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उदयपुर, करौली, जोधपुर, अलवर - राजस्थान के शहरों में ये क्या हो रहा है ?
- Author, सरोज सिंह
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
"साल 1970 की बात है. एक कब्रिस्तान की ज़मीन को लेकर यहाँ विवाद हुआ था. उस समय सरकार ने त्वरित कार्रवाई की. आठ दिन तक इलाके में कर्फ़्यू रहा था.
उसके 22 साल बाद 1992 में यहाँ दो दिन का तनावपूर्ण माहौल रहा.
फिर 2017 में शंभूलाल रैगर वाली घटना आपको याद होगी, जब हत्या का वीडियो इसी तरह से वायरल हुआ था.
अब 5 साल बाद ऐसा दिन देखने को मिला है.
राजस्थान के उदयपुर के रहने वाले उग्रसेन राव 65 साल के हैं. उदयपुर में पत्रकारों के बीच वो इलाके के पहले पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं.
बीबीसी ने जब उनसे मंगलवार की उदयपुर वाली घटना के बारे में पूछा, तो वो पुरानी बातों को याद करते हुए बोले इस शहर में ऐसा पहले कभी नहीं देखा था.
राजस्थान का उदयपुर शहर. यूं तो खूबसूरत झीलों के लिए दुनिया भर में विख्यात है.
इस खूबसूरती को देखने के लिए दुनिया के कोने कोने से लोग आते हैं.
उदयपुर में मंगलवार को क्या हुआ?
पिछले 24 घंटे से एक दर्जी की नृशंस हत्या की वजह से सुर्खियों में है.
उदयपुर के धानमंडी थाना इलाक़े में कन्हैयालाल तेली एक दर्जी की दुकान चलाते थे.
मंगलवार दोपहर उनकी दुकान पर कपड़े सिलवाने के बहाने दो लोग पहुंचे और तलवार से उनकी गर्दन काट दी.
दोनों ने हत्या का वीडियो भी बनाया था और इसे बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा की पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी का बदला बताया है.
दोनों अभियुक्तों को भी पुलिस ने राजसमंद ज़िले के भीम से गिरफ़्तार कर लिया है.
दोनों की पहचान मोहम्मद रियाज़ और गौस मोहम्मद के रूप में हुई है.
केंद्र सरकार ने इस मामले में एनआईए जाँच के आदेश दिए हैं.
वहीं अशोक गहलोत की राज्य सरकार ने मंगलवार देर शाम एसआईटी की टीम का गठन कर दिया है.
कन्हैयालाल की हत्या के बाद उदयपुर में कैसा है माहौल?
नितिन श्रीवास्तव, बीबीसी संवाददाता
उदयपुर को भारत का 'झीलों का शहर' कहा जाता है लेकिन झीलों के इस शहर में फिलहाल सब कुछ बंद है.
मोबाइल इंटरनेट सेवा बंद है और चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल की तैनाती के साथ कर्फ़्यू लागू है.
कन्हैयालाल की हत्या के बाद से उदयपुर में बहुसंख्यक हिंदुओं और अल्पसंख्यक मुसलमानों के बीच तनाव स्पष्ट तौर पर नज़र आ रहा है. शहर में भारी पुलिसबल तैनात है.
गुरुवार को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत उदयपुर पहुँच रहे हैं.
बुधवार को कन्हैयालाल के अंतिम संस्कार में हज़ारों की संख्या में लोगों ने शिरकत की. हालांकि, कन्हैयालाल की हत्या के दोनों मुख्य अभियुक्तों को घटना के चार घंटे के भीतर ही राजस्थान पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था.
इस मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया है. साथ ही इस मामले में एनआईए भी जांच कर रही है.
गिरफ़्तार किए गए दोनों अभियुक्तों के चरमपंथियों से जुड़े होने की भी आशंका ज़ाहिर की जा रही है, जिसे लेकर एनआईए अपनी पूछताछ करेगी.
उदयपुर शहर में कोई भी इस घटना को लेकर कैमरे पर बात करने को राज़ी नहीं है. जो लोग कैमरे पर आकर बात कर भी रहे हैं, वे स्पष्ट तौर पर सांप्रदायिक तौर पर बंटे हुए हैं.
जयपाल वर्मा एक मार्केटिंग एक्ज़ीक्यूटिव हैं. वह कहते हैं, "हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहां हिंदू बहुसंख्यक हैं, ऐसे में ऐसा नहीं होना चाहिए था. मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध करता हूं कि वे ख़ुद इस मामले को देखें, ताकि भविष्य में ऐसा कुछ ना हो."
उदयपुर एक घनी आबादी वाला शहर है. जहां हिंदू-मुस्लिम दोनों ही हैं, और कई इलाक़े ऐसे हैं जहां उनके घर एक-दूसरे के अगल-बगल हैं.
जब से पुराने शहर में यह घटना हुई है तब से कर्फ़्यू लागू है. यह कर्फ्यू इतना अचानक लगा कि लोग इसके लिए तैयार भी नहीं थे.
मुकेश गार्दिया राशन जुटाने के लिए भी जूझ रहे हैं. वह कहते हैं, "दिहाड़ी पर काम करने वाले इससे सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. यह पहला मौक़ा है जब उदयपुर के लोग अपने मोहल्ले में एक कप चाय तक के लिए तरस रहे हैं. यह सब जो कुछ हुआ है, वह हमारे लिए सदमे से कम नहीं."
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि इस मामले में किसी भी संगठन या अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन की गहराई से जाँच की जाएगी.
राज्य के मुख्यमंत्री भी कह रहे हैं, "इस तरह की घटना तब तक संभव नहीं है जब तक इसका कोई अंतरराष्ट्रीय या राष्ट्रीय स्तर पर कुछ रेडिकल एलिमेंट के साथ लिंक ना हो. ये उनका अनुभव कहता है. उसी रूप में इसकी जांच-पड़ताल शुरू की गई है."
केंद्र और राज्य सरकार के बयानों से साफ़ जाहिर हो रहा है कि सब कुछ बड़े षडयंत्र या साजिश का एक हिस्सा है.
राजस्थान में इससे पहले अंतरराष्ट्रीय साजिश की बात कभी नहीं हुई.
इस वजह से बीबीसी ने राज्य के सामाजिक तानेबाने को समझने के लिए स्थानीय लोगों से बात की.
राजस्थान की डेमोग्राफी
2011 की जनगणना के हिसाब से राजस्थान की कुल आबादी लगभग 6.85 करोड़ है. जिसमें मुसलमानों की आबादी लगभग 9 फ़ीसदी है और हिंदुओं की आबादी लगभग 89 फ़ीसदी है.
पूरे राजस्थान में 33 ज़िले हैं. हर ज़िले में हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों की आबादी ही ज़्यादा है.
केवल उदयपुर की बात करें तो लगभग 1 लाख मुसलमान हैं और 28 लाख हिंदू यहां रहते हैं.
दोनों समुदाय के लोगों के बीच कई दिनों तक तनाव जैसी स्थिति पैदा हुई हो - यहां के युवाओं को इसकी कोई ताज़ा मिसाल याद नहीं.
हाँ, इलाके के बुजुर्ग ज़रूर 1992 और 1970 की दो घटनाओं की मिसाल देते हैं, जब क्रमश: दो दिन के लिए और 8 दिन के लिए उदयपुर में कर्फ़्यू लगा था, जिसके बारे में वरिष्ठ पत्रकार उग्रसेन राव भी बता रहे थे.
सांप्रदायिक तनाव
वैसे हाल के कुछ महीनों में राजस्थान से सांप्रदायिक तनाव की ख़बरें पहले के मुक़ाबले ज़्यादा आ रही हैं.
पहले करौली से ऐसी ख़बर आई, जहां दो अप्रैल को हिंदू नववर्ष के मौक़े पर हिंदू संगठनों ने बाइक यात्रा निकाली थी. इसमें 22 लोग ज़ख़्मी हुए थे.
दूसरी बार 3 मई को ईद के मौके पर जोधपुर में सांप्रदायिक तनाव देखा गया. पूरा विवाद झंडे और लाउडस्पीकर हटाने से शुरू हुआ, जिसके बाद कर्फ्यू लगाने की नौबत तक आ गई. करीब 30 लोग इसमें घायल हुए.
फिर अलवर में भी तनावपूर्ण स्थिति बनी और अब उदयपुर में दिन दहाड़े हत्या कर दी गई, जिसके बाद से ही इलाके मे तनाव है.
कुछ जानकार इन सब घटनाओं को अलग अलग नहीं बल्कि जोड़ कर देखने की बात कर रहे हैं.
वैसे राजस्थान का सांप्रदायिक हिंसा का रिकॉर्ड पहले ऐसा कभी नहीं रहा.
साल 2014 के बाद से ही एनसीआरबी, सांप्रदायिक हिंसा के आँकड़े अलग से प्रकाशित करती आई है.
तब राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया के नेतृत्व में बीजेपी का शासन हुआ करता था. 2018 में कहानी बदली और अशोक गहलोत की सरकार बनी.
दोनों के शासन काल के आँकड़े कमोबेश एक जैसी कहानी ही कह रहे हैं (ग्राफ देखें).
साल 2020, राज्य में सांप्रदायिक हिंसा के तीन मामले सामने आए थे, जब प्रदेश ज़्यादातर समय लॉकडाउन में ही रहा था.
इस बार कुछ महीनों के अंतराल में इतनी सांप्रदायिक हिंसा की ख़बरें राजस्थान के लिए कितनी नई बात है?
इस पर राज्य के वरिष्ठ पत्रकार विवेक भटनागर कहते हैं कि इन सभी मामलों में एक पैटर्न देखने को मिलता है.
"राजस्थान की परंपरा के बारे में वो कहते हैं एक समाज के तौर पर राजस्थान के लोग लड़ते झगड़ते नहीं हैं. यहां के समाज में लोगों के अंदर घमंड देखने को नहीं मिलता, हाँ, प्रतिशोध में कुछ करें वो अलग बात है. लेकिन करौली में जो हुआ, जोधपुर में जो हुआ, अलवर में जो हुआ और अब उदयपुर में जो हुआ - वो राजस्थान के लोगों की फितरत नहीं है. वो प्रतिशोध नहीं है. जो कुछ हो रहा है वो एक फ्रेमवर्क के तौर पर हो रहा है, टूलकिट के तौर पर हो रहा है, जो राजस्थान की अमन शांति को डिस्टर्ब करना चाहता है."
इतनी बड़ी बात वो किस आधार पर कह रहे हैं?
इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं, "एक घटना होती तो हम कह सकते थे कि अपवाद था. लेकिन एक के बाद एक होना और दिन-दहाड़े गला रेत कर हत्या कर देना - इसके लिए एक मानसिकता चाहिए होती है, ट्रेनिंग चाहिए होती है. मैं या आप ऐसा नहीं कर सकते. एक दिन में ऐसा माइंडसेट तैयार नहीं होता. ये सोचने का विषय है. इसलिए इसमें एक पैटर्न दिखता है."
ये भी पढ़ें : ग्राउंड रिपोर्ट: शंभूलाल रैगर कैसे बन गए शंभू भवानी
उदयपुर में 2017 में क्या हुआ था?
हालांकि 2017 में भी राजस्थान के राजसमंद में एक इसी तरह का वाक़या सामने आया था. ये भी उदयपुर के पास का ही इलाका है.
शंभूलाल नाम के व्यक्ति ने अफ़राजुल की हत्या कर दी थी. उस मामले में भी हत्या का वीडियो सामने आया था.
विवेक भटनागर को उस घटना और आज की घटनाओं के बीच कोई पैटर्न नहीं दिखता. उनका कहना है कि 2017 की घटना के बाद एक एक कर कई और घटनाएँ सामने नहीं आई. इस वजह से दोनों को जोड़ना सही नहीं है.
लेकिन राज्य के ही दूसरे वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन कहते हैं कि 2017 की घटना को भी आज याद करना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले पाँच सात सालों में ये ट्रेंड शुरु हुआ है.
बीबीसी से बातचीत में वो कहते हैं,"उदयपुर का अल्पसंख्यक समाज ऐसा नहीं है कि कोई उत्तेजक नारे लगाए या इस तरह की घटना को अंजाम दे. लेकिन इस घटना को समझने के लिए 2017 की शंभूलाल रैगर वाली घटना को समझने की ज़रूरत है. वो भी वहशियाना हरकत थी. ये भी वहशियाना है. इस बार पात्र बदल गए हैं. 2017 में अल्पसंख्यक समाज के व्यक्ति की हत्या हुई थी. इस बार हत्या करने वाला अभियुक्त अल्पसंख्यक समाज से है. लेकिन ये ट्रेंड पिछले पाँच सात-साल का है. अब ये ख़तरनाक मोड़ पर आ गया है."
इस मामले में पुलिस की भूमिका पर भी त्रिभुवन सवाल उठाते हैं और कहते हैं कन्हैयालाल को धमकी पहले से मिल रही थी, पुलिस से उन्होंने सुरक्षा माँगी थी, फिर सुरक्षा क्यों नहीं दी गई.
पुलिस की भूमिका
राजस्थान के एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) हवा सिंह घुमरिया ने इस बारे में सफ़ाई भी दी है और जाँच का आश्वासन भी दिया है.
पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, "पैग़ंबर मामले पर कन्हैयालाल के ख़िलाफ़ इसी महीने एक शिकायत दर्ज कराई गई थी जिसके बाद उन्हें गिरफ़्तार भी किया गया.
उन्होंने बताया,"10 तारीख़ को मृतक कन्हैयालाल के ख़िलाफ़ एक रिपोर्ट दर्ज हुई थी. उसमें आरोप लगाया गया था कि मोहम्मद साहब को लेकर जो मामला चल रहा था उसमें जो आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी उसको इन्होंने आगे प्रचारित किया. इसमें पुलिस ने तत्काल एक्शन लिया, मुक़दमा दर्ज किया, और कन्हैयालाल को गिरफ़्तार किया. उसके बाद उन्हें कोर्ट से ज़मानत मिल गई."
"ज़मानत पर रिहा होने के बाद कन्हैयालाल ने लिखित रिपोर्ट दी कि उन्हें जान से मारने की धमकी दी जा रही है और उन्हें सुरक्षा दी जाए, तो तत्काल एसएचओ ने उन लोगों को बुला लिया जो धमकी दे रहे थे, फिर दोनों समुदायों के 5-5, 7-7 ज़िम्मेदार लोग आपस में बैठकर समझौता कर चले गए कि हमें अब कोई कार्रवाई नहीं चाहिए, जो भी कन्फ़्यूज़न था वो दूर हो गया. इसलिए उसपर आगे कार्रवाई नहीं की गई."
इस वजह से त्रिभुवन पूरे मामले में पुलिस की लापरवाही मानते हैं.
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