उत्तर प्रदेश के नेताओं को याद आ रहे हैं पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना

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पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना बीते कुछ दिन से लगातार उत्तर प्रदेश की राजनीति में चर्चा के केंद्र में हैं.
जिन्ना को लेकर ताज़ा बयान सुलेहदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओम प्रकाश राजभर ने दिया है.
राजभर ने दावा किया है कि अगर मोहम्मद अली जिन्ना भारत के प्रधानमंत्री बने होते तो देश का विभाजन नहीं होता.
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राजभर ने बुधवार को कहा, "अगर जिन्ना को भारत का पहला प्रधानमंत्री बनाया गया होता तो देश का विभाजन नहीं होता."

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भारतीय जनता पार्टी और दूसरे दलों ने आरोप लगाया है कि चुनाव को देखते हुए जिन्ना का ज़िक्र 'तुष्टिकरण' के लिए किया जा रहा है.
कुछ दिन पहले समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भी जिन्ना का ज़िक्र किया था जिसे लेकर प्रदेश की राजनीति में ज़बरदस्त बहस हुई थी.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत कई नेताओं ने अखिलेश यादव के बयान पर सवाल उठाए थे.
अब केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के सीनियर नेता अनुराग ठाकुर ने ओमप्रकाश राजभर के बुधवार के बयान पर सवाल उठाए हैं.
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समाचार एजेंसी एएनआई ने अनुराग ठाकुर के हवाले से कहा है, "चुनाव आते हैं तो तुष्टिकरण की राजनीति शुरू हो जाती है. कुछ लोग जिन्ना का नाम रटने लगते हैं."
उन्होंने इसे लेकर समाजवादी पार्टी पर निशाना साधा. ओमप्रकाश राजभर की पार्टी का हाल में ही समाजवादी पार्टी से गठजोड़ हुआ है.
दोनों पार्टियां उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में साथ उतरेंगी. राजभर पहले भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी थे.
अखिलेश यादव का बयान
अभी से कुछ दिन पहले जिन्ना को लेकर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के एक बयान पर बहस छिड़ गई थी.
अखिलेश यादव ने मोहम्मद अली जिन्ना को लेकर ये बयान हरदोई के एक कार्यक्रम में दिया था.
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अखिलेश यादव ने कहा, "सरदार पटेल जी, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, (मोहम्मद अली) जिन्ना एक ही संस्था में पढ़कर के बैरिस्टर बनकर आए थे. एक ही जगह पर पढ़ाई लिखाई की उन्होंने. वो बैरिस्टर बने. उन्होंने आज़ादी दिलाई. संघर्ष करना पड़ा हो तो वो पीछे नहीं हटे."

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क्या बोले योगी आदित्यनाथ
भारतीय जनता पार्टी समेत कई दलों ने अखिलेश यादव के इस बयान पर सवाल उठाए. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश यादव के बयान पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्हें देश से माफी मांगनी चाहिए.
योगी आदित्यनाथ ने कहा, "उनकी विभाजनकारी मानसिकता एक बार फिर से सामने आ गई जब उन्होंने सरदार पटेल को जिन्ना के समकक्ष रखकर के जिन्ना को महिमामंडित करने का प्रयास किया है. वो जिन्ना से इस राष्ट्र को जोड़ने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल की तुलना कर रहे थे. ये वक्तव्य अत्यन्त शर्मनाक है."
बीजेपी के कई दूसरे नेताओं ने इसे 'मुसलमानों की तुष्टिकरण' की कोशिश बताया. बीजेपी नेता अमित मालवीय ने अखिलेश यादव के भाषण का एक हिस्सा ट्वीट किया और आरोप लगाया कि वो वोट हासिल करने के लिए ऐसे बयान दे रहे हैं.
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ओवैसी ने क्या कहा
उत्तर प्रदेश के आने वाले चुनाव में दम दिखाने को तैयार एआईएमआईएम के नेता असदउद्दीन ओवैसी ने भी अखिलेश यादव के बयान पर सवाल उठाए और उन्हें इतिहास पढ़ने की सलाह दी.
ओवैसी ने कहा, "जिन्ना से हमारा कोई ताल्लुक़ ही नहीं है. अखिलेश यादव को ये समझना चाहिए कि अगर वो इस तरह की बात करके समझ रहे हैं कि कोई तबका या कोई हिस्सा या कोई वोटर इससे खुश होगा तो वो ग़लती कर रहे हैं."
हालांकि, विवाद छिड़ने के बाद भी अखिलेश यादव अपने बयान पर कायम रहे. समाजवादी पार्टी के नारद राय जैसे नेताओं ने बीजेपी नेताओं को सलाह दी कि वो जिन्ना को लेकर लालकृष्ण आडवाणी से सवाल पूछें. आडवाणी ने बीते दशक में जब पाकिस्तान का दौरा किया था तो जिन्ना को लेकर उनके एक बयान पर खूब विवाद हुआ था.

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पहले भी हुआ विवाद
उत्तर प्रदेश में जिन्ना का नाम हालिया बरसों में लगातार राजनीतिक बहस का मुद्दा बनता रहा है. साल 2018 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के सांसद सतीश गौतम ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में जिन्ना की तस्वीर लगे होने को लेकर सवाल उठाए थे.
गौतम ने सवाल किया था, ''किस वजह से देश का बंटवारा करने वाले की तस्वीर एएमयू में लगी हुई है. तस्वीर लगाने की मजबूरी क्या है?''
इसे लेकर कुछ वक़्त तक देश भर में बहस छिड़ गई थी.
तथ्य ये भी है कि जिन्ना ने लगभग अपनी पूरी संपत्ति एएमयू और दो अन्य विश्वविद्यालयों- पेशावर स्थित इस्लामिया कॉलेज और कराची के सिंध मदरेसातुल के लिए छोड़ दी थी.

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आज़ादी की लड़ाई और जिन्ना
उस वक़्त बीबीसी हिंदी ने लालकृष्ण आडवाणी के सहयोगी रहे सुधींद्र कुलकर्णी से चर्चा की थी. उन्होंने जिन्ना पर काफी काम किया था.
कुलकर्णी ने बीबीसी के साथ फ़ेसबुक लाइव में कहा, " (एएमयू में जिन्ना की) तस्वीर 1938 में लगाई गई थी. ये सही है कि आज़ादी की लड़ाई में जिन्ना एक भी दिन जेल नहीं गए, लेकिन ऐसे तो बीआर आंबेडकर भी एक भी दिन जेल नहीं गए, लेकिन क्या उनका योगदान कम है.
1908 में जब लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक पर देशद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें बर्मा में छह साल की काला पानी की सज़ा हुई तो तिलक का मुकदमा मोहम्मद अली जिन्ना ने ही लड़ा था. 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच एक समझौता हुआ जिसमें ये तय हुआ कि हिंदुओं और मुसलमानों को भारत की आज़ादी के लिए साथ-साथ लड़ना चाहिए."
जिन्ना 25 दिसंबर 1876 को कराची में जन्मे थे. उन्होंने अविभाजित भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था मगर एक समय के बाद उन्होंने अलग देश की हिमायत की. उन्हें पाकिस्तान में क़ायद-ए-आज़म यानी महान नेता कहा जाता है.
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