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मॉब लिंचिंग मामला: 'आश्वासन' और 'राशन' के भरोसे रामगढ़ के अलीमुद्दीन अंसारी की पत्नी मरियम
- Author, रवि प्रकाश
- पदनाम, रामगढ़ (झारखंड) से, बीबीसी हिंदी के लिए.
बारिश और धूप की आंखमिचौली के बीच जब हम मरियम ख़ातून के घर पहुंचे, तो वो अपने बेटों और बेटी को दाल-भात और पेकची (अरबी) का साग खिला चुकी थीं.
हरे रंग के पेंट वाले तीन कमरों के घर के जिस हिस्से में वो हमसे मुख़ातिब हुईं, उसमें एक चौकी (तख्त) थी.
दीवार में बनी आलमारी में सजाकर रखी कुछ क्रॉकरी व स्टील के बरतन, प्लास्टिक का एक जग, टूटा सोफ़ा और पुरानी साड़ी से बनाया गया परदा. बरामदे में गाड़ियों के टायर ठीक करने के कुछ औज़ार. यही उनके घर का हाल था.
उनके पति अलीमुद्दीन अंसारी की कथित गोरक्षकों की भीड़ ने हत्या कर दी थी.
इस घटना के पांच साल बाद अब उनके हिस्से में हर महीने मिलने वाला राशन का 30 किलो चावल, 18 किलो गेहूं और पेंशन के 1000 रुपये हैं. इसी भरोसे उनका बड़ा परिवार और उनकी बाक़ी की ज़िंदगी है.
पूरा मामला
- झारखंड के रामगढ़ में हुई थी अलीमुद्दीन अंसारी की मौत
- 29 जून 2017 को हुई थी घटना. पेशे से ड्राइवर थे अलीमुद्दीन अंसारी
- 12 लोग बनाए गए थे नामज़द अभियुक्त
- एक-एक कर ज़मानत पर रिहा हो गए अभियुक्त
- झारखंड हाईकोर्ट में मामले की फ़ाइनल सुनवाई चल रही है
सिर्फ़ आश्वासन और राशन
मरियम कहती हैं, उन्हें सिर्फ़ आश्वासन और राशन मिला. ''तत्कालीन उपायुक्त (डीसी) ने ख़ूब दौड़ाया, लेकिन मेरा कोई काम नहीं किया. बार-बार अनुरोध के बावजूद कुछ लिखित भी नहीं दिया. अफ़सोस है कि वे महिला थीं फिर भी एक महिला का दर्द नहीं समझ सकीं, जबकि उन्होंने मुझे बहन बोला था.''
पति की मॉब लिंचिंग के बाद मरियम ख़ातून से मिलने आने वालों में तब विपक्ष के नेता रहे हेमंत सोरेन भी थे, जो अब झारखंड के मुख्यमंत्री हैं. लिहाज़ा उन्हें उम्मीद है कि यह सरकार उनके बेटे को सरकारी नौकरी देगी. तत्कालीन बीजेपी सरकार ने उनसे ऐसा वादा किया था. हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी (अब बीजेपी विधायक दल के नेता) ने इसकी पुरज़ोर वकालत की थी. ये दोनों नेता तब मरियम ख़ातून से मिलने उनके घर आए थे.
मरियम ख़ातून ने कहा, "मेरे पति की मॉब लिंचिंग के बाद सरकार ने कहा था कि मेरे बेटे को सरकारी नौकरी देगी. हमारे लिए राशन दुकान का आवंटन होगा. मुआवज़ा मिलेगा. हेमंत सोरन भी आए थे. वो भी बोले थे कि नौकरी मिलनी चाहिए, लेकिन मुझे कुछ नहीं मिला."
"हाईकोर्ट के आदेश पर पांच लाख रुपया मुआवज़ा मिला. उससे क्या होता है. बेटे का और अपना इलाज कराया. पति की मौत के डेढ़ साल बाद बड़े बेटे शहज़ाद की भी मौत हो गई. उसके इलाज में ख़र्च हुआ. छोटा बेटा बीमार हुआ. उसमें बहुत पैसा लगा. इस कारण उसकी पढ़ाई रुक गई. वह इंटर पास कर घर में बेरोज़गार बैठा है."
मरियम ख़ातून भी अब बीमार हैं. वो कहती हैं "हम भी बीमार रहते हैं. गले में गिल्टी है. ऑपरेशन कराना जोख़िम भरा है. इसलिए दवा खा रहे हैं. इस सबमें पैसा लगता है और आमदनी के नाम पर महीने में मिलने वाली 1000 रुपये की पेंशन. वो भी कभी-कभी देर से मिलती है. इसी में तेल, साबुन, आलू-प्याज़, हल्दी, नमक, मिर्च, मसाला, दाल, घर का सारा सामान, आना-जाना, पर्व-त्योहार...सब. आप ही बताइए कैसे चलेगा."
वो कहती हैं, "इसलिए हम कहते हैं कि मेरे छोटे बेटे शाहबाज़ को नौकरी दिला दीजिए. हम मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलना चाहते हैं, लेकिन रांची कैसे जाएं. किसके साथ जाएं. उनको पता भी नहीं होगा कि मेरे बेटे को नौकरी नहीं मिली. वो अच्छे आदमी हैं. इसलिए उम्मीद है कि वो मेरे एक बेटे को नौकरी और दूसरे बेटे को राशन दुकान दिला देंगे ताकि हम कुछ तो सहूलियत से ज़िंदगी चला सकें."
उनका दर्द है कि अब कोई नहीं आता. वो कहती हैं, "जब केस नया-नया था तो बहुत लोग मिलने आए. अल्पसंख्यक आयोग की तत्कालीन अध्यक्ष सुलेखा जी भी आईं. कई वादे किए, लेकिन कुछ मिला नहीं. समाज के कुछ लोगों ने तब थोड़ी-बहुत आर्थिक मदद की, लेकिन समय बीता और अब सब लोग भूल गए."
अलीमुद्दीन अंसारी की मॉब लिंचिंग
तारीख़ थी 29 जून 2017, दिन गुरुवार. रामगढ़ ज़िले के मनुवा गांव निवासी अलीमुद्दीन अंसारी सुबह क़रीब 7.30 बजे घर से यह कहकर निकले कि एक-डेढ़ घंटे में लौट आएंगे.
तब उन्हें नहीं पता था कि अब वो ज़िंदा वापस नहीं आने वाले. देर रात घर पर उनकी लाश आई. उससे पहले गांव के लोगों के स्मार्ट फ़ोन पर कुछ वीडियो क्लिपिंग और तस्वीरें आईं जिनमें लोगों की भीड़ उन्हें घेरकर लाठी-डंडों से मार रही थी.
उनकी मारुति वैन जल रही थी. सड़क पर मांस के टुकड़े गिरे थे और ख़ून से लथपथ अलीमुद्दीन अंसारी भीड़ से अपनी जान बचाने की मिन्नतें कर रहे थे.
देखते ही देखते ये क्लिप्स और तस्वीरें देश-दुनिया में वायरल हो गईं. घरवालों को कुछ घंटे बाद पता चला कि उस पिटाई के कारण अलीमुद्दीन अंसारी की मौत हो चुकी है.
उनकी लिंचिंग का आरोप तब झारखंड में सत्ता संभाल रही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के स्थानीय नेता और कथित गोरक्षकों पर लगा. इनमें से 12 लोग इस मामले के नामज़द अभियुक्त भी बनाए गए.
ये सब तब हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कथित गोरक्षकों की ओर से देश के अलग-अलग हिस्से में लगातार की जा रही मॉब लिंचिंग की घटनाओं की पहली बार सार्वजनिक तौर पर आलोचना की थी.
हालांकि, बाद के दिनों में उन्हीं के मंत्रिमंडल में शामिल हज़ारीबाग के बीजेपी सांसद जयंत सिन्हा ने इनमें से आठ अभियुक्तों का माला पहनाकर स्वागत किया. उन्हें मिठाई खिलाई.
इसके कुछ महीने बाद बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में जयंत सिन्हा ने कहा कि उन्होंने इन अभियुक्तों को क़ानूनी लड़ाई के लिए आर्थिक मदद भी की है. जयंत सिन्हा अब भी बीजेपी के सांसद हैं.
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कौन थे अलीमुद्दीन, क्या काम करते थे?
अपनी हत्या के वक्त उम्र के चौथे दशक में रहे अलीमुद्दीन अंसारी पेशे से ड्राइवर थे. वे पहले दूसरों की गाड़ियां चलाया करते थे. बाद के दिनों में भारतीय रेलवे की नौकरी से रिटायर अपने पिता की मदद से उन्होंने सेकेंड हैंड मारुति वैन ख़रीद ली और उसी से अपना परिवार चलाने लगे.
परिवार वालों के मुताबिक़ वे कोयला ढुलाई का काम करते थे. लेकिन जिस दिन उनकी मॉब लिंचिंग हुई उनकी गाड़ी में गाय का मांस था. उनकी वैन से मिले मांस के टुकड़ों की फ़ोरेंसिक जांच में इसकी पुष्टि हुई थी.
झारखंड में गाय के मांस का व्यापार क़ानूनन प्रतिबंधित है. इसके लिए दंड का प्रावधान है, लेकिन उनके ख़िलाफ़ किसी पुलिस थाने में ऐसी कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं थी. उनके पड़ोसी कहते हैं कि वे मिलनसार और पारिवारिक आदमी थे और ड्राइवरी कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे.
नीली कमीज़ वाली वो इकलौती फ़ोटो
अलीमुद्दीन अंसारी की अपनी पत्नी मरियम ख़ातून और बच्चों के साथ कोई तस्वीर नहीं है. मरियम ने बताया कि उन्हें तस्वीरों का शौक नहीं था. ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए वे पहली बार स्टूडियो गए और पासपोर्ट साइज़ की तस्वीर बनवाई. नीली कमीज़ वाली वो उनकी इकलौती तस्वीर है.
मरियम ख़ातून कहती हैं कि अगर वो तस्वीर नहीं खिंचाई गई होती तो उनके पास अपने शौहर (पति) की कोई तस्वीर नहीं होती. मरियम के एल्बम में माब लिंचिंग की वायरल तस्वीरें और अख़बारों की कतरनों के साथ वह तस्वीर भी मौजूद है.
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शौहर की हत्या के बाद मरियम की ज़िंदगी
पति की हत्या के पहले मरियम ख़ातून की ज़िम्मेदारी चूल्हे-चौके तक सीमित थी. उन्हें घर चलाने की चिंता नहीं थी. अलीमुद्दीन अंसारी 10-12 हज़ार रुपये महीना कमा लेते थे. इससे उनकी पत्नी और छह बच्चों (3 बेटे, 3 बेटियां) की ज़िंदगी चल जाती थी. उनकी मॉब लिंचिंग के बाद सारी ज़िम्मेदारी मरियम पर आ गई.
उन्होंने अपने पति की मौत का मुक़दमा लड़ा. 23 साल के बेटे शहज़ाद की असमय मौत का सदमा झेला. एक बेटी शबा परवीन की शादी की. बेटों को पढ़ाया. अब वे अपनी छोटी बेटी साज़िया और दो बेटों शाहबान और शाहबाज़ के साथ रहती हैं.
मॉब लिंचिंग का मुक़दमा
अलीमुद्दीन अंसारी की मॉब लिंचिंग के मामले में मरियम ख़ातून के बयान पर रामगढ़ थाने में 12 लोगों के ख़िलाफ़ नामज़द रिपोर्ट कराई गई थी. पुलिस ने इन सबके ख़िलाफ़ चार्जशीट की. एक अभियुक्त की उम्र 18 साल से कम होने के कारण मामला जुवेनाइल बोर्ड को भेजा गया. बाक़ी 11 अभियुक्तों की सुनवाई रामगढ़ के फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में हुई.
मार्च 2018 में रामगढ़ के फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट ने सभी 11 अभियुक्तों को उनकी हत्या का दोषी माना. वहां के तत्कालीन डीजे-सेकेंड (जज) ओम प्रकाश ने फ़ैसला सुनाते हुए इसे जघन्य अपराध कहा और दीपक मिश्र, छोटू वर्मा, संतोष सिंह, उत्तम राम, सिकंदर राम, विक्रम प्रसाद, राजू कुमार महतो, रोहित ठाकुर, नित्यानंद महतो, कपिल ठाकुर और विक्की साव को आइपीसी की धारा 148, 149, 417, 435 और 302 के तहत सज़ा सुनाई.
कोर्ट ने दीपक मिश्र को इसकी साज़िश करने का भी दोषी क़रार दिया और इन धाराओं के साथ आइपीसी की धारा 120 के तहत भी सज़ा सुनाई. देश के किसी कोर्ट द्वारा माब लिंचिंग के मामले में कथित गौरक्षकों को सज़ा सुनाए जाने का वह पहला उदाहरण था.
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एक-एक कर ज़मानत पर रिहा हो गए अभियुक्त
हालांकि, इसके कुछ ही दिनों बाद झारखंड हाईकोर्ट ने इनकी सज़ा निलंबित करते हुए उन्हें ज़मानत पर रिहा करने का आदेश दे दिया. जून 2018 में सबसे पहले एक अभियुक्त को ज़मानत मिली. फिर जस्टिस एच सी मिश्र ने आठ और अभियुक्तों की सज़ा निलंबित कर उन्हें ज़मानत दे दी. जुलाई 2018 में एक और अभियुक्त को ज़मानत मिल गई.
इन अभियुक्तों की पैरवी एडवोकेट बी एम त्रिपाठी ने की थी. इनमें से आठ अभियुक्त जेल से निकलने के बाद सीधे तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा के घर गए, जहां उनका स्वागत किया गया और वे तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं.
इस मामले में जेल में रह रहे 11वें अभियुक्त और रामगढ़ कोर्ट द्वारा अलीमुद्दीन मॉब लिंचिंग केस के मुख्य साज़िशकर्ता माने गए दीपक मिश्र को भी झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस ए के गुप्ता और राजेश कुमार की खंडपीठ ने फ़रवरी 2020 में ज़मानत दे दी.
इसी दरम्यान सिकंदर राम नामक एक अभियुक्त की मौत बिजली के करंट से हो गई. अब इस केस में बाक़ी बचे दस अभियुक्तों के ख़िलाफ़ मामले लंबित हैं.
अभियुक्तों का पक्ष
बीबीसी की कोशिशों के बावजूद इनमें से कोई अभियुक्त इस मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार नहीं हुआ. इनमें से एक दीपक मिश्र बातचीत के लिए तैयार भी हुए, लेकिन वे बाद में मुकर गए.
हालांकि, उनकी ज़मानत की पैरवी करते वक्त उनके वकील बी एम त्रिपाठी ने हाईकोर्ट में कहा था कि अलीमुद्दीन अंसारी की हत्या में इस्तेमाल किए गए लाठी-डंडों की बरामदगी उनके घर से नहीं हुई थी, लिहाज़ा उन्हें राहत देनी चाहिए.
दीपक मिश्र इन दिनों हिन्दू रक्षा दल नामक संगठन चलाते हैं. उन्होंने अपनी फ़ेसबुक की कवर फ़ोटो के बतौर रामगढ़ कोर्ट की तस्वीर लगा रखी है जिसमें वे पुलिस कस्टडी में भीड़ के समक्ष हाथ जोड़े दिख रहे हैं. बजरंग दल समेत दूसरे हिंदूवादी संगठनों के कार्यक्रमों की उनकी कई तस्वीरें भी पब्लिक डोमेन में हैं.
केस की मौजूदा स्थिति
झारखंड हाईकोर्ट अब इस मामले की फ़ाइनल सुनवाई कर रहा है. हाईकोर्ट में मरियम ख़ातून की तरफ़ से पैरवी करने वाले अधिवक्ता मोहम्मद शादाब अंसारी ने बीबीसी से बातचीत में कहा '' इन सभी अभियुक्तों को ज़मानत दिए जाने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में इसके ख़िलाफ़ अर्ज़ी लगाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने मेरे आवेदन पर इनकी ज़मानत कैंसिल तो नहीं की, लेकिन झारखंड हाईकोर्ट को छह महीने के अंदर इसकी अंतिम सुनवाई (फ़ाइनल हियरिंग) करने का निर्देश दिया.
उन्होंने बताया कि झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस रंजन मुखोपाध्याय और जस्टिस अंबुज दास की खंडपीठ इसकी सुनवाई कर रही है. इसमें जल्दी ही अंतिम फ़ैसला आने की उम्मीद है.
इंसाफ़ की उम्मीद
मरियम ख़ातून को उम्मीद है कि हाईकोर्ट से उन्हें इंसाफ़ मिलेगा. सभी अभियुक्तों की सज़ा बरकरार रहेगी ताकि समाज में फिर ऐसी कोई घटना ना घटे. लेकिन फ़िलहाल मरियम ख़ातून के चारों और मुसीबतों का पहाड़ खड़ा है.
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