बिहार: लड़की के गायब होने से लेकर हत्या तक उलझे पेच- ग्राउंड रिपोर्ट

इमेज स्रोत, Getty Images
- Author, सीटू तिवारी
- पदनाम, वैशाली से, बीबीसी हिन्दी के लिए
बिहार के एक प्रवासी मज़दूर जब बस से यात्रा कर रहे थे ठीक उसी समय उनकी 20 साल की बेटी का हाजीपुर के कोनहरा घाट पर अंतिम संस्कार किया जा रहा था. वो अंतिम बार अपनी बेटी का चेहरा भी नहीं देख सके.
बेटी का शव 26 दिसंबर को वैशाली स्थित उनके गांव की नहर में मिला था जिसके बाद से ही पूरे इलाके में तनाव का माहौल है.
मृतक युवती की मां गांव में ही खेतीहर मज़दूर हैं. उनके बिना प्लास्टर के घर से कुछ दूर खुली जगह पर नेताओं का आना-जाना लगा है.
घर के भीतर बैठी मां रह-रहकर सिहर उठती हैं और रोते हुए कहती हैं, "उन लोगों ने कहा था दो दिन में तुम्हारी लड़की ऊपर (ढूंढ लाएंगे) कर देंगे. वापस कर देते, मार क्यों दिया?"
ये भी पढ़िएः-

इमेज स्रोत, Seetu Tiwari/BBC
क्या है मामला?
ये मामला वैशाली ज़िले की तिसिऔता थाना क्षेत्र के शाहपुर गांव का है. मृतक युवती के पिता पंजाब में मज़दूरी करते हैं, मां भी शाहपुर में खेतिहर मज़दूर हैं.
एक भाई और तीन बहनों में मँझली बहन ने सरकारी स्कूल में नौवीं तक की पढ़ाई की थी. घर वालों के मुताबिक आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के कारण वो दसवीं कक्षा में दाख़िला नहीं ले सकी.
इस पूरे मामले पर युवती की भाभी और बहन बीबीसी को बताया कि 20 दिसंबर की शाम को रचना शौच के लिए अपने घर से तकरीबन 500 मीटर दूर खेत पर गई थी. लेकिन जब वो बहुत देर तक नहीं लौटी तो परिवार के सदस्य उसे ढूंढते हुए खेत में गए जहां उन्हें शौच में इस्तेमाल होने वाला लोटा मिला.
इसके बाद परिवार के लोग उसे रात भर ढूंढते रहे, लेकिन वो नहीं मिली. बड़ी बहन ने बताया, "सुबह शंका के आधार पर उन्होंने बिझरौली पंचायत के ही एक लड़के को फोन किया. जिस पर उसने कहा कि केस मत करिएगा, हम लड़की को वापस दे देंगे. अगर केस कीजिएगा तो वापस आकर सबको खत्म कर देंगे. वो ऐसे ही वक्त बढ़ाता रहा और बाद में तो बहन की लाश ही मिली."
युवती के ग़ायब होने के बाद 26 दिसंबर की सुबह तकरीबन 11 बजे स्थानीय महिलाएं जब बकरी चराने गांव की नहर के पास गईं तो उन्होंने शव देखा, और उन्होंने परिवार को बताया.
परिवार ने अपनी बेटी के शव को पहचानते हुए बहुत देर तक सड़क पर उसका शव रखकर प्रदर्शन किया. बाद में पुलिस के हस्तक्षेप से सदर अस्पताल, हाजीपुर में पोस्टमार्टम कराके परिवार को शव सौंपा गया.
युवती की मां ने बीबीसी से कहा, "मेरी बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ है और मैं चाहती हूं जैसे मेरी बेटी को मार डाला वैसे ही उसको मारने वालों को भी सज़ा मिले. जब से ये ग़ायब हुई थी तब से इसके पिता का रोज़ फ़ोन आता था. 26 को जब मौत के बारे में पता चला है तो वो बस से आ ही थे."
क्या कहती है एफ़आईआर?
इस मामले में मृतक रचना की मां की शिकायत के बाद एफ़आईआर दर्ज की गई है जिसमें मनोज चौधरी, राकेश चौधरी समेत 4 लोग नामज़द हैं जबकि 5 से 6 अज्ञात लोगों को अभियुक्त बनाया गया है. हालांकि इस शिकायत में जो लिखा है और घर की महिलाएं जो बता रही हैं, उसमें फ़र्क है.
एफ़आईआर में ये लिखा हुआ है कि, "बच्ची का अपहरण करके ले जाते वक्त बच्ची ने हल्ला मचाया. जिसके बाद हम लोग वहां पहुंचे तो अभियुक्त धक्का-मुक्की करते, गालियां देते और जान से मारने की धमकी देते हुए पिस्टल लहराते हुए बच्ची को लेकर चले गए."
लेकिन बीबीसी से बातचीत में घर में मौजूद किसी महिला ने ये नहीं कहा. उलटा उन्होंने कहा कि जब मृतक युवती बहुत देर तक नहीं लौटी तो वो लोग खेत में उसे ढूंढते हुए पहुंचे. उन्हें वहां वो नहीं मिली लेकिन शौच के लिए ले जाया जाने वाला लोटा पड़ा हुआ मिला.
साथ ही युवती के परिवार के अंदर ही अभियुक्त के फ़ोन करने को लेकर दो तरह की बातें हैं. बड़ी बहन के मुताबिक उन लोगों ने शक के आधार पर अभियुक्त को फोन किया जबकि मां का कहना है कि अभियुक्त ने दो बार ख़ुद फ़ोन करके धमकी दी.
मां बताती हैं, "पिता ने भी जब उसे फ़ोन किया तो उसने उनको भी धमकी दी."
वहीं इस सवाल के जवाब में कि क्या इससे पहले भी कभी किसी ने युवती को परेशान किया था? मां कहती हैं, "उसको कभी किसी ने परेशान नहीं किया था. हमारी कोई दुश्मनी भी नहीं थी."

इमेज स्रोत, Seetu Tiwari/BBC
सभी अभियुक्त फ़रार
इस मामले में सभी नामज़द अभियुक्त फ़रार हैं. एक अभियुक्त जो 11वीं कक्षा का छात्र बताया जा रहा है, उसके पिता राकेश चौधरी को भी नामज़द अभियुक्त बनाया गया है. वैशाली की बिझरौली पंचायत की मुख्य सड़क पर स्थित उनके घर पर ताला लगा है. राकेश चौधरी के घर में दुकानें भी हैं जो किराए पर उठी हुई हैं.
स्थानीय लोग जो राकेश चौधरी के पालतू जानवरों को चारा देने आए थे, उन्होंने नाम ना छापने की शर्त पर कहा, "जब लड़की 20 को ग़ायब हुई तो थाने में सूचना क्यों नहीं दी गई? घर की इन दुकानों में लड़की के अपने चाचा की भी टेलर की दुकान है. उसका यहां आना-जाना लगा रहता था. इसमें एक और अभियुक्त की दुकान है जो किराने की छोटी दुकान चलाते थे."
मामले में एक अन्य अभियुक्त मनोज कुमार चौधरी हैं. वो बिझरौली पंचायत के पूर्व उप-मुखिया हैं. बता दें 20 दिसंबर को जब युवती ग़ायब हुई तो मनोज कुमार चौधरी से पीड़ित परिवार ने संपर्क किया था. मनोज ने इस मामले में युवती को वापस लौटा लाने का आश्वासन दिया था, जिसका ज़िक्र भी एफ़आईआर में है.
मनोज भी अब फ़रार हैं. उनके घर पर उनकी मां धर्मशिला देवी और बहन मौजूद हैं. धर्मशिला देवी कहती हैं, "26 तारीख़ की सुबह थाने में पंचायती करने के लिए एक दूसरे मामले में गए थे. लेकिन उसके बाद से वापस नहीं लौटे. उन्होंने राकेश चौधरी के लड़के से बात की थी. उसने इस बात से इंकार कर दिया कि लड़की उसके पास है."

इमेज स्रोत, Seetu Tiwari/BBC
शव पर चोट के निशान
तिसिऔता थाने के एएसआई गोविन्द चौधरी शव मिलने के समय घटनास्थल पर मौजूद थे, वो बताते हैं, "लाश को देखकर लगता है कि वो तीन दिन पुरानी रही होगी." वहीं ट्रेनी एसआई आकांक्षा तिवारी बताती हैं, "लड़की के गले पर चोट के निशान थे."
20 दिसंबर के दिन युवती ने लाल रंग की लंबी फ्रॉक पहनी थी. भाभी बताती हैं, "उसके सारे कपड़े सही सलामत थे. बस उसने जो शॉल ओढ़ा था वो ग़ायब है. उसके सिर पर चोट लगी थी और शरीर पर जगह- जगह चोट के निशान थे."
इस मामले में सबसे बड़ा सवाल ये उठाया जा रहा है कि युवती जब 20 दिसंबर को ग़ायब हुई तो इसकी सूचना थाने में क्यों नहीं दी गई?
वैशाली के पुलिस अधीक्षक मनीष ने भी बीबीसी से बातचीत में इस पक्ष को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा, "मामले में जांच चल रही है. मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया है जो इस बात की जांच करेगा कि मृतका के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ है या नहीं?"
वहीं मृतका की मां ने बीबीसी से कहा, "इतनी धमकी के बीच कैसे थाने में शिकायत करते. हम तो बस चाहते थे कि हमारी बेटी सही सलामत वापस मिल जाए जिसका आश्वासन अभियुक्त देता रहा."
शाहपुर के जिस टोले में मृतका का घर था वहां तकरीबन 15 घर हैं. इन घरों के ज़्यादातर पुरुष दूसरे राज्यों में कमाने जाते हैं. ये पूरा टोला लंबे पसरे खेतों के नज़दीक है. लेकिन इन खेतों पर इस टोले के लोगों का हक़ नहीं है बल्कि वो खेतिहर मज़दूर हैं.
टोले की ही अन्य महिलाएँ बीबीसी से कहती हैं, "जिन घरों में बच्चियां है, वो लोग डर के रहेंगे. हम लोग छोटी जाति के हैं, ग़रीब हैं. बनिहार (खेतिहर मज़दूर) हैं, डर के रहना पड़ता है. कैसे आवाज़ उठाएंगे."
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)















