इलाहाबाद विश्वविद्यालय में क्यों उबल रहा है छात्रों का गुस्सा

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- Author, मोहम्मद सरताज आलम
- पदनाम, इलाहाबाद से बीबीसी हिंदी के लिए
एक समय में पूर्व का ऑक्सफोर्ड माना जाने वाला इलाहाबाद विश्वविद्यालय पिछले कुछ दिनों से सुर्ख़ियों में है.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने 15 दिन पहले बीए, बीएससी, बीकॉम, एमए, एमएससी, एमकॉम, एलएलबी, एलएलएम जैसे कोर्सेज़ की लगभग 12 हज़ार सीट्स पर फ़ीस में लगभग चार सौ प्रतिशत की बढ़ोतरी करने का फैसला किया.
ये फ़ीस 2022 सत्र में दाखिला लेने वाले छात्रों पर लागू होगी.
फ़ीस बढ़ने की नोटिस आने के बाद 15 दिन से विश्वविद्यालय के छात्र धरने पर बैठे हैं. यह प्रदर्शन मंगलवार को और तेज़ हो गया.
मंगलवार को सैकड़ों छात्र जुलूस की शक्ल में फ़ीस बढ़ोतरी का विरोध और नारेबाज़ी करते हुए कुलपति कार्यालय पहुंचे.
इस दौरान बीए मास मीडिया थर्ड ईयर के एक छात्र आयुष प्रियदर्शी कुलपति कार्यालय के ऊपर तीसरी मंजिल पर चढ़ गए.
उनके पास एलपीजी गैस सिलेंडर और लाइटर भी मौजूद था. उन्होंने आत्मदाह करने की चेतावनी दी. हालांकि मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने छात्र को सुरक्षित बचा लिया.
इसके बाद वीसी कार्यालय के बाहर प्रदर्शन कर रहे लगभग आधा दर्जन छात्रों ने अपने ऊपर कैरोसीन और पेट्रोल छिड़ककर आत्मदाह करने की कोशिश की. मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने छात्रों के इस प्रयास को भी रोक दिया.
वीसी कार्यालय पर नारेबाज़ी कर रहे छात्रों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस प्रशासन ने वॉटर कैनन से पानी की बौछार करवाई.
विश्वविद्यालय की पीआरओ डॉक्टर जया कपूर चड्ढा का कहना है कि "बहुत से बच्चे ऐसे हैं जो लीड कर रहे हैं इन प्रोटेस्ट को, जो यूनिवर्सिटी से अलग अलग चीज़ों में संलिप्त रहे हैं, सस्पेंडेड हैं, कुछ लोगों को डिबार्ड किया गया है, कुछ हमारे पुराने छात्र हैं जो छात्र राजनीति से जुड़े हुए रहे हैं. जब वे छात्र थे तब भी उन पर अलग अलग तरह से ऐक्शन हुए हैं.''
डॉक्टर जया कपूर के अनुसार, पिछले कुछ दिनों में अलग-अलग मामले में तीन एफ़आईआर कराई गई है.
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छात्रों की चिंता की वजह

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अलीगढ़ से आए शिवम शर्मा ने कहा, "दिल्ली क़रीब होने के बावजूद मैं अलीगढ़ से प्रयागराज बीए करने आया हूं. दिल्ली का ख़र्च अधिक था जबकि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फ़ीस कम थी. लेकिन फ़ीस वृद्धि के बाद मुझे लगता है कि मैं बीए करने के बाद गांव चला जाऊं और अपने पिता को खेती में मदद करूं."
माना जाता है कि इस विश्वविद्यालय में 70-80 प्रतिशत छात्र ग्रामीण परिवेश से आते हैं जिनके लिए बढ़ी हुई फ़ीस देना मुश्किल होता है.
विरोध प्रदर्शन पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए प्रथम वर्ष की छात्रा अंशुल मालवीय कहती है, "महिलाओं पर इस फीस वृद्धि का ज़्यादा असर पड़ेगा. कई परिवारों में महिला की पढ़ाई को पुरुषों की पढ़ाई की तुलना में कमतर माना जाता है. हो सकता है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फीस वृद्धि के बाद लड़कियों को घर पर रोक लिया जाए और उसके भाई को पढ़ाई करने के लिए भेज दिया जाए, क्योंकि ये ज़रूरी नहीं कि ऐसे परिवार का फाइनेंशियल बैकग्राउंड बेहतर हो और वह दोनों को पढ़ा सकें."
बीएससी तीसरे वर्ष की छात्रा वर्षा वर्मा ने सवाल उठाया कि कई छात्र कोविड के दौरान ऑनलाइन क्लासेज़ के लिए मोबाइल फोन अफोर्ड नहीं कर पाते थे, वे अचानक हुई फीस वृद्धि के बाद उच्च शिक्षा हासिल करने की हिम्मत कैसे करेंगे?
फीस वृद्धि की बढ़ोतरी पर विश्वविद्यालय के कई वर्तमान प्रोफे़सरों ने कई बार संपर्क करने के बाद भी इस मामले पर कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में रसायन शास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफे़सर एके श्रीवास्तव 2017 में रिटायर हुए हैं. उन्होंने कहा , "फीस बढ़ाने की कोशिश कई बार हुई, लेकिन मेरे 37 साल के कार्यकाल के दौरान फीस वृद्धि नहीं हुई. जो बच्चे सेंट जोसेफ़ जैसे अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों से पास होकर विश्वविद्यालय में दाखिला लेते हैं उन विद्यार्थियों से फीस ली जानी चाहिए. जबकि जिन छात्रों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है उनकी पूरी फीस माफ़ कर देनी चाहिए."
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय का तर्क

फीस वृद्धि पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से बयान जारी कर इसे ज़रूरी बताया गया है.
बयान के मुताबिक़ विश्वविद्यालयों को यह संदेश दिया जा चुका है कि उन्हें अपने स्तर पर फंड का इंतज़ाम करना होगा तथा सरकार पर निर्भरता कम करनी होगी.
विश्वविद्यालय की पीआरओ जया कपूर के अनुसार, साल 1922 से ट्यूशन फीस प्रति माह मात्र 12 रुपए है. इस फीस में कुछ और चार्जेज़ को मिलाकर एक साल में 975 रुपये फीस ली जाती है. इस फीस में विश्वविद्यालय के सारे ख़र्चों को पूरा करना बहुत मुश्किल था.
उन्होंने बताया, "एक तरफ हम विश्वविद्यालय में बहाली कर रहे हैं तो दूसरी तरफ बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाएं देने और मेंटेन करने के लिए ज़रूरी था कि हम फीस की रिस्ट्रक्चरिंग करें. हमने आसपास की दूसरी यूनिवर्सिटीज़ को देखा, छात्रहित को समझा और फिर उसी अनुपात में फीस वृद्धि की जिस अनुपात में अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों की फीस में वृद्धि हुई है."

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क्या है दूसरी जगहों की स्थिति

इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने अधिकारिक ट्वीटर अकाउंट से देश के कुछ केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ली जाने वाली फीस की तुलना करते हुए एक ट्वीट किया.
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इस ट्वीट के मुताबिक़, बीए में पढ़ने वाले छात्रों की वर्तमान में सालाना फीस 975 रुपये है जो अब बढ़ कर 3901 रुपये सालाना हो जाएगी.
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से इस फीस की तुलना की जाए तो बीए के छात्र को वहां सालाना 3420 रुपये देने पड़ते हैं.
हालांकि हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में इस कोर्स के लिए 10 हज़ार, कश्मीर सेंट्रल यूनिवर्सिटी में तकरीबन 5700 रुपये और केरल में करीबन 9 हजार रुपये छात्रों को फीस के तौर पर चुकाने पड़ते हैं.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फिलहाल 35 हज़ार छात्र पढ़ते हैं.
इसी अनुपात में बाकी कोर्स में पढ़ रहे छात्रों की फीस भी प्रभावित हुई है.
फीस बढ़ोतरी को सही ठहराते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव ने बयान जारी करते हुए कहा कि बिजली बिलों का भुगतान करने और अन्य रखरखाव के लिए शुल्क बढ़ाया जाना ज़रूरी था.
उन्होंने अपने बयान में कहा है, "रखरखाव के अभाव में सभी उच्च शिक्षा संस्थान ख़राब हो रहे हैं. निजी संस्थान अब प्रमुख खिलाड़ी हैं. वे अत्यधिक शुल्क लेते हैं. यदि थोड़ी-सी फीस बढ़ा दी जाती है तो हितधारकों के बीच इतना असंतोष हो जाता है, उन्हें यह महसूस करना चाहिए कि इतनी कम फीस की शिक्षा प्रदान करने वाले ये संस्थान आने वाले समय में नष्ट हो जाएंगे."
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय का इतिहास

साल 1866 के दौरान इलाहाबाद (प्रयागराज) में तत्कालीन संयुक्त प्रांत के गवर्नर विलियम म्योर के नाम पर म्योर कॉलेज की स्थापना हुई थी जो आगे चलकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ.
इसे पूर्व का 'ऑक्सफोर्ड' कहा जाने लगा था. यूनिवर्सिटी जहां क्वॉलिटी एजुकेशन देने के लिए मशहूर हुई, वहीं विश्वविद्यालय की भव्य इमारत आकर्षण का केंद्र बनी.
इस विश्वविद्यालय में दाखिले के लिए प्रथम प्रवेश परीक्षा मार्च 1889 में हुई.
देश के नामचीन विश्वविद्यालयों में से एक इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्ववर्ती छात्रों की लिस्ट में कई ऐसे छात्रों के नाम शामिल हैं जिन्हें प्रसिद्ध हस्तियों के रूप में पहचान मिली.
इन हस्तियों में विश्वनाथ प्रताप सिंह व चंद्रशेखर भारत के तो वहीं सूर्य बहादुर थापा नेपाल के प्रधानमंत्री बने.
जबकि उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी व दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे मदन लाल खुराना, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रह चुके विजय बहुगुणा और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे डॉक्टर अर्जुन सिंह ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी.
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