मुख़्तार अब्बास नक़वी और आरसीपी सिंह का अब क्या होगा?

मुख़्तार अब्बास नक़वी

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मुख़्तार अब्बास नक़वी और रामचंद्र प्रसाद सिंह ने बुधवार को केंद्र की नरेंद्र मोदी कैबिनेट से इस्तीफ़ा दे दिया था.

सात जुलाई को इन दोनों नेताओं की राज्यसभा की सांसदी का टर्म पूरा हो रहा था और उसके एक दिन पहले इन्होंने इस्तीफ़ा दिया. मंत्री रहने के लिए लोकसभा या राज्यसभा का सांसद होना अनिवार्य होता है.

हालांकि राज्यसभा का टर्म ख़त्म होने के बाद भी छह महीने तक दोनों मंत्री रह सकते थे लेकिन दोनों ने इस्तीफ़ा दे दिया. जब मुख़्तार अब्बास नक़वी को बीजेपी और आरसीपी सिंह को उनकी पार्टी जेडीयू ने राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार नहीं बनाया था तभी से दोनों के भविष्य को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं.

मुख़्तार अब्बास नक़वी के इस्तीफ़े के बाद मोदी कैबिनेट में अब कोई भी मुसलमान मंत्री नहीं है और न ही बीजेपी में कोई मुस्लिम सांसद.

मुख़्तार अब्बास नक़वी मोदी कैबिनेट में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री थे. अब यह ज़िम्मेदारी महिला एवं बाल कल्याण मंत्री स्मृति इरानी को दी गई है और नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को आरसीपी सिंह का इस्पात मंत्रालय दिया गया है.

कहा जा रहा है कि मोदी सरकार जल्द ही कैबिनेट का विस्तार या फेरबदल कर सकती है. आरसीपी सिंह जेडीयू के कोटे से मंत्री थे. इनके इस्तीफ़े के बाद मोदी सरकार में लोक जनशक्ति पार्टी के पशुपति कुमार पारस के अलावा अब कोई भी ग़ैर-भाजपाई मंत्री नहीं है. रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके भाई पशुपति कुमार पारस को खाद्य मंत्री की ज़िम्मेदारी दी गई थी.

आरसीपी सिंह कभी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ख़ास वफ़ादार माने जाते थे. उन्हें नीतीश कुमार ने पार्टी प्रमुख भी बनाया था. लेकिन मंत्री बनने के बाद उनसे पार्टी की कमान वापस ले ली गई थी.

आरसीपी सिंह

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जब आरसीपी सिंह मंत्री बने थे तो पार्टी अध्यक्ष वही थे. जेडीयू के नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार चाहते थे कि मोदी कैबिनेट में जेडीयू के कोटे से दो मंत्री का पद मिले लेकिन बीजेपी एक से ज़्यादा पर तैयार नहीं थी.

दूसरी तरफ़ नीतीश कुमार भी एक पर तैयार नहीं थे और इसी बीच आरसीपी सिंह ने मंत्री बनने का फ़ैसला कर लिया था. कहा जाता है कि नीतीश कुमार आरसीपी सिंह के मंत्री बनने के बाद से ही नाराज़ थे और यही नाराज़गी उन्हें राज्यसभा की उम्मीदवारी नहीं देने के फ़ैसले तक आई.

कहा जा रहा है कि आरसीपी सिंह बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. इसी हफ़्ते हैदराबाद में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चल रही थी तब सोशल मीडिया पर अफ़वाह उड़ी कि आरसीपी सिंह बीजेपी में शामिल हो गए हैं.

इस ख़बर को बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने ख़ारिज किया लेकिन ख़ुद आरसीपी सिंह ख़ामोश रहे. आरसीपी सिंह आईएएस रहे हैं और नीतीश कुमार की जाति कुर्मी से ताल्लुक रखते हैं. नीतीश कुमार ही उन्हें राजनीति में लेकर आए थे लेकिन अब हालात बदल चुके हैं.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, मुख़्तार अब्बास नक़वी ने इस्तीफ़े के बाद बीजेपी मुख्यालय में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाक़ात की थी. कहा जा रहा है कि बीजेपी केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बना सकती है और नक़वी को केरल का राज्यपाल बनाया जा सकता है.

इस्तीफ़े के बाद मुख़्तार अब्बास नक़वी ने समाचार एजेंसी एनएनआई से गुरुवार को कहा, ''मेरा मानना है कि राज्यसभा का टर्म पूरा हुआ है लेकिन मेरे राजनीतिक और सामाजिक जीवन का कार्यकाल ख़त्म नहीं हुआ है. मैं समर्पण और के साथ समाज के लिए काम करता रहूंगा.

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नक़वी से पूछा गया कि क्या पार्टी ने उन्हें कोई ज़िम्मेदारी देने का आश्वासन दिया है? इस सवाल के जवाब में नक़वी ने कहा, ''ज़िम्मेदारी मिलती नहीं है बल्कि महसूस करनी होती है और मैं हमेशा इसे महसूस करता हूँ. प्रधानमंत्री जी और अमित शाह जी का आशीर्वाद हमेशा मेरे ऊपर रहा है.''

2014 में बीजेपी ने आम चुनाव में सात मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा था लेकिन किसी को जीत नहीं मिली थी. 2019 में बीजेपी फिर से प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौटी. इस बार बीजेपी ने छह मुसलमानों को टिकट दिया था लेकिन फिर किसी को जीत नहीं मिली.

उत्तर प्रदेश में भारत की सबसे ज़्यादा आबादी रहती है और यहाँ मुस्लिमों की आबादी क़रीब 19 फ़ीसदी है लेकिन बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया था. 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने किसी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया. मणिपुर और उत्तराखंड में भी बीजेपी ने किसी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया था.

बीजेपी की राजनीति को क़रीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह कहते हैं कि मुख़्तार अब्बास नक़वी भले कहीं के राज्यपाल बनाए जा सकते हैं लेकिन अब बीजेपी में उनकी चुनावी राजनीति का अंत हो गया है.

प्रदीप सिंह कहते हैं, ''बीजेपी को मुसलमान वोट करते नहीं हैं. मुख़्तार अब्बास नक़वी रामपुर हैं. रामपुर में वह जिस बूथ से ताल्लुक रखते हैं, वहाँ बीजेपी को इस उपचुनाव में महज़ दो वोट मिले थे. न मुसलमान बीजेपी को वोट करते हैं और न ही मुस्लिम नेता वोट करवा पाते हैं. ऐसे में बीजेपी किसी मुस्लिम नेता को पद क्यों देगी. बीजेपी अब पसमांदा मुसलमानों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. जैसे इस बार उत्तर प्रदेश में योगी कैबिनेट में किसी शिया मुस्लिम को नहीं बल्कि अंसारी को मंत्री बनाया गया है.''

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योगी कैबिनेट में इस बार दानिश आज़ाद अंसारी को मंत्री बनाया है. अभी हैदराबाद में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई तो इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि बीजेपी को अल्पसंख्यकों में हाशिए के लोगों के पास पहुँच बनानी चाहिए.

पीएम मोदी ने न केवल पसमांदा मुसलमानों में पैठ बनाने की बात कही थी बल्कि ईसाइयों में भी दलितों में समर्थन बढ़ाने की बात कही थी. मोदी चाहते हैं कि केरल, गोवा और पूर्वोत्तर के राज्यों में बीजेपी अल्पसंख्यकों में हाशिए के लोगों के पास पहुँचे. बीजेपी ने हाल ही में मुस्लिम बहुल रामपुर और आज़मगढ़ उपचुनाव में जीत हासिल की थी.

प्रदीप सिंह कहते हैं कि पीएम मोदी ने संकेत दे दिया है कि अल्पसंख्यकों में किस तबके के पास पहुँचना है और बीजेपी उसी हिसाब से अपनी राजनीति आगे बढ़ाएगी. सिंह कहते हैं कि अब राजनीति बदल चुकी है. वह कहते हैं, ''पहले मुसलमान जिस पार्टी को वोट करते थे, वो पार्टी चुनाव जीतती थी लेकिन अब मुसलमान जिसे वोट नहीं करते हैं, वो पार्टी जीतती है. इसलिए बीजेपी को चुनाव जीतना है न कि मुसलमानों का वोट लेना है.''

आरसीपी सिंह को भविष्य को लेकर प्रदीप सिंह कहते हैं कि उनकी राजनीति भी अब हो गई है. प्रदीप सिंह कहते हैं, ''आरसीपी सिंह कोई मास लीडर नहीं हैं. उन्हें बीजेपी पार्टी में शामिल करकर भी क्या हासिल कर लेगी. बिहार में मास नेता तो नीतीशु कुमार ही हैं और वह एनडीए में हैं ही.''

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