तालिबान बिना भारी ख़ून-ख़राबे के शहरों पर कब्ज़ा कैसे कर रहा है?

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रविवार को बिना किसी संघर्ष के अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व में मौजूद अहम शहर जलालाबाद के तालिबान के कब्ज़े के बाद अब राजधानी काबुल के लिए ख़तरा पैदा हो गया है.
इसके बाद अब अमेरिका ने क़ाबुल में मौजूद अपने दूतावास से राजनयिकों को निकालना शुरू कर दिया है. अमेरिकी सरकार ने दूतावास और काबुल एयरपोर्ट की सुरक्षा के लिए तुरंत सैन्य टुकड़ियां भी भेजी हैं.
इससे पहले अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वो इस बात की गारंटी नहीं दे सकता कि वो अपने नागरिकों को अफ़ग़ानिस्तान से निकालने के लिए वहां से चार्टर्ड उड़ानों की व्यवस्था कर पाएगा.
मंत्रालय ने कहा है कि जिन लोगों ने पहले से उड़ानों में टिकट बुक की है वो अपने टिकट रद्द ना करें और जो भी कमर्शियल फ्लाइट उपलब्ध है, उसके ज़रिए अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकलें. मंत्रालय ने ये भी चेतावनी दी है कि लोग उड़ानों की जानकारी के लिए काबुल में मौजूद अमेरिकी दूतावास में फ़ोन न करें.
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'अमेरिकी नागरिकों को नुक़सान पहुँचा तो होगी सैन्य कार्रवाई'
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि मौजूदा कमांडर के ज़रिए दोहा में मौजूद तालिबान के प्रतिनिधियों तक ये बात पहुंचा दी गई है कि अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन पर उनकी किसी हरकत से अगर अमेरिकी नागरिकों या फिर अमेरिकी दूतावास को नुक़सान पहुँचा तो अमेरिका तुरंत सैन्य कार्रवाई करेगा.
अपने बयान में जो बाइडन ने कहा, "2019 में मेरे पूर्ववर्ती ने तालिबान को बातचीत का न्योता दिया था, जिसके बाद तालिबान बेहद शक्तिशाली स्थिति में आ गया. इसके बाद उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना को निकालने के लिए एक मई 2021 की तारीख की घोषणा की."
"अपना पद छोड़ने से पहले उन्होंने वहाँ पर अमेरिकी सैनिकों की संख्या 2,500 कर दी. इसके बाद जब मैं राष्ट्रपति बना तो मेरे पास दूसरे रास्ते नहीं बचे थे. हमारे सामने अपनी फौज को अपने मित्रों को वहाँ से सुरक्षित निकालने की चुनौती थी."
"मैं चौथा राष्ट्रपति हूँ जो अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन पर अपनी सेना के संघर्ष को देख रहा है. मैं नहीं चाहता कि इस युद्ध की आग अगले राष्ट्रपति को भी झेलनी पड़े."
इधर विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि रविवार को उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान में सुरक्षा स्थिति और हिंसा कम करने के लिए राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी से बात की है.
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अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश की सरकारें अपने राजनयिकों को जल्द से जल्द अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकालने की कोशिशें कर रही है. ब्रितानी मीडिया में आ रही रिपोर्टों के अनुसार ब्रितानी राजदूत रविवार शाम तक अफ़ग़ानिस्तान छोड़ देंगे.
एक ईरानी अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया है कि काबुल में मौजूद दूतावास को सोमवार तक ख़ाली कर दिया जाएगा.

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अफ़ग़ान राष्ट्रपति के सामने नई चुनौती
समाचार एजेंसी एफ़पी के अनुसार इसके बाद तालिबान किसी भी वक़्त राजधानी काबुल का रुख़ कर सकता है.
लेकिन मज़ार-ए-शरीफ़ और जलालाबाद का तालिबान के हाथों जाना अशरफ़ ग़नी सरकार के लिए बड़ा झटका है. इसके बाद तालिबान काबुल से महज़ कुछ घंटों की दूरी पर पहुँच गया है.
एएफ़पी का कहना है कि इसके बाद अब अशरफ़ ग़नी सरकार के सामने या तो तालिबान के साथ संघर्ष या फिर आत्मसमर्पण का ही रास्ता बचा रह गया है. हालांकि अब तक इस तरह को कोई संकेत नहीं मिले हैं.
शनिवार को उन्होंने सेना को फिर से "एकजुट करने" और मौजूदा संकट का राजनीतिक हल निकालने की अपील की थी.
तालिबान तेज़ी से बढ़ा रहा है अपना दबदबा
अफ़ग़ानिस्तान में तेज़ी से पैर पसारता इस्लामिक चरमपंथी समूह तालिबान कुछ दिनों के भीतर ही राजधानी के दरवाज़े तक आ पहुँचा है. सप्ताह भर पहले अमेरिकी ख़ुफ़िया में कहा गया था कि तालिबान से सामने काबुल तीन महीनों तक नहीं टिक पाएगा.
जलालाबाद के तालिबान के हाथों जाने के बाद अब पाकिस्तान के पेशावर तक जाने वाली सड़क पर भी तालिबान के लड़ाकों का कब्ज़ा हो गया है. चारों तरफ से ज़मीन से घिरे अफ़ग़ानिस्तान तक पहुँचने वाले बेहद अहम मार्ग है.
इससे पहले शनिवार को मामूली संघर्ष के बाद तालिबान ने उत्तर में मौजूद शहर मज़ार-ए-शरीफ़ पर कब्ज़ा कर लिया था.
जलालाबाद में मौजूद एक अफ़ग़ान अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "जलालाबाद के गवर्नर ने तालिबान के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, इस कारण यहाँ कोई संघर्ष नहीं हुआ है. आम नागरिकों को बचाने का यही एक तरीक़ा था कि उन्हें यहां से जाने के लिए रास्ता दे दिया जाए."
शहर के एक अन्य सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि तालिबान इस बात पर राज़ी हो गया है कि जलालाबाद से जाने वाले सरकारी अधिकारियों और सुरक्षाकर्मियों को वो कोई नुक़सान नहीं पहुंचाएंगे और यहां से जाने देंगे. उन्होंने कहा कि "मौतों और तबाही" से बचने के लिए ये फ़ैसला लिया गया है.
बीते महीने अफ़ग़ानिस्तान से बड़ी संख्या में अमेरिकी सैनिकों के वापस जाने के बाद तालिबान ने ये मानकर अपना अभियान तेज़ कर दिया है कि अफ़ग़ान सेना पहले के मुक़ाबले कमज़ोर हो गई है.
कुछ प्रांतीय अधिकारियों से रॉयटर्स को बताया कि तालिबान के मज़ार-ए-शरीफ़ के नज़दीक आने पर अफ़ग़ान सुरक्षाबल उज़्बेकिस्तान की तरफ़ जाने वाली हाईवे पर 80 किलोमीटर तक पीछे चले गए में. इसके बाद उन्हें किसी तरह की चुनौती नहीं मिल पाई और उन्होंने आसानी से शहर पर कब्ज़ा कर लिया.
शनिवार को जारी एक बयान में तालिबान ने कहा था कि उसका तेज़ी से आगे बढ़ना इस बात का सबूत है कि अफ़ग़ान नागरिकों के बीच उनकी स्वीकार्यता है. तालिबान ने अपने बयान में कहा है कि आम नागरिकों, विदेशियों और सहायता कर्मियों को उनसे कोई ख़तरा नहीं है.
तालिबान ने कहा, "हम हमेशा लोगों के जीवन की, उनकी संपत्ति की और उनके सम्मान की रक्षा करते रहेंगे ताकि हमारे देश को हम एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण जगह बना सकें."
शनिवार को तालिबान ने बेहद कम संघर्ष के बाद लोगर प्रांत के पुल-ए-आलम शहर पर भी कब्ज़ा कर लिया था. ये शहर क़ाबुल से 70 किलोमीटर दूर दक्षिण में है.
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इससे पहले शुक्रवार को दक्षिण का सबसे बड़ा शहर कंधार पर तालिबान के लड़ाकों ने कब्ज़ा कर लिया था. शुक्रवार को पश्चिम के सबसे बड़े शहर हेरात पर भी तालिबान ने अपना कब्ज़ा कर लिया था. ये शहर ईरान के साथ अफ़ग़ान सटी सीमा के नज़दीक है.
इधर तालिबान और अफ़ग़ान सरकार के बीच शांति समझौते के लिए चल रही बातचीत में मध्यस्थता कर रहे क़तर ने तालिबान से संघर्षविराम की अपील की है.
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