मोदी सरकार क्या बांग्लादेश की नाराज़गी को लेकर इतना सतर्क है?

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बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के दौरान हिन्दुओं के घरों और उनके पूजा स्थलों पर हुए हमले के बाद दोनों मुल्कों के द्विपक्षीय संबंधों पर भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने पहली बार बोला है.

श्रृंगला ने दोनों देशों के संबंधों की तारीफ़ करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय संबंध के लिए 'रोल मॉडल' है.

1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग कराने में भारतीय एयरफ़ोर्स की भूमिका पर शानिवार को भाषण देते हुए श्रृंगला ने कहा कि भारतीयों ने पाकिस्तानी सेना की भयावह हिंसा के ख़िलाफ़ बांग्लादेश की लड़ाई में अपना बलिदान दिया था.

श्रृंगला ने स्वर्णिम विजय वर्ष कॉन्क्लेव: 2021 में बोलते हुए कहा, ''किसी भी रणनीतिक साझेदारी की तुलना में भारत और बांग्लादेश के संबंध गहरे हैं. दोनों पड़ोसी देशों के संबंध रोल मॉडल की तरह हैं. बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध के दौरान जो दोस्ती, समझ और पारस्परिक आदर की भावना थी वो आज भी बनी हुई है.''

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भारत की सतर्कता

श्रृंगला ने हाल ही में बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर हुए हमलों का ज़िक्र तक नहीं किया. श्रृंगला के बयान से साफ़ है कि बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हुए हमलों को लेकर प्रतिक्रिया देने में भारत बहुत सावधानी बरत रहा है.

बांग्लादेश के कुमिल्ला, चिटगाँव, नोवाखली और रंगपुर में हिन्दुओं को जब निशाना बनाया गया तो भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि ढाका ने हिंसा के ख़िलाफ़ तत्काल क़दम उठाया

है. हालाँकि हिन्दुओं पर हुए हमले के मामले में बांग्लादेश के भीतर शेख़ हसीना सरकार की आलोचना हो रही है कि उसने लापरवाही बरती थी.

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हिन्दुओं पर हमले के बाद बांग्लादेश में भारत के उच्चायुक्त विक्रम दोरईस्वामी ने वहाँ के हिन्दू समुदाय के नेताओं से मुलाक़ात की थी लेकिन बैठक को गोपनीय ही रखा गया था.

श्रृंगला ने शनिवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बांग्लादेश के साथ संबंधों में और विस्तार हुआ है. उन्होंने कहा कि भारत बांग्लादेश की प्रगति में मदद के लिए प्रतिबद्ध है.

श्रृंगला ने कहा, ''बांग्लादेश भारत का सबसे बड़ा आर्थिक साझेदार है और भारत का दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. दोनों देशों की यह साझेदारी आर्थिक संपन्नता और सप्लाई चेन के मामले में बेहद अहम है.''

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आलोचना से परहेज

श्रृंगला के बयान से साफ़ है कि मोदी सरकार हिन्दू अल्पसंख्यकों पर हमले के मामले में बांग्लादेश की आलोचना नहीं करना चाहता है. दूसरी तरफ़ हिन्दू अल्पसंख्यकों का ऐसा मुद्दा है, जिनके लिए भारत ने नागरिक संशोधन एक्ट बनाया है. भारत के बयान से साफ़ है कि तनाव की स्थिति में भी बांग्लादेश से संबंधों को पटरी उतरने नहीं देना चाहता है.

बांग्लादेश में चीन के कई हाई-प्रोफ़ाइल प्रोजेक्ट हैं. इसी हफ़्ते गुरुवार को प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने बंगबंधु बांग्लादेश चाइना फ्रेंडशिप एग्ज़िबिशन सेंटर का उद्घाटन किया है. यह सेंटर ढाका के बाहरी इलाक़े में 26 एकड़ में बना है. यह चीन और बांग्लादेश के बीच गहरे रिश्तों का बानगी भर है.

बांग्लादेश में 2018 में दक्षिणी और उत्तरी बांग्लादेश को जोड़ने वाला पुल बनकर तैयार हुआ. छह किलोमीटर लंबा यह पुल दोनों इलाक़ों को सड़क और रेल के ज़रिए जोड़ता है. बांग्लादेश बनने के बाद से यह इंजीनियरिंग की सबसे चुनौतीपूर्ण परियोजना थी जो बनकर तैयार हुआ.

यह सेतु पदमा नदी के एक छोर से दूसरे छोर तक है. इस पुल के निर्माण में चीन ने 3.7 अरब डॉलर की रक़म लगाई है.

बांग्लादेश

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चीन का प्रभाव

चीन ने इसमें न केवल पैसा दिया है बल्कि इंजीनियरिंग में भी मदद की थी. चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने भी बांग्लादेश में इस पुल को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी और कहा था कि दोनों देशों के बीच बढ़ती दोस्ती का यह नया प्रतिमान है.

चीन बांग्लादेश में 30 अरब डॉलर की परियोजना पर काम कर रहा है और गंगा नदी पर छह किलोमीटर लंबा यह पुल इसी परियोजना का हिस्सा है. कई राजनयिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बांग्लादेश में चीन की बढ़ती मौजूदगी का भी मज़बूत प्रमाण है और यह भारत के लिए चिंताजनक है.

बांग्लादेश को भारत का स्वाभाविक पार्टनर माना जाता था, लेकिन अब यह धारणा टूटती दिख रही है. ज़ाहिर है बांग्लादेश के निर्माण में भारत की बड़ी भूमिका रही है, लेकिन चीन पाकिस्तान के क़रीब तो है ही बांग्लादेश के भी क़रीब आ गया है.

भारत को उस वक़्त और तगड़ा झटका लगा था जब बांग्लादेश ने ढाका स्टॉक एक्सचेंज के 25 फ़ीसदी हिस्से को शंघाई और शेनज़ेन स्टॉक एक्सचेंज को 11 करोड़ 90 लाख डॉलर में बेच दिया जबकि भारत के नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) को नहीं दिया था.

एनएसई के अधिकारी ढाका भी गए थे ताकि चीन को रोक सकें, लेकिन इसमें नाकामी ही हाथ लगी थी. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने ये भी तर्क दिया था कि चीन इस इलाक़े में राजनीति ताक़त का इस्तेमाल कर रहा है.

शेख़ हसीना

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भारत की नरमी

मगर इन सबके बीच भारत का रवैया थोड़ा हैरान करने वाला है. पड़ोसी देश में हिंदू समुदाय के पूजास्थलों और घरों पर कई हमले होने के बावजूद भारत ने इस पर बिल्कुल नपी-तुली प्रतिक्रिया दी है.

अतीत में जब भी ऐसी घटनाएं हुई हैं, भारत ने पीड़ित हिंदुओं और अल्पसंख्यकों के साथ उनके साथ एकजुटता ज़ाहिर करने के लिए दूतावास के प्रतिनिधिनियों को भेजा है. लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं किया गया.

इसके उलट भारत ने कहा है कि उन्हें हालात को काबू में करने के लिए बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के उठाए क़दमों पर भरोसा है. भारतीय विश्लेषकों का मानना है कि भारत को शायद लगता है कि ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को और ज़्यादा शर्मिंदा करना उचित नहीं होगा इसलिए वो एहतियात के साथ प्रतिक्रिया दे रहा है.

भारत का मौजूदा रवैए की तुलना अगर अतीत की ऐसी ही घटनाओं से करें तो यह काफ़ी अलग नज़र आता है. पहले जब नासिनगर, सिलहट या मुरादनगर में ऐसी घटनाएं हुई थीं, तब भारत ने इन पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी.

इतना ही नहीं, बांग्लादेश में भारतीय दूतावास के प्रतिनिधियों ने हिंसा प्रभावित जगहों का दौरा किया था और बांग्लादेश के हिंदुओं के अधिकारों के पक्ष में खुलकर अपनी बात रखी थी.

चीन और बांग्लादेश

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इनकी तुलना अगर पिछले हफ़्ते कुमिल्ला, चाँदपुर, फ़ेनी और चिटगाँव में हिंदू धर्मस्थलों और घरों पर हुए कई हमलों और हिंसा में मौतों के बाद भी भारत की प्रतिक्रिया बहुत सँभली हुई रही. पूर्व भारतीय राजनयिक पिनाकरंजन चक्रवर्ती ने बीबीसी से कहा है कि भारत शेख़ हसीना के ख़िलाफ़ चल रही इस बड़ी साज़िश से अच्छी तरह वाकिफ़ है.

उन्होंने कहा, "इस साज़िश का मक़सद है सांप्रदायिक कार्ड के ज़रिए शेख़ हसीना को कमज़ोर करना है. अब अगर ऐसे में भारत इन घटनाओं की कड़ी निंदा करते हुए बयान जारी करता है तो वो हसीना सरकार की निंदा होगी लेकिन इससे भारत का कोई मक़सद सफल नहीं होगा."

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