योगी आदित्यनाथ का शपथ ग्रहण: मंत्री पद के लिए चर्चा में हैं ये नाम

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- Author, अनंत झणाणे
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
उत्तर प्रदेश में एक बार फिर योगी आदित्यनाथ बतौर मुख्यमंत्री शपथ लेने जा रहे हैं. शपथ ग्रहण समारोह शुक्रवार शाम चार बजे से लखनऊ के इकाना स्टेडियम में होगा. इस बीच कैबिनेट के चेहरों पर अलग-अलग तरह के कयास लगाए जा रहे हैं.

आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही चेहरों के बारे में जिन्हें योगी 2.0 कैबिनेट में जगह मिल सकती है.
बेबी रानी मौर्य
बेबी रानी मौर्य आगरा की महापौर रह चुकी हैं. वो बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं. 2022 के चुनाव से ठीक पहले उन्होंने उत्तराखंड के राज्यपाल पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. बीजेपी ने उन्हें आगरा ग्रामीण से चुनावी मैदान में उतारा और उन्होंने 76,000 से अधिक वोटों से जीत दर्ज की.
हाल में कई बार बीजेपी ने सार्वजनिक कार्यक्रमों में उनके नाम के साथ 'जाटव' जोड़कर उनकी जातिगत पहचान उभारने की कोशिश की है.
मायावती के घटते राजनीतिक क़द और बीएसपी की कमज़ोरी के मद्देनज़र 2022 के चुनाव में उनकी तुलना मायावती से भी हुई. इस बारे में उन्होंने बीबीसी से कहा, "मैं मायावती जी को न तो अपना कॉम्पिटीटर (प्रतिस्पर्धी) मानती हूं.न उनका चेहरा बनना चाहती हूं. मैं भारतीय जनता पार्टी की कार्यकर्ता हूं. बेबी रानी मौर्य हूं और बेबी रानी मौर्य ही रहना चाहती हूं."
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जैसे पार्टी के बड़े नेता चुनाव प्रचार के दौरान दावा कर रहे थे कि अगर बेबी रानी मौर्य चुनाव जीतती हैं और प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती है तो उन्हें 'बड़ी ज़िम्मेदारी' दी जाएगी.

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असीम अरुण
राजनीति में आने से पहले असीम अरुण कानपुर के पुलिस कमिश्नर रह चुके हैं. कहा जाता है कि ख़ुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें आईपीएस की नौकरी से इस्तीफ़ा देकर बीजेपी से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी होने के साथ-साथ असीम अरुण दलित समुदाय से भी हैं. ऐसे में एक पुलिस अधिकारी को कन्नौज शहर की सुरक्षित सीट से उतार कर बीजेपी ने दलितों से जुड़ी अपनी राजनीति को नई दिशा देने की कोशिश की.
चुनाव प्रचार के दौरान बीबीसी हिंदी से उन्होंने कहा था, "फ़र्क साफ़ है. ईमानदार पुलिसवाला बनाम अपराधी वाला कोई नैरेटिव बनाने की ज़रूरत नहीं है, ये तो सामने है. मैं यह अपना बहुत बड़ा सौभाग्य समझता हूं कि मुझको बीजेपी ने देखा और आमंत्रित किया. इसलिए नहीं कि मैं क्या हो सकता हूँ, इसलिए कि मैं क्या हूँ."
असीम अरुण बिरादरी से दलित जाटव हैं. वो पुलिस अधिकारी रहे हैं. इन दोनों पहचान के मिश्रण का एक राजनीतिक आकर्षण हो सकता है और इस नज़रिए से असीम अरुण के राजनीतिक करियर की शुरुआत से बीजेपी भी कुछ बड़ा हासिल करने की कोशिश कर रही है.
इस पर अरुण कहते हैं, "मेरे मूलभूत सिद्धांत हैं ईमानदारी, सबको साथ लेकर चलना, शिष्टाचार के साथ रहना और अपना काम मुकम्मल तरीके से पूरा करना."

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राजेश्वर सिंह
राजेश्वर सिंह 1996 बैच के उत्तर प्रदेश के पीसीएस अधिकारी थे. लखनऊ ही उनकी जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है. वो लखनऊ समेत उत्तर प्रदेश के कई शहरों में अहम पदों पर तैनात रहे. 2007 में ईडी में गए. 24 साल के कार्यकाल में वो कई हाई प्रोफ़ाइल मामलों की जांच से जुड़े रहे.
राजेश्वर सिंह हाल तक प्रवर्तन निदेशालय में संयुक्त निदेशक के पद पर तैनात थे. चुनाव के ठीक पहले उनके वीआरएस के आवेदन को स्वीकृति मिली और उसी दिन उनको बीजेपी ने सरोजनी नगर सीट से अपना उम्मीदवार भी घोषित कर दिया. राजेश्वर सिंह ने सरोजिनी नगर से सपा के पूर्व मंत्री अभिषेक मिश्र को हराया.
ईडी में वरिष्ठ अधिकारी रहते हुए राजेश्वर सिंह एयरसेल मैक्सिस केस, 2जी घोटाला, कोयला घोटाला, रिवर फ़्रंट घोटाला, आम्रपाली स्कैम, नोएडा पोंजी स्कैम, माइनिंग स्कैम जैसे कई अहम मामलों की जांच से जुड़े रहे. इन घोटालों की जांच को वो अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में मानते हैं.
बीबीसी ने उनसे पूछा कि क्या ख़ाकी से खादी का सफ़र तय करते हुए एक भी दिन का 'कूलिंग ऑफ़' पीरियड ना रखना, उनके प्रवर्तन निदेशालय के कामकाज पर पार्टी विशेष के प्रति झुकाव को नहीं दर्शाता?
इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था, "ऐसा बिल्कुल नहीं है. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) निष्पक्ष और स्वतंत्र संस्था है. वहां जो भी काम करता है, तथ्यों के आधार पर करता है और सब कुछ कोर्ट की निगरानी में होता है. मेरे ऊपर किसी तरह के पक्षपात का कोई आरोप नहीं लगा है."

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स्वतंत्र देव सिंह
बीजेपी यूपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के काफ़ी क़रीबी माने जाते हैं. प्रदेश में पार्टी के संगठन को मज़बूत रखने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई है.
वो कुर्मी बिरादरी से हैं और पार्टी के कद्दावर ओबीसी नेताओं में उनकी गिनती होती है. उन्होंने जुलाई 2019 में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का कार्यभार संभाला और 1990 से लेकर अब तक वो पार्टी और संगठन के विभिन्न पदों पर रह चुके हैं. प्रदेश अध्यक्ष बनने से पहले वो योगी कैबिनेट में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भी रह चुके हैं.
2019 के लोकसभा चुनावों में वो मध्य प्रदेश के प्रभारी थे और उनके नेतृत्व में पार्टी ने 29 में 28 सीटें जीती थीं.
संगठन की ज़िम्मेदारियों की वजह से 2022 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा और वो फ़िलहाल एमएलसी हैं.

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केशव प्रसाद मौर्य
सिराथू विधानसभा सीट से अपना दल (कमेरावादी) की पल्लवी पटेल से चुनाव हारने के बाद भी केशव प्रसाद मौर्य को सरकार में बड़ी ज़िम्मेदारी मिल सकती है.
मौर्य, इलाहाबाद के फूलपुर से 2014 में सांसद चुने गए थे. साल 2017 में पार्टी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बना कर विधान सभा चुनाव के नेतृत्व का ज़िम्मा सौंपा. इन चुनावों में पार्टी ने बड़ी जीत दर्ज की थी और उन्हें प्रदेश का उपमुख्यमंत्री बनाया गया.
केशव प्रसाद मौर्य ने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत संघ से की है और वो राम जन्मभूमि आंदोलन से भी जुड़े रहे हैं.
2022 में प्रचार के दौरान उन्होंने मथुरा में मंदिर बनाने की बात छेड़ कर काफ़ी सुर्ख़ियां बटोरी थीं. उन्होंने ट्वीट कर कहा था, "अयोध्या काशी भव्य मंदिर निर्माण जारी है. मथुरा की तैयारी है."

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सुरेश खन्ना
उत्तर प्रदेश के वित्त मंत्री रहे सुरेश खन्ना प्रदेश के शाहजहांपुर से लगातार नौ बार के विधायक रह चुके हैं. उनकी गिनती उत्तर प्रदेश में बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं में होती है और वो विधानसभा के संचालन के तौर तरीकों को अच्छी तरह समझते हैं.
योगी सरकार में उन्हें संसदीय कार्य और मेडिकल एजुकेशन विभाग का ज़िम्मा भी सौंपा गया था.
भले ही वो कई बार के विधायक रहे हों लेकिन 2017 में प्रदेश में बीजेपी की सरकार आने पर वो पहली बार कैबिनेट मंत्री बने थे.

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दिनेश शर्मा
दिनेश शर्मा लखनऊ के जाने-माने चेहरों में से एक हैं. वो लखनऊ विश्वविद्यालय में कॉमर्स के प्रोफ़ेसर हैं. 2006 में वो लखनऊ के महापौर चुने गए और 2012 में वो फिर से महापौर बने.
2014 में बीजेपी ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया और योगी सरकार में वो पहली बार सीधे उपमुख्यमंत्री बने. वो उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य हैं और परिषद में पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं.
2017 की योगी सरकार में वो माध्यमिक और उच्च शिक्षा, विज्ञान और तकनीकी, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मामलों के मंत्री रहे हैं.

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शलभ मणि त्रिपाठी
शलभ मणि त्रिपाठी ने देवरिया सदर से पहली बार चुनाव लड़ कर जीत दर्ज की है. वो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार रहे हैं और उनके काफ़ी क़रीबी माने जाते हैं.
वो बिहार और उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता कर चुके हैं. यूपी में वो न्यूज़ चैनल आईबीएन सेवन के ब्यूरो चीफ़ भी रह चुके हैं. उन्होंने अपने पत्रकारिता के करियर की शुरुआत दैनिक जागरण से की थी. 2016 में उन्होंने पत्रकारिता छोड़ बीजेपी की सदस्यता ले ली थी. वो बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता भी रह चुके हैं.

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राजेश त्रिपाठी
चिल्लूपार विधानसभा सीट से विधायक राजेश त्रिपाठी पत्रकारिता से राजनीति में आए थे. गोरखपुर के बाहरी इलाके में मुक्तिधाम नाम से श्मशान स्थल बनवाने के बाद वो ख़ूब चर्चा में रहे. 2007 में 30 साल से विधायक रहे हरिशंकर तिवारी को हराकर बीएसपी से पहली बार चुने गए थे. फिर मायावती ने इन्हे धर्मार्थ कार्य मंत्री भी बनाया था.
2012 में समाजवादी पार्टी की लहर के बावजूद वो दोबारा बीएसपी से निर्वाचित हुए और 2017 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी में शामिल हुए. लेकिन 2017 में बीजेपी की लहर के बावजूद राजेश, बीएसपी के विनय तिवारी से चुनाव हार गए थे. इस बार वो हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी को हराकर तीसरी बार विधायक बने हैं.
हरिशंकर तिवारी का राजनैतिक तिलिस्म तोड़ने वाले राजेश त्रिपाठी के ऊपर कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं है और क्षेत्र में आज भी वो श्मशान वाले बाबा के नाम से चर्चित हैं.

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अनिल राजभर
अनिल राजभर मूल रूप से चंदौली ज़िले के सकलडीहा तहसील के रहने वाले हैं. अनिल के पिता रामजीत राजभर भी धानापुर और चिरईगांव से बीजेपी के विधायक रह चुके हैं. अनिल राजभर का राजनीतिक करियर कॉलेज से ही शुरू हो गया था. वो 1994 में सकलडीहा डिग्री कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गये, उसके बाद ज़िला पंचायत सदस्य चुने गए.
पिता के निधन के बाद 2003 में हुए उपचुनाव में खड़े हुए लेकिन हार का सामना करना पड़ा. कुछ वर्षों तक समाजवादी पार्टी में रहकर मुलायम सिंह के करीबियों में गिने जाने वाले अनिल राजभर 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद ही बीजेपी में शामिल हुए और वाराणसी की शिवपुर सीट से 2017 में पहली बार विधायक बने और तत्कालीन सरकार में मंत्री बनाए गए.
2022 में अनिल ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी प्रमुख ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर को हराकर दोबारा शिवपुर सीट से जीत हासिल की. अरविंद, बीजेपी के राजभर चेहरे हैं और राजभर समुदाय से आने वाले एक मात्र नेता हैं. ओम प्रकाश से गठबंधन ख़त्म होने के बाद अनिल राजभर का कद और बढ़ गया. बीजेपी ने अनिल राजभर को अधिकृत रूप से राजभर वोटों का समर्थन लेने की औपचारिक ज़िम्मेदारी दी है.

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सिद्धार्थ नाथ सिंह
इलाहाबाद पश्चिम से विधायक सिद्धार्थ नाथ सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से अर्थशास्त्र की पढ़ाई के दौरान एबीवीपी से जुड़ गए थे. उत्तर प्रदेश की सियासत में आने से पहले सिद्धार्थ नाथ कई राज्यों में बीजेपी के प्रभारी रह चुके हैं. साल 2000 में उन्हें बीजेपी युवा मोर्चा में राष्ट्रीय कार्यसमिति का सदस्य और मीडिया सचिव बनाया गया. 2002 में उन्हें बीजेपी की केंद्रीय मीडिया सेल का सह-संयोजक बनाया गया और उन्हें गुजरात, कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान मीडिया समन्वयक का काम दिया गया.
2009 में उन्हें बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और लोकसभा चुनाव का समन्वयक बनाया गया. 2010 में उन्होंने पश्चिम बंगाल के सह-प्रभारी के तौर पर काम किया.
2012 में गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें केंद्रीय समन्वयक बनाया गया. साथ ही उन्होंने आंध्र प्रदेश के प्रभारी तौर पर भी काम किया है.
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें प्रयागराज (इलाहाबाद) पश्चिम विधानसभा सीट से मैदान में उतारा. उन्होंने इस चुनाव में 10 साल से बीएसपी विधायक पूजा पाल को हराया. योगी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय की कमान दी गई. इसके साथ ही वह उत्तर प्रदेश सरकार के आधिकारिक प्रवक्ता भी रहे.

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आशीष पटेल
अपना दल (सोनेलाल) की प्रमुख अनुप्रिया पटेल के पति आशीष पटेल फ़िलहाल विधान परिषद सदस्य हैं. 2022 के चुनाव में अपना दल ने बीजेपी के साथ दोबारा गठबंधन में चुनाव लड़ा था. बहुमत की सरकार आने के बाद आशीष का मंत्री बनना पहले से तय माना जा रहा था क्योंकि उन्हें पिछली सरकार में मंत्री बनने का मौका नहीं मिल पाया था.
आशीष कभी उत्तर प्रदेश जल निगम में इंजीनियर थे, 2009 में कानपुर में तैनाती के दौरान इनकी शादी सोनेलाल पटेल की दूसरी बेटी अनुप्रिया पटेल के साथ हुई.
अब आशीष अपना दल के कार्यकारी अध्यक्ष हैं और अपना दल के दो हिस्से होने के बाद भी सत्ता और शासन के प्रिय हैं. अपना दल ने 2017 के चुनाव में बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था और 9 सीटों पर जीत हासिल की थी. 2022 में पार्टी को 12 सीटों पर जीत मिली है. सीटों की संख्या के हिसाब से अपना दल इस बार बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है.
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