चीन ने पिछले छह महीनों में इन पाँच पाकिस्तानी 'चरमपंथियों' को बचाया

पठानकोट एयरबेस पर हमला

इमेज स्रोत, Getty Images

इमेज कैप्शन, साल 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हुए चरमपंथी हमले में छह सैनिक मारे गए थे. इन हमलों के बाद इंटरपोल ने अब्दुल राउफ़ अज़हर के नाम रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया था.

चीन ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी चरमपंथी हाफ़िज़ तल्हा सईद को ब्लैकलिस्ट करने की कोशिश को नाकाम कर दिया है.

संयुक्त राष्ट्र में भारत और अमेरिका वर्षों से पाकिस्तान में मौजूद चरमपंथी संगठनों और उनके नेताओं पर संयुक्त राष्ट्र के ज़रिए प्रतिबंध लगाने का प्रयास करते रहे हैं.

लेकिन संयुक्त राष्ट्र के पाँच स्थायी सदस्यों में से एक यानी चीन कई अवसरों पर इन प्रयासों को वीटो करता रहा है. बीते दो दशकों में पाकिस्तान और चीन के बीच कूटनीतिक नज़दीकियों के कारण दोनों देशों में सहयोग बढ़ा है.

बीते चार महीनों में पाँचवीं बार चीन ने पाकिस्तान स्थित चरमपंथियों को संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने से रोका है. भारत और अमेरिका किन पाँच चरमपंथियों को डालना चाहते हैं संयुक्त राष्ट्र की ग्लोबल टेरेरिस्ट की सूची में?

हाफ़िज़ तल्हा सईद

प्रतिकात्मक तस्वीर

इमेज स्रोत, AFP

इमेज कैप्शन, ये पाकिस्तान में लश्करे तैयबा के एक समर्थक की तस्वीर है.

46 वर्षीय सईद लश्करे तैयबा के प्रमुख और मुंबई हमलों के प्रमुख अभियुक्त हाफ़िज़ सईद का बेटा है. बीते कुछ दिनों में ये दूसरी बार है, जब चीन ने किसी पाकिस्तान स्थित चरमपंथी को ब्लैकलिस्ट करने की भारतीय कोशिश को संयुक्त राष्ट्र में रोका है.

इसी साल अप्रैल में हाफ़िज़ तल्हा सईद को भारत सरकार ने आतंकवादी घोषित किया था. चीन ने सईद को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की '1297 अल क़ायदा प्रतिबंध कमेटी' के तहत ब्लैकलिस्ट करने के प्रस्ताव को पास नहीं होने दिया है.

बीते दो दिनों में दूसरी बार चीन ने भारत और अमेरिका के किसी व्यक्ति को ग्लोबल टेरोरिस्ट की सूची में शामिल करने के प्रयास को नाकाम किया है.

एक विज्ञप्ति में भारत के गृह मंत्रालय ने कहा है कि हाफ़िज़ तल्हा सईद भारत और अफ़ग़ानिस्तान में भारत के हितों पर हमलों के लिए सक्रिय तौर पर चरमपंथियों के चयन, फ़ंड इकट्ठा करने और हमलों को अंजाम देने में शामिल रहा है.

हाफ़िज़ तल्हा पाकिस्तान में मौजूद लश्कर के सेंटरों में जाकर भारत, इसराइल और अमेरिका के ख़िलाफ़ जिहाद छेड़ने की बात करता रहता है. वो लश्कर का सीनियर लीडर होने के अलावा चरमपंथी संस्था के धार्मिक विंग का प्रमुख भी है.

इससे पहले मंगलवार को चीन ने संयुक्त राष्ट्र में भारत और अमेरिका के उस प्रस्ताव को भी पास नहीं होने दिया था, जिसमें पाकिस्तान स्थित चरमपंथी संगठन लश्करे तैयबा के नेता शाहिद महमूद को ग्लोबल टेरेरिस्ट की सूची में शामिल करने का प्रावधान था.

शाहिद महमूद

वीडियो कैप्शन, सियासत में क्यों आना चाहते हैं हाफ़िज़ सईद?

अमेरिका के वित्त विभाग ने दिसंबर 2016 में ही महमूद और लश्कर के एक अन्य लीडर मोहम्मद सरवर को आतंकवादी घोषित कर दिया था.

अमेरिका के वित्त विभाग की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार कराची में रहने वाला महमूद लंबे समय से लश्कर का वरिष्ठ नेता है. वो साल 2007 से इस चरमपंथी संगठन से जुड़ा हुआ है.

महमूद जून 2015 से जून 2016 तक लश्करे तैयबा के लिए फंड इकट्ठा करने वाली संस्था फ़लाह-ए-इंसानियात फ़ाउडेंशन का वाइस चैयरमेन रहा है. इससे पहले वो साल 2014 में कराची क्षेत्र में इस संस्था का प्रमुख था.

अमेरिका के मुताबिक़ अगस्त 2013 में महमूद की पहचान लश्कर के पब्लिकेशन विंग के सदस्य के तौर पर हुई थी. इससे पहले वो लश्कर के विदेशी ऑपरेशन के प्रमुख साजिद मीर की टीम से जुड़ा था.

अगस्त 2013 में उसे बांग्लादेश और बर्मा की इस्लामी संस्थाओं में लिंक स्थापित करने का ज़िम्मा दिया गया था.

अमेरिका के मुताबिक़ महमूद ने दावा किया था कि लश्करे तैयबा का प्रमुख उद्देश्य भारत और अमेरिका पर हमले करना है.

अब्दुल रहमान मक्की

अब्दुल रहमान मक्की

इमेज स्रोत, Getty Images

इस साल जून में चीन ने पाकिस्तानी चरमपंथी अब्दुल रहमान मक्की पर प्रतिबंध लगाने की भारत और अमेरिकी कोशिश को अंतिम पल में रोक दिया था. मक्की पहले से ही अमेरिका में एक घोषित आतंकवादी हैं. मक्की लश्करे तैयबा के प्रमुख हाफ़िज़ सईद के साले हैं.

अब्दुल रहमान मक्की जमात उद दावा में दूसरे नंबर के नेता हैं. हाफ़िज़ सईद की बीमारी के कारण वे कई मायनों में संगठन के प्रमुख ही हैं.

अमेरिका का दावा है कि मक्की लश्करे तैयबा के ट्रेनिंग कैंपो को फंड करता है. साल 2007 में मक्की ने ऐसे ही एक ट्रेनिंग कैंप को क़रीब ढाई लाख अमेरिका डॉलर दिए थे.

इसके बाद लश्कर से जुड़े एक मदरसे को भी उसने एक लाख पैंसठ हज़ार अमेरिकी डॉलर दिए थे. मक्की जमात-उद-दावा की प्रमुख टीम का हिस्सा रहे हैं और शुरा के सदस्य हैं. उनका ख़ास हुनर लश्करे-ए-तैयबा के लिए फ़ंड जुटाने की क़ाबिलियत है.

भारत मक्की पर चरमपंथी संगठनों के लिए धन जमा करने के अलावा पाकिस्तान के भीतर नौजवानों को भारत पर हमले करने के लिए प्रेरित करने का आरोप लगाता रहा है.

अमेरिका के रिवार्ड्स फॉर जस्टिस प्रोग्राम के मुताबिक़ मक्की कई नामों से जाना जाता है. उसे हाफ़िज़ अब्दुल रहमान मक्की, अब्दुल रहमान मक्की, हाफ़िज़ अब्दुल रहमान जैसे कई नामों से जाना जाता है. अमेरिका ने उस पर 20 लाख डॉल का इनाम रखा हुआ है.

अब्दुल राउफ़ अज़हर

जैशे मोहम्मद

इमेज स्रोत, Getty Images

इसके बाद अगस्त में चीन ने जैश-ए-मोहम्मद के वरिष्ठ नेता अब्दुल राउफ़ अज़हर पर पाबंदी लगाने के प्रस्ताव पर भी रोक लगा दी थी. अज़हर को अमेरिका ने वर्ष 2010 में आतंकवादी घोषित कर दिया था.

अमेरिका ने कहा था कि जैश के वरिष्ठ नेता अज़हर ने पाकिस्तानियों से चरमपंथी गतिविधियों में शामिल होने का आह्वान किया था.

अज़हर 2007 में भारत में जैश के सबसे वरिष्ठ कमांडरों में से एक था. वो भारत में जैश का कार्यकारी प्रमुख भी रह चुका है.

अमेरिका के मुताबिक़ साल 2008 में अज़हर को भारत में फ़िदायीन हमले अंजाम देने का जिम्मा दिया गया था.

दिसंबर 1999 में काठमांडू से दिल्ली आ रही इंडियन एयरलाइन्स को हाईजैक करने के बाद अज़हर दुनिया की नज़र में आया था. हाईजैकिंग का मक़सद जम्मू की कोट बलवाल में बंद मसूद अज़हर रिहा करवाना था.

इसके बाद साल 2000 में संसद पर हुए हमले में भी राउफ़ का हाथ बताया गया था. साल 2016 में पठानकोट में एयर फ़ोर्स बेस पर चरमपंथी हमले के बाद भारत की एनआईए ने इंटरपोल से राउफ़ के ख़िलाफ़ रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने की अपील की थी.

इंटरपोल ने अपने नोटिस में लिखा था कि राउफ़ एक टेरोरिस्ट गैंग के सदस्य हैं, जो भारत सरकार के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने के लिए वांटेड हैं.

साजिद मीर

हाफ़िज़ सईद

इमेज स्रोत, Getty Images

सितंबर में चीन ने लश्करे तैयबा के चरमपंथी साजिद मीर पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास पर रोक लगा दी थी. मीर मुबंई पर हुए 26/11 हमलों का अभियुक्त है.

26 नवंबर 2008 को भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में एक चरमपंथी हमला हुआ. इस हमले में 160 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई थी और इसने पूरे देश को दहला दिया था.

भारत और अमेरिका उसे ग्लोबल टेरोरिस्ट की सूची में डालना चाहते थे. साजिद मीर भारत के मोस्ट वांटेड चरमपंथी हैं. अमेरिका ने भी उन्हें पकड़ने के लिए 50 लाख अमेरिका डॉल का इनाम रखा हुआ.

इस वर्ष जून में पाकिस्तान की एक अदालत ने उन पर चल रहे आतंकवादी गतिविधियों के लिए फ़ंड इकट्ठा करने के केस में 15 साल की सज़ा सुनाई थी.

पाकिस्तान बीते कुछ वर्षों से फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (एफ़एटीएफ़) की ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने का प्रयास कर रहा है. इस सूची से बाहर निकलने के लिए उसे साबित करना होगा कि वो अपनी ज़मीन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए न होने दे.

पाकिस्तान अतीत में ये दावा भी कर चुका है कि साजिद मीर की मौत हो गई है, लेकिन पश्चिमी देशों ने इस बात को नहीं मानी थी और पाकिस्तान से मीर की मौत का सबूत भी मांगा था.

साजिद मीर का मुद्दा पाकिस्तान की एफ़एटीएफ़ से बाहर निकलने की योजना में प्रमुख विवाद बन गया था.

साजिद मीर साल 2008 में मुबंई पर हुए हमलों में लश्करे तैयबा के ऑपरेशन का मैनेजर था. अमेरिका विदेश मंत्रालय के अनुसार वो उसने इन हमलों की योजना, तैयारी और कार्यान्वयन में अग्रणी भूमिका निभाई थी.

मीर पर अमेरिका ने नवंबर 2008 में हुए मुबंई हमलों में शामिल होने के लिए पाँच मिलियन अमेरिकी डॉलर का इनाम रखा है.

'कॉमन सेंस से परे चीन का रवैया'

एस जयशंकर

इमेज स्रोत, Getty Images

सितंबर में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था, "संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद के सूत्रधारों पर प्रतिबंध लगाकर करारा जवाब देता है. जो लोग यूएन में ये नहीं होने देते वो ग़लती करते हैं. यक़ीन मानिए ऐसे देश न तो अपना हित साथ रहे हैं और न ही अपनी साख बेहतर कर पा रहे हैं."

बार-बार भारत और अमेरिका को कोशिशों में अड़ंगा लगने के बाद जयशंकर ने कहा था कि आतंकवाद को एक राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंन भारतीय समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया था कि संयुक्त राष्ट्र में किसी प्रस्ताव को बिना सोच समझ कर रोकना कॉमन सेंस से परे है.

ऐसा नहीं है संयुक्त राष्ट्र में भारत की हर कोशिश असफल रहती है. मई 2019 में संयुक्त राष्ट्र ने जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अज़हर को ग्लोबल टेरोरिस्ट घोषित किया था. ये भारत के लिए एक बड़ी डिप्लोमेटिक जीत थी लेकिन इसके लिए भी भारत को एक दशक का इंतज़ार करना पड़ा था.

चीन के पास वीटो पावर है और अगर वो किसी प्रस्ताव का साथ नहीं देता तो उसका पास होना नामुमकिन है. संयुक्त राष्ट्र में चीन के अलावा अमेरिका, रूस, फ़्रांस और ब्रिटेन के पास वीटो पावर है.

कॉपी - पवन सिंह अतुल

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)