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मार्गरेट अल्वा: गाँधी परिवार पर तल्ख़ रहने वाली नेता पर कांग्रेस ने कैसे भरी हामी?
- Author, प्रियंका झा
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता मार्गरेट अल्वा को विपक्ष ने उप-राष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया है. उनका मुक़ाबला एनडीए प्रत्याशी जगदीप धनखड़ से है.
मार्गरेट अल्वा ने मंगलवार को उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए अपना पर्चा भरा.
इस दौरान उनके साथ राहुल गाँधी और मल्लिकार्जुन खड़गे सहित वरिष्ठ नेता शरद पवार, सीताराम येचुरी भी मौजूद थे.
नाम तय करने के लिए हुई विपक्षी दलों की बैठक में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे मौजूद थे लेकिन कोई गाँधी परिवार का नेता इसमें शामिल नहीं हुआ. अल्वा कांग्रेस नेता हैं लेकिन एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने उनके नाम का एलान करते हुए बताया कि 17 पार्टियों (कांग्रेस सहित) ने एकजुट होकर ये निर्णय लिया है कि मार्गरेट अल्वा विपक्ष की उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार होंगी.
मार्गरेट अल्वा अपनी जीवनी 'करेज एंड कमिटमेंट: एन ऑटोबायोग्रफ़ी' में गाँधी परिवार को लेकर ऐसे कई चौंकाने वाले दावे कर चुकी हैं. वो कई मौकों पर ऐसे बयान दे चुकी हैं जहाँ उनकी साफ़गोई गाँधी परिवार के लिए गले की फ़ांस बन गई.
बीजेपी नेता निशिकांत दुबे ने कहा है कि मार्गरेट अल्वा ने पूर्व में कांग्रेस पार्टी और अध्यक्ष सोनिया गाँधी पर चोरी से लेकर साजिश तक के आरोप लगाए हैं.
कांग्रेस पार्टी और गाँधी परिवार को लेकर हमेशा बेबाकी और तल्ख़ रवैया अपनाने वाली अल्वा को उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में विपक्ष का उम्मीदवार चुनने पर कई विपक्षी नेता और सोशल मीडिया यूज़र्स उनके पुराने बयान शेयर कर के कांग्रेस को आड़े हाथों ले रहे हैं.
अल्वा एक राजनीतिक घराने की बहू हैं. उनकी सास वॉयलेट अल्वा भी राज्यसभा की उपसभापति रह चुकी हैं. ये संयोग ही है कि सन् 1969 में वॉयलेट अल्वा की उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी का उस समय प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गाँधी ने समर्थन नहीं किया था.
मार्गरेट अल्वा के नाम पर कैसे राज़ी हो गई कांग्रेस?
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, "राजनीतिक दल में जब किसी को अपना उम्मीदवार घोषित किया जाता है तो उसके पीछे एक राजनीतिक सोच होती है कि उनका उम्मीदवार पद हासिल कर पाएगा या नहीं. राज्यसभा में जब चुनाव होता है तो वहाँ राजनीतिक दल को पता होता है कि अमुक व्यक्ति छह साल के लिए राज्यसभा का सदस्य बन जाएगा."
किदवई कहते हैं कि इसलिए राज्यसभा चुनाव के समय बहुत सोच-समझकर और राजनीतिक दलों के सभी मापदंडों, जैसे वफ़ादारी और कांग्रेस की बात करें तो नेहरू-गाँधी परिवार के प्रति निष्ठा देखी जाती है. लेकिन यहाँ पर एकतरफ़ा चुनाव है क्योंकि सबको पता है कि संख्याबल में एनडीए बहुत आगे है. इसलिए कांग्रेस ने मार्गरेट अल्वा के नाम पर कोई आपत्ति नहीं की.
गाँधी परिवार की आलोचना करने पर भी उनके नाम पर कांग्रेस के सहमत होने के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार रहे रामकृपाल सिंह कहते हैं कि पार्टी की हैसियत अब डिक्टेट करने की नहीं रह गई है.
उनका कहना है कि राष्ट्रपति चुनाव में भी कांग्रेस ने यशवंत सिन्हा को समर्थन दिया, जबकि वो हमेशा अलग विचारधारा के रहे. ऐसा इसलिए क्योंकि पार्टी के पास विकल्प नहीं है. उन्होंने कहा कि अब उपराष्ट्रपति चुनाव में भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है. स्थिति अब वो नहीं है कि कांग्रेस नेतृत्व करेगी और बाकी पार्टियां उसके पीछे चले. आज कांग्रेस तमाम राज्यों में चौथे नंबर की पार्टी है.
1984 के दंगों और कांग्रेस पार्टी सहित देश की राजनीति को करीब से देख चुके वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन का मानना है कि कांग्रेस ने इस उम्मीदवारी पर इसलिए हामी भर दी होगी क्योंकि मार्गरेट अल्वा का कामकाज अच्छा रहा है और वो महिला भी हैं. ऐसे में कांग्रेस को संभवतः ये लगा होगा कि मार्गरेट अल्वा को समर्थन देकर उनका जनाधार घटने की बजाय बढ़ेगा ही.
मार्गरेट अल्वा के चयन को सटीक बताते हुए पत्रकार विनोद शर्मा ने कहा, " वो अपनी ही पार्टी के नेतृत्व को लेकर आलोचनात्मक रही हैं और यही तथ्य उनकी उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को सटीक बनाता है क्योंकि ऐसे उच्च संवैधानिक पदों पर हमें ऐसे लोगों की ज़रूरत है जो अपने मन की बात कह सकें."
अल्वा ने सोनिया गाँधी को लेकर क्या-क्या कहा था?
मार्गरेट अल्वा की उम्मीदवारी के बाद सोशल मीडिया पर कई बीजेपी नेता उनका एक पुराना इंटरव्यू शेयर करते हुए कांग्रेस पर निशाना साध रहे हैं. साल 2016 में एक न्यूज़ चैनल को दिए इंटरव्यू में बताया था कि सोनिया गाँधी नरसिम्हा राव पर भरोसा नहीं करती थीं.
उन्होंने कहा, "एक शाम तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव ने उन्हें बुलाकर पूछा कि वो महिला चाहती क्या हैं? मैंने कुछ नहीं कहा, लेकिन वो जानना चाहते थे कि 10 जनपथ का माहौल कैसा है? राव थोड़े परेशान थे, वो सोनिया गाँधी के साथ किसी भी तरह की संघर्ष वाली स्थिति नहीं चाहते थे." सोनिया गाँधी 10 जनपथ में ही रहती हैं.
अल्वा ने अपनी किताब में ये दावा किया था कि दिसंबर 2004 में पूर्व पीएम नरसिम्हा राव के निधन के बाद उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस मुख्यालय के अंदर नहीं ले जाने दिया गया था बल्कि उनके शव को प्रवेश द्वार के बाहर रखा गया और वहीं पार्टी नेताओं के बैठने का इंतज़ाम भी किया गया.
साल 2016 में दिए इंटरव्यू में भी अल्वा ने इस वाकये पर उठे सवाल के जवाब में कहा, "चाहे कैसे भी मतभेद रहे हों लेकिन वो प्रधानमंत्री रहे थे, मुख्यमंत्री रहे थे, वो कांग्रेस अध्यक्ष रहे थे, पार्टी महासचिव रहे थे..जब एक शख्स इस दुनिया में नहीं रहता तो आप उसके साथ ऐसा व्यवहार नहीं करते."
मार्गरेट अल्वा से जब ये पूछा गया कि क्या उन्होंने ये मुद्दा कभी सोनिया गाँधी के सामने उठाया तो उन्होंने कहा कि उन्होंने इसका ज़िक्र कभी किसी के सामने नहीं किया.
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन अल्वा के इस बयान को बहुत महत्वपूर्ण नहीं मानते हैं.
अरविंद मोहन ने बीबीसी हिंदी से बातचीत में बताया कि जिस समय ये बयान दिया गया उस दौर में कांग्रेस पार्टी के लिए ये कोई बड़ा अपराध नहीं था.
अरविंद मोहन कहते हैं कि संभवतः नरसिम्हा राव के प्रति वफ़ादारी की वजह से मार्गरेट अल्वा ने ऐसा बयान दिया हो.
इसी इंटरव्यू में मार्गरेट अल्वा ने ये भी दावा किया कि संजय गाँधी के अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले के बिचौलिए क्रिश्चियन माइकल से रिश्ते थे. उन्होंने ये भी कहा कि मनमोहन सिंह के पीएम रहते हुए भी कांग्रेस पार्टी के अहम फैसले सोनिया गाँधी लेती थीं.
उन्होंने इसका उदाहरण दिया, "मुझे सोनिया गाँधी का फ़ोन आया कि मार्गरेट तुम्हें राज्यपाल बनाया जा रहा है. मैं कहना चाहती थी कि क्यों..लेकिन उससे पहले ही फ़ोन डिसकनेक्ट हो गया."
जब वॉयलेट अल्वा नहीं बन पाईं थीं उपराष्ट्रपति
रशीद किदवई साल 1969 का एक किस्सा बताते हैं जब वॉयलेट अल्वा राज्यसभा की उपसभापति थीं और उस समय कांग्रेस का एक धड़ा उन्हें उपराष्ट्रपति बनाना चाहता था. लेकिन इंदिरा गाँधी ने ऐसा होने नहीं दिया. इससे निराश होकर वॉयलेट अल्वा ने उपसभापति पद से इस्तीफ़ा दे दिया और फिर कुछ समय बाद उनका निधन हो गया.
वॉयलेट अल्वा की उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी को इंदिरा गाँधी ने क्यों समर्थन नहीं दिया था इस सवाल के जवाब में किदवई बताते हैं, "इंदिरा गाँधी विशेष परिस्थितियों में प्रधानमंत्री बनी थीं. लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद कांग्रेस में कई ऐसे वरिष्ठ नेता थे जिन्हें उम्मीद थी कि उन्हें अब प्रधानमंत्री बनाया जाएगा लेकिन तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज ने इंदिरा गाँधी को पीएम बना दिया. ये 1966 की बात है."
"इसके बाद इंदिरा गाँधी को कांग्रेस में पकड़ बनाने में काफ़ी समय लगा. ऐसा इंदिरा गाँधी को आभास हुआ कि वॉयलेट अल्वा, जो उस समय राज्यसभा की उपसभापति थीं, उनका झुकाव कांग्रेस के पुराने नेताओं की ओर ज़्यादा था. इसलिए अल्वा की अनदेखी करते हुए इंदिरा गाँधी ने जीएस पाठक को उपराष्ट्रपति बनाया, जबकि उस समय एक महिला उपराष्ट्रपति बनने से बहुत बड़ा संदेश जाता."
रशीद किदवई ने कुछ जानकारों के हवाले से ये भी बताया कि इंदिरा गाँधी की अनदेखी से वॉयलेट अल्वा बहुत आहत थीं और उसके बाद उन्होंने राज्यसभा के उपसभापति पद से इस्तीफ़ा दे दिया, फिर कुछ समय बाद ही उनका निधन हो गया.
उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनाए जाने और समर्थन करने वाली पार्टीयों के नेताओं से मिलने के बाद पहली बार जब मार्गरेट अल्वा मीडिया से मुख़ातिब हुईं तो उन्होंने कहा, "मैं जानती हूँ कि ये मुश्किल लड़ाई है लेकिन राजनीति में हार-जीत कोई मायने नहीं रखता है. इसमें लड़ाई लड़ना मायने रखता है."
उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव 6 अगस्त को होना है.
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