हैप्पी बर्थ डे मंटो, तुम हमारे दिलों में ज़िंदा रहो: ब्लॉग

- Author, मोहम्मद हनीफ़
- पदनाम, लेखक, बीबीसी हिंदी के लिए
सआदत हसन मंटो का जन्मदिन है. उस मंटो का जो 43 साल की उम्र में खून थूकते और पागल खानों के चक्कर लगाते इस दुनिया को अलविदा कह गया था.
आज हमें हैप्पी बर्थडे कहना चाहिए लेकिन मंटो ये तुम ही थे जिसने सीधी बात कहना सिखाया था और सीधी बात यह है कि बधाई हो तुमने अच्छा किया कि जो तुम मर गए.
तुमने जो देखा वह सब लिखा और जो लिखा उसने तुम्हें जीने ही नहीं दिया. तुम्हारे जाने के बाद जो हुआ मंटो वह तुमसे लिखा भी नहीं जाना था.
तुम्हारे दोस्त कहते थे कि तुम बंटवारे के समय अपने प्यारे शहर मुंबई को छोड़कर लाहौर चले गए क्योंकि तुम डरे हुए थे. इस हिंदू मुस्लिम के चक्कर में तो तुम्हारा कोई यार भी तुम्हें कत्ल कर सकता है, तो डरना चाहिए भी था.
जो तुमने चार-छह पंक्तियों में विभाजन पर एक कहानी लिखी, जिसका नाम था 'मिस्टेक'. एक चाकू पेट को चीरता है और फिर नाभि को काटता है, फिर हत्यारा पछताता है नीचे देखता है, और कहता है - ओहो, मिस्टेक हो गई. सब यही समझ लो कि जो 'मिस्टेक' 1947 में शुरू हुई थी वह आज भी जारी है.
मेरे पागल भाई मंटो, तुमने एक टोबा टेक सिंह लिखा था, अब पूरा हिंदुस्तान-पाकिस्तान टोबा टेक सिंह बना हुआ है. हमने तुम्हें पागलखाने में भेजा था, अब हमने सारा हिंद-सिंध ही पागलखाना बना दिया है.
यदि तुम भारत में होते तो वे कहते "देश के गद्दारों को......". यहां पाकिस्तान में पता नहीं कितने लोगों ने तुम्हें काफ़िर, काफ़िर, मंटो काफिर कह कर नारे लगा देने थे. तुम हमेशा दिल से लिखते रहे और ऐसा लिखा जैसे तुम्हारी कलम को आग लगी हो.
जिन काग़ज़ों पर तुमने कहानियाँ लिखी हैं, वे चाहे सभी जलकर राख हो जाएँ. लेकिन हमारे बुज़ुर्गों ने केवल तुम्हारी कहानियों में अश्लीलता देखी. तुमने हमें ज़मीन पर पड़ी लाशें दिखाई, तो उन्होंने कहा मंटो ख़ुश है.
तुमने कहा यहां एक औरत लुटती हुई घूम रही है, चिल्ला रही है. उन्होंने कहा मंटो एक बार फिर गंदी बातें कर रहा है.

तुम्हारे ख़िलाफ़ ब्रिटिश सरकार ने तीन मुक़दमे दर्ज किए थे. हमने अंग्रेज़ों से आज़ादी हासिल की और पाकिस्तान बनाया. इस चक्कर में करोड़ों लोग बेघर हो गए. हमने लगभग 20 लाख लोगों को भाले और कुल्हाड़ियों से मार डाला.
इतना सब होने के बाद भी, नई सरकार को चिंता ये थी कि देखो मंटो फिर से गंदा लिख रहा है. हमारी नई आज़ाद सरकार ने तुम पर फिर से तीन मुक़दमे दर्ज कर दिए. तुम कलमकार थे, तुम्हें अपनी बच्चियों की दवा और शराब के लिए काग़ज़ ही काला करना पड़ा था. हमने तुम्हारी रोजी-रोटी भी बंद कर दी.
तुम और तुम्हारी कलम दोनों ही खून थूक कर इस ज़ालिम दुनिया से चले गए.
तुम्हारा नाम बड़ा था, पर तुम्हारी अकड़ उससे भी बड़ी थी. अमेरिकी तुम्हारे घर चल कर आए लेकिन तुमने डॉलर उनके मुँह पर दे मारे. साथ ही अंकल सैम को तरकीब बताई कि हमें हथियार दो, हमारे मौलवियों की मदद करो, वे तुम्हारे बहुत काम आएंगे.
अमेरिकी लोगों ने तुम्हारी सुझाई तरकीब को अपनी विदेश नीति बना लिया और हम आज भी भुगत रहे हैं.
मंटो तुम जब तक जीते रहे तुम से हमारे जज भी परेशान, पब्लिशर हैरान और तुम्हारे लेखक दोस्त भी कहते थे बात तो तुम सच्ची करते हो पर तुम्हें बात कहने की तमीज़ नहीं है. तुमने कहा मैं एक लेखक हूं, कलमकार हूं कोई धोबी नहीं जो तुम्हारे गंदे कपड़े धोता रहूं.
यह सुनकर तुम्हें हंसी आएगी कि हमने तुम्हें आराम से जीने तो नहीं दिया लेकिन तुम्हारे मरने के बाद हम मंटो, मंटो करते रहते हैं.
तुम्हें प्यार वहीं मिला जहां तुम्हें ज़रूरत थी- पाठकों से. आज भी तुम्हारे पाठक तुम्हें बहुत प्यार करते हैं. वह इतना प्यार करते हैं जितना उन्होंने कभी किसी जीवित या मृत लेखक को नहीं किया होगा.

तुमने कहा था कि मेरी कब्र पर लिखवा देना- 'मंटो यहीं पड़ा है और आज भी सोच रहा है कि सबसे बड़ा कथाकार कौन है - मैं या मेरा रब्ब.' हम लोग डरे हुए लोग हैं, यह हम तुम्हारी कब्र पर नहीं लिख सकते थे लेकिन अब हमें यक़ीन है कि तुम अपने रब्ब के साथ हो और उसने तुम्हारे जन्मदिन पर कुछ इंतज़ाम किया होगा.
तुम अपने रब्ब के साथ ख़ुद इस बात को ख़त्म करो कि कौन बड़ा कथाकार है, लेखक है और साथ ही हमारी सभी 'मिस्टेक' की माफ़ी भी मांग लेना.
हैप्पी बर्थडे मंटो, हमारे दिलों में ज़िंदा रहो. रब्ब तेरा भला करे.
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