भारत में पति जब पत्नी से बलात्कार करे तो इसे अपराध क्यों नहीं माना जाता?

प्रदर्शन

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    • Author, गीता पांडे
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

पितृसत्तात्मक माने जाने वाले भारतीय समाज में, जहां शादियों को पवित्र रिश्ता माना जाता है. वहां एक पति का अपनी पत्नी के साथ रेप करना अपराध नहीं माना जाता.

लेकिन हाल के हफ़्तों में भारत की अदालतों ने मैरिटल रेप पर जिस तरह के फ़ैसले दिए हैं, उससे शादी के भीतर जबरन सेक्स को अपराध करार देने की मांग एक बार फिर से जोर पकड़ती हुई दिख रही है.

गुरुवार को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के जस्टिस एनके चंद्रवंशी ने कहा कि "एक पति द्वारा पत्नी के साथ यौन संबंध या अन्य किसी प्रकार की यौन क्रिया को रेप करार नहीं दिया जा सकता है, भले ही वो जबरन या उसकी मर्जी के ख़िलाफ़ किया गया हो."

इस मामले में पत्नी ने पति पर 'अप्राकृतिक सेक्स' और अन्य चीज़ों से रेप करने का आरोप लगाया था.

रेप के ख़िलाफ़ प्रदर्शन

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बलात्कार के आरोप से बरी होते पति

जस्टिस एनके चंद्रवंशी ने कहा कि पति पर 'अप्राकृतिक सेक्स' के लिए केस चलाया जा सकता है लेकिन इससे कहीं अधिक गंभीर रेप के आरोप से अभियुक्त को बरी कर दिया गया क्योंकि भारतीय क़ानून में मैरिटल रेप कोई अपराध नहीं है, बशर्ते पत्नी की उम्र 15 साल से कम न हो.

सोशल मीडिया पर इस फ़ैसले को लेकर बहस छिड़ गई. जेंडर मामलों की रिसर्चर कोटा नीलिमा ने ट्विटर पर लिखा, "अदालतें कब महिलाओं के पक्ष में विचार करेंगी?"

उनके ट्वीट के जवाब में कई लोगों ने कहा कि इसे पुराने क़ानूनी प्रावधान को बदल दिया जाना चाहिए लेकिन इस बहस में कुछ ऐसी आवाज़ें भी थीं, जो इस दलील से सहमत नहीं थीं.

एक ने आश्चर्य जताते हुए पूछा, "किस तरह की पत्नी मैरिटल रेप की शिकायत करेगी?"

दूसरे ने कहा, "उसके चरित्र में ही कुछ ख़राबी होगी."

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तीसरे शख़्स ने कहा, "केवल वही पत्नी इस तरह के दावे कर सकती है जो अपनी जिम्मेदारियां नहीं समझती होगी."

यह बहस केवल सोशल मीडिया तक ही सीमित नहीं थी.

न्यायपालिका से जुड़े लोग भी इस विवादास्पद मुद्दे को लेकर बंटे हुए थे.

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'पति की वहशियाना प्रकृति मैरिटल रेप'

कुछ हफ़्ते पहले ही केरल हाई कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में कहा था कि मैरिटल रेप तलाक मांगने का अच्छा आधार हो सकता है.

केरल हाई कोर्ट के जस्टिस मोहम्मद मुश्ताक और जस्टिस कौसर इदप्पागात की बेंच ने छह अगस्त के अपने इस आदेश में कहा, "पत्नी की आज़ादी को न मानने वाले पति की वहशियाना प्रकृति ही मैरिटल रेप है. हालांकि ऐसे आचरण के लिए सज़ा नहीं दी जा सकती है. लेकिन ये मानसिक और शारिरिक उत्पीड़न के दायरे में आता है."

फ़ैसले में ये कहा गया है कि "मैरिटल रेप तब होता है जब पति ये मानने लगे कि पत्नी का शरीर उसकी प्रॉपर्टी है और आधुनिक सामाजिक न्यायशास्त्र में ऐसी मान्यता के लिए कोई जगह नहीं है."

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के जस्टिस चंद्रवंशी ने अपने फ़ैसले के लिए जिस क़ानून का सहारा लिया, वो इंडियन पीनल कोड (भारतीय दंड संहिता) का सेक्शन 375 है.

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अंग्रेज़ों के ज़माने का क़ानून

ब्रितानी औपनिवेशिक दौर का ये क़ानून भारत में साल 1860 से लागू है.

इसके सेक्शन 375 में एक अपवाद का जिक्र है जिसके अनुसार अगर पति अपनी पत्नी के साथ करे और पत्नी 15 साल से कम की न हो तो इस सेक्स को रेप नहीं माना जाता है.

इस प्रावधान के पीछे ये मान्यता है कि शादी में सेक्स की सहमति छुपी हुई होती है और पत्नी इस सहमति को बाद में वापस नहीं ले सकती है.

लेकिन दुनिया भर में इस विचार को चुनौती दी गई है और बीते कुछ सालों में 100 से भी ज़्यादा देशों ने अपने यहां मैरिटल रेप को अपराध करार दिया है.

खुद ब्रिटेन ने भी साल 1991 में मैरिटल रेप को ये कहते हुए अपराध की श्रेणी में रख दिया कि 'छुपी हुई सहमति' को 'अब गंभीरता से नहीं लिया जा सकता' है.

लेकिन मैरिटल रेप को अपराध करार देने के लिए लंबे समय से चली आ रही मांग के बावजूद भारत उन 36 देशों में शामिल है जहां मैरिटल रेप को अपराध नहीं मानने वाली क़ानूनी व्यवस्था बनी हुई है.

इस वजह से कई महिलाएं शादीशुदा ज़िंदगी में हिंसा का शिकार होने के मजबूर हैं.

एक सरकारी सर्वे के मुताबिक़, 31 फ़ीसदी विवाहित महिलाओं पर उनके पति शारिरिक, यौन और मानसिक उत्पीड़न करते हैं.

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क्या कहते हैं जानकार?

यूनिवर्सिटी ऑफ़ वॉरविक और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे उपेंद्र बख़्शी कहते हैं कि "मेरे विचार से इस क़ानून को ख़त्म कर दिया जाना चाहिए."

प्रोफ़ेसर बख़्शी कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली घरेलू और यौन हिंसा से जुड़े क़ानूनों में कुछ प्रगति ज़रूर हुई है लेकिन वैवाहिक बलात्कार को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है.

साल 1980 में प्रोफ़ेसर बख़्शी उन जाने-माने वकीलों में शामिल थे जिन्होंने सासंदों की समिति को भारत में बलात्कार से जुड़े क़ानूनों में संशोधन को लेकर कई सुझाव भेजे थे. उन्होंने बीबीसी से बताया, "समिति ने हमारे सभी सुझाव स्वीकार कर लिया सिवाय मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के सुझाव को."

इसके बाद भी उन्होंने अधिकारियों से वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करवाने की कोशिशें कीं लेकिन वो सब नाकाम रहीं. प्रोफ़ेसर बख़्शी बताते हैं, "हमसे कहा गया कि अभी मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने का सही वक़्त नहीं है. लेकिन बात यह है कि शादी में बराबरी होनी चाहिए और एकपक्ष को दूसरे पर हावी होने की इजाज़त नहीं होनी चाहिए. आप अपने पार्टनर से 'सेक्शुअल सर्विस' की डिमांड नहीं कर सकते."

सांकेतिक तस्वीर

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सरकार का तर्क

सरकार ने लगातार तर्क दिया है कि वैवाहिक कानून का अपराधीकरण विवाह की संस्था को "अस्थिर" कर सकता है और महिलाएं इसका इस्तेमाल पुरुषों को परेशान करने के लिए कर सकती हैं.

लेकिन हाल के वर्षों में कई नाखु़श पत्नियों और वकीलों ने अदालतों में याचिका दायर कर इस "अपमानजनक क़ानून" को ख़त्म करने की मांग की है.

संयुक्त राष्ट्र, ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी भारत के इस रवैये पर चिंता जताई है.

कई जजों ने भी स्वीकार किया है कि एक पुराने कानून का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं है. उनका ये भी कहना है कि संसद को वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित कर देना चाहिए.

नीलिमा कहती हैं कि ये कानून महिलाओं के अधिकारों का "स्पष्ट उल्लंघन" है और इसमें पुरुषों को मिलने वाली इम्युनिटी "अस्वाभाविक" है. इसी वजह से इससे संबंधित अदालती मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है.

वीडियो कैप्शन, मैरिटल रेप: महिला का पति ही उसका रेप करे तो?

आधनुकिता का मुखौटा

नीलिमा कहती हैं, "भारत में आधुनिकता का एक मुखौटा है. अगर आप सतह को खरोंचें और तो असली चेहरा दिखता है. महिला अपने पति की संपत्ति बनी रहती है. 1947 में भारत का आधा हिस्सा ही आज़ाद हुआ था, बाक़ी आधा अभी भी आज़ाद नहीं है. हमारी उम्मीद न्यायपालिका से है."

उनके मुताबिक यह उत्साहजनक है कि कुछ अदालतों ने "इस इम्यूनिटी का अस्वाभाविक होना स्वीकार किया है लेकिन ये छोटी जीत हैं, क्योंकि इन पर कई विपरीत अदालती फ़ैसले भारी पड़ते हैं.

नीलिमा कहती हैं, "इसमें हस्तक्षेप की ज़रूरत है और इसे हमारे जीवनकाल में बदलना चाहिए. बात जब ​​वैवाहिक बलात्कार की बात आती है तो बाधाएं अधिक ऊंची होती हैं. ये मामला पहले ही सुलझ जाना चाहिए था. हम आने वाली पीढ़ियों के लिए नहीं लड़ रहे हैं. हम अभी भी इतिहास की ग़लतियों से लड़ रहे हैं और यह लड़ाई महत्वपूर्ण है."

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