कांग्रेस महाधिवेशन: क्या तैयार हो गया 2024 लोकसभा चुनाव का रोडमैप

राहुल गांधी

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    • Author, आलोक प्रकाश पुतुल
    • पदनाम, रायपुर से बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए

कांग्रेस पार्टी के नवा रायपुर में तीन दिनों तक चले महाधिवेशन के समापन के साथ ही यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या 2023 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव का रोडमैप तैयार हो चुका है?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस अधिवेशन में 'घर नहीं होने' के रूपक के बहाने, एक तरफ़ जहाँ सड़क की लड़ाई जारी रखने के संकेत दिए, वहीं अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'निजी छवि' और भारतीय जनता पार्टी के 'राष्ट्रवाद' पर भी निशाना साधा.

राहुल गांधी ने कहा, "अदानी जी और मोदी जी एक हैं और देश का पूरा का पूरा धन, एक व्यक्ति के हाथ में जा रहा है."

भारतीय जनता पार्टी के 'राष्ट्रवाद' पर भी उन्होंने सवाल उठाए और विदेश मंत्री एस जयशंकर का नाम लिए बिना कहा, "वे कहते हैं 'चीन की अर्थव्यवस्था, हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था से बड़ी है तो हम उनसे कैसे लड़ सकते हैं? जब अंग्रेज़ हम पर राज करते थे तो क्या उनकी इकोनॉमी हमारी इकोनॉमी से छोटी थी?"

इस अधिवेशन में सोनिया गांधी ने 'भारत जोड़ो यात्रा' को अपने कार्यकाल की उपलब्धि बताते हुए इसे कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ बताया.

अधिवेशन में कांग्रेस ने पूरब से पश्चिम तक 'भारत जोड़ो यात्रा 2' शुरू करने का फ़ैसला किया है, वहीं पूरे देश में पार्टी 'हाथ से हाथ जोड़ो' अभियान चलाएगी.

कांग्रेस पार्टी के अधिवेशन में 'भारतीयता' और 'संघर्ष, सेवा और बलिदान सबसे आगे हिंदुस्तान' जैसे नारे को भाजपा के 'हिंदुत्व' के जवाब की तरह देखा जा रहा है.

लेकिन सभी स्तरों पर एससी, एसटी, ओबीसी, महिला, अल्पसंख्यक और 50 साल से कम उम्र के नेताओं को 50 फ़ीसदी प्रतिनिधित्व दिए जाने के फ़ैसले ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है.

कांग्रेस

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50 फ़ीसदी आरक्षण

पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 50 फ़ीसदी आरक्षण को 'ऐतिहासिक फ़ैसला' बताते हुए कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव और 2023 के राज्यों के विधानसभा के चुनाव में इस क़दम का फ़ायदा मिलेगा.

खड़गे के अनुसार इस फ़ैसले को अमल में लाकर कांग्रेस पार्टी भारत में एक नया इतिहास रचेगी.

कांग्रेस पार्टी का अधिवेशन ऐसे समय में हुआ है, जब अगले कुछ महीनों में देश के छह राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, मिज़ोरम और तेलंगाना में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं.

वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग का मानना है, "कांग्रेस नई ताक़त और आक्रामकता के साथ रायपुर अधिवेशन में आई है. इतने सालों में कांग्रेस को लेकर जो चल रहा था कि कांग्रेस अब ख़त्म हो गई है, कांग्रेस पार्टी एक झटके में खड़ी हो गई है."

वो कहते हैं, "कांग्रेस पार्टी का लोकतांत्रिकरण होने वाला है. कांग्रेस कोटरी से बाहर निकल गई है. कांग्रेस पार्टी को जो कुछ लोगों ने घेर के रखा था, उससे यह बाहर आ गई है. अब कांग्रेस पार्टी सड़क पर उतर चुकी है. नया नेतृत्व उभर कर आ रहा है. इसके उलट भारत जोड़ो यात्रा के तुरंत बाद अदानी का प्रसंग सामने आया, एक्सपोज़ हो गया, इन सब कारणों से भाजपा कमज़ोर पड़ रही है. मुझे लगता है कि नरेंद्र मोदी के सत्ता से बाहर होते ही भाजपा ख़त्म हो जाएगी."

वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध भी मानते हैं कि 'भारत जोड़ो यात्रा' और कांग्रेस के ताज़ा अधिवेशन से कांग्रेस में एक गतिशीलता तो आई है और इसका असर लोकसभा चुनाव में भी नज़र आएगा. लेकिन ऐसा नहीं है कि इन दो आयोजनों से पार्टी के भीतर कोई आमूल-चूल बदलाव आ जाएगा.

दिवाकर मुक्तिबोध कहते हैं, "पार्टी को ज़मीनी स्तर पर अभी बहुत कुछ करने की ज़रूरत है. पार्टी में नेता अधिक हैं, कार्यकर्ता कम. इसके अलावा कांग्रेस कई आंतरिक चुनौतियों से जूझ रही है. पार्टी के भीतर एक साथ कई शक्ति केंद्र उभर कर सामने आए हैं- सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे. पार्टी इसका क्या करेगी?"

कांग्रेस की सभा

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विपक्षी दलों का गठबंधन

कांग्रेस पार्टी के अधिवेशन में भारतीय जनता पार्टी का उल्लेख करते हुए कहा गया कि कांग्रेस 'बीजेपी को हराने के लिए एक ठोस विकल्प देने के मक़सद से समान विचार वाले दलों के साथ तालमेल बिठाना चाहती है.'

जिस समय रायपुर में कांग्रेस पार्टी का अधिवेशन चल रहा था, उसी समय बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह, कांग्रेस आलाकमान के निर्देश पर पूर्णिया में आयोजित नीतीश कुमार की महागठबंधन रैली में शामिल हुए.

नीतीश कुमार ने कहा, ''अगर 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दल एकजुट हो गए तो भाजपा कहीं नज़र नहीं आएगी. कांग्रेस पार्टी महागठबंधन को लेकर जल्द फ़ैसला ले, अगर जल्दी नहीं करेंगे तो नुक़सान होगा.''

लेकिन कांग्रेस पार्टी की घोषणा और बिहार में उसे अमल में लाने की कोशिशों के बीच, कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद ने राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन को लेकर नीतीश कुमार को जवाब देने वाले अंदाज में कहा, "विपक्ष कभी भी एकजुट नहीं हो सकता है. विपक्षी पार्टियों के अलग-अलग मत रहते हैं."

हालाँकि, उन्होंने यह भी कहा, "जहाँ तक साथ चुनाव लड़ने की बात है तो मत एक रहेगा तो हम लोग जरूर लड़ेंगे."

दूसरी ओर बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह इसमें कोई विरोधाभास नहीं देखते हैं.

उन्होंने बीबीसी से कहा, "बीके हरिप्रसाद जी ने कर्नाटक के संदर्भ में अपनी बात रखी थी. उसे देश के गठबंधन के संदर्भ में देखने की ज़रूरत नहीं है. कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष ने साफ़-साफ़ कहा है कि समान विधारधारा वाले राजनीतिक दलों के साथ कांग्रेस पार्टी गठबंधन करेगी और हम उस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं."

चुनाव से कई महीने पहले राजनीतिक दलों के गठबंधन के उदाहरण कम ही मिलते हैं. अधिकांश अवसरों पर तो यह गठबंधन ऐन चुनाव से ठीक पहले या चुनाव नतीज़ों के बाद बने हैं.

नीतीश कुमार के बयान पर बीके हरिप्रसाद के पलटवार के बाद हमने जदयू के राष्ट्रीय महासचिव चंदन कुमार सिंह से पूछा कि गठबंधन का रास्ता कितना मुश्किल भरा है?

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चंदन कुमार सिंह ने बीबीसी से कहा,"कोई मुश्किल नहीं है. देश हित में हर दल को आगे आकर एकजुटता का परिचय देना है और नीतीश जी ने साफ़ कह दिया है कि उनकी कोई व्यक्तिगत चाह नहीं है. आज देश जिस स्थिति से गुज़र रहा है. वहाँ पर गठबंधन अपनी पूरी शक्ति और एकजुटता से आगे बढ़ रहा है और मैंने नज़दीक से देखा है कि गठबंधन के सभी साथी बिना अपनी व्यक्तिगत चाह के इस वक़्त, क़दम से क़दम मिला कर बढ़ रहे हैं. इसलिए तो बेचैनी है."

वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग भी मानते हैं कि गठबंधन भारतीय राजनीति की आज की ज़रूरत है.

श्रवण गर्ग कहते हैं कि कांग्रेस अकेली ऐसी पार्टी है, जिसकी उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक अपनी स्वीकार्यता रही है. दक्षिण भारत की पार्टियाँ तो केंद्र की राजनीति में भागीदारी के लिए कांग्रेस की तरफ़ ही देखती हैं.

लेकिन अहम सवाल यही है कि क्या राहुल गांधी विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए 'विपक्ष जोड़ो यात्रा' की भी पहल करेंगे?

कांग्रेस पार्टी की सभा

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दिवाकर मुक्तिबोध कहते हैं, "विपक्षी दलों के जुड़ने की कोई संभावना अभी तो नहीं नज़र आ रही है. हम सब यूपीए 3 की बात कर रहे हैं लेकिन कांग्रेस पार्टी की ओर से कोई उत्साह, कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई है. मान लिया जाए कि विपक्षी गठबंधन बनता है तो सवाल यह भी है कि इस यूपीए 3 का नेतृत्व कौन करेगा? क्या दूसरे दलों को राहुल गांधी का नेतृत्व स्वीकार होगा?"

हालांकि गठबंधन की अपनी चुनौतियां कम नहीं हैं. महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन की सरकार की खींचतान और अंततः सरकार की विदाई का किस्सा बहुत पुराना नहीं है.

झारखंड में भी गठबंधन सरकार के अंतर्विरोध खुल कर सामने आए हैं. राष्ट्रपति चुनाव के समय तो झारखंड मुक्ति मोर्चा खुल कर एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में खड़ी हो गई, वहीं गठबंधन में शामिल कांग्रेस पार्टी विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का प्रचार कर रही थी.

चार दिन पहले ही झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री और कांग्रेस नेता बन्ना गुप्ता कह चुके हैं कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन राज्य में कांग्रेस पार्टी को ख़त्म करने की कोशिश कर रहे हैं.

बन्ना गुप्ता ने कहा कि यदि मुख्यमंत्री चाहते हैं कि हमारी पार्टी विलुप्त होने की ओर जाए और हमारे मतदाता झामुमो में चले जाएं, तो ऐसी सरकार का कोई उद्देश्य नहीं है. हम तभी बचेंगे जब हमारी पार्टी बचेगी.

इसके अलावा 'तीसरा मोर्चा' के गठन की कोशिशें भी हो रही हैं, जिससे कांग्रेस के संभावित गठबंधन की कोशिशों को एक झटका लगना स्वाभाविक है.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने पिछले ही महीने विपक्षी गठबंधन के नाम पर खम्मम में रैली की थी. इस रैली में अरविंद केजरीवाल, पिनाराई विजयन, अखिलेश यादव और डी. राजा जैसे नेता मौजूद थे.

कभी भाजपा छोड़ कर कांग्रेस के साथ सरकार बनाने पर नीतीश कुमार को समर्थन देने के लिए जो केसीआर पटना तक आए थे, विपक्षी पार्टियों की इस रैली में न तो नीतीश कुमार का जदयू कहीं था और ना ही कांग्रेस.

राहुल गांधी

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कांग्रेस शासित राज्यों की चुनौती

गठबंधन से इतर कांग्रेस पार्टी के सामने अपना घर बचाने की भी चुनौती है. जिन तीन राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार है, उन राज्यों का हाल किसी से छुपा नहीं है.

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी का कलह सर्वविदित है. ढ़ाई-ढ़ाई साल के मुख्यमंत्री के सवाल पर टीएस सिंहदेव के ख़िलाफ़ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में रायपुर से लेकर दिल्ली तक जिस तरह के प्रदर्शन हुए, उसमें राहुल गांधी की चुप्पी को लेकर भी सवाल बने हुए हैं. अब तो टीएस सिंहदेव को मुख्यमंत्री बनाए जाने के राहुल गांधी के वादे पर चर्चा भी नहीं होती.

इसी तरह का संकट राजस्थान में भी बना रहा. अशोक गहलोत और सचिन पायलट, पिछले दो सालों से तलवार ताने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ खड़े रहे हैं.

हिमाचल में भी प्रतिभा सिंह की मुख्यमंत्री बनने की कोशिशों को किनारे कर के सुखविंदर सिंह सुक्खू की ताजपोशी की ख़बरें पुरानी नहीं हुई हैं. अगले आठ महीनों में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और इन आठ महीनों में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पार्टी का ये संकट और गहराएगा, इससे तो कोई भी इंकार करने की स्थिति में नहीं है.

कांग्रेस के इस अधिवेशन में अदानी की भी लगातार चर्चा होती रही.

अधिवेशन में अदानी समूह के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रिश्ते को लेकर कहा गया, "ये देश के ख़िलाफ़ काम हो रहा है और देश के ख़िलाफ़ काम होगा, तो कांग्रेस पार्टी खड़ी हो जाएगी, लड़ जाएगी."

लेकिन हक़ीकत ये है कि छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में राजस्थान सरकार को तीन कोयला खदाने आवंटित हैं, जिसे एक ख़ास करार के तहत अदानी समूह को दे दिया गया है. आदिवासी इन कोयला खदानों का विरोध करते रहे हैं.

वीडियो कैप्शन, जहां कभी गलियों में चला करती थीं नाव, अब है सूखा

चुनाव से पहले राहुल गांधी भी हसदेव में आदिवासियों के साथ एकजुटता प्रदर्शित कर चुके हैं. लेकिन राज्य में सत्ता में आने के बाद इन खदानों का आवंटन रद्द करने के बजाए छत्तीसगढ़ सरकार ने अपनी कोयला खदान भी अदानी समूह को सौंप दी.

आज की तारीख़ में देश भर में अदानी समूह के पास जो नौ कोयला खदान हैं, उनमें सर्वाधिक सात खदानें छत्तीसगढ़ में हैं. इसके अलावा अदानी समूह के पास छत्तीसगढ़ में दो पावर प्लांट, सीमेंट प्लांट, आयरन ओर की भी खदानें हैं.

छत्तीसगढ़ जन अधिवेशन

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कांग्रेस के अधिवेशन के समानांतर, उन्हीं तारीखों में रायपुर में आयोजित जन संगठनों के दो दिवसीय 'जन अधिवेशन' में पूरे छत्तीसगढ़ से लोग एकत्र हुए.

अर्थशास्त्री ज़्यां द्रेज़ से लेकर अदानी के मुद्दों पर मुखर रहे पत्रकार परॉन्जय गुहा ठाकुरता ने इस 'जन अधिवेशन' में हसदेव अरण्य में कोयला खदानों के आवंटन को लेकर चिंता जताई.

इस 'जन अधिवेशन' के संयोजक छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन से जुड़े आलोक शुक्ला कहते हैं, "अधिवेशन में जल, जंगल, ज़मीन, जन को लेकर जो चर्चा हुई, उसमें स्वाभाविक रूप से हसदेव का मुद्दा भी चर्चा के केंद्र में बना रहा. छत्तीसगढ़ में अदानी के साम्राज्य का विस्तार तेज़ी से हुआ है लेकिन अफ़सोस है कि राहुल गांधी अपनी सरकारों के रिश्ते पर चुप्पी साधे हुए हैं."

सड़क पर बिछाए गए गुलाब के फूल

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82 वर्षीय कनक तिवारी को इस बात पर भी आपत्ति है कि 1960 में रायपुर में पंडित जवाहरलाल नेहरु की अगुवाई में कांग्रेस पार्टी का एक सेशन हुआ था, जिसमें कई ऐतिहासिक फ़ैसले लिए गए थे.

ताज़ा अधिवेशन में कांग्रेस पार्टी के किसी भी नेता ने इसका उल्लेख तक नहीं किया.

राज्य बनने के बाद पहली बार कांग्रेस पार्टी के इतने बड़े आयोजन को ख़त्म हुए अभी कुछ ही घंटे हुए हैं. ज़ाहिर है, इस अधिवेशन के नफ़ा-नुकसान पर अगले कई महीनों तक चर्चा होती रहेगी.

लेकिन असली चुनौती तो 2023 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा के चुनाव होंगे, जिसमें पता चलेगा कि इस अधिवेशन की भूमिका कैसी और कितनी रही.

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