नीतीश कुमार के सामने यह तेजस्वी का सरेंडर है या उत्तराधिकारी बनने की डील

बिहार

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    • Author, रजनीश कुमार
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

पिछले महीने सऊदी अरब के 86 साल के किंग सलमान अब्दुल अज़ीज़ अल साऊद ने अपने 37 साल के बेटे और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को प्रधानमंत्री बनाने का फ़ैसला किया था. वैसे यह महज़ औपचारिकता थी क्योंकि पहले से ही सऊदी अरब का असली शासक क्राउन प्रिंस को ही माना जाता था.

सऊदी अरब में राजशाही है इसलिए यह फ़ैसला कोई चौंकाने वाला नहीं था. रविवार को बिहार की प्रमुख पार्टी राष्ट्रीय जनता दल की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में थी.

इसी बैठक में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने बताया कि अब पार्टी के नीतिगत मामलों में केवल तेजस्वी यादव ही बोलेंगे. 74 वर्षीय लालू ने एक तरह के अपने 32 वर्षीय बेटे तेजस्वी यादव को राजनीतिक विरासत सौंप दी है.

आरजेडी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने आए एक वरिष्ठ नेता से पूछा कि केवल तेजस्वी ही बोलेंगे, यह पार्टी का फ़ैसला है या परिवार का फ़ैसला है?

इस सवाल के जवाब में वह कहते हैं, ''भारत की क्षेत्रीय पार्टियाँ साऊद परिवार की तरह ही चल रही हैं. इसलिए परिवार ही पार्टी है लेकिन पार्टी परिवार नहीं है. हाऊस ऑफ साऊद में भी सत्ता के लिए संघर्ष होता है. परिवार के लोग पकड़कर जेल में भी बंद किए जाते हैं. रविवार को तेज प्रताप जिस तरह से नाराज़ होकर बैठक से निकले उससे साफ़ है कि लालू परिवार में भी सत्ता का संघर्ष जारी है.''

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वह कहते हैं, ''भारत के लोकतंत्र को आप पश्चिमी देशों के लोकतंत्र के आईने में नहीं देख सकते हैं. आप देखिए कि ब्रिटेन में सांसदों का समर्थन ऋषि सुनक के साथ था लेकिन पार्टी के कार्यकर्ताओं ने लिज़ ट्रस को चुना. अब हम आरजेडी को ब्रिटेन की कन्जर्वेटिव पार्टी या लेबर पार्टी के आईने में देखेंगे तो हमारी मूर्खता होगी.''

''भारत के लोग भी यथास्थितिवादी हैं. अगर उन्हें नेताओं का कॉलर पकड़ना आता तो ऐसी स्थिति नहीं होती. आरजेडी हो या नीतीश कुमार की जेडीयू ये सभी एक व्यक्ति की पार्टी है. यहाँ तक कि हम एक परिवार की पार्टी भी नहीं कह सकते हैं. अगर परिवार की पार्टी होती तो तेज प्रताप बिदकते नहीं या फिर लालू की बड़ी बेटी मीसा भारती के मन में कसक नहीं होती.''

तेज प्रताप लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे हैं. वह तेजस्वी से दो साल बड़े हैं. अगस्त महीने में नीतीश कुमार ने बीजेपी को छोड़ आरजेडी के साथ सरकार बनाई तो तेज प्रताप को पर्यावरण, वन और जलवायु विभाग का मंत्री बनाया गया.

2015 में तेज प्रताप को स्वास्थ्य विभाग का मंत्री बनाया गया था और यह एक अहम ज़िम्मेदारी थी. इस बार उन्हें जो ज़िम्मेदारी दी गई है उसके बारे में कहा जाता है कि वहाँ कुर्सी पर बैठने के सिवा करने के लिए कुछ नहीं है.

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तेजस्वी यादव - क्रिकेट से सियासत तक

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  • तेजस्वी क्रिकेटर बनना चाहते थे लेकिन वहाँ नाकाम रहे
  • तेजस्वी ने नौवीं क्लास के बाद पढ़ाई नहीं की, वजह क्रिकेट प्रेम बताई जाती है
  • 2015 में पहली बार चुनावी राजनीति में आए और बिहार के राघोपुर से विधायक चुने गए
  • इसी साल वह उपमुख्यमंत्री बन गए और 17 महीने बाद बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे
  • पिछले साल तेजस्वी यादव ने अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक शादी की थी
  • अब आरजेडी की कमान 32 साल के तेजस्वी के हाथों में है
  • छोटे से राजनीतिक करियर में तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे
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तेजस्वी यादव

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सुधाकर पर कार्रवाई लेकिन तेज प्रताप को छूट

रविवार को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने तेज प्रताप यादव भी पहुँचे थे लेकिन वह बैठक से नाराज़ होकर निकल गए. ग़ुस्से से तमतमाए तेज प्रताप यादव ने कहा कि उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव श्याम रजक ने गाली दी है, इसलिए वह जा रहे हैं.

तेज प्रताप ने मीडिया वालों से कहा, ''जब हमने कार्यक्रम के बारे में पूछा तो श्याम रजक ने गंदी-गंदी गालियां दीं. उसने मेरे पीए और बहन को गाली दी. गाली का ऑडियो भी है, उसे सोशल मीडिया पर डालकर पूरे बिहार को सुनाऊंगा. कोई गाली सुनने के लिए यहाँ नहीं बैठेगा.''

श्याम रजक आरजेडी के दलित चेहरा हैं. वह आरजेडी और जदयू में आते-जाते रहे हैं.

तेज प्रताप के आरोप के बारे में उनसे पूछा गया तो उन्होंने एनडीटीवी इंडिया से कहा, ''वह सामर्थ्यवान हैं इसलिए कुछ भी कह सकते हैं. उनका कोई दोष नहीं है. ढोल, गँवार, शूद्र, पशु,नारी ये सब हैं ताड़न के अधिकारी. हम तो ताड़न के अधिकारी हैं. सारा दोष मेरा है.''

बाद में सोशल मीडिया पर वीडियो क्लिप शेयर किया गया कि श्याम रजक तेज प्रताप की नाराज़गी के बाद बीमार पड़ गए हैं और उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती किया गया है.

लेकिन बात केवल तेज प्रताप की नहीं है. पार्टी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नहीं आए. जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह को इस महीने की शुरुआत में ही नीतीश कैबिनेट से इस्तीफ़ा देना पड़ा था.

वह कृषि मंत्री थे. आरजेडी के कोटे से यह दूसरे मंत्री का इस्तीफ़ा था. इससे पहले कार्तिकेय सिंह को इस्तीफ़ा देना पड़ा था. कार्तिकेय सिंह को आपराधिक पृष्ठभूमि के कारण और सुधाकर सिंह को अपने बयान के कारण इस्तीफ़ा देना पड़ा था.

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सुधाकर सिंह के इस्तीफ़े को लेकर जगदानंद सिंह सहमत नहीं थे. सुधाकर सिंह ने एक जनसभा में कह दिया था कि उनके विभाग में सब चोर हैं और वह इस विभाग के मंत्री हैं, इसलिए वह चोरों के सरदार हुए.

उनके इस बयान को बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी ने काफ़ी मुद्दा बनाया था और कहा था कि यह सरकार भ्रष्टाचार से समझौता कर रही है. जगदानंद सिंह ने अपने बटे के इस्तीफ़े को त्याग बताया था.

आरजेडी के एक प्रवक्ता ने बताया कि सुधाकर सिंह से नीतीश कुमार ने कैबिनेट की बैठक में उस बयान को लेकर पूछा था कि लेकिन उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया था और बैठक से निकल गए थे.

इसके बाद मामला लालू प्रसाद यादव के पास गया और उन्होंने पूरे मामले में सुधाकर सिंह को माफ़ी मांगने के लिए कहा. सुधाकर सिंह ने माफ़ी नहीं मांगी तो इस्तीफ़ा देना पड़ा.

सुधाकर सिंह के बयान को अनुशासनहीनता के तौर पर लिया गया लेकिन रविवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जो तेज प्रताप ने किया उसे भी लोग उदंडता ही बता रहे हैं.

पटना में हिन्दी अख़बार के एक संपादक ने नाम नहीं लिखने की शर्त पर बताया, ''तेज प्रताप विधायक के साथ मंत्री हैं और लालू के बड़े बेटे हैं. क्या उन्हें मीटिंग का समय तक नहीं पता था? उन्हें क्या समय श्याम रजक से पूछने की ज़रूरत थी? उन्होंने जो किया वह घोर उदंडता थी. पार्टी कहाँ एजेंडा सेट करने और राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने के लिए बैठक करने आई थी और मीडिया में बात पार्टी की आपसी कलह की होने लगी. जब आप सुधाकर सिंह को उदंडता के मामले में मंत्री से हटा सकते हैं तो तेज प्रताप को क्यों नहीं हटा सकते हैं? लेकिन मुझे पता है कि आरजेडी की भी अपनी सीमा है.''

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तेजस्वी का सरेंडर?

कई लोगों का कहना है कि तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के सामने सरेंडर कर दिया है. इसके लिए लोगों का तर्क है कि आरजेडी के पास 80 विधायक हैं और नीतीश कुमार के 43 विधायक हैं लेकिन सरकार बनी तो मुख्यमंत्री के साथ वित्त और गृह विभाग भी जेडीयू के पास ही रहे.

तेजस्वी यहीं तक नहीं रुके बल्कि नीतीश के कहने पर ही उन्होंने कार्तिकेय सिंह और सुधाकर सिंह को इस्तीफ़ा देने के लिए कहा. हाल ही में जगदानंद सिंह ने कह दिया था कि 2023 में नीतीश को बिहार की कमान तेजस्वी को दे देनी चाहिए और शिवानंद तिवारी ने कह दिया था कि नीतीश कुमार को अब आश्रम में चले जाना चाहिए.

इसके बाद पार्टी ने आधिकारिक रूप से कहा कि सरकार और गठबंधन पर तेजस्वी यादव के अलावा कोई नहीं बोलेगा. लालू यादव ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जो घोषणा की इसकी वजह इन दोनों नेताओं को बयान को ही माना जा रहा है.

लालू

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लेकिन क्या इसे नीतीश कुमार के सामने तेजस्वी के सरेंडर के रूप में देखना चाहिए?

पटना में हिन्दी दैनिक प्रभात ख़बर के स्थानीय संपादक अजय कुमार कहते हैं, ''मैं इसे सरेंडर के रूप में नहीं देखता हूँ. तेजस्वी यादव के लिए यह ट्रांजिशन फेज है. वह पार्टी से लेकर सरकार तक में अपनी पकड़ मज़बूत करने में लगे हैं. आरजेडी लंबे समय से सत्ता से बाहर रही है और पार्टी चलाने के लिए सत्ता में रहना ज़रूरी होता है. आरजेडी की लड़ाई बीजेपी से है ऐसे में वह जदयू से नहीं लड़ सकती है. इसी क्रम में हम देख सकते हैं कि आरजेडी की कमान अब तेजस्वी के पास आ गई है. ये दूसरी बात है कि औपचारिक रूप से अध्यक्ष अभी लालू यादव ही है.''

तेजस्वी यादव ने भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इन सवालों का जवाब देने की कोशिश की.

तेजस्वी ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा, ''हमें एक चीज़ समझने की ज़रूरत है. यह संभव है कि मैं सभी को ख़ुश ना रख सकूँ या यह भी संभव है कि मैं भी सब से ख़ुश ना रहूँ. लेकिन हम सभी के लिए बड़ी चुनौती है कि मिलकर साथ रहें. मैं किसी को पसंद नहीं कर सकता हूँ और कोई मुझे भी पसंद नहीं कर सकता है.''

''यह मानवीय स्वभाव है. लेकिन मैं सभी से हाथ जोड़कर अपील करता हूँ कि कृपया एजेंडा ना बदलें और ना ही उसे कमज़ोर करें. हम 2024 में बड़ी लड़ाई लड़ने जा रहे हैं. हमें सबके सहयोग की ज़रूरत है. हमारी लड़ाई देश को बचाने के लिए है. ये छोटे-छोटे मतभेद हमें बचाव की मुद्रा में ला देंगे जबकि हमें आक्रामक रहने की ज़रूरत है.''

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क्या नीतीश के उत्तराधिकार होंगे तेजस्वी?

बिहार में आरजेडी नेताओं से बात कीजिए तो उनका कहना है कि आने वाले समय में नीतीश कुमार बिहार की ज़िम्मेदारी तेजस्वी यादव को ही सौंप देंगे इसीलिए उनकी हर बात मानी जा रही है.

यह सवाल पहले से ही उठता रहा है कि नीतीश कुमार के बाद जेडीयू का क्या होगा? नीतीश कुमार ने अभी तक किसी को आगे नहीं किया है जिससे पता चले कि उनके बाद पार्टी कौन देखेगा. अगर 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार का आख़िरी था तो 2025 में उनकी पार्टी का क्या होगा?

जब नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को जेडीयू की कमान सौंपी थी तब कहा जा रहा था कि उन्होंने अपना उत्तराधिकार चुन लिया है. लेकिन आरसीपी सिंह पार्टी से बाहर चुके हैं और उन्हें भी लगता है कि नीतीश कुमार तेजस्वी को ही कमान सौंप देंगे.

2020 के विधानसभा चुनाव में एक बिहार के पूर्णिया ज़िले में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने कहा था कि यह उनका आख़िरी चुनाव है और अंत भला तो सब भला. नीतीश कुमार ने कहा था, ''और ये जान लीजिए कि यह मेरा आख़िरी चुनाव है. अंत भला तो सब भला.''

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लेकिन क्या यह इतना आसान है? अजय कुमार कहते हैं, ''इस सवाल का जवाब आपको नीतीश कुमार की राजनीति की पृष्ठभूमि में देखना होगा. नीतीश कुमार के साथ कौन लोग हैं? उनके साथ मध्य-वर्ग है. मध्य जातियां हैं. सवर्ण भी हैं. ये सुखी संपन्न हैं. इसके अलावा महादलित भी हैं. अब सवाल उठता है कि ये तेजस्वी के नेतृत्व को स्वीकार कर लेंगे? मुझे लगता है कि ऐसी स्थिति में जेडीयू के 43 विधायकों में आधे बीजेपी के साथ चले जाएंगे और आधे आरजेडी के साथ.''

जेपी आंदोलन से निकले लालू यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव, सुशील कुमार मोदी और रामविलास पासवान दशकों तक बिहार की राजनीति में छाए में रहे. रामविलास पासवान का निधन हो चुका है और शरद यादव भी सक्रिय राजनीति से बाहर हो गए हैं.

लालू यादव भी सेहत, उम्र और मुक़दमों के कारण अब अपनी राजनीति के सांध्यकाल में हैं.

इस पीढ़ी के नेतृत्व में नीतीश कुमार ने अब भी मोर्चा संभाल रखा है लेकिन उनकी लोकप्रियता भी पिछले तीन दशकों में ढलान पर है.

सुशील कुमार मोदी स्वस्थ हैं लेकिन नरेंद्र मोदी की बीजेपी में उन्हें भी बिहार की राजनीति से किनारे किया जा चुका है. बिहार नेतृत्व के लिहाज से संक्रमण काल से गुजर रहा है.

ऐसे में तेजस्वी अपने पिता के नारों के सहारे ही आगे बढ़ेंगे या वर्तमान ज़रूरतों की हिसाब से पार्टी को नया शेप देंगे. आरजेडी के भीतर सबसे बड़ा सवाल यही है.

तेजस्वी यादव को कई लोग यथास्थिति तोड़ने वाले नेता के रूप में भी देखते हैं. तेजस्वी ने पिछले साल शादी की थी और उन्होंने यह शादी अपनी जाति ही नहीं बल्कि मज़हब से भी बाहर की थी.

कहा जाता है कि लालू परिवार के लिए अंतर्जातीय शादी को स्वीकार करना ही बेहद मुश्किल था लेकिन उन्हें अंतर्धामिक शादी को स्वीकार करना पड़ा. जिस पार्टी और नेता की पहचान एक जाति से जोड़ी जाती है, उसके उत्तराधिकार के लिए जाति की दीवार तोड़ना इतना आसान नहीं था.

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