वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और माँ शृंगार देवी से जुड़े निरीक्षण का मामला क्या है?

ज्ञानवापी

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    • Author, अनंत झणाणें
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद एक बार फिर चर्चा में है. वहाँ अदालत की ओर से नियुक्त वकीलों की एक टीम शुक्रवार को निरीक्षण के लिए पहुँची जिसका विरोध हो रहा है. आइए समझते हैं कि क्या है ये पूरा मामला?

क्या है माँ शृंगार गौरी की पूजा करने का मुक़दमा

18 अगस्त 2021 को दिल्ली की पाँच महिलाओं ने बनारस की एक अदालत में एक याचिका दाखिल की थी. इन महिलाओं का नेतृत्व राखी सिंह कर रही हैं.

उनका कहना है कि उन्हें मस्जिद के परिसर में माँ शृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान, आदि विशेश्वर, नंदीजी और मंदिर परिसर में दिख रही दूसरी देवी देवताओं का दर्शन, पूजा और भोग करने की इजाज़त होनी चाहिए.

इन महिलाओं का दावा है कि माँ शृंगार देवी, भगवान हनुमान और गणेश, और दिखने वाले और अदृश्य देवी देवता दशाश्वमेध पुलिस थाने के वार्ड के प्लॉट नंबर 9130 में मौजूद हैं जो काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से सटा हुआ है.

उनकी यह भी मांग है कि अंजुमन इन्तेज़ामिया मस्जिद को देवी देवताओं की मूर्तियों को तोड़ने, गिराने या नुक़सान पहुँचाने से रोका जाए.

मांग यह भी है कि उत्तर प्रदेश सरकार को "प्राचीन मंदिर" के प्रांगण में देवी देवताओं की मूर्तियों के दर्शन, पूजा और भोग करवाने के लिए सभी सुरक्षा के इंतज़ाम करने के आदेश दिए जाएँ.

अपनी याचिका में इन महिलाओं ने अलग से अर्ज़ी देकर यह भी मांग रखी थी कि कोर्ट एक अधिवक्ता आयुक्त (एडवोकेट कमिश्नर) की नियुक्ति करे जो इन सभी देवी देवताओं की मूर्तियों के अस्तित्व को सुनिश्चित करे.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निरीक्षण को दी मंज़ूरी

8 अप्रैल 2022 को निचली अदालत ने स्थानीय वकील अजय कुमार को एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त कर परिसर का निरीक्षण कर और निरीक्षण की वीडियोग्राफी करने के आदेश दिए.

साथ ही एडवोकेट कमिश्नर को निरीक्षण और उसकी वीडियोग्राफी करने की लिए ज़रुरत पड़ने पर स्थानीय प्रशासन को पुलिस बल मुहैया कराने के आदेश भी दिए.

बनारस की अंजुमन इन्तेज़ामिया मस्जिद के प्रबंधन ने एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति और प्रस्तावित निरीक्षण को हाई कोर्ट में चुनौती दी.

उनके मुताबिक़ किसी पक्षकार को सबूत इकट्ठा करने की इजाज़त नहीं है. प्रबंधन के मुताबिक़ कमिश्नर सिर्फ सबूत को स्पष्ट दृष्टिकोण में पेश कर सकते हैं लेकिन सबूत इकठ्ठा नहीं कर सकते हैं.

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मस्जिद प्रबंधन ने यह भी आपत्ति जताई कि निचली अदालत ने एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार की नियुक्ति याचिकाकर्ताओं की मांग पर की गई है, ना कि अदालत की मौजूदा अनुरक्षित सूची से.

कोर्ट ने मस्जिद प्रबंधन की इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि एडवोकेट कमिश्नर को मौजूदा सबूत को सुरक्षित करने की पूरी छूट है. और अगर मस्जिद प्रबंधन को कमिश्नर की निरीक्षण की रिपोर्ट पर कोई आपत्ति होती है तो वो उसे क़ानूनी चुनौती दे सकते हैं.

हाई कोर्ट ने यह भी साफ़ कर दिया कि एडवोकेट कमिश्नर को सुरक्षा बल निरीक्षण करते वक्त उनकी ज़रुरत के हिसाब से ही मुहैया कराने के आदेश हैं.

हाई कोर्ट ने इस दलील को भी खारिज कर दिया कि एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार की नियुक्ति महिला याचिकाकर्ताओं की सुझाव पर हुई है. हाई कोर्ट ने कहा कि महिला याचिकाकर्ताओं के सुझाव का मतलब यह नहीं है कि अजय कुमार उनकी पसंद के वकील हैं. वो अदालत के पास वकीलों की सूची में सूचीबद्ध हैं और अदालत ने पूर्ण विवेक इस्तेमाल करते हुए उनकी नियुक्ति की होगी.

यह सब कहते हुए हाई कोर्ट ने 21 अप्रैल को मस्जिद प्रबंधन की याचिका खारिज कर दी.

फ़िलहाल मस्जिद प्रबंधन ने हाई कोर्ट के इस फैसले को चुनौती नहीं दी है इसीलिए 6 मई को निरीक्षण की तैयारियाँ हो रही हैं.

ज्ञानवापी परिसर के बाहर सुरक्षा

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2021: एएसआई के सर्वेक्षण पर हाई कोर्ट की रोक

9 सितंबर 2021 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निचली अदालत के एएसआई के सर्वेक्षण पर रोक लगा दी गई थी. रोक इस आधार पर लगाई गई कि उच्च न्यायालय सर्वेक्षण के मुद्दे से जुड़ी एक और याचिका पर अपना फ़ैसला सुरक्षित रख चुका है.

इस याचिका के बारे में अंजुमन इन्तेज़ामिया मस्जिद के वकील अभय यादव का कहना है कि, "हाई कोर्ट ने जो फैसला सुरक्षित रखा हैवो दूसरा केस है. वो 1991 का केस नंबर 610 है. उस केस में यह कहा गया है कि जहाँ पर मस्जिद बनी है, वो तोड़ कर बनी है. वो काशी विश्वनाथ की ज़मीन हैं. उसमें माँग है कि मस्जिद को हटा कर उसका कब्ज़ा हिन्दुओं को सौंपा जाए. दावा है कि उस मस्जिद का जो आर्किटेक्चर है, वो मंदिर को तोड़ कर बनाई गयी है और उसकी एएसआई से जांच कराई जाए. उसके नीचे शिवलिंग बताया जा रहा है. वो मामला हाई कोर्ट में पेंडिंग है."

1991 और गौरी श्रीनगर से जुड़े मामले में क़ानूनी फ़र्क़ समझाते हुए मस्जिद के वकील अभय यादव कहते हैं, "यह जो शुक्रवार को हो रहा है, यह एक अलग मुक़दमा दाखिल किया गया है. यह मुक़दमा है राखी सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार. इस मुकदमे में प्लॉट नंबर 9130 उस प्लॉट में बहुत सारी देवी देवताओं, गणेश जी, शंकर जी, महादेव जी, गौरी शृंगार की मूर्तियां मूर्तियां भरी हुई हैं. और उन देवी देवताओं की दैनिक पूजा में कोई हस्तक्षेप न किया जाये. शृंगार गौरी में साल में एक बार पूजा होती थी, नवरात्र में चतुर्थी को. लेकिन अब यह रोज़ पूजा की बात कर रहे हैं. इनका खुद का कहना है कि वो मंदिर की पश्चिमी दीवार के बाहरी ओर है. मस्जिद केअंदर नहीं है. और अगल बगल जो मूर्तियां होंगी उनके सर्वे के लिए इन्होंने अर्ज़ी दी थी. उसी पर शुक्रवार को कमीशन जा रहा है."

ज्ञानवापी मस्जिद

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क्या हैं दोनों पक्षों के दावे ?

दोनों पक्षों के दावों को बेहतर समझने के लिए हमने उनके वकीलों से बात की

पूजा करने की इजाज़त माँग रही महिला याचिकाकर्ताओं के वकील मदन ने कहा कि उन्होंने अपनी याचिका में एडवोकेट कमिश्नर से सम्पूर्ण "9130 प्लॉट के निरीक्षण की माँग की थी."

वो कहते हैं कि उन्हें "गौरी शृंगार की मूर्ति का अस्तित्व प्रमाणितकरने के लिए निसंदेह मस्जिद की अंदर जाना पड़ेगा."

इस दावे को अंजुमन इन्तेज़ामिया मस्जिद के वकील अभय यादव का कहना है कि, "उन्होंने जो याचिका डाली है किया है उसमें खुद लिख रहे हैं कि वो शृंगार गौरी की मूर्ति है और, मस्जिद की पश्चिम दीवार के बाहर है."

अभय यादव कहते हैं, "हमें सर्वे पर कोई आपत्ति नहीं है. आपत्ति सिर्फ़ इस बात पर है कि यह लोग मस्जिद के अंदर ना जाएँ."

अभय यादव के मुताबिक़ अदालत ने " कोर्ट ने मस्जिद के अंदर जाकर सर्वे करने का कोई ऑर्डर नहीं दिया है."

वो यह भी कहते हैं कि जिस प्लॉट नंबर 9130 का ज़िक्र किया गया है, वो कहाँ मौजूद है, यह तय नहीं है.

उन्होंने कहा,"आप कैसे तय करेंगे की जहाँ पर मस्जिद है वो प्लॉट नंबर 9130 का हिस्सा है? वो तो रेवेन्यू नक़्शे के हिसाब से तय होगा. याचिकाकर्ताओं ने मैप कोर्ट में जमा नहीं किया है."

"आज जो निरीक्षण होने वाला है उससे यह तय नहीं होगा कि जिसको वो लोग माँ शृंगार गौरी का मंदिर कह रहे हैं वो प्लॉट नंबर 9130 में आता है. इसके लिए उनके पास कोई नाप नहीं हैं. कोई सर्टिफ़ाइड मैप नहीं हैं. जिससे वो तय करें कि शृंगार गौरी का मंदिर प्लॉट नंबर 9130 में है."

तो सवाल यह उठता है कि माँ शृंगार गौरी की प्रतिमा कहाँ है ?

वकील अभय यादव के मुताबिक़, "वो मस्जिद के बाहर है. पश्चिम दीवार के पीछे है. और जब मूर्ति बाहर है तो आप मस्जिद के अंदर क्यों आएँगे?"

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