अदानी-हिंडनबर्ग मामले की जांच के लिए बनी समिति के छह सदस्य कौन हैं

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इमेज कैप्शन, अदानी-हिंडनबर्ग मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बनाई 6 सदस्यीय कमेटी
    • Author, सुचित्र के. मोहंती
    • पदनाम, बीबीसी हिंदी के लिए

सुप्रीम कोर्ट ने अदानी ग्रुप को लेकर हिंडनबर्ग की पब्लिश की गई रिपोर्ट से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इस पूरे मामले की जांच के लिए कमिटी बनाने का आदेश दिया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सेबी को भी अपनी जांच जारी रखते हुए उसे दो महीने में रिपोर्ट सौंपने को कहा है.

जो कमिटी अदानी-हिंडनबर्ग माममे में गठित की गई है, उसमें छह सदस्य होंगे. इसकी अध्यक्षता रिटायर्ड जस्टिस अभय मनोहर सप्रे करेंगे.

जस्टिस सप्रे के साथ ही इस कमिटी में जस्टिस जे.पी. देवधर, के.वी कामथ, नंदन नीलेकणी, ओ.पी. भट्ट और सोमशेखर सुंदरेशन होंगे.

अब आपको तफ़्सील से बताते हैं सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी के उन सभी छह सदस्यों के बारे में जो अदानी-हिंडनबर्ग मामले की जांच करेंगे.

जस्टिस सप्रे

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जस्टिस अभय मनोहर सप्रे

जस्टिस अभय मनोहर सप्रे 13 अगस्त 2014 को सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त किए गए थे. इससे पहले वो गुवाहाटी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे. मणिपुर का जब अपना हाई कोर्ट बना तो जस्टिस अभय को वहां पहला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था.

सुप्रीम कोर्ट में इनका कार्यकाल 27 अगस्त 2019 तक रहा.

जस्टिस सप्रे की पहली बड़ी नियुक्ति 1999 में हुई थी जब उन्हें मध्य प्रदेश का अतिरिक्त न्यायाधीश बनाया गया. इसके 2 साल बाद 24 अक्टूबर 2001 को इन्हें हाईकोर्ट में स्थाई जज नियुक्त किया गया.

इसके 10 साल बाद 11 फ़रवरी 2010 को इन्हें राजस्थान हाई कोर्ट की जोधपुर खंडपीठ का प्रमुख बनाया गया.

जस्टिस सप्रे ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से अपनी वकालत शुरू की. जज बनाए जाने से पहले यहां उन्होंने 20 साल तक सिविल और संवैधानिक मामलों के साथ लेबर लॉ के क्षेत्र में काम किया.

2017 में जस्टिस सप्रे को कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल का चेयरमैन बनाया गया था. ये ट्रिब्यूनल कर्नाटक, तमिलनाडु और पुदुचेरी के बीच कावेरी नदी के पानी के बंटवारे के लिए 1990 में गठित किया गया था.

जस्टिस अभय मनोहर सप्रे के कुछ अहम फ़ैसले

जस्टिस के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत सरकार के मामले में 9 जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से ये फ़ैसला दिया था कि भारतीय संविधान के तहत निजता का अधिकार उसके बुनियादी अधिकारों में शामिल है.

दूसरा बड़ा फ़ैसला उन्होंने आदिवेप्पा बनाम भीमप्पा के मामले में दिया था. इसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दूसरे जजों के साथ ये फ़ैसला दिया था कि हिंदू संयुक्त परिवारों की पूरी संपत्ति पर इसके सभी सदस्यों का अधिकार होता है. अगर कोई सदस्य इसके ख़िलाफ जाता है तो उसे अपने अधिकार ख़ुद साबित करने होंगे.

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जस्टिस जे.पी. देवधर

जस्टिस जे.पी देवधर को पहली पदोन्नति 12 अक्टूबर 2001 को मिली थी, जब उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश बनाया गया था. यहां से वो 8 अप्रैल 2013 को रिटायर हुए.

इसके बाद जुलाई 2013 से जुलाई 2018 तक ये सिक्योरिटीज़ अपेलेट ट्रिब्यूनल (SAT) के अध्यक्ष रहे.

जस्टिस देवधर ने 1977 में बॉम्बे हाई कोर्ट से अपनी वकालत शुरू की थी. यहां उन्होंने संवैधानिक और सिविल लॉ में प्रैक्टिस किया. खासतौर पर उन्होंने कोऑपरेटिव सोसाइयटीज़ एक्ट, सर्विस लॉ, रेंट एक्ट, कस्टम और एक्साइज़ एक्ट के साथ टैक्स क़ानूनों से जुड़े मामलों पर काम किया.

8 अप्रैल 1951 को जन्मे जस्टिस देवधर की स्कूलिंग कर्नाटक के अंकोला से हुई. ग्रैजुएशन की पढ़ाई उन्होंने कर्नाटक यूनिवर्सिटी से पूरी की. इसके बाद बॉम्बे यूनिवर्सिटी से क़ानून में मास्टर्स की डिग्री हासिल की.

बॉम्बे हाई कोर्ट में इन्होंने जस्टिस डी.आर.धानुका के अधीन अपनी वकालत शुरू की.

वो 1982 से भारत सरकार और 1985 से इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के काउंसेल रहे. वो चिन्मय मिशन जैसे सामाजिक संगठनों से भी जुड़े रहे.

जस्टिस देवधर जेजे हॉस्पिटल में हुई मौतों की जांच कर रही लेन्टिन कमीशन के भी काउंसल रहे.

सोमशेखर सुंदरेशन

शुरुआती दिनों में सोमशेखर एक पत्रकार थे. वो केन्द्र सरकार की कई कमेटियों के भी सदस्य रहे. ख़ासतौर पर सेबी और कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय की कमेटियों में उन्होंने क़ानूनी और रेग्युलेटरी सिस्टम की समीक्षा के बाद बदलाव के लिए सुझाव दिए.

एक वकील के तौर पर उन्होंने 'रेग्यूलेटरी एंड कंप्लायंस' (नियामक और अनुपालन) से जुड़े मामलों पर काम किया.

इन्हें सिक्योरिटी लॉ, कॉरपोरेट गवर्नेंस के साथ विलय और अधिग्रहण के मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है.

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के.वी. कामथ

के.वी. कामथ देश के एक अग्रणी बैंकर हैं. इन्होंने अपने करियर की शुरुआई आईसीआईसीआई बैंक के साथ की थी.

ब्रिक्स के 'न्यू डेवेलपमेंट बैंक' प्रमुख के साथ कई अहम पदों पर काम किया. ये इन्फ़ोसिस के अध्यक्ष भी रहे.

के.वी. कामथ का नाम स्कुलुम्बर्गर और ल्यूपिन जैसी ग्लोबल कंपनियों के भी जुड़ा.

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नंदन नीलेकणी

नंदन नीलेकणी इन्फ़ोसिस टेक्नोलॉजी लिमिटेड के सह-संस्थापक और अध्यक्ष हैं. ये यूनिक आइडेंटीफ़िकेशन अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (UIDAI) के संस्थापक अध्यक्ष भी रहे.

इस ओहदे के साथ इन्हें 2009 से 2014 तक कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल था.

58 साल के नंदन नीलेकणी ने 'एकस्टेप' नाम के एनजीओ की भी स्थापना की जिसके वो अध्यक्ष हैं. ये संस्था बुनियादी साक्षरता में सुधार के लिए तकनीक आधारित प्लेटफ़ॉर्म मुहैया कराती है.

इसी साल जनवरी में इन्हें जी-20 के 'डिजिटल पब्लिक इन्फ़्रास्ट्रक्चर फ़ॉर इकनॉमिक ट्रांसफ़र्मेशन, फ़ाइनेंशियल इनक्लूजन एंड डेवेलपमेंट' टास्क फ़ोर्स का प्रमुख बनाया गया था.

2006 में इन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक पद्म विभूषण से नवाजा गया था. इसी साल इन्हें 'फ़ोर्ब्स एशिया' ने 'बिज़नेसमैन ऑफ द इयर' घोषित किया था.

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ओम प्रकाश भट्ट

ओम प्रकाश भट्ट स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन रह चुके हैं. इसके बाद वे कई मल्टीनेशनल कंपनियों के बोर्ड में स्वतंत्र निदेशक के तौर पर शामिल हुए.

इन कंपनियों में हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड, टाटा स्टील लिमिटेड, टाटा मोटर्स लिमिटेड शामिल हैं.

इसके अलावा ये ग्रीनको एनर्जी होल्डिंग्स मॉरिशस और आधार हाउसिंग फ़ाइनेंस लिमिटेड जैसी कंपनियों के नॉन-एग्ज़ीक्यूटिव चेयरमैन भी हैं.

ओम प्रकाश भट्ट इंडियन बैंक एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.

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