उत्तर प्रदेश: गंगा किनारे जहां सैकड़ों शव दफ़न थे, वहां इस बार कोरोना की क्या तैयारी है?

गंगाघाट पर लाशें

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    • Author, गुरप्रीत सैनी
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता, प्रयागराज से लौटकर

"सारी रात मैं लाश के बगल में पड़ी रही. शाम को पांच बजे ख़त्म हुए थे, अगली सुबह टोला-मोहल्ला वाले लोग उन्हें श्रृंगवेरपुर धाम ले गए और दफना दिए. बहुत परेशानी थी, लकड़ी के लिए पैसे नहीं थे."

30 साल की रंजीता के पति शिव मूरत ने सांस की शिकायत के बाद 25 अप्रैल, 2021 को दम तोड़ दिया था.

ये वो वक़्त था जब कोरोना की दूसरी लहर अपने विकराल रूप में थी और गंगा किनारे दफ़न शवों की तस्वीरें उत्तर प्रदेश में आई त्रासदी को बयां कर रही थीं.

प्रयागराज में श्रृंगवेरपुर धाम और फाफामऊ घाट की तस्वीरें देश-दुनिया में ख़ूब वायरल हुई थीं.

रंजीता उस वक़्त को याद करके आज भी सहम जाती हैं. उनका एक 6 साल का और एक 9 साल का बच्चा है, जिनके साथ अब वो अपने मायके में रहती हैं.

पति का लेबर कार्ड लेकर वो अब तक कई बार सरकारी विभागों में भटक चुकी हैं लेकिन उन्हें कोई मदद नहीं मिल पाई.

रंजीता
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तीसरी लहर को लेकर डर

संतोषी भी उस वक़्त को याद करके रो पड़ती हैं, "छोटा बच्चा साथ गया था. वो आकर बता रहा था कि अम्मा ऐसे गड्ढा खोदकर पापा को दफना दिया. हमने कहा चुप कर बेटा, बस कर."

उनके पति सुबेदार पाल मुंबई में सिलाई का काम करते थे. जब 2020 में पहली बार लॉकडाउन लगा तो वो उत्तर प्रदेश के प्रयागराज स्थित अपने गांव मेंडारा लौट आए.

चार बच्चों के साथ जैसे-तैसे वक़्त काट रहे थे कि अप्रैल की एक सुबह आंखे बंद हुई तो फिर नहीं खुलीं.

परिवार नज़दीक के एक अस्पताल ले गया, लेकिन उनके मुताबिक़, डॉक्टरों ने कोरोना होने का हवाला देकर दूसरे अस्पताल ले जाने को कह दिया.

परिवार सूबेदार पाल को लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटकता रहा लेकिन इसी बीच उनकी सांसें साथ छोड़ गईं.

संतोषी बताती हैं कि उस दिन के बाद कुछ सरकारी लोग आए तो थे, लिख-पढ़कर भी ले गए. लेकिन आजतक कोई मदद नहीं मिली.

संतोषी

ज़िलाधिकारी के पास अर्ज़ी

रिश्तेदार जो मदद कर देते हैं, उससे ही किसी तरह वो बच्चों का पेट पाल रही हैं. उनका बड़ा बेटा 16 साल का है, जो पढ़ाई छोड़कर अब सिलाई का काम सीख रहा है, ताकि मुंबई जाकर पिता की जगह काम करके घर चला सके.

लेकिन संतोषी अब कोरोना के एक बार फिर बढ़ते मामलों को लेकर डरी हुई हैं और इस बार अपने परिवार के दूसरे सदस्यों को खोना नहीं चाहतीं.

ऐसा ही डर सावित्री देवी के मन में है. उनकी दो बेटियां और चार बेटे हैं. दूसरी लहर के वक़्त मौत के बाद उनके पति तुलसीराम को परिवार वालों ने गांव से कुछ किलोमीटर दूर श्रृंगवेरपुर धाम पर दफनाया था.

अब वो मनरेगा मज़दूर के तौर पर काम करके गुज़ारा कर रही हैं. सरकार की ओर से कोविड से मरने वालों के परिजनों को दी जा रही 50 हज़ार रुपये की सहायता राशि के लिए उन्होंने प्रयागराज के डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट के पास अर्ज़ी लगाई है, लेकिन बाकी परिवारों की तरह उनका भी दावा है कि उन्हें ये मदद नहीं मिल पाई है.

तीसरी लहर को लेकर घबराहट उनकी आंखों में झलकती है. हालांकि सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कई मौक़े पर दावा कर चुके हैं कि उत्तर प्रदेश कोरोना की तीसरी लहर के लिए पूरी तरह तैयार है. वो ये भी दावा कर चुके हैं कि दूसरी लहर में भी यूपी ने देश में सबसे बेहतर तरीक़े से कोविड को संभाला.

डॉ. वेद व्रत
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तीसरी लहर के लिए तैयारी?

उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक डॉक्टर वेद ब्रत सिंह ने बीबीसी को बताया कि पिछली बार की स्थिति को देखते हुए ग्रामीण इलाक़ों के लिए इस बार नई व्यवस्था अपनाई गई है.

उन्होंने कहा, "ग्रामीण इलाक़ों के लिए हमने एक नई व्यवस्था अपनाई है. हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर को हम रेपिड एंटिजन किट दे रहे हैं. ताकि वो गांव में ही टेस्ट कर लें. और निगरानी समितिओं को बेसिक दवा दे दी गई है, ताकि लक्षण वाला कोई भी मरीज़ मिलने पर दवा दे दी जाए."

प्रयागराज के मेंडारा गांव की आबादी क़रीब 6000 है. गांव वालों का दावा है कि दूसरी लहर के दौरान यहां 57 मौतें हुईं, लेकिन सरकारी आंकड़ों में एक भी मौत दर्ज नहीं.

कोरोना की दूसरी लहर जब अपने विकराल रूप में थी, उस वक़्त उत्तर प्रदेश में अप्रैल 2021 के दौरान 3,438 मौतें दर्ज की गई थीं और मई 2021 में 8,108 मौतें दर्ज की गई थीं.

लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि मौतों का असल आंकड़ा इससे कहीं ज़्यादा रहा होगा.

सुधा द्विवेदी
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तैयारियों की स्थिति

बरहाल जब हम मेंडारा गांव के हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर में पहुंचे तो वहां मौजूद एएनएम ने बताया फिलहाल तीसरी लहर के लिए उन्हें कोई निर्देश नहीं मिले हैं.

एएनएम सुधा द्विवेदी ने बीबीसी से कहा, "अभी तो वैक्सीन की पहली और दूसरी डोज़ ही लग रही है. बाक़ी जो नए वायरस आए हैं, उसकी अभी निर्देश या ट्रेनिंग नहीं हुई है हम लोगों की. निगरानी समिति को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से दवा मिलती है, उसे बंटवाया जाता है, फिलहाल अभी वो दवा नहीं आई है."

निगरानी समिति में ग्राम प्रधान, सीएचओ, एएनएम और गांव की आशा सदस्य शामिल होती हैं.

इस गांव का सीएचसी यानी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कौड़िहार में पड़ता है, जो इस गांव से क़रीब आठ किलोमीटर दूर है. यहां कुल तीस बेड हैं, जिनमें से बीस कोविड के लिए रिज़र्व रखे गए हैं.

दीपक तिवारी

निगरानी समिति

यहां के चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर दीपक तिवारी ने बीबीसी से कहा कि उन्हें ऊपर से निर्देश मिले हैं कि सबसे पहले ऑक्सीजन के सोर्स यानी ऑक्सीजन सिलेंडर और कॉन्संट्रेटर चालू स्थिति में होने चाहिए.

उन्होंने बताया कि अस्पताल के पास 11 कॉन्संट्रेटर हैं, जो सभी चालू स्थिति में हैं. साथ ही पांच ऑक्सीजन सिलेंडर भी हैं. उनका मानना है कि कॉन्संट्रेटर मिलने से अस्पताल तीसरी लहर की परिस्थितियों को आसानी से झेल सकेगा.

ये सीएचसी आसपास की 76 ग्राम सभाओं को कवर करता है. जब हमने उनसे पूछा कि क्या इतनी ग्राम सभाओं को स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए 11 ऑक्सीजन कॉन्संट्रेटर, पांच सिलेंडर, 20 बेड, दो एंबुलेंस काफी होंगे?

इसपर उन्होंने कहा, "ये चुनौतीपूर्ण होगा. लेकिन सारे मरीज़ यहां नहीं आते हैं. हम ज़्यादातर मरीज़ों को होम आइसोलेशन में रखते हैं, जैसे ही निगरानी समिति किसी मरीज़ के बारे में बताती है तो यहां से रेपिड रिस्पॉन्स टीम किट लेकर पहुंचती है. जो टेस्ट करने और दवा देने का काम करती है."

वीडियो कैप्शन, अब तक 14 से ज़्यादा देशों ने इसकी मौजूदगी की पुष्टि की है.

यूपी सरकार की किरकिरी

डीएम संजय खत्री ने बताता कि पूरे प्रयागराज में कोविड के लिए साढ़े पांच हज़ार बेड तैयार किए गए हैं और सरकारी क्षेत्र में नौ ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किए गए हैं.

उनका दावा है कि ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में भी सुविधाएं बढ़ाई गई हैं.

पेशे से शिक्षक विनय कुमार पटेल कहते हैं कि गंगा किनारे घाटों पर भी सरकार की तरफ से तैयारी की जानी चाहिए. वो कुछ गांव वालों के साथ अपने एक पड़ोसी को दफनाने के लिए फाफामऊ घाट आए थे, जिनकी ठंड के कारण अकास्मिक मृत्यु हो गई थी.

दरअसल पारंपरिक तौर पर अकास्मिक मृत्यु मरने वाले या सांप के काटने या चमड़ी के रोग से मरने वाले लोगों को गंगा घाट पर कई सालों से दफनाया जाता रहा है.

लेकिन दूसरी लहर के बाद हुई यूपी सरकार की किरकिरी के बाद घाटों पर दफनाने पर पाबंदी लगा दी गई थी.

वीडियो कैप्शन, कोरोना और और लॉकडाउन ने स्कूल बंद कर बच्चियों की ज़िंदगी कैसे बदल डाली?

श्रृंगवेरपुर धाम पर तो ये पांबदी अब भी जारी है, लेकिन फाफामऊ घाट पर मामले कम होने के बाद दफनाने का काम फिर शुरू हो गया.

दूसरी लहर में कोरोना की चपेट में आकर विनय कुमार के बड़े पिताजी राधेश्याम की मौत हो गई थी, जिन्हें उन्होंने फाफामऊ घाट पर लाकर दफना दिया था.

वो बताते हैं कि उस वक़्त जो लकड़ी 1500 से 2000 में मिल जाती थी, वो ब्लैक में 3000 से 3500 में बिक रही थी. वो चाहते हैं कि सरकार इस बार ऐसी व्यवस्था करे कि इस तरह की कालाबाज़ारी फिर ना हो.

फाफामऊ घाट पर मिले एक पंडित जी ने बताया कि उस वक़्त हाल इतना बुरा था कि जहां आम दिनों में 25-30 शव आते हैं, उस दौरान 125 से 130 शव रोज़ आ रहे थे. उनके मुताबिक़, "दफनानें वालों की संख्या 30 से 35 होती थी."

वो बताते हैं कि जब गंगा नदी का स्तर बढ़ा तो कुछ शव बह गए और कुछ रेती के और नीचे जाकर दब गए.

पीड़ित परिवार

हाल में आई 'गंगा: रिइमेजनिंग, रेजुविनेटिंग, रिकनेक्टिंग' नाम की किताब में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तत्कालीन महानिदेशक राजीव रंजन, जिनकी सेवाएं बीते 31 दिसंबर को ही समाप्त हुई हैं, उन्होंने गंगा पर पड़े महामारी के भयावह प्रभाव के बारे में लिखा है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़, उन्होंने लिखा है कि ऐसा लगता है कि नदी को बचाने के लिए पिछले पांच सालों में जो काम किए गए थे, उन्हें नष्ट किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान जब मौतों की संख्या में कई गुना की वृद्धि होने लगी और शमशान घाटों पर भीड़ लगने लगी तो गंगा घाट शवों को नदी में फेंकने का आसान रास्ता बन गए थे.

हालांकि इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि ज़िला प्रशासनों ने जो आंकड़े मुहैया कराए हैं, उससे पता चलता है कि नदी में 'क़रीब 300 शव' फेंके गए थे, न कि 1000 से ज़्यादा जैसा कि रिपोर्टों में बताया गया था.

फाफामऊ घाट पर मिले एक पंडित जी ने बताया कि सिर्फ शव ही नहीं बल्कि कई दूसरे कारणों से भी गंगा उस वक़्त प्रदूषित हो रही थी.

वो बताते हैं, "कोई ऐसी जगह बाकी नहीं थी, जहां कोरोना किट से लेकर कपड़ा-लत्ता, संस्कार की सामग्री ना फेंका पड़ा रहता हो. हम लोग उसे डंडी से उठा-उठाकर फेंकते थे. सफाई भी ठीक से नहीं होती थी."

गंगा किनारा

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गंगा घाट से लगे एक गांव के निवासी किशोरी लाल दुआ कहते हैं कि फिर वैसे दिन कभी देखने को ना मिलें.

पिछली बार पंचायत चुनाव के बाद ग्रामीण उत्तर प्रदेश में भयावह हालात बने थे.

वो कहते हैं, "सब चिंता कर रहे हैं कि इस बार क्या होगा, कैसे होगा? इसलिए जहां तक है टीका लगवा रहे हैं."

वो उम्मीद करते हैं कि इस बार सरकार का प्रबंधन बेहतर होगा.

फिलहाल सरकार तैयारी पूरे होने का दावा कर रही है. लेकिन जैसे-जैसे कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं और राज्य के चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, ग्रामीण उत्तर प्रदेश में रहने वाले लोगों की चिंता भी बढ़ती जा रही है.

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