भगत सिंह का बसंती पगड़ी से क्या था रिश्ता- उनसे जुड़े ऐसे कई सवालों के जवाब

भगत सिंह
    • Author, दिलीप सिंह
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता
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भगत सिंह का वास्तविक जन्म स्थान कौन सा है?

भगत सिंह की जन्मतिथि 27 सितंबर या 28 सितंबर है?

अगर फांसी लाहौर में हुई तो हुसैनीवाला में अंतिम संस्कार क्यों किया गया?

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भारत के स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह और उनके साथियों से जुड़े कई किस्से हैं. भगत सिंह के बारे में कई ऐसी बातें हैं जिनके बारे में बहुत से लोगों को पूरी जानकारी नहीं है.

बीबीसी ने भगत सिंह पर शोध करने वाले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर चमन लाल से ऐसे कई सवालों के जवाब जानने की कोशिश की.

1. भगत सिंह की विचारधारा क्या थी?

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लोग भगत सिंह को वामपंथी भी कहते हैं, लेकिन किसी की व्याख्या को मानने की ज़रूरत नहीं है. भगत सिंह को भगत सिंह के ज़रिए ही समझने की ज़रूरत है. इसलिए उनकी जेल डायरी सहित उनके अन्य लेखों को पढ़ना आवश्यक है.

भगत सिंह ने अपनी पार्टी का नाम 'हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' से बदलकर 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' कर दिया था. इसका मतलब है कि वह एक समाजवादी क्रांतिकारी थे.

दिल्ली में एक झांकी की पुरानी तस्वीर

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2. क्या भगत सिंह का बसंती रंग से कोई संबंध था?

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भगत सिंह का परिवार कांग्रेस से जुड़ा था. उनके पूरे परिवार का पहरावा खादी का सफेद कुर्ता पायजामा और खदी की सफेद पगड़ी था. उस दौर के क्रांतिकारियों का मुख्य पहरावा खादी के कपड़े थे. भगत सिंह की भी यही पोशाक थी.

एक बात स्पष्ट होनी चाहिए कि भगत सिंह ने कभी बसंती पगड़ी नहीं बांधी थी. चमन लाल कहते हैं कि लोग मुझसे यह भी पूछते हैं कि आप कैसे कह सकते हैं कि उन्होंने बसंती पगड़ी नहीं पहनी थी क्योंकि उस समय ब्लैक एंड व्हाइट कैमरा था.

मैंने भगत सिंह के साथियों यशपाल, शिव वर्मा और अन्य के साक्षात्कार पढ़े हैं, उन्होंने भगत सिंह की पोशाक के बारे में भी बात की है. भगत सिंह के सफेद कपड़े मैले-कुलैचे हुआ करते थे क्योंकि उनकी गतिविधियां जारी थीं और छुप कर रहना पड़ता था.

जेल में रहते हुए भगत सिंह द्वारा लिखी गई डायरी को उनकी जेल डायरी के रूप में जाना जाता है

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3. भारत का खटकड़ कलां उनका जन्मस्थान है या पाकिस्तन का चक बंगा ?

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भगत सिंह के परिवार का करीब 300 साल पुराना इतिहास मिलता है. भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह की आत्मकथा 'बरीड अलाइव' यानी 'ज़िंदा दफ़न' है. इसमें उन्होंने अपने पूर्वजों का उल्लेख किया है. उनका पैतृक गांव अमृतसर जिले में नारली था.

मैं भी नारली गया हूं, लेकिन वहां कोई संपत्ति या निशानी नहीं मिली, लेकिन अजीत सिंह की किताब में उस गांव का ज़िक्र ज़रूर है.

जब उनके पूर्वजों ने सिख धर्म नहीं अपनाया था, तब अगर किसी की मृत्यु हो जाती था तो उसकी अस्थियाँ हरिद्वार प्रवाहित करने के लिए ले जाते थे. उस ज़माने में कोई साधन नहीं था इसलिए लोग पैदल ही यात्रा करते थे.

पाकिस्तान के बंगा में भगत सिंह का घर जहां उनका जन्म हुआ था
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उनके पूर्वजों में एक युवक था जो किसी की मौत के बाद अस्थियां लेकर हरिद्वार के लिए निकला था, रास्ते में रात हो गिर गई और वह खटकड़ कलां में रुक गया, इसका पहले नाम गढ़ कलां था. गढ़ नाम का मतलब एक किला होता है. युवक ने किले के मालिक से रात का आश्रय मांगा. शरण देने वालों की एक ही लड़की थी, उन्हें वो लड़का पसंद आया.

जब वह सुबह उठने लगा तो उसने कहा कि तुम लौटते वक्त भी हमारे मेहमान बनकर आना. वापसी में उन्होनें अपनी बेटी की शादी की बात उस लड़के से की और शर्त रखी कि शादी के बाद आपको दामाद बनकर हमारे यहां ही रहना पड़ेगा.

उस युवक ने कहा कि मैं अपने परिवार से बात करके बताउंगा. भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह की बायोग्राफी में लिखा है कि जब युवक की शादी हुई तो लोगों ने पूछा कि खट्ट में क्या मिला. खट्ट का अर्थ है दहेज.

भगत सिंह को उनके साथियों के साथ लाहौर की उसी जेल में बंद कर दिया गया था

फिर इसका नाम गढ़ कलां से बदलकर खट्टगढ़ हो गया, समय गुज़रता गया और यह नाम खटकड़ हो गया. किले के मालिकों का इतिहास फतेह सिंह नाम के एक व्यक्ति से मिलता है जो महाराजा रणजीत सिंह के समकालीन थे.

अजीत सिंह की किताब के अनुसार इस परिवार की ज़मीन पर ब्रिटिश हुकूमत का कब्ज़ा था. ज़मीन वापस पाने के लिए पंजाब के मजीठिया परिवार के बुज़ुर्गों ने फतेह सिंह को अंग्रेजों का सहयोग करने और ज़मीन वापस लेने की सलाह दी.

प्रोफ़ेसर चमन लाल

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इस सलाह का जवाब देते हुए फतेह सिंह ने कहा था कि वह ब्रिटिश हुकूमत के आगे नहीं झुकेंगे. तभी से ही भगत सिंह के परिवार देशभक्ति से जुड़ा. भगत सिंह के दादा अर्जन सिंह फतेह सिंह के बाद दूसरी तीसरी पीढ़ी में आते हैं.

सन 1900 के आसपास लायलपुर और मिंटगोमरी के नए ज़िलों का गठन किया गया. इन ज़िलों में नहरों का निर्माण किया गया और यहां भूमि भी उपजाऊ थी. मौजूदा भारत के माझा और दोआबा इलाके से बड़ी संख्या में लोग वहां खेती के लिए गए. भगत सिंह के परिवार को भी ज़मीन आवंटित की गई थी.

भगत सिंह की 1927 में पहली गिरफ्तारी के बाद जेल में ली गई तस्वीर

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उनकी ज़मीन लायलपुर में चक नंबर 105 थी, इधर मौजूदा भारत के बंगा में उनके गांव की पृष्ठभूमि थी, इसलिए यहां का नाम चक बंगा पड़ गया. भगत सिंह के पिता और चाचा भारतीय पंजाब में पैदा हुए थे और भगत सिंह का जन्म चक बंगा, मौजूदा पाकिस्तान में हुआ था.

भगत सिंह की भतीजी वीरेंद्र सिंधु की हिंदी में एक किताब है - 'भगत सिंह और उनके पूर्वज', जो 1965 में प्रकाशित हुई थी. उस किताब में उनके पूरे खानदान का इतिहास है.

4. भगत सिंह की जन्मतिथि 27 सितंबर या 28 सितंबर है?

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28 सितंबर भगत सिंह की जन्मतिथि है. भगत सिंह के भाई कुलतार सिंह की बेटी वीरेंद्र सिंधु ने अपनी किताब में लिखा है कि भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर को सुबह करीब 9 बजे हुआ था.

लाहौर का शादमान चौक पहले उस जेल कैंप का हिस्सा था जहां भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दी गई थी
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5. जब भगत सिंह और उनके साथियों को लाहौर में फांसी दी गई तो फिरोज़पुर के हुसैनीवाला में अंतिम संस्कार क्यों किया गया था?

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आधिकारिक आदेश के मुताबिक 24 मार्च की सुबह फांसी होनी थी लेकिन 23 मार्च की शाम को फांसी की तैयारी कर ली गई थी. क्योंकि ब्रिटिश सरकार को डर था कि कहीं जेल पर हमला न हो जाए. जब भगत सिंह और उनके साथियों को ले जाया गया तो जेल के कैदियों के इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे दूर दूर तक सुनाई पड़े.

शाम 7 से 7.30 बजे के बीच भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दी गई. जेल के मुख्य दरवाज़े पर भारी भीड़ जमा हो गई। लोगों ने लाशें मांगी, लेकिन जेल प्रशासन घबरा गया, शवों के टुकड़े किए गए और ट्रक में भरकर जेल के पिछले दरवाज़े से फिरोज़पुर की तरफ निकल गए.

कसूर में एक जगह रुके लकड़ियां लीं, एक पंडित और एक ग्रंथी को भी साथ लिया और मिट्टी के तेल के कनस्तर भी लिये. शवों पर तेल डाला गया और सतलुज के किनारे जंगल में जल्दबाज़ी में जला दिया गया.

बाद में 24 मार्च की सुबह लाला लाजपत राय की बेटी पार्वती बाई और भगत सिंह की छोटी बहन अमर कौर समेत करीब 200 से 300 लोग पीछा करते हुए उसी स्थान पर पहुंचे. काफी खोजबीन के बाद मिट्टी खोदते समय उनकी अधजली हड्डियाँ मिलीं.

उन अस्थियों को उठा लिया गया और लाहौर लौटने के बाद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की अर्थियां तैयार की गईं. रावी नदी के किनारे तीनों के अंतिम संस्कार के लिए भारी भीड़ उमड़ी थी.

26 मार्च के ट्रिब्यून अखबार में पहले पन्ने पर खबर भी छपी थी कि भारी भीड़ की मौजूदगी में तीनों का अंतिम संस्कार उसी जगह किया गया जहां लाला लाजपत राय का अंतिम संस्कार किया गया था.

भगत सिंह की 1927 में पहली गिरफ्तारी के बाद जेल में ली गई तस्वीर

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