कर्नाटक विधानसभा चुनाव: राज्य से जुड़े सवाल और जवाब

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- Author, सलमान रावी
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है.
चुनाव आयोग ने जानकारी दी है कि 10 मई को कर्नाटक में मतदान होगा और 13 मई को मतगणना होगी.
विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारों के नामाकंन दाखिल करने की आख़िरी तारीख़ 20 अप्रैल होगी.
कर्नाटक में इस समय भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, जिसका नेतृत्व बासवराज बोम्मई के पास है.
कर्नाटक को लेकर कई सवाल हैं, जानिए कर्नाटक को लेकर सवाल और उनके जवाब.
कर्नाटक राज्य कब बना था?
कर्नाटक अलग राज्य के रूप में पहली नवंबर 1956 को अस्तित्व में आया, लेकिन तब इसे मैसूर कहा जाता था.
वर्ष 1973 में इसे कर्नाटक के नाम से जाना जाने लगा, जो 191,791 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है.
उत्तर में महाराष्ट्र से लेकर दक्षिण में केरल तक और उसी तरह पूर्व में आंध्र प्रदेश से लेकर पश्चिम में अरब सागर तक ये राज्य कुल 31 ज़िलों में फैला हुआ है.
गोवा इसके उत्तर-पश्चिम में है, तो तमिलनाडु इस राज्य के दक्षिण पूर्व में स्थित है.
इसलिए कर्नाटक को दक्षिण भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य माना जाता है. कुछ इसे दक्षिण भारत के हृदय के रूप में भी देखते हैं.

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इसका नाम मैसूर से कर्नाटक क्यों पड़ा?
नाम को लेकर कई अलग-अलग व्याख्या की गई है. लेकिन जिस व्याख्या को सबसे ज़्यादा मान्यता मिली हुई है, वो है 'काली मिट्टी की ऊँची भूमि' यानी कर्नाटक.
ये शब्द 'करु' यानी काली और ऊँची और 'नाट' यानी भूमि जो काली मिट्टी से आया है और दक्कन के पठारों से ऊँचाई का शब्द लिया गया है.
जबकि अंग्रेज़ इस जगह के लिए 'कारनाटिक' शब्द का इस्तेमाल करते थे.
विधानसभा और लोकसभा की सीटें
कर्नाटक की आबादी लगभग 6.5 करोड़ है.
यहाँ पर विधानसभा की 224 सीटें हैं, जबकि लोकसभा की 28 और राज्यसभा की 12 सीटें हैं.

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कुल मतदाता
चुनाव आयोग के हिसाब से कर्नाटक में कुल 5.21 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें पुरुषों और महिलाओं के बीच बहुत कम अंतर है.
राज्य में कुल पुरुष मतदाताओं की संख्या 2.62 करोड़ है, वही महिला मतदाताओं की संख्या भी 2.59 करोड़ है.
इस चुनाव के दौरान पहली बार वोट डालने वाले वोटरों की संख्या 9.17 लाख होगी.
इसके अलावा 41,000 ऐसे मतदाता हैं, जो 1 अप्रैल, 2023 को 18 साल के हो जाएँगे और आगामी विधानसभा के चुनावों में उन्हें वोट डालने का अधिकार मिल जाएगा.
224 विधानसभा की सीटों में से 36 सीटें अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं, वहीं 15 सीटों को अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित किया गया है.
इस बार जिन मतदाताओं पर सबकी नज़र रहेगी, वो हैं 80 और 100 साल के बुजुर्ग.
राज्य चुनाव आयोग के आँकड़ों के अनुसार 80 साल से ज़्यादा उम्र वाले बुज़र्गों की तादात 12.15 लाख है.
जबकि 100 साल से ज़्यादा आयु वाले वोटरों की संखा 16,976 बताई गई है.
इस बार विकलांग मतदाताओं की संख्या भी 5.55 लाख है, जिनकी संख्या पिछली बार की तुलना में लगभग 150 प्रतिशत ज़्यादा है.
कुल मतदान केंद्रों की संख्या 58,282 हैं, जिनमें से 20,866 शहरी क्षेत्रों में हैं.
लेकिन बुजुर्गों और ख़ास तौर पर 100 साल से ज़्यादा आयु वालों के लिए उनके घर पर ही मतदान की व्यवस्था करने का प्रस्ताव है.

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उपज
इस राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग उपज होती है, जिसमें जौ, धान और सब्ज़ियों के अलावा फूलों की खेती भी शामिल हैं.
कर्नाटक अपने मसालों और अचार के लिए भी जाना जाता है, जबकि यहाँ की विश्व प्रसिद्ध मिठाई है मैसूर पाक, जो सत्तू से बनती है.
धर्म
कर्नाटक की 84 प्रतिशत आबादी हिंदू धर्म का पालन करती है. जबकि ऐसे सबूत भी मिले हैं कि इस राज्य में कभी जैन धर्मावलम्बियों की बड़ी संख्या हुआ करती थी.
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि कुल जनसंख्या के 12.9 प्रतिशत के आसपास मुसलामानों की आबादी है, जबकि 1.87 प्रतिशत ईसाई यहाँ रहते हैं.
जीडीपी में सबसे ज़्यादा योगदान
पूरे देश की जीडीपी में कर्नाटक का योगदान आठ प्रतिशत का है.
वो इसलिए क्योंकि सूचना तकनीक, 'सॉफ्टवेयर', बायोटेक्नोलॉजी, एयरोस्पेस और रक्षा उपकरणों के उद्योगों का ये हब है.

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भाजपा का उदय
बात साल 1983 की है, जब भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा की 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसमें से वो 18 जीतने में भी क़ामयाब हो गई थी.
उसने 7.9 प्रतिशत का अपना वोट शेयर खड़ा कर लिया था.
इन जीते हुए विधायकों में से नौ ऐसे थे, जो तटवर्तीय इलाक़े के रहने वाले थे, जहाँ जनता दल के रामकृष्ण हेगड़े और उन्हीं के दल के अब्दुल नज़ीर का ख़ासा प्रभाव हुआ करता था.
ऐसे में ये पहला मौक़ा था, जब भाजपा ने हेगड़े या यूँ कहें जनता दल के क़िले में सेंध मार दिया था.
भाजपा ने हेगड़े की सरकार को समर्थन भी दिया था.
लेकिन बाद के दिनों में कुछ साल भाजपा को अंदरूनी कलह का सामना करना पड़ा था, जब अनंत कुमार और वी धननंजय कुमार जैसे दिग्गज आपस में ही भिड़ पड़े थे.
ये बात हो रही है साल 1987-88 की, जब इन दोनों नेताओं के बीच सुलह कराने के लिए बीएस येदियुरप्पा को संगठन ने प्रदेश अध्यक्ष चुना.
यहाँ से कर्नाटक की राजनीति में येदियुरप्पा के राजनीतिक सितारे का उदय होने लगा.
वर्ष 1989 में भारतीय जनता पार्टी ने फिर चुनाव लड़ा था और उसने 119 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए. लेकिन बीजेपी को सिर्फ़ चार सीटों पर ही जीत मिल सकी थी.
वर्ष 1990 से मंडल कमिशन की सिफारिशों से उपजे आंदोलन और राम जन्मभूमि के आंदोलन की वजह से भाजपा ने फिर से अपना आधार मज़बूत करना शुरू कर दिया.
लेकिन वो साल 2004 के विधानसभा चुनाव ही थे, जहाँ से भाजपा ने ख़ुद को पूरी तरह स्थापित कर लिया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
भाजपा को विधानसभा की 224 सीटों में से 71 सीटों पर विजय हासिल हुई थी. फिर उसी साल भाजपा ने लोकसभा की 18 सीटों को भी जीत लिया था.
कहा जाता है कि भाजपा की इस उड़ान का श्रेय यहाँ के लिंगायत समुदाय को जाता है, जिसने बीजेपी का जमकर समर्थन किया.

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लिंगायत
कर्नाटक की कुल आबादी में 16 से 17 प्रतिशत लोग लिंगायत समुदाय के हैं.
इसी समुदाय से बीजेपी के वरिष्ठ नेता बीएस येदियुरप्पा भी आते हैं.
ये समुदाय राजनीतिक रूप से काफ़ी जागरूक है और इनमें से एक वीरेंद्र पाटिल कर्नाटक के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं.
कहते हैं कि इस समुदाय का साथ जिस भी राजनीतिक दल को मिल जाएगा, उसके लिए सत्ता का रास्ता आसान हो जाएगा.
इनका वर्चस्व मुख्य तौर पर कर्नाटक के उत्तरी हिस्से में है, जहाँ से बीजेपी को काफ़ी लाभ मिलता रहा है.
लेकिन इस बार लिंगायत मतदाताओं को रिझाने में जनता दल (सेक्यूलर) और कांग्रेस ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है.

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वोक्कालिगा
काश्तकार समाज वोक्कालिगा का प्रभाव दक्षिण कर्नाटक की लगभग 11 सीटों पर है.
इसलिए कोई भी राजनीतिक दल इन्हें नज़रअंदाज़ करने का जोख़िम नहीं ले सकता है.
इनका प्रभाव हसन, मंड्या, रामानगरा और बेंगलुरु (देहात) ज़िलों में बहुत ज़्यादा है.
इसलिए अपनी शुरुआती राजनीति के दौरान से ही भाजपा ने लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों के बीच अपनी राजनीतिक पकड़ मज़बूत करनी शुरू कर दी.
लेकिन शहरी इलाक़ों को छोड़कर अगर देखा जाए, तो देहात और सुदूर इलाक़ों में कांग्रेस और जनता दल (सेक्यूलर) के उम्मीदवारों को जीत मिलती रही है.

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अभी का माहौल
2018 के विधानसभा के चुनावों के बाद राज्य में जनता दल (सेक्यूलर) और कांग्रेस के गठजोड़ की सरकार बनी.
लेकिन अगले ही साल बाग़ी विधायकों के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बना ली.
बग़ावत के बाद कांग्रेस के पास विधानसभा में 70 विधायक हैं, जबकि जनता दल (सेक्यूलर) के पास 30.
वहीं अब बीजेपी के पास 121 विधायक हैं. इस दौरान भाजपा ने दो मुख्यमंत्रियों को बदला.
पहले येदियुरप्पा और फिर उनको हटाकर बासवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया.
कांग्रेस भी सत्ता विरोधी लहर को भुनाने की कोशिश में है और उसने पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश किया है.
वहीं जनता दल (सेक्यूलर) के एचडी कुमारस्वामी ने भी इतने सालों तक कांग्रेस और भाजपा से दूरियाँ ही बना कर रखी हुईं हैं.
उनकी पार्टी भी किसानों के मुद्दों और कल्याणकारी नीतियों को लेकर मतदाताओं के बीच जाती रही है.
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