'मेरे बेटे के साथ ग़लत काम हुआ है, मुझे इंसाफ़ चाहिए'

अदालत

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    • Author, सुशीला सिंह
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता
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''मेरे बेटे के सिर, छाती और पांव में गुम चोटें थीं. बेटे ने बताया कि उसके साथ ग़लत काम भी हुआ है. वो डरा हुआ था. उसने कहा वो मुझे मार देंगे. वो ज़िंदगी से जूझ रहा है. मैं उन लोगों को छोड़ दूं? मुझे न्याय चाहिए.'' - सर्वाइवर की मां

''इस मामले में दो को पकड़ा गया है और एक फ़रार है.लड़कियां ही नहीं लड़कों के ख़िलाफ़ भी यौन हिंसा के मामले सामने आते हैं और ऐसी घटनाओं को रिपोर्ट करना बेहद ज़रूरी है.'' - संजय कुमार सैन, डिप्टी कमिश्नर ऑफ़ पुलिस, नॉर्थ ईस्ट दिल्ली

''लड़के की हालात गंभीर है''- डॉक्टर रितु सक्सेना, लोकनायक अस्पताल

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सर्वाइवर की मां के अनुसार ये घटना 18 सितंबर को हुई.

मां के अनुसार, जब उनका बेटा घर लौटा तो लंगड़ा रहा था और कई बार पूछने के बावजूद केवल लड़ाई-झगड़े की बात क़बूल रहा था. लेकिन 22 तारीख़ को बहुत पूछने पर जानकारी दी.

ये घटना देश की राजधानी दिल्ली में हुई. मां के मुताबिक़, उनके बच्चे की उम्र 11-12 साल है और वो उन तीन लड़कों में से एक को जानती हैं.

उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा,'' जब मैंने बेटे से बहुत पूछा तो 22 तारीख़ को उसने कहा कि अम्मा तुम मुझे मारोगी. मैंने कहा कि नहीं मारूंगी. उसने कहा कि लड़कों ने उसे कहा कि वो लोग मुझे जान से मार देंगे. मैंने कहा नहीं मारेंगे. उसने तीन लड़कों के नाम लिए और कहा कि उन्होंने मेरे साथ ग़लत काम किया. मेरा खेलता-कूदता बच्चा उन्होंने छीन लिया. आप बताओ तीन लोगों ने मेरे बच्चे के साथ ऐसा किया है. मैं क्या करूं?.''

दिल्ली स्थित लोकनायक अस्पताल में इमरजेंसी वॉर्ड में हेड डॉक्टर रितु सक्सेना ने बीबीसी को बताया,'' बच्चे की हालत अभी गंभीर है. ये बच्चा अभी अस्पताल में बाल रोग विभाग के आईसीयू में भर्ती है.''

संजय कुमार सैन, डिप्टी कमिश्नर ऑफ़ पुलिस, नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली
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संजय कुमार सैन, डिप्टी कमिश्नर ऑफ़ पुलिस नॉर्थ ईस्ट दिल्ली ने बताया कि अभियुक्तों के ख़िलाफ़ आइपीसी की धारा 377और 34 लगाई गई है. इस मामले में दर्ज केस में पॉक्सो ऐक्ट भी लगाया गया है.

उनके अनुसार, ''ये घटना 18 तारीख़ को हुई थी और परिवार इस मामले में केस दर्ज कराने से हिचकिचा रहा था, लेकिन आईओ और सखी सेंटर की काउंसेलर से मां की काउंसलिंग कराई गई और बयान लिया गया. इस मामले में दो लड़कों को पकड़ा गया है और एक फ़रार है. इस मामले में तीन लोग सर्वाइवर के समुदाय से हैं और उनके जानने वाले हैं जिसमें से एक सर्वाइवर का कज़िन है.''

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क्या हैं धाराएं?

डॉक्टर रितु सक्सेना, लोकनायक अस्पताल
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भारतीय दंड संहिता की धारा 377 'प्रकृति विरुद्ध अपराधों' से संबंधित है, वहीं धारा 34 कहती है कि जब एक आपराधिक कृत्य को कई व्यक्ति एक ही इरादे से करते हैं और इसके लिए हर एक व्यक्ति की ज़िम्मेदारी समान होगी. वहीं लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम- 2012 या POCSO, 18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़कियों को यौन उत्पीड़न से बचाने के मक़सद से बनाया गया है.

भारतीय क़ानून में इन अपराधों के लिए अलग-अलग सज़ा का प्रावधान है.

डॉक्टर रितु सक्सेना कहती हैं कि निर्भया मामले के बाद ऐसे मामलों को लेकर ज़्यादा ज़ागरुकता आई है और बच्चों को स्कूल में सेंसेटाइज़ किया जा रहा है. फ़िज़िकल, मेंटल या सेक्शुएल अब्यूज़ के बारे में बताया जा रहा है. लेकिन ऐसे मामलों में अभी भी समाज में कमियां देखने को मिलती हैं जहां ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग नहीं होती.

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उनके अनुसार, ''कई बार ये देखा गया है कि बच्चा बताता भी है तो पेरेंट्स ऐसे मामलों को छिपाने की कोशिश करते हैं. ये भी देखने को मिलता है कि समाज में आर्थिक रूप से निम्न वर्ग के लोग जो सुबह काम पर जाते हैं और शाम को लौटते हैं, उनके बच्चों के साथ ऐसी घटनाएं ज़्यादा होती हैं. उनके लिए ये चीज़ें इतनी अहमियत नहीं रखतीं क्योंकि वो रोज़ी-रोटी में ही व्यस्त रहते हैं. और देखा गया कि ऐसे मामले ज़्यादातर जान-पहचान के लोग ही करते हैं.''

ये देखा गया है कि लड़कों के साथ होने वाली यौन हिंसा की रिपोर्टिंग भी कम होती है.

घर का प्रमुख

वहीं, लड़कों को बचपन से ही ये सिखाया जाता है कि लड़के मज़बूत होते हैं, वे रोते नहीं है और उन्हें हर परिस्थिति का डटकर सामना करना चाहिए.

अर्चना अग्निहोत्री, सामाजिक कार्यकर्ता
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इस बात को आगे बढ़ाते हुए सामाजिक कार्यकर्ता अर्चना अग्निहोत्री महिला और समाज कल्याण विभाग द्वारा साल 2007 में की गई स्टडी का हवाला देती हैं और कहती हैं कि ये 13 राज्यों में किया गया था.

बीबीसी से बातचीत में स्वयं सेवी संस्था, समाधान अभियान की निदेशक अर्चना अग्निहोत्री ने कहा, ''इस स्टडी में ये बात निकल कर आई कि 53 प्रतिशत बच्चों का यौन शौषण हुआ है जिसमें से ज़्यादा मामले लड़कों के होते हैं. ये बात बाहर कम आती है तो रिपोर्टिंग भी कम होती है.

इसका कारण ये है कि लड़कों को पैदा होते ही ये कहा जाता है कि वो घर का प्रमुख बनेगा, इससे उस पर साइकोलॉजिकल प्रेशर आता है और उसे लगता है कि कैसे उसे कोई नुक़सान पहुंचा सकता है. ऐसे में जब उसके साथ ऐसी घटनाएं होती हैं तो उसे लगता है कि इस पर बोलने पर वो लड़का नहीं माना जाएगा. वो घर को लीड नहीं कर पाएगा.''

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सोच बदलने की ज़रूरत

हालांकि समाज को ये सोच बदलने की ज़रूरत है कि बच्चा चाहे लड़का हो या लड़की दोनों ही नाज़ुक हैं, वो रो सकते हैं क्योंकि दोनों को दर्द होता है.

संजय कुमार सैन इसी मुद्दे पर कहते हैं, ''इस मामले में देखा गया कि लड़के ने डर से अपने पेरेंटस से बात छिपाई और पता चलने पर पेरेंटस ने रिपोर्ट करने में देरी की. हालांकि बैड टच और गुड टच के बारे में बताया जा रहा है लेकिन समाज में लड़कियों के मामले में सेंसेटाइज़ेशन दिखता है, लेकिन लड़कों के मामले में ये कम दिखाई देता है. ऐसे में चाहिए कि लड़कों को भी इस बारे में बताया जाए और पेरेंटस को भी ऐसे मामले आने पर रिपोर्ट करना चाहिए.''

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक़, पॉक्सो के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. 2021 में 33,348 मामले सामने आए. जहां लड़कियों के ख़िलाफ़ ऐसे मामलों में वृद्धि हुई है, वहीं आंकड़े बताते हैं कि ऐसी यौन हिंसा लड़कों के ख़िलाफ़ भी बढ़ी है.

जानकार मानते हैं कि बच्चों के ख़िलाफ़ यौन हिंसा के मामलों का एक कारण ऑनलाइन ऐसी सामग्रियों का उपलब्ध होना भी है.

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इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (नोएडा) के अध्यक्ष डॉक्टर सुनील अवाना कहते हैं कि ''जब भी लड़के या लड़की के साथ ऐसा सेक्शुअल असॉल्ट होता है तो वो सदमे में चले जाते हैं जहां उनके लिए खुलकर इस घटना को बयान करना बहुत मुश्किल होता है.

वहीं अगर लड़के की बात की जाए तो समाज और घर में ये बातें अभी भी आमतौर पर होती हैं कि उन्हें एक परिवार में लीड या ऐक्टिव रोल प्ले करना है. अब वो चाहे परिवार के प्रति ज़िम्मेदारी हो या अपनी पत्नी के साथ संबंधों की बात हो. ऐसे में जब ये घटना उसके साथ होती जिसमें फिज़िकल और सेक्शुएल असॉल्ट होता है तो वो सदमे में चला जाता है.

ऐसा बच्चा डिप्रेशन या कहें PTST यानी पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का शिकार भी हो जाता है. इस स्थिति में उसे असॉल्ट के दौरान हुई चीज़ें याद आती है और उसे झकझोर कर रख देती हैं और वो हेल्पलेस और होपलेस फ़ील करता है.''

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ऐसे बच्चों को कैसे पहचानें?

  • भूख न लगना
  • नींद न आना
  • चुप या गुमसुम रहना
  • कोई बात करे तो जवाब न देना
  • अकेले रहना पसंद करना
  • अचानक रोने लगना

डॉक्टर सुनील अवाना बताते हैं कि ऐसे संकेत बच्चे में दिखते हैं तो बच्चे से बात करने की कोशिश करनी चाहिए. वो सलाह देते हैं कि बच्चा कभी एक बार में घटना को नहीं बताएगा. धीरे-धीरे उसका मनोबल बढ़ाना चाहिए और विश्वास दिलाना चाहिए कि उसने कोई ग़लती नहीं की है और उसे डरने की ज़रूरत नहीं है. और जब बच्चा बात करने लगे तो उसे मनोचिकित्सक से ज़रूर मिलवाना चाहिए.

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