You’re viewing a text-only version of this website that uses less data. View the main version of the website including all images and videos.
बागपत का विनयपुर गांव हिंदू मुस्लिम भाईचारे की मिसाल फिर दाऊद त्यागी की पीट पीट कर हत्या क्यों?: ग्राउंड रिपोर्ट
- Author, दिलनवाज़ पाशा और पीयूष नागपाल
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, बाग़पत से लौटकर
- बाग़पत में 2 सितंबर को युवाओं के एक समूह ने दाऊद त्यागी की पीट-पीट कर हत्या की
- चार हिंदू युवक गिरफ़्तार, 13 अभी फ़रार हैं
- पुलिस का कहना है कि हमलावरों को मृतक के धर्म का अंदाज़ा नहीं था
- पुलिस के मुताबिक हमला 'डराने के मक़सद से हुआ'
दो सितंबर, 2022 को रात के दस सवा दस बजे यूपी के बाग़पत ज़िले के विनयपुर गांव के दाऊद अली त्यागी अपने घर के बाहर आराम से चारपाई पर लेटे फ़ोन पर बात कर रहे थे.
मोहल्ले के ही नईम त्यागी और अकरम उनके पास ही बैठे बतिया रहे थे.
अचानक 6-7 बाइकें रुकी. हथियारबंद युवा उतरे और बिना कुछ कहे हमला शुरू कर दिया. अगले एक डेढ़ मिनट में उन पर फरसों, डंडों और साइकिल की चेनों से अनगिनत वार हुए. फ़ोन के साथ कान से लगा हाथ टूट गया. चारपाई ख़ून से लाल हो गई.
चश्मदीदों के मुताबिक, 'हमलावर फ़ायरिंग करते हुए और जय श्री राम का नारा लगाते फ़रार हो गए.' पीछे दरवाजे से ये दृश्य देख रही दाऊद की बेटी लुबना चीखते हुए पिता के पास दौड़ी.
बुरी तरह ज़ख्मी दाऊद के मुंह से एक शब्द ना निकला. परिजन उन्हें लेकर अस्पताल गए जहां अगले दिन उन्होंने दम तोड़ दिया.
घटना के डेढ़ महीने बाद भी लुबना उस रात की दहशत से नहीं निकल पाई हैं. उनके बूढ़े पिता को उनकी आंखों के सामने ही मार दिया गया था.
लुबना कहती हैं, "मेरे पापा फोन पर बात कर रहे थे. अचानक 6-7 बाइकें आईं. उन्होंने कुछ नहीं पूछा सीधे लठ बजाना शुरू कर दिया. अनगिनत डंडे मारे, सर पर फरसा मारा और भाग गए. मोटरसाइकिलें स्टार्ट ही खड़ीं थीं."
"मैं चिल्ला रही थी कि मेरे पापा को बचाओ, पापा को बचाओ. ख़ून की फुहारे छूट रही थीं. वो कुछ नहीं बोले, अगले दिन उनकी मौत हो गई."
भारत की संसद से चालीस किलोमीटर दूर, उत्तर प्रदेश के बाग़पत के विनयपुर गांव में हुई ये घटना ना मीडिया की सुर्खियां बनीं, ना इस पर किसी ने कोई विरोध दर्ज कराया और ना ही कहीं कोई बहस हुई.
'हमारे अब्बा को बेवजह मार दिया'
लिंचिंग के मामलों में अभियुक्तों का पक्ष लेने वाले ये तर्क देते रहे हैं कि घटना किसी क्रिया की प्रतिक्रिया में हुई. लेकिन दाऊद अली अपने घर के बाहर आराम कर रहे थे. उनकी बेटी सवाल करती हैं कि हमारे बेग़ुनाह बाप को क्यों मारा गया?
लुबना कहती हैं, "मुझे नहीं पता कि उन्होंने हमला क्यों किया. हमारे अब्बा कि किसी से किसी तरह की दुश्मनी नहीं थी. वो तो घर से बाहर भी नहीं निकलते थे. ये हमला बिलकुल बेवजह हुआ है. कोई उनका गुनाह तो बताए. हम तो यही पूछ रहे हैं कि उन्हें क्यों मारा गया. एक सीधे-सादे आदमी के साथ ऐसा क्यों हुआ?"
बाग़पत पुलिस के मुताबिक हमलावरों की मृतक से ना किसी तरह की जान पहचान थी और ना ही कोई दुश्मनी.
पुलिस अधीक्षक नीरज कुमार जादौन बीबीसी से कहते हैं, "अभी तक की जांच में किसी तरह की जान पहचान या दुश्मनी का पता नहीं चला है."
बेटे की पढ़ाई पर असर
दाऊद एक छोटे किसान थे और उनके तीनों बेटे दिल्ली में रहकर पढ़ाई करते हैं. जब उन पर हमला हुआ तो उनके बेटे शाहरुख़ दिल्ली में ही थे.
सिविल सेवा की तैयारी कर रहे शाहरुख़ इस हमले के बाद से ही घर पर हैं और सदमे में हैं.
शाहरुख़ कहते हैं, "इस घटना ने मेरी पूरी ज़िंदगी बदल कर रख दी है. अब मैं किताबों के पास भी नहीं जा पा रहा हूं. मेरी दिमाग़ी हालत भी ठीक नहीं है. करियर एक तरफ़ है और दूसरी तरफ़ पिता को इंसाफ़ दिलाने की चुनौती है. अब परिवार की ज़िम्मेदारी भी मुझ पर ही है."
शाहरुख़ कहते हैं, "जिन लोगों ने ये हमला किया है उनसे भी ख़तरा है. अब मैं पहले की तरह आज़ादी से बाहर नहीं निकल पाऊंगा."
शाहरुख़ का दावा है कि कुछ दिन पहले जब उनका छोटा भाई और रिश्ते के चाचा खेत पर काम करने गए थे तब अभियुक्तों के गांव के लोगों ने उन्हें घेरने की कोशिश की.
टल गया दंगा
हिंदू युवाओं की भीड़ के हाथों एक मुसलमान बुजुर्ग की हत्या की इस घटना के बाद इलाके में तनाव पैदा हो गया था.
शाहरुख़ कहते हैं, "जब मैं गांव पहुंचा तो माहौल बहुत ख़राब था. मेरे पास बहुत लोगों ने फ़ोन किया और कहा कि हाईवे पर शव रखकर प्रोटेस्ट करते हैं. लेकिन मैं माहौल की गंभीरता को समझ रहा था. अगर हम प्रोटेस्ट करते या विरोध में कुछ करते तो बड़ी घटना घट सकती थी. दंगा भी हो सकता था."
शाहरुख़ कहते हैं, "प्रशासनिक अधिकारी मेरे संपर्क में थे. पुलिस ने हमें जांच करके अभियुक्तों को गिरफ़्तार करने और हमारी मांगें मानने का भरोसा दिया. मुझे यही सही लगा कि बॉडी का पोस्टमार्टम कराके शांति से अंतिम संस्कार करा दिया जाएगा. माहौल को ख़राब ना करते हुए हमने यही किया."
स्थानीय पुलिस प्रशासन की तारीफ़ करते हुए शाहरुख़ कहते हैं, "पुलिस ने हमें तीन दिन के भीतर हत्यारों को पकड़ने का भरोसा दिया था. पुलिस ने दो दिन के भीतर चार अभियुक्तों को पकड़ लिया और तेरह अन्य की पहचान की."
शांतिप्रिय गांव में सदमे में लोग
विनयपुर मिश्रित आबादी का गांव हैं. यहां क़रीब पंद्रह सौ लोग रहते हैं जिनमें हिंदुओं और मुसलमानों की तादाद लगभग बराबर है. गांव में हिंदू अधिकतर गुर्जर हैं और मुसलमान अधिकतर मुसलमान त्यागी समाज से हैं.
राजधानी दिल्ली के क़रीब होने की वजह से विनयपुर आर्थिक रूप से संपन्न है. यहां शिक्षा की स्थिति बेहतर होने की वजह से सरकारी और निजी नौकरियों में भी लोग बड़ी संख्या में है.
शाहरुख़ कहते हैं, "इस तरह का माहौल हमने कभी देखा नहीं है. मैं, मेरे पिता, मेरे दादा, मेरे परदादा सभी यहीं रहे. हमारी कभी किसी से किसी तरह की कोई रंजिश नहीं रही. आज़ादी के समय और उससे पहले भी यहां कभी ऐसा कोई माहौल नहीं था. यहां के बच्चे पढ़ाई में ध्यान लगाते हैं और अपने भविष्य के बारे में सोचते हैं. "
90 साल के रिटायर्ड सीओ चौधरी धर्मचंद कहते हैं, "जब देश आज़ाद हुआ तब मैं छोटा था. तब इस गांव में मुसलमान थे और हिंदू भी थे. तब भी बाहर हिंदू-मुसलमानों के झगड़े हुए. ये बातें खूब चलीं. लेकिन तब भी इस गांव में लोग शांति और प्यार से ही रहे. अब से पहले कभी यहां इस तरह की कोई भी घटना नहीं हुई है."
विनयपुर के रहने वाले प्रताप सिंह को लगता है कि हमलावरों का मक़सद हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफ़रत फैलाना था.
प्रताप सिंह कहते हैं, "वो दहशत फैलाने के लिए और माहौल ख़राब करने के लिए आए थे. लेकिन माहौल ख़राब ना हुआ और ना होगा. उनका मक़सद हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगा फैलाना था. कोई भी मिलता वो उसे मारते."
विनयपुर के प्रधान आदेश नंबरदार का मानना है कि इलाके के कुछ छुटभैया नेता ऐसी घटनाओं से अपनी राजनीति चमकाने की कोशिशें कर रहे हैं.
आदेश नंबरदार कहते हैं, "हो सकता है कि कुछ छुटभैया राजनेताओं ने, जो बाहरी लोग हैं, अपनी राजनीति चमकाने के लिए, राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए ये घटना करवाई हो. वरना हमारा गांव हिंदू-मुसलमान भाईचारे का प्रतीक है. यहां सभी लोग एक साथ शांति से रहते हैं."
अभियुक्तों के गांव में सन्नाटा और अफ़सोस
दाऊद की हत्या के आरोप में अब तक जिन चार अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया गया है वो विनयपुर से क़रीब एक किलोमीटर दूर गुर्जर बहुल भगौट गांव के हैं. विनयपुर और भगौट के लोगों के बीच हमेशा से पारिवारिक रिश्ते रहे हैं.
बीबीसी से बात करते हुए भगौट के लोग भी इस हत्याकांड पर अफ़सोस ज़ाहिर करते हैं. कैमरे से बचते हुए कई लोग कहते हैं कि एक बुजुर्ग को मारकर बहुत ग़लत किया.
गिरफ़्तार किए गए युवक निक्की की दादी जयवती को अपने पोते के इस हत्याकांड में गिरफ़्तार होने पर बेहद अफ़सोस है.
23 वर्षीय निक्की शादीशुदा हैं और एक निजी कंपनी में नौकरी करते थे. वो अभी जेल में हैं.
जयवती कहती हैं, "मुझे निक्की के जेल जाने का बेहद अफ़सोस है. लेकिन जो ग़लती कर दी वो तो भरनी पडे़गी. जब पोता या बेटा जेल जाएगा तो दर्द तो होगा ही लेकिन एक बात ये भी है कि उसने दूसरा आदमी क्यों मार दिया? लड़कों के साथ गया, पूरी भीड़ जा रही थी, तू भी चल, मैं भी चल, ले भैया जय गंगा."
जयवती के पति सेना में थे, एक बेटे एयरफ़ोर्स में रहे. उनका एक अन्य पोता भी सेना में है. लेकिन अब उनके पोता एक बेग़ुनाह की मौत का अभियुक्त है.
जयवती कहती हैं, "मैं लेफ्टिनेंट की घरवाली थी, एक फ्लाइंग लेफ्टिनेंट की मां थी, मेरा एक पोता मेजर है और अब इस एक पोते ने दूसरी मुहर लगा दी है."
जयवती को लगता है कि उनके पोते को भड़काया गया था. भड़काने वाले लोगों को कोसते हुए वो कहती हैं, "नौजवानों को बरगलाने वाले ऐसे लोगों से मैं यही कहूंगी की तुम्हारा भी बुरा ही होगा, जिन्होंने तुमने वहां लड़कों को ले जाकर बुरा करवाया."
गिरफ़्तार किए गए एक अन्य युवक दिलीप की मां रजनी को कहती हैं कि काश वो अपने बेटे को घर से बाहर जाने से रोक लेतीं.
अपने आंसू रोकते हुए रजनी कहती हैं, "मेरे लड़के को घर से बुलाकर ले गए थे. एक रोहित नाम का लड़का बुलाने आया था. वो मंदिर गया था जहां गणेश जी की मूर्ति रखी जा रही थी. मुझे इस बात का पता नहीं कि वहां मंदिर पर क्या हुआ और क्या नहीं हुआ."
दलीप भी अभी जेल में हैं. इधर उनकी मां रजनी का रो-रोकर बुरा हाल है. वो कहती हैं, "रो-रो कर मेरी जान निकल गई है. हम तो बसे मरे बैठे हैं. ना ही वो जाता ना ही हमें ये दिन देखने मिलते."
दाऊद की मौत पर अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए रजनी कहती हैं, "जिसे मारा है उसका भी बहुत अफसोस है. इन लड़कों ने बहुत किया है. अगर कोई मुझे मार जाए वो भी ग़लत होगा. किसी को भी ऐसे ही मार देना ग़लत है. किसी को आत्मा को दुखाना अच्छा नहीं होता है."
दलीप 22 साल के हैं और फ़िलहाल नौकरी की तैयारी कर रहे थे. जल्द ही उन्हें रेलवे में भर्ती के लिए परीक्षा देनी थी. रजनी के मुताबिक दलीप कोचिंग कर रहे थे.
भगौट गांव के लोगों को अफ़सोस है कि इस घटना ने उनके काई के कई युवाओं का भविष्य अधर में डाल दिया है.
गांव के एक व्यक्ति अपना नाम न ज़ाहिर करते हुए कहते हैं, "जो लड़के पकड़े गए हैं उनके परिवार भी बेहाल हैं. अब वो ज़मानतों के लिए चक्कर लगाएंगे. पढ़ाई करने वाले लड़के थे, अब इनका भविष्य भी ख़राब हो गया."
मंदिर में बैठक, व्हाट्सएप पर संदेश
बीबीसी ने भगौट में कई लोगों से बात की, जिससे पता चला कि विनयपुर में मुसलमान बुजुर्ग पर हमले से पहले भगौट के मंदिर में युवाओं ने बैठक की थी. हमले में शामिल कर रहे युवाओं को फोन करके बुलाया गया था.
इस घटना से पहले भगौट के युवक व्हाट्सएप पर उकसाऊ पोस्ट कर रहे थे. बीबीसी ने दिलीप की ऐसी ही एक पोस्ट देखी है.
पुलिस क्षेत्राधिकारी खेकड़ा युवराज सिंह बीबीसी से कहते हैं, "इनकी बैठक हुई थी, बैठक में क्या बातें हुईं अभी तक इन्होंने नहीं बताया है."
युवराज सिंह कहते हैं, "चार अभियुक्त हमने गिरफ़्तार किए हैं जिनसे हत्या में इस्तेमाल किए गए डंडे भी बरामद हुए हैं. उन्होंने अन्य अभियुक्तों के नाम बताए हैं. तेरह अभियुक्त अभी फ़रार हैं जिनके ख़िलाफ़ ग़ैर ज़मानती वारंट जारी किए गए हैं."
बेग़ुनाही का दावा
इस हत्याकांड में कथित रूप से शामिल कुछ अभियुक्तों के परिजनों का कहना है कि उनके बेटों को बेवजह फंसाया जा रहा है.
हिंदूवादी कार्यकर्ता नितिन नम्बरदार के परिजनों का कहना है कि उनके बेटे को उसके राजनीतिक संबंधों की वजह से फंसाया जा रहा है.
नितिन की मां इंदिरा ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, "मेरे बेटे का इस घटना से कोई संबंध नहीं है. उस रात कई लड़कों ने उसे बार-बार फोन किया था. वो बाहर गया था उनके साथ लेकिन कुछ देर बाद घर आकर सो गया था. अब उसका नाम भी लिया जा रहा है."
इंदिरा कहती हैं, "ये राजनीति है लड़कों की. मेरे बेटे की नेताओं से भी पहचान है. लोगों के बीच आता-जाता भी है. पकड़े गए लड़कों ने इस वजह से मेरे बेटे का नाम लिया है कि ये भी पकड़ा जाएगा तो हमें भी छुड़वा लेगा."
नितिन के चाचा फिरे सिंह कहते हैं, "गांव के कुछ लोगों ने राजनीतिक वजहों से नितिन का नाम पुलिस को दिया है. बहुत से लोगों को ये पसंद नहीं है कि उसकी बड़े-नेताओं के बीच उठ-बैठ है."
बीबीसी ने नितिन की कई ऐसी तस्वीरें देखी हैं जिनमें वो सत्ताधारी दल बीजेपी के नेताओं के साथ दिख रहे हैं.
इंदिरा कहती हैं, "जो बच्चो घटना में शामिल नहीं हैं, उनका नाम एफ़आईआर से निकाला जाए."
'आक्रोशित थे युवा'
बीबीसी ने विनयपुर और भगौट के कई लोगों से बात करके इस हत्याकांड की वजह समझने की कोशिश की. किसी के पास कोई साफ़ जवाब नहीं था.
हालांकि कुछ लोगों का ये कहना था कि भगौट के युवा कुछ दिन पहले पास के ही एक अन्य मुस्लिम बहुल गांव रटौल में हिंदू युवतियों के साथ हुई कथित मारपीट से आक्रोशित थे. हिंदूवादी संगठन भी यही तर्क देते हैं.
वहीं पुलिस का कहना है कि रटौल में स्कूली छात्रों के बीच झगड़ा हुआ था. लेकिन पुलिस लड़कियों पर हमले की पुष्टि नहीं करती है.
स्थानीय हिंदूवादी कार्यकर्ता अंकित बडोले कहते हैं, "रटौल में एक घटना हुई थी जिसमें हिंदू लड़की को बाल पकड़कर खींचा गया था. मुस्लिम समाज के बहुत सारे लड़के थे, उनमें बालिग-नाबालिग दोनों थे. उन्होंने लड़कियों के बाल पकड़कर खींचा, लड़की के भाइयों को भी पीटा."
पुलिस पर इस कथित घटना में उचित कार्रवाई ना करने का आरोप लगाते हुए बडोले कहते हैं, "पुलिस ने एक-दो को जेल भेजा लेकिन बाक़ी छोड़ दिया. समाज के अंदर ऐसी घटनाओं से आक्रोश पनपता है धीरे-धीरे. हिंदू समाज को लगता है कि उसे दबाया जा रहा है. अगर प्रशासन ऐसी घटनाओं में कार्रवाई नहीं करेगा तो जनता को क़ानून हाथ में लेना ही पड़ेगा."
भगौट गांव के कई लोगों ने बताया कि युवाओं में इस घटना के बाद से ही आक्रोश था और हो सकता है कि हत्या की वजह ये रही हो.
स्थानीय पुलिस इन दावों का खंडन करती है. खेकड़ा के पुलिस क्षेत्राधिकारी युवराज सिंह ने बीबीसी से बात करते हुए रटौल में युवकों के दो समूहों के बीच लड़ाई की तो पुष्टि की लेकिन उन्होंने किसी लड़की के साथ बदतमीज़ी होने से इनकार किया.
बीबीसी के सवाल पर उन्होंने कहा कि किसी लड़की के साथ बदतमीजी या हिंसा की कोई एफ़आईआर दर्ज नहीं है.
परिवार पुलिस कार्रवाई से संतुष्ट, मुआवज़े का इंतज़ार
दाऊद का परिवार अब तक की पुलिस कार्रवाई से संतुष्ट है. शाहरुख़ कहते हैं, "पुलिस ने हमें सुरक्षा भी दी है और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने लगातार हमसे संपर्क किया है. उन्होंने हमें भरोसा दिया है."
हालांकि शाहरूख का कहना है कि इस घटना के कई अभियुक्त फ़रार हैं जिसकी वजह से वो दहशत में है.
शाहरूख़ कहते हैं, "इस डर और दहशत की वजह से हम यहां से पलायन भी कर सकते हैं. ये फसल काटकर हम ज़मीन बेचकर यहां से चले जाएंगे. जब तक फ़रार अभियुक्तों को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, हमें सुरक्षा का अहसास नहीं होगा."
बीबीसी से बात करते हुए बाग़पत के पुलिस अधीक्षक नीरज कुमार जादौन कहते हैं कि सभी फ़रार 13 अभियुक्तों को भी गिरफ़्तार किया जाएगा.
इस तरह की हिंसाओं की घटनाओं के बाद सरकारें पीड़ितों की मदद करती हैं. लेकिन शाहरुख़ का कहना है कि अभी तक उनके परिवार की कोई मदद नहीं हुई है.
शाहरुख़ कहते हैं, "अभी तक हमारे परिवार की कोई आर्थिक मदद नहीं हुई है. हमारे परिवार को एक सरकारी नौकरी देने का वादा स्थानीय अधिकारियों ने किया था, लेकिन अभी ऐसा कुछ नहीं हुआ है. हम चाहते हैं कि हमारे परिवार की इसी तरह मदद की जाए, जैसे ऐसी हिंसा के पीड़ितों की मदद की जाती है."
वहीं बाग़पत के ज़िलाधिकारी राजकमल यादव कहते हैं कि नौकरी देने का फ़ैसला शासन स्तर पर लिया जाता है, इस मामले में ऐसा कोई वादा ज़िला प्रशासन ने परिवार से नहीं किया है.
बाग़पत पुलिस का दावा है कि दाऊद की हत्या धर्म से प्रेरित नहीं थी. लेकिन बीबीसी की पड़ताल में ज़मीनी सच कुछ और ही नज़र आता है.
उत्तर प्रदेश में धर्म के आधार पर हिंसा की ये कोई पहली वारदात नहीं है. बीबीसी के जुटाए आंकड़ों के मुताबिक साल 2021 में जनवरी से लेकर अगस्त के बीच मुसलमानों के ख़िलाफ़ संगीन हिंसक वारदातों की संख्या 24 थी.
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार क़ानून व्यवस्था सुधरने का दावा करती है. लेकिन इस तरह घटनाएं प्रदेश की क़ानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं और अल्पसंख्यक मुसलमानों में डर पैदा करती है.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)