त्रिपुरा का 'राजनीतिक दंगल' अब दिल्ली में, ममता करेंगी पीएम मोदी से मुलाकात

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- Author, सलमान रावी
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, नई दिल्ली
पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में चल रहे राजनीतिक संघर्ष की दस्तक अब देश की राजधानी दिल्ली में सुनाई देने लगी है. राज्य में चल रहा 'राजनीतिक दंगल' अब दिल्ली 'शिफ्ट' हो गया है जहाँ अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस यानी 'टीएमसी' के नेता और सांसद पहुँच चुके हैं और त्रिपुरा में हो रही 'राजनीतिक हिंसा' के ख़िलाफ़ अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं.
सोमवार को टीएमसी के लगभग 16 सांसदों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने के लिय समय माँगा था. फ़ौरन समय नहीं मिलने पर सभी सांसदों ने गृह मंत्रालय के बाहर प्रदर्शन भी किया और धरने पर भी बैठे.
वैसे तो त्रिपुरा में राजनीतिक माहौल तुलनात्मक रूप से हमेशा शांत ही रहा है. लेकिन, जानकार कहते हैं कि पिछले विधानसभा के चुनावों के बाद से ही त्रिपुरा राजनीतिक हिंसा की वजह से सुर्खियाँ बटोरता रहा.
पहले वामपंथी दलों और भाजपा के बीच संघर्ष का लंबा दौर चला, फिर सांप्रदायिक हिंसा के आरोप लगे और हाल ही में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच चल रहे संघर्ष के बीच इस पूर्वोत्तर राज्य में क़ानून व्यवस्था पर भी बहस शुरू हो गयी है.
इसी दौरान पत्रकारों और सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने वालों पर दर्ज आपराधिक मामलों को भी लेकर राज्य के सत्तारूढ़ दल की कार्यशैली पर भी विपक्ष सवाल उठा रहा है.
ताज़ा मामला
हिंसा का ताज़ा मामला शनिवार और रविवार को सामने आया जिसमें पत्रकार सहित कई लोग घायल बताये जाते हैं. अगरतला से बीबीसी के सहयोगी पत्रकार पिनाकी दास के अनुसार रविवार को बाग्ला फिल्मों की अभिनेत्री और तृणमूल कांग्रेस की युवा इकाई की अध्यक्ष सायोनी घोष को पूर्वी अगरतला पुलिस ने गिरफ़्तार कर उनपर 'हत्या के प्रयास' का मामला दर्ज किया है.
दरअसल त्रिपुरा में निकाय चुनावों का माहौल है जिसके लिए सभी राजनीतिक दल ज़ोर लगा रहे हैं. इसी वजह से राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के बीच रह रह कर झडपों की खबरें भी रोज़ ही आ रहीं हैं.
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सायोनी घोष पर आरोप है कि जब आश्रम चौमुहानी के इलाके में भाजपा की एक नुक्कड़ सभा हो रही थी तो उस वक़्त वो वहाँ मौजूद थीं और उन्होंने 'खेला होबे' का नारा लगाया था. इस सभा को मुख्यमंत्री बिप्लब देब संबोधित कर रहे थे.
पिनाकी दास के अनुसार रविवार को हुई हिंसा के दौरान अगरतला स्थित टीएमसी पार्टी के कार्यालय और थाने में भी तोड़ फोड़ की सूचना है जिस दौरान पार्टी के संयोजक और पूर्व विधायक सुबल भौमिक को भी चोटें आई हैं.
सोमवार जब तृणमूल कांग्रेस के सांसद गृह मंत्रालय के दफ़्तर के सामने धरना दे रहे थे, उस समय पार्टी के महासचिव अभिषेक बनर्जी अगरतला पहुंचे. हालांकि तय कार्यक्रम के अनुसार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी अगरतला जाना था. लेकिन वो नहीं गईं.
घटना को लेकर त्रिपुरा के क़ानून मंत्री रतनलाल नाथ का कहना था, "जो कुछ हो रहा है वो त्रिपुरा की छवि को खराब करने की बड़ी साज़िश ही है."
पूर्वी अगरतला थाने पर हमला और पत्रकार को आई चोट पर खेद व्यक्त करते हुए उनका कहना था. "हम जाँच करवा रहे हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि भाजपा का झंडा लेकर असामाजिक तत्वों ने ही इस घटना को अंजाम दिया हो."

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ममता करेंगी पीएम मोदी से बात
इस बीच त्रिपुरा की 'बिगड़ती क़ानून व्यवस्था और अदालत की अवमानना' को लेकर तृणमूल कांग्रेस की तरफ़ से दायर याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने त्रिपुरा की सरकार को निर्देश दिए थे कि वो 'ये सुनिश्चित करे' कि विभिन्न राजनीतिक दल निकाय चुनाव के लिए शांतिपूर्ण तरीक़े से प्रचार कर पाएं. ये चुनाव 25 नवंबर को होने वाले हैं.
इस बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी सोमवार शाम दिल्ली पहुँच गई हैं. कोलकाता में उन्होंने पत्रकारों को बताया कि वो मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने वाली हैं जिस दौरान वो त्रिपुरा के मुद्दे को लेकर उनसे बात करेंगी. ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि 'त्रिपुरा में पूरी तरह अराजकता फैल चुकी है. लोग खुले आम लाठी डंडे लेकर घूम रहे हैं.'
उनका कहना था कि उन्होंने अपनी ही पार्टी के सांसदों को गृह मंत्री के घर के सामने प्रदर्शन करने से मन किया था इसलिए तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने 'नार्थ ब्लॉक' स्थित गृह मंत्रालय के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन किया.
लेकिन ममता बनर्जी के दावे के बावजूद, तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने अमित शाह के निवास के बाहर पहुँच कर भी प्रदर्शन किया.
बाद में अमित शाह ने टीएमसी सांसदों को मुलाक़ात के लिए बुलाया. पार्टी सांसद सौगत राय ने कहा कि शाह ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वे उनकी शिकायतों पर ग़ौर करेंगे.
उधर, तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता साकेत गोखले ने राष्ट्रीय मानवाधिकार योग को एक प्रतिवेदन दिया है जिसमे उन्होंने 'त्रिपुरा में हो रही हिंसा को लेकर एक जांच दल का गठन करने' की मांग की है.

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तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनावों में मिली ज़बरदस्त जीत के बाद तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक महत्वाकंशाएं भी परवान चढ़ने लगी हैं.
चुनावों के ठीक बाद ही तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने विपक्ष पर ही सवाल खड़े करने शुरू कर दिए और कहा कि विपक्ष इस लिए एकजुट नहीं हो पा रहा है क्योंकि कोई नेतृत्व देने वाला नेता नहीं है.
पार्टी के समर्थक और बड़े नेता मानते हैं कि 'ऐसा ममता बनर्जी ही कर सकती' हैं. इसलिए जो राजनीतिक दल यानी टीएमसी जिसने सिर्फ़ पश्चिम बंगाल तक खुद को सीमित रखे हुए था, उसने दूसरे राज्यों में भी अपना राजनीतिक भविष्य तलाशना शुरू कर दिया.
इस कड़ी में सबसे पहले गोवा है जहाँ विधानसभा के चुनाव करीब हैं. टीएमसी ने अपने 'मिशन गोवा' की शुरुआत जाने माने टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस और अभिनेत्री नफ़ीसा अली को पार्टी में शामिल कर शुरू की.
गोवा में आम आदमी पार्टी भी मैदान में उतरी हुई है मगर टीएमसी ने यहाँ ज़्यादा ज़ोर लगाया है. बड़े नेताओं के दौरे और ममता बनर्जी की जनसभा के अलावा टीएमसी बिलकुल पशिम बंगाल की तर्ज़ पर इस राज्य में अपना संगठन खड़ा करने की कोशिश में लगी हुई है.
लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि टीएमसी ने अपना सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक दांव त्रिपुरा में लगाया है और निकाय चुनाव के ज़रिये उसने इस पूर्वोत्तर राज्य में अपने मौजूदगी दर्ज कराने की शुरुआत कर दी है.
वो यह भी कहते हैं कि भाजपा की तरह ही टीएमसी ने भी इन निकाय चुनावों में आक्रामक प्रचार करना शुरू कर दिया है जिसके से इन दलों के कार्यकर्ताओं के बीच लगातार संघर्ष हो रहा है.
त्रिपुरा के राजनीतिक गलियारों में ये माना जा रहा है कि अगरतला और त्रिपुरा के अन्य हिस्सों में होने वाले निकाय के चुनावों से अंदाज़ा लग जाएगा कि 2023 में होने वाले विधानसभा के चुनावों में क्या कुछ होगा. इस वजह से ये पूर्वोत्तर राज्य, राजनीतिक रूप से इतना संवेदनशील बन गया है.
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