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गोवा: क्यों है बीजेपी के गढ़ पर ममता बनर्जी की नज़र, क्या तृणमूल कुछ कमाल कर पाएगी?
- Author, मयूरेश कोन्नूर
- पदनाम, बीबीसी मराठी
महाराष्ट्र में इन दिनों राजनीतिक मुद्दों से अलग आर्यन ख़ान, समीर वानखेड़े और नवाब मलिक की वजह से ज़्यादा हलचल देखने को मिल रही है. इसके उलट महाराष्ट्र के पड़ोसी राज्य गोवा में कुछ ज़्यादा ही राजनीतिक हलचल देखने को मिल रही है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी बीते गुरुवार को ढाई दिन के दौरे पर गोवा पहुंची. उनके इस दौरे ने बीजेपी शासित इस राज्य की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है. माना जा रहा है कि इसका असर निकट भविष्य की राजनीति को भी प्रभावित करेगा.
धीरे धीरे पूरे देश का ध्यान चुनावों की हलचल पर केंद्रित हो जाएगा, क्योंकि आने वाले महीनों में देश के सबसे अहम राज्य उत्तर प्रदेश सहित कई और राज्यों में चुनाव होने वाले हैं.
गोवा में भी अगले साल चुनाव होने वाले हैं. इसे देखते हुए राज्य से बाहर की वो पार्टियां, जो राष्ट्रीय पार्टी होने का दावा करती हैं, वो भी यहां की राजनीति में कूद पड़ी हैं.
इनमें सबसे ज़्यादा चर्चा ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की हो रही है. वास्तव में, तृणमूल कांग्रेस का प्रभाव केवल बंगाल और सुदूर पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ हिस्सों में ही है. इस पार्टी का गोवा से कभी कोई संबंध नहीं रहा.
आख़िर गोवा ही क्यों?
हालांकि कुछ उम्मीदवारों ने 2012 में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन अभी तृणमूल कांग्रेस उस दौर की बातों को याद नहीं कर रही.
पार्टी के मुताबिक़, 2022 में वो राज्य में पहली बार चुनाव मैदान में उतरेगी. लेकिन सवाल ये है कि पड़ोस के ओडिशा और झारखंड के बाद छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र को छोड़कर ये पार्टी सीधे पूर्वी तट से पश्चिमी तट पर स्थित गोवा ही क्यों आ रही है?
ममता बनर्जी ने हाल ही में पश्चिम बंगाल चुनाव में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बीजेपी को हराकर लगातार तीसरी बार राज्य की मुख्यमंत्री बनीं. माना जा रहा है कि अब 2024 से पहले वो अपनी राष्ट्रीय राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर ध्यान दे रही हैं. तो सवाल ये है कि क्या वो बंगाल छोड़ने की तैयारी कर रही हैं? और क्या इसके लिए वो गोवा से शुरुआत कर रही हैं?
गोवा अपेक्षाकृत छोटा राज्य है. कलकत्ता जैसे महानगर जितना भी महत्व गोवा का नहीं है. ऐसे में क्या गोवा ममता बनर्जी के लिए आसान चुनौती साबित होगा?
गोवा हमेशा से बीजेपी का गढ़ रहा है. ऐसे में अगर उन्हें वहां चुनौती दी जाती है, तो क्या इसका असर पूरे देश में हो सकता है?
वैसे तो कांग्रेस ने गोवा में लंबे समय तक शासन किया है, लेकिन पार्टी अब राज्य में बहुत मजबूत नहीं है. इसके अलावा छोटे-छोटे क्षेत्रों तक सिमटे स्थानीय दल भी हैं, जो बिखरे हुए हैं.
ऐसे में क्या ममता गोवा इसलिए आई हैं, क्योंकि वहां राजनीति की जगह खाली है?
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर बंगाल की तरह ही गोवा में भी ममता के लिए योजना बना रहे हैं. वो पिछले कुछ महीनों से यहां हैं. वो यहां राष्ट्रीय और स्थानीय दलों के नेताओं से बात कर रहे हैं, ताकि नाराज़ नेताओं को तृणमूल से जोड़ा जा सके. उनसे तरह-तरह के वादे भी किए जा रहे हैं.
सवाल यह है कि बंगाल में तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने अपनी शुरुआत करके सत्ता तक सफ़र पूरा किया है, लेकिन गोवा जैसे नए राज्य में क्या प्रशांत किशोर उन्हें पहले चुनाव में जीत दिला सकते हैं?
ये गोवा है या कोलकाता?
ममता बनर्जी के गोवा दौरे के दौरान शहर के कई इलाकों में घूमने के दौरान हर जगह ममता बनर्जी के बड़े-बड़े बैनर दिखाई दिए. एकबारगी तो यह अहसास भी हुआ कि ये पणजी है या फिर कोलकाता. हर गली और हर चौराए पर ममता बनर्जी के पोस्टर बैनर दिखाई दिए.
एक तरह से ममता बनर्जी के दौरे से पहले पार्टी ने पोस्टरों के ज़रिए ये संदेश देने की कोशिश कि चुनाव से पहले ही राज्य में पार्टी का दबदबा बन गया है.
ममता बनर्जी की होर्डिंग्स के चलते बीजेपी और तृणमूल का संघर्ष की शुरुआत भी हो गई. इन पोस्टरों के जवाब में बीजेपी ने राज्य में अपने मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के पोस्टर और होर्डिंग लगा दिए.
गोवा सरकार के कामों की जानकारी देते हुए मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत की तस्वीरों वाले पोस्टर ममता को टक्कर दे रहे हैं.
इन दोनों पार्टियों की होड़ को 'आम आदमी पार्टी' ने त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की है. 'आप' ने कई जगहों पर अरविंद केजरीवाल के होर्डिंग्स लगाए. लेकिन कम से कम पोस्टरों में तृणमूल कांग्रेस इन दोनों पार्टियों से कहीं आगे दिखाई दी.
इन पोस्टरों को लेकर विवाद भी चल रहा है. बीजेपी नेता भले ही कह रहे हों कि ममता यहां कुछ ख़ास असर नहीं डाल पाएंगी, लेकिन उनमें बेचैनी दिख रही है. पिछले दो दिनों में पूरे राज्य में ममता बनर्जी के पोस्टर को गिराए जाने और उसे काले रंग से पोतने की ख़बरें भी सामने आ रही हैं.
तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा और उसके समर्थकों ने डर से ऐसा किया है. अमित शाह के हाल के दौरे के बाद से ही तृणमूल ने ये होर्डिंग लगाने शुरू कर दिए थे.
क्या गोवा में तृणमूल का कोई आधार है?
ममता बनर्जी के दौरे का मुख्य लक्ष्य एक तरह से गोवा में अपना राजनीतिक आधार तलाशना था. इस दिशा में कुछ स्थानीय दलों के साथ गठबंधन बनाने या उनके तृणमूल में विलय कराने की कोशिश भी थी.
ममता बनर्जी की मौजूदगी में तीन विधायकों वाली विजय सरदेसाई की गोवा फॉरवर्ड पार्टी के तृणमूल में शामिल होने की अफ़वाह थी. तृणमूल ने इसके लिए प्रयास भी किया. लेकिन यह नहीं हो सकता और सरदेसाई ने मीडिया से बात करते हुए विलय से इनकार कर दिया.
सरदेसाई ने कहा, "ऐसा कोई विलय नहीं होगा. लेकिन हम उन पार्टियों के साथ गठबंधन करने के लिए तैयार हैं, जो भाजपा से लड़ने के लिए गंभीर हैं."
दरअसल गोवा की स्थानीय पार्टियां चुनाव से पहले अपने सभी विकल्पों को खुला रखने की कोशिश कर रही हैं. ये भी अफ़वाह है कि विजय सरदेसाई अब कांग्रेस के साथ बातचीत कर रहे हैं. राहुल गांधी के 30 अक्टूबर को गोवा पहुंचने से भी इस अफ़वाह को बल मिला.
यहां ये भी देखना होगा कि गोवा की राजनीति में नेतृत्व भले राष्ट्रीय दलों के पास है, लेकिन यहां की राजनीति में किंग मेकर स्थानीय पार्टियां ही हैं.
2017 के चुनाव के बाद, राज्य में बीजेपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी. बीजेपी ने सरदेसाई की पार्टी महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी और कांग्रेस से अलग हुए समूह को साथ मिलाकर सत्ता हासिल करने में कामयाब रही.
यही वजह है कि तृणमूल कांग्रेस अपने विस्तार के लिए छोटी-छोटी पार्टियों को साथ लेने की कोशिश कर रही है. तृणमूल कांग्रेस ने महाराष्ट्र गोमांतक पार्टी से भी बातचीत की है.
प्रशांत किशोर फिर अहम भूमिका में
गोवा में तृणमूल की सारी रणनीति प्रशांत किशोर बना रहे हैं. वे अपनी आई-पैक टीम के साथ पिछले कुछ महीनों से यहां तैनात है. माना जा रहा है कि पिछले दिनों में उनकी टीम ने सभी दलों के कई वरिष्ठ नेताओं से संपर्क किया है.
गोवा फॉरवर्ड पार्टी और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के अब तक साथ नहीं आने को देखते हुए प्रशांत किशोर ने कांग्रेस नेता और गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुइज़िन्हो फ्लेरो को साथ ले लिया है. लेकिन सवाल ये है कि फ्लेरो की बढ़ती उम्र और सीमित प्रभाव को देखते हुए तृणमूल को गोवा में पैर जमाने में कितनी मदद मिलेगी.
तृणमूल स्थानीय नेताओं का समर्थन पाने के अलावा स्थानीय मुद्दों पर भी समर्थन तलाश रही है. पिछले कुछ दिनों से महुआ मोइत्रा, डेरेक ओ ब्रायन, सुगाता रॉय और बाबुल सुप्रियो जैसे नेता गोवा में डेरा डाले हुए थे.
रोज़ाना बैठकें और प्रेस कांफ़्रेंस करके ये लोग बीजेपी के ख़िलाफ़ मजबूत आवाज़ के तौर पर उभरने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा करके स्थानीय स्तर पर प्रभावी लोगों को पार्टी से जोड़ने की कोशिश भी की जा रही है.
तृणमूल कांग्रेस ने राज्य के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बीजेपी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के बाद मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के इस्तीफ़े की मांग की है. इसके लिए उन्होंने राज्यपाल से मुलाकात भी की.
लेकिन क्या इन मुद्दों और नेताओं को कम समय में लोगों का समर्थन मिलेगा? क्या कुछ ही दिनों की तैयारी से चुनावी सफलता मिल जाएगी?
तृणमूल के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन इस मुद्दे को गौण मानते हैं. बीबीसी मराठी को दिए एक इंटरव्यू में वो कहते हैं, "अभी क्रिकेट वर्ल्ड कप चल रहा है. क्या आप मुझे बता सकते हैं कि अपने करियर का पहला मैच खेलने वाला बल्लेबाज़ शतक नहीं बना सकता? यहां भी ऐसा ही होगा और गोवा के लोग भी ऐसा ही करेंगे. हमें सहयोग दीजिए."
गोवा में चुनाव मैदान में उतरना कहीं प्रधानमंत्री पद के लिए ममता बनर्जी की आंकाक्षाओं का प्रतीक तो नहीं, इसके जवाब में उन्होंने कहा, "ये पार्टियों को तय करना होगा कि पीएम का उम्मीदवार कौन और कैसे होगा. वे लोग यहां भी यही करेंगे. हम यहां एक दो महीने के लिए नहीं आए हैं. तृणमूल एक दिन गोवा की सत्ता में होगी."
गोवा क्या 2024 की तैयारी है?
हालांकि तृणमूल का लक्ष्य मौजूदा चुनाव के जरिए 2024 की रणनीति को ही सार्थक बनाना है. डेरेक ओ ब्रायन का कहना है कि पार्टी लोकसभा चुनाव में गोवा की दोनों लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी. तृणमूल इससे पहले विधानसभा चुनाव को भी 2024 की तैयारी के तौर पर देख रही है.
गोवा के वरिष्ठ पत्रकार राजू नायक ने बताया, "ममता प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं. वो खुद को पीएम मोदी को चुनौती देने वाली एक सक्षम नेता के रूप में पेश करना चाहती हैं. उसके लिए उन्होंने गोवा को चुना है. ये सोचा होगा कि गोवा छोटा राज्य है और इसे आसानी से मैनेज किया जा सकता है. लेकिन ये इतना आसान मामला नहीं है."
उन्होंने कहा, "आज यहां तृणमूल पर नजर डालें तो उन्होंने कुछ बुजुर्ग नेताओं को साथ में जोड़ा है. लेकिन असली तृणमूल प्रशांत किशोर और उनकी 200 सदस्यीय टीम है, जो गोवा में काम कर रही है. उन्हें लगता है कि अगर पास में मजबूत नेता होंगे, तो मतदाताओं का झुकाव होगा, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा."
40 विधायकों वाले इस राज्य में कुछ लोगों का मानना है कि मनोहर पर्रिकर के जाने के बाद वो जगह खाली है, जो एक साथ राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर गोवा को नेतृत्व दे सके.
2017 के चुनाव में 'आप' ने यहां जगह बनाने की कोशिश की, लेकिन अरविंद केजरीवाल की पार्टी को यहां दिल्ली जैसी सफलता नहीं मिल सकी.
2022 के चुनाव से पहले ममता बनर्जी भी इसी लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश कर रही हैं. अब वो इसमें कितना कामयाब हो पाएंगी, ये तो चुनावी नतीजों से ही मालूम होगा.
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