नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क की अहम बातें कौन सी हैं और क्या है विशेषज्ञों की राय

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    • Author, सुशीला सिंह
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने राष्ट्रीय पाठ्यचर्य की रूपरेखा (एनसीएफ़)-2023 में कई तरह के बदलाव के सुझाव दिए हैं.

स्कूली शिक्षा के लिए जारी किए गए इस प्रारंभिक मसौदे में माध्यमिक शिक्षा में बहु विषयों की पढ़ाई, एक साल में दो बार बोर्ड की परीक्षा और 12वीं में सेमेस्टर प्रणाली लागू करना मुख्य प्रस्ताव है.

इस मसौदे में कक्षाओं में बच्चों के लिए बैठने के इंतज़ाम, स्कूलों में होने वाली एसेंबली, यूनिफ़ॉर्म, भाषा और संस्कृति से जुड़ाव जैसे अन्य विषयों पर भी प्रस्ताव दिए गए हैं.

कक्षाओं को गोलाकार आकार और अर्ध गोलाकार आकार में बिठाने का सुझाव दिया गया है.

इसके अलावा स्कूलों में होने वाली एसेंबली को तकनीकी बनाने की बजाए उन्हें और अर्थकारी बनाने पर ज़ोर दिए जाने की बात कही गई है.

साथ ही स्कूलों में स्थानीय मौसम के हिसाब से पारंपरिक, आधुनिक या जेंडर न्यूट्रल यूनिफ़ॉर्म का विकल्प चुनने का प्रस्ताव दिया गया है.

इस मसौदे में बच्चों के पंचकोश (फ़ाइव फ़ोल्ड) विकास पर ज़ोर दिया गया है और बच्चों को संतुलित आहार, पारंपरिक खेलों, योग आसन के ज़रिए उनके नैतिक विकास पर ज़ोर देने की सिफ़ारिश की गई है.

वहीं अपनी संस्कृति को समझने के लिए अलग-अलग तरह की कहानियों, गीतों, कविताओं और प्रार्थना को सिखाने की भी बात कही गई है.

इस मसौदे के सेकेंडरी स्टेज में चार सालों की बात की गई है जिसमें 9वीं, 10वीं, 11वीं और 12वीं कक्षाएं शामिल हैं.

इसे बच्चों के लिए लचीला बनाने जिसमें बच्चों को बहु विषयों का अध्ययन और विषयों के चयन का विकल्प भी देने की बात कही गई है.

दसवीं पास करने के लिए बच्चों को ह्यूमैनिटी, गणित-कंप्यूटिंग, वोकेशनल एजुकेशन, फ़िज़िकल एजुकेशन, आर्ट्स एजुकेशन, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान और इंटर-डिसिप्लिनरी विषयों में से दो कोर्स लेने होंगे यानी कुल 16 कोर्स को दो साल 9वीं और 10वीं में पूरा करना होगा.

वहीं 11वीं और 12वीं में छात्रों को इन्हीं में से चयन किए गए कोर्सेज़ दिए जाएंगे.

वहीं इस मसौदे के मुताबिक़ 11वीं और 12वीं में साल के अंत में एक परीक्षा की बजाए मॉड्यूलर बोर्ड परीक्षा यानी साल में दो बार करने और दोनों सेमेस्टर के अंक मिलाकर मूल्यांकन किए जाने का प्रस्ताव दिया गया है

628 पन्ने के इस मसौदे पर छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों, पेशेवर और विशेषज्ञों से राय मांगी गई है.

एनसीएफ़, नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 का नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क का मुख्य भाग है. जहां कुछ जानकारों का मानना है कि स्कूली शिक्षा प्रणाली को सकारात्मक तौर पर एनईपी के अनुरूप बनाया जाए ताकि बच्चों को उच्चतम गुणात्मक शिक्षा दी जा सके.

वहीं एक पक्ष का कहना है कि एनसीएफ़ एक मार्गदर्शक हो सकता है, न कि निर्देश देता हुआ नज़र आए.

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प्रोफ़ेसर अनीता रामपाल

दिल्ली यूनिवर्सिटी में फैकल्टी ऑफ़ एजुकेशन में पूर्व डीन प्रोफ़ेसर अनीता रामपाल के अनुसार ये केंद्र की ओर से जारी किया गया एक विस्तृत दस्तावेज़ है और इसमें इतनी बारिकी में जाने की ज़रूरत नहीं थी.

इससे पहले करिकुलम फ्रेमवर्क ऐसे नहीं आता था. ये एक तरह से निर्देश देने वाला नज़र आ रहा है जबकि ये सिलेबस बनाने वाले विशेषज्ञों या शिक्षकों के लिए मार्गदर्शक होना चाहिए था.

असेंबली कितने समय के लिए होगी, यूनिफॉर्म क्या होगी या किसी विषय का सिलेबस क्या होगा ये सब राज्यों पर छोड़ा जाना चाहिए क्योंकि एक संघीय ढांचे में राज्य अपनी समझ और संदर्भ से अपने करिकुलम पर विचार-विमर्श करते हैं, बनाते हैं, बदलाव करते हैं साथ ही कई संस्थाएं भी करिकुलम बनाने का काम करती हैं.

दरअसल एनसीएफ, पाठ्यक्रम में संवैधानिक मूल्यों, शैक्षणिक मूल्य और विचार पर मार्गदर्शन देता है लेकिन राज्य अपना करिकुलम खुद बनाते हैं. इसके बाद केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (CABE) सभी राज्यों की सहमति के बाद इसे स्वीकृति देता है जो एक गाइडिंग फ्रेमवर्क की तरह इस्तेमाल होता है.

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इसमें न केवल ये बताया गया है कि बच्चे कक्षा में कैसे बैठें, एसेंबली कैसी हो या सिलेबस में क्या हो बल्कि इसके और खंड आएंगे तो क्या ये उपयुक्त है और बाकी राज्यों में इसका क्या असर होगा जो इस पर काम करता है.

वहीं एनसीईआरटी भी एक प्रक्रिया के तहत ही करिकुलम और पाठ्यपुस्तकों पर काम करती है ऐसे में ये चिंता का विषय है.

वहीं 9वीं और 10वीं के विषयों को लेकर आठ एरिया में परिभाषित किया गया है जिसमें से दो-दो कोर्स लेने होंगे जो कुल मिलाकर 16 कोर्स हो जाएंगे. ये देखने में तो लगता है कि बच्चों को कई विकल्प दिए हैं लेकिन क्या हर स्कूल में बच्चों को इन कोर्स को चुनने की सुविधा मिल पाएगी, क्या उन विषयों को पढ़ाने के लिए शिक्षक उपलब्ध होंगे?

साथ ही 16 कोर्स की बात हो रही है ऐसे में 9वीं और 10वीं में बच्चे इन कोर्स की कितनी गहराई में जा पाएंगे, उनकी कितनी समझ विकसित हो सकेगी?

दिल्ली की ही बात की जाए तो एक तिहाई स्कूलों में विज्ञान का विषय दिया ही नहीं जाता. ऐसे में अगर छात्र दसवीं के बाद नए विषयों का चयन करें तो उसका क्या होगा.

उदाहरण के तौर पर 10वीं तक सामान्य विज्ञान पढ़ाया जाता है जो भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान का इंटिग्रेटिड या समेकित रूप होना चाहिए, लेकिन देखा ये जाता है कि सामान्य विज्ञान की पुस्तक में अलग-अलग विषयों के पाठ होते हैं जिन्हें एक शिक्षक पढ़ाने में संकोच करते हैं.

ऐसे में एक सिस्टम सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षक इस तरह से कक्षाएं ले पाए.

वहीं वोकेशनल कोर्स की जो बात हो रही है तो आप ऐसे बच्चों को आगे कैसे लेकर जाएंगे, वे क्या पढ़ेंगे और क्या बनेंगे? और कॉलेज में आप कैसे इन कोर्सेस के शिक्षा लेंगे.

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जे एस राजपूत

एनसीईआरटी के पूर्व चेयरमैन और शिक्षाविद जेएस राजपूत के अनुसार शिक्षा नीति में जो कुछ कहा गया है उसे व्यवहारिक रूप में कैसे अमलीजामा पहनाया जाएगा वो एनसीएफ में बताया गया है.

इसमें सीखने पर ज्यादा ज़ोर दिया गया है वहीं अकादमिक और वोकेशनल एरिया के बीच जो भेद देखा जाता था उसे हटा दिया गया और स्किल डेवलपमेंट हर एक लिए आवश्यक बना दिया गया है जो काफ़ी अच्छी बात है.

महात्मा गांधी ने कहा था कि हाथ से काम करना सभी को आना चाहिए, आज उसका स्वरूप बदल गया है लेकिन भावना वही है जो एनसीएफ में प्रदर्शित होता है.

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एनसीएफ़ के इस मसौदे में कक्षाएं कैसी हों आदि ये सब बातें केवल एक लक्ष्य को सामने रखती हैं कि स्कूल का वातावरण ऐसा होना चाहिए कि बच्चों का सुबह उठकर स्कूल जाने का मन करे.

ये देखा गया है कि दुनिया में वही देश आगे बढ़े हैं जिसने ऐसा किया है. ऐसे में जब इस करिकुलम के बाद सिलेबस बनेगा तो ये एक बड़ी भूमिका निभाएगा.

इसमें अध्यापकों और शिक्षा के बारे में भी संदर्भ दिया गया है क्योंकि अध्यापक पूरी तरह से तैयार नहीं होंगे, समर्पित नहीं होंगे और वे आचरण के बारे में जानेंगे कि उन्हें कैसे रहना है और उनसे क्या अपेक्षाएं हैं तो चाहे कितना भी अच्छा करिकुलम हो, सिलेबस हो या पाठ्यपुस्तक, वो सही रूप में लागू नहीं किया जा सकता है.

प्रारंभ के वर्षों में बच्चे कई भाषाएं सीख सकते हैं ऐसे में बहुभाषीयता की बात बिल्कुल सटीक है ताकि आगे जाकर उन्हें इसका लाभ मिल सके.

वहीं 9वीं और 10वीं में आठ एरिया की बात जो मसौदे में की गई है जिसमें से दो कोर्स छात्रों को लेने होंगे, तो पहले अगर देखा जाए हमने पाठ्यक्रम को अलग-अलग ग्रुप में बांट दिया था जैसे भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान और गणित, वाणिज्य, अर्थशास्त्र या फिर अंग्रेजी, हिंदी, राजनैतिक शास्त्र और इतिहास. लेकिन उसका विस्तार होना बहुत ज़रूरी है क्योंकि कोई भी विषय अकेले आगे नहीं बढ़ सकता उसके जुड़ाव बहुत से होते हैं.

उदाहरण के तौर पर आइंसटाइन ने कहा था कि अगर मुझे पाठ्यक्रम बनाने का अधिकार दे दिया जाए तो मैं केवल दो विषयों से बच्चों की पढ़ाई की शुरुआत करूंगा- संगीत और गणित. इसी से बात आगे बढ़ जाएगी और बच्चा दुनिया में जितने भी विषय हो, वो सीख लेगा.

इस करिकुलम की सबसे बड़ी खूबी इसका दर्शन है वो भारतीय चिंतन पर आधारित है और इसका उजागर समय के बाद होगा.

साथ ही इसमें बच्चा अपनी प्रतिभा और रूचि के अनुसार विषयों का चयन कर सकता है और इसमें अध्यापक भी बच्चे की मदद करेंगे. जब बच्चों के आईडिया और इमेजिनेशन (कल्पना) को प्रोत्साहन मिलता है उससे उनमें दो चीज़ें और बढ़ती है- वो है जिज्ञासा और सृजनात्मकता.

इस करिकुलम के हर पन्ने में मुझे ये चारों चीज़ें दिखाई देती हैं और अगर ये वाकई में लागू होता है तो इससे निश्चित तौर पर शोध की गुणवत्ता बढ़ेगी और इनोवेशन (नवाचार) की भरमार होगी. अगर बच्चे के विचारों को कुंद नहीं करेंगे तो वो निश्चित तौर पर नया सोचेगा और उससे नवाचार होगा जिसकी समाज में आवश्यकता है.

दुनिया में वही समाज आगे बढ़ेंगे जो ज्ञान समाज में अपनी बौद्धिक क्षमता को बढ़ावा देंगे.

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