल होना चाहते हैं तो उनका इस तरह से कोई विरोध नहीं होना चाहिए. हम सभी डॉ. वर्गीस कूरियन के सहकारी सिद्धांत पर ही चलते हैं. सवाल ये है कि जब नंदिनी के पास मांग से अधिक दूध है तो फिर अमूल बाज़ार में उसके हिस्सा पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश क्यों कर रहा है. केएमएफ़ मुंबई और गोवा में तब ही गई जब वहां आपूर्ति कम थी. जब तक केएमएफ़ को बुलाया नहीं जाता है, केएमएफ़ कहीं नहीं जाती है. लेकिन यहां इस मुद्दे पर कोई राजनीति नहीं है."
हालांकि, इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल एंड इकोनॉमिक चेंज के निदेशक डी राजशेखर कहते हैं, "जहां तक ग्राहकों का सवाल है, राज्य में दूध की खपत कम है. यहां सिर्फ़ मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग ही दूध का इस्तेमाल करता है. ग्रामीण परिवारों में दूध की खपत बहुत कम है. लेकिन अगर अमूल के दूध के दाम 54 रुपये लीटर हैं तो ये एक बड़ा मुद्दा नहीं होगा."
"अभी ये राजनीतिक मुद्दा अधिक लग रहा है. आर्थिक रूप से देखा जाए तो इसका ग्राहकों पर बहुत अधिक असर नहीं होगा. मूल्य निर्धारण में अंतर ऐसा प्रमुख कारक नहीं होने जा रहा है जो केएमफ़ पर असर डालेगा. "
दूध सहकारी संघों और महिला दूध उत्पादकों के सशक्तीकरण पर शोध करने वाले राजशेखर कहते हैं, "लेकिन अगर अमूल कर्नाटक के किसानों से सीधे दूध ख़रीदता है, तो इससे किसानों को फ़ायदा होगा."
राजनीति में उबाल

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इस मुद्दे पर तेज़ हो रही राजनीति के पूछे मूल कारण ये है कि कांग्रेस और जनता दल सेक्यूलर उन 26 लाख किसानों के वोट हासिल करना चाहते हैं जो केएमएफ़ सहकारी संघ के सदस्य हैं. ये केएमएफ़ को दूध आपूर्ति करते हैं.
कांग्रेस ने तो सीधे केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह पर हमला कर दिया है. अमित शाह ने दूध उत्पादकों की एक बैठक में कहा था कि 'अमूल और नंदिनी को सहयोग करना ही चाहिए.'
एक ताज़ा ट्वीट में कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि अमित शाह कर्नाटक का गर्व मानी जाने वाली नंदिनी को नुक़सान पहुंचाने की साज़िश रच रहे हैं.
"अमित शाह गुजरात के बाहर अधिक से अधिक सहकारी संघों पर क़ब्ज़ा करने की साज़िश रच रहे हैं. बाद में चुनावों में इनका राजनीतिक इस्तेमाल किया जाता है."
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एक अन्य ट्वीट में कांग्रेस के सोशल मीडिया प्रभारी वाईबी श्रीवत्स ने कहा है, "बीजेपी ने चुनाव के समय में कर्नाटक में अमूल को नंदिनी के ख़िलाफ़ खड़ा करके बड़ी राजनीतिक भूल क है. ब्रांड नंदिनी एक भावना है और कर्नाटक के लोगों के लिए गर्व का विषय है. नंदिनी के उत्पादों की गुणवत्ता से लोग भलीभांति परिचित हैं और इसके उत्पाद कर्नाटक के हर घर में इस्तेमाल किए जाते हैं. 26 लाख किसान कर्नाटक दूध संघ के सदस्य हैं. ये बीस हज़ार करोड़ रुपए का कारोबार करते हैं और सहकारिता संघ राज्य के 16 ज़िलों में मज़बूत है. कांग्रेस की पिछली सरकार ने किसाों के शीरा भाग्य योजना के तहत प्रतिलीटर पांच रुपए का सहयोग दिया था. इससे साल 2014 में 43 लाख लीटर दूध का उत्पादन साल 2018 में बढ़कर 75 लाख लीटर प्रतिदिन पहुंच गया था. और फिर बीजेपी की सरकार में कोई प्रोत्साहन नहीं दिया गया और अब कर्नाटक में दूध का उत्पादन कम हो गया है और बाज़ार में दूध की कमी हो गई है… "
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वहीं कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने सीधे प्रधानमंत्री को संबोधित एक ट्वीट में कहा है, "गुजरात की बड़ौदा बैंक ने हमारे विजया बैंक को समाहित कर लिया था. बंदरगाहों और एयरपोर्टों को अडानी को दे दिया गया. अब गुजरात की अमूल हमारे केएमएफ़ (नंदिनी) को खा जाना चाहती है. श्री नरेंद्र मोदी, क्या हम लोग गुजरात के दुश्मन हैं?"
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वहीं कांग्रेस के स्टेट प्रेसिडेंट डीके शिवकुमार ने हासन में नंदिनी के एक आउटलेट का दौरा किया और वहां लोगों को नंदिनी के दूध उत्पाद बांटे. उन्होंने कहा, "हमें गुजरात के किसानों से कोई समस्या नहीं है, लेकिन नंदिनी के बाज़ार में सेंध लगाना हमारे लिए अस्वीकार्य है."
एक अन्य ट्विटर यूज़र विनोद डी रत्ती ने कहा, "दोगुली कांग्रेस. कर्नाटक के बाज़ार में हेरिटेज- आंध्र प्रदेश, दोदला-तेलंगाना, मिल्कमिस्ट-तमिलनाडु, अरोक्या- तमिलनाडु, हुटसुन-तमिलनाडु जैसे कई ब्रांड है. फिर सवाल सिर्फ़ मूल पर क्यों?"
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