कश्मीर में भारी बर्फ़बारी और बारिश से उजड़े सेब के बाग़, फ़सल हुई तबाह

    • Author, माजिद जहांगीर
    • पदनाम, बीबीसी हिंदी के लिए, श्रीनगर से

रविवार की सुबह शाबिर अहमद डार अपने इलाके के दूसरे सेब के बाग़ के मालिकों की तरह ही बर्फ़बारी से हुए नुक़सान को देखने गए तो उनके सेब बाग़ में हर तरफ़ मायूसी और तबाही का मंज़र था. बाग़ के अंदर कहीं पेड़ उखड़े थे तो कहीं टहनियां टूटी बिखरी थीं.

बीते एक महीने से डार अपने सेब के बाग़ानों से फल उतार रहे थे और अभी एक हज़ार पेटियों के लायक सेब उतारे जाने बाक़ी थे. एक हज़ार पेटियों के नुक़सान की रक़म क़रीब-क़रीब 11 लाख बनती है.

डार और उनके परिवार को अपने इन बाग़ों से चार से पांच हज़ार पेटियों की पैदावार होती है.

डार कहते हैं, "मैंने अपने बाग़ को देखा तो ज़बरदस्त झटका लगा. अब दोबारा बाग़ में जाने का दिल नहीं कर रहा है. सबसे अधिक दुःख तो इस बात का है कि दरख़्त टूट गए हैं. अब उनको फिर से तैयार करने में वर्षों लगेंगे. पूरे साल हम किसान अपने बाग़ों को बच्चों की तरह पालते हैं. यह सब कुछ जो आज हुआ, बहुत बड़ा नुक़सान है. अब वर्षों इस की भरपाई नहीं हो सकती है."

'2019 से भी बड़ा नुक़सान'

डार कहते हैं कि इस बार उनके बाग़ों में 40 प्रतिशत से अधिक नुक़सान हुआ है. उनका कहना था कि 2019 में भी नवंबर के पहले हफ़्ते में बर्फ़ गिरी थी और तब उनका नुक़सान सिर्फ़ तीस प्रतिशत हुआ था.

कुलगाम ज़िले के नाग़म इलाके के रहने वाले अली मोहम्मद लोन के बाग़ की भी बर्फ़बारी ने शक़्ल ही बिगाड़ के रख दी है. उनके हर दरख़्त की टहनी टूटी है और कुछ पेड़ जड़ से ही उखड़ गए हैं.

लोन के परिवार का गुज़ारा सेब के बाग़ पर ही निर्भर है.

लोन बोले, "हमने बीते तीन दिनों से सेब उतारना शुरू किया था. अभी तीन सौ पेटियों के लायक सेब उतारने बाक़ी थे. घर का सारा ख़र्चा सेब के पैसे से ही चलता है. सेब के इस बगीचे के अलावा मेरा कोई गुज़ारा नहीं है. जो फल अभी उतारना बाक़ी था, उसका नुक़सान क़रीब ढ़ाई से तीन लाख का है. बड़ा नुक़सान तो यह हुआ कि पेड़ टूट गए हैं."

वे कहते हैं, "एक पेड़ को बनाने में कड़ी मेहनत लगती है. सेब के पैसे का हिसाब पहले से ही हमने रखा होता है. किसी से क़र्ज़ लिया होता है, वो क़र्ज़ भी चुकाना होता है. हमने सोचा भी नहीं था कि इतनी बर्फ़बारी इस मौसम में होगी. मौसम विभाग ने तो चेतावनी दी थी, लेकिन फिर भी हमने सोचा नहीं था कि इतनी तबाही होगी."

मिट्टी खिसकने से तीन की मौत

बीते शुक्रवार की रात से ही पूरी कश्मीर घाटी में ज़ोरदार बारिश शुरू हो गई. ऊपरी इलाकों में रात के समय हल्की बर्फ़बारी हुई थी. शनिवार को सुबह से दोपहर तक कश्मीर के ऊपरी इलाकों में जमकर बर्फ़बारी हुई जिसने सेब की फ़सल को नुक़सान पहुंचाया.

बर्फ़बारी को देख प्रशासन ने जम्मू-कश्मीर में कई सड़कों को ट्रैफ़िक के लिए बंद कर दिया था.

बर्फ़बारी और बारिश के कारण त्राल के नूरपोरा इलाके में मिट्टी खिसक गई जिसकी चपेट में बंजारों का एक तंबू आ गया. इस घटना में दो महिलाओं समेत तीन लोगों की मौत हो गई.

ज़िला कुलगाम में पुलिस कई बकरवाल परिवारों के बचाव के लिए अभियान चलाकर उन्हें सुरक्षित जगहों पर ले आई. ये लोग ऊँची पहाड़ियों पर बर्फ़ में फंसे थे.

मौसम विभाग ने दी थी चेतावनी

मौसम विभाग ने इस ताज़ा बर्फ़बारी और बारिश की चेतावनी कुछ दिन पहले जारी की थी. श्रीनगर में मुसम विभाग के डॉप्टी डायरेक्टर मुख़्तार अहमद ने बीबीसी को बताया कि उन्होंने पहले ही इस बात की आशंका जताई थी और एडवाइज़री भी जारी की थी.

मौसम विभाग ने पहली एडवाइज़री 18 अक्तूबर 2021 और दूसरी 20 अक्तूबर 2021 को जारी की थी, उस एडवाइज़री में भारी और मध्यम दर्जे की बर्फ़बारी और बारिश की बात कही गई थी.

मुख़्तार अहमद कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि अक्टूबर के महीने में कश्मीर में कभी बर्फ़बारी नहीं हुई है. ऐसा पहले भी हुआ है. आप पिछला रिकॉर्ड देख सकते हैं. इस बार भी बारिश जब ज़्यादा हुई और लगातार बनी रही तो तापमान गिर गया. जब तापमान जब गिर जाता है तो जो बारिश होती है वह बर्फ़ में तब्दील होने लगती हैं. बीते कुछ वर्षों में ऐसा नहीं हुआ है, इसका मतलब ये नहीं है कि हम उससे पहले के रिकॉर्ड को भूल जाएं. अगर आप पिछला डेटा देखें तो इस बात के सबूत मिलेंगे कि अक्तूबर में भी बर्फ़बारी हुई है."

शाबिर अहमद डार के मुताबिक उनके इलाके दमहाल हंजीपोरा में छह इंच बर्फ़ गिरी है. कुलगाम के दानव कांदीमर्ग में आठ इंच के क़रीब बर्फ़ रिकॉर्ड की गई. शोपियां ज़िले में भी सेब के बाग़ों को काफ़ी नुक़सान हुआ है. शोपियां सेब की पैदावार में बहुत आगे है.

कश्मीर में सेब उत्पादन

कश्मीर में बर्फ़बारी का मौसम नवंबर में आम तौर से शुरू हो जाता है. दिसंबर, जनवरी और फ़रवरी के महीने में कश्मीर में सबसे अधिक बर्फ़बारी होती है. हालांकि, सर्दी नवंबर से ही शुरू हो जाती है.

कश्मीर में क़रीब 70 प्रतिशत आबादी हॉर्टिकल्चर के हाथ जुड़ी है. उत्तर और दक्षिण कश्मीर में सेब की ज़्यादा फ़सल तैयार होती है.

जम्मू-कश्मीर की जीडीपी में 15 प्रतिशत योगदान सेब उद्योग का होता है.

द कश्मीर वैली फ़्रूट ग्रोअर्स कम डीलर्स एसोसिएशन के चेयरमैन बशीर अहमद बशीर के मुताबिक़ अगर कश्मीर में सेब की अच्छी पैदावार हो तो क़रीब 20 से 22 लाख मीट्रिक टन तक हो सकती है. उनका कहना था कि इस बार उत्तर कश्मीर में पैदावार कम थी जिसकी वजह से 17 से 18 मीट्रिक टन की पैदावार हो सकती है.

बशीर अहमद के मुताबिक़ दक्षिणी कश्मीर में ताज़ा बर्फ़बारी से जो नुक़सान हुआ है वह क़रीब 30 से 40 प्रतिशत है.

वह कहते हैं, "दक्षिण कश्मीर में अभी क़रीब 40 से 50 प्रतिशत फ़सल उतारी नहीं गई था. इसी तरह उत्तर कश्मीर में भी 30 प्रतिशत फ़सल नहीं उतारी गई थी. जो फ़सलें नहीं उतारी गई थीं उनमें डिलीशियस सेब भी शामिल हैं. अमूमन डिलीशियस सेबों की क़ीमत सबसे अधिक होती है."

हालाँकि हॉर्टिकल्चर कश्मीर के महानिदेशक एजाज़ अहमद बट ने बताया है कि बर्फ़बारी वाले इलाकों में 10 प्रतिशत नुक़सान हुआ है.

बीते कुछ वर्षों से कश्मीर के सेब उद्योग को लगातार कई कारणों से नुक़सान उठाना पड़ रहा है. 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद कश्मीर एक लंबे समय तक बंद रहा. बीते दो वर्षों से कोविड के कारण और सेब के बगीचों में बीमारी लग जाने से सेब उद्योग को नुक़सान उठाना पड़ा है.

2019 में भी नवंबर के पहले महीने में कश्मीर में बर्फ़ गिरी थी और उस समय भी सेब उद्योग को काफ़ी नुक़सान हुआ था.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)