येदियुरप्पा ने छोड़ा कर्नाटक सीएम का पद, लेकिन आगे क्या होगा?

बीएस येदियुरप्पा

इमेज स्रोत, Getty Images

    • Author, इमरान क़ुरैशी
    • पदनाम, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए

बीएस येदियुरप्पा ने कर्नाटक के मुख्यममंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया है.

उन्होंने राजभवन जाकर राज्यपाल थावरचंद गहलौत से मुलाक़ात की और उन्हें अपना इस्तीफ़ा सौंपा. येदियुरप्पा ने बताया कि उनका इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया गया है.

छोड़िए X पोस्ट, 1
X सामग्री की इजाज़त?

इस लेख में X से मिली सामग्री शामिल है. कुछ भी लोड होने से पहले हम आपकी इजाज़त मांगते हैं क्योंकि उनमें कुकीज़ और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया हो सकता है. आप स्वीकार करने से पहले X cookie policy और को पढ़ना चाहेंगे. इस सामग्री को देखने के लिए 'अनुमति देंऔर जारी रखें' को चुनें.

चेतावनी: तीसरे पक्ष की सामग्री में विज्ञापन हो सकते हैं.

पोस्ट X समाप्त, 1

अपनी सरकार के दो साल पूरे होने पर हुए एक आधिकारिक कार्यक्रम में उन्होंने अपने इस्तीफ़े की घोषणा की थी.

भावुक अंदाज़ में उन्होंने कहा, "मैं दुखी होकर इस्तीफ़ा नहीं दे रहा हूँ, मैं ख़ुशी-ख़ुशी ऐसा कर रहा हूँ."

उन्होंने कहा कि वे पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने उन्हें राज्य की सेवा करने का मौक़ा दिया.बीएस येदियुरप्पा ने कहा कि वे उनकी और अन्य लोगों की इच्छा पूरी करेंगे और पार्टी के लिए काम करेंगे.

छोड़िए X पोस्ट, 2
X सामग्री की इजाज़त?

इस लेख में X से मिली सामग्री शामिल है. कुछ भी लोड होने से पहले हम आपकी इजाज़त मांगते हैं क्योंकि उनमें कुकीज़ और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया हो सकता है. आप स्वीकार करने से पहले X cookie policy और को पढ़ना चाहेंगे. इस सामग्री को देखने के लिए 'अनुमति देंऔर जारी रखें' को चुनें.

चेतावनी: तीसरे पक्ष की सामग्री में विज्ञापन हो सकते हैं.

पोस्ट X समाप्त, 2

येदियुरप्पा ने कहा कि उनपर इस्तीफ़ा देने का कोई दबाव नहीं था. उन्होंने ये भी स्पष्ट किया कि वे राज्य छोड़कर नहीं जाएँगे और राज्य की जनता के लिए काम करना जारी रखेंगे.

येदियुरप्पा का बीजेपी में महत्व

येदियुरप्पा ने 2008 में अकेले अपने दम पर कर्नाटक में बीजेपी को सत्ता में ला दिया था.

पिछले दिनों उन्होंने कहा था कि केंद्रीय नेतृत्व से किए वादे के मुताबिक़ दो साल बाद होने वाले चुनाव में पार्टी को सत्ता में वापस लाने के लिए वे काम शुरू करेंगे.

कर्नाटक

इमेज स्रोत, CMO

किसी भी नेता ने अब तक येदियुरप्पा की तरह यह नहीं कहा कि वे मुख्यमंत्री का पद छोड़ रहे हैं, क्योंकि उन्हें पार्टी ने 78-79 साल में भी काम करने की अनुमति दी है. येदियुरप्पा ने ऐसा कहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह के प्रति आभार भी जताया था.

येदियुरप्पा का सार्वजनिक तौर पर अपने इस्तीफ़े की योजना की पेशकश, एक तरह से यह दर्शाता है कि उन पर पद छोड़ने के लिए कितना दबाव पड़ा होगा.

स्थानीय कन्नड़ दैनिक के संपादक और राजनीतिक विश्लेषक हुंसेवाडी राजन ने बताया था, "हम लोगों ने अब तक किसी नेता को पद देने के दौरान ऐसी योजना के बारे में नहीं सुना था, पहली बार किसी नेता को पद से हटाने की योजना के बारे में सुन रहे हैं."

मोदी

इमेज स्रोत, Getty Images

येदियुरप्पा क्यों हैं इतने अहम?

राज्य की राजनीति में और प्रमुख जातीय समूह लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर येदियुरप्पा का क़द निर्विवाद रूप में सबसे बड़ा रहा है. कर्नाटक में येदियुरप्पा के जनाधार चलते ही नरेंद्र मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री पद के लिए अपना अभियान शुरू करते हुए उन्हें पार्टी में वापस बुला लिया था.

तब तक यह अंदाज़ा हो चुका था येदियुरप्पा की कर्नाटक जनता पक्ष पार्टी के चलते 2013 के विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी को कितना नुकसान उठाना पड़ा था. इससे पहले 2008 के विधानसभा चुनाव के दौरान येदियुरप्पा ने दक्षिम भारत के लिए बीजेपी का दरवाज़ा खोलने वाली जीत हासिल कर पार्टी के बड़े नेताओं को चौंका दिया था.

लेकिन मई, 2011 में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था. सरकारी ज़मीन को अपने बेटों के ट्रस्ट को देने के दो मामलों के चलते उन्हें अक्तूबर-नवंबर, 2011 में 23 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था.

लेकिन राजनीतिक तौर पर वे बीजेपी के सबसे अहम नेता बने रहे. इतना ही नहीं, 2014 और 2019 के लगातार दो आम चुनावों में उन्होंने नरेंद्र मोदी को निराश भी नहीं किया.

उम्र के आधार पर पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में उनकी जगह बन रही थी, लेकिन 2018 में पार्टी ने उन्हें अपवाद में रखा क्योंकि राज्य के प्रमुख जातीय समूह पर उनका दबदबा है. राज्य में 17 प्रतिशत आबादी लिंगायत समूह की है.

येदियुरप्पा

इमेज स्रोत, Getty Images

लेकिन अब येदियुरप्पा के पद छोड़ने की घोषणा के बाद राज्य में पार्टी के भविष्य को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं.

कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के नेता को मुख्यमंत्री पद से हटाने से क्या कुछ हो सकता है, इसका अनुभव कांग्रेस पार्टी झेल चुकी है.

अक्तूबर 1990 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से वीरेंद्र पाटिल को हटा दिया था. इससे ठीक एक साल पहले वीरेंद्र पाटिल ने राज्य की 224 विधानसभा सीटों में 179 सीटें दिलाकर कांग्रेस को सबसे बड़ी जीत दिलाई थी.

पाटिल लिंगायत समुदाय के बड़े नेता थे, उनकी तबियत ख़राब हुई थी और उसी दौरान कर्नाटक में सांप्रदायिक संघर्ष देखने को मिला था. राजीव गांधी ने पाटिल से मुलाक़ात से पहले दंगा प्रभावित इलाक़ों का दौरा किया था. पाटिल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के फ़ैसले ने लिंगायत समुदाय को कांग्रेस के ख़िलाफ़ कर दिया और ये सिलसिला आज भी बना हुआ है.

बीजेपी के एक नेता ने गोपनीयता की शर्त पर बीबीसी हिंदी से कहा, "येदियुरप्पा जबसे मुख्यमंत्री बने थे तबसे पार्टी की सबसे बड़ी चिंता यही है. हालांकि पार्टी में दो साल बाद होने वाले चुनाव में किसी नए चेहरे को पेश करने को लेकर भी विचार विमर्श चल रहा है."

PIYAL ADHIKARY

इमेज स्रोत, PIYAL ADHIKARY

क्या हो सकते हैं परिणाम?

लिंगायत समूह के जानकार और राजनीतिक विश्लेषक रमज़ान दरगाह ने बताया, "उन्हें पार्टी ने पद छोड़ने को कहा है, इससे संकेत मिलता है कि पार्टी इस बात को लेकर निश्चिंत है कि लिंगायत समूह का साथ उसे मिलता रहेगा."

लिंगायत समूह के बीजेपी के पक्ष में होने की वजह बताते हुए रमज़ान कहते हैं, "लिंगायत समुदाय उस नेता के पक्ष में होगा जिसे पार्टी चुनेगी. क्योंकि यह समुदाय सत्ता के साथ खड़ा रहना चाहता है. आप ये नहीं भूलिए 2013 के चुनाव के दौरान लिंगायतों ने बड़े पैमाने पर बीजेपी को वोट दिया था, येदियुरप्पा की पार्टी केजीपी को नहीं."

वहीं राजन कहते हैं, "यह पार्टी के लिए कोर्स करेक्शन जैसा मामला है. स्पष्ट है कि पार्टी अब लिंगायत समुदाय की जगह किसी दूसरे समुदाय के नेता को प्रोजेक्ट करने का प्रयोग करना चाहती है. यही वजह संसदीय मामलों के केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी (ब्राह्मण), बीएल संतोष (ब्राह्मण) और राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि (वोक्कालिगा) के नाम चर्चाओं में है. पार्टी लिंगायत आधारित पार्टी के बदले ख़ुद को हिंदुत्व वाली पार्टी के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहती है."

PIYAL ADHIKARY

इमेज स्रोत, PIYAL ADHIKARY

हालांकि पिछले कुछ दिनों में प्रमुख और शक्तिशाली लिंगायत समूह और लिंगायत मठ के स्वामी ने येदियुरप्पा के यहां संदेश भिजवाया है कि लिंगायत समुदाय पूरी तरह से येदियुरप्पा के साथ है. एक स्वामी ने यहाँ तक कहा है कि येदियुरप्पा 2023 तक मुख्यमंत्री रहेंगे.

जागरण लेकसिटी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और जाने माने राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर संदीप शास्त्री इसे दबाव की राजनीति बताते हुए कहते हैं, "लीडरशिप के बदलाव के समय में ऐसा देखने को मिलता है. लिंगायत समूह के बीजेपी को समर्थन की एक वजह समुदाय का नेता हो सकता है, लेकिन इसकी और भी अहम वजहें हैं. एक अहम वजह तो यही है कि लिंगायत समुदाय वैचारिक तौर पर बीजेपी के सिद्धांतों के क़रीब है."

प्रोफ़ेसर संदीप शास्त्री इस बदलाव के दूसरे पहलू की ओर संकेत करते हैं, "बीजेपी जब राज्यों में नेतृत्व बदलता है, तो आपने देखा होगा कि केंद्रीय नेतृत्व काफ़ी मज़बूती से दबाव डालता है. कर्नाटक के मामले में भी यही देखने को मिल रहा है."

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)