कानपुर के श्मशान की वायरल तस्वीरें खींचने वाले फ़ोटोग्राफ़र की आपबीती

इमेज स्रोत, REUTERS/Adnan Abidi
- Author, दिलनवाज़ पाशा
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
पीछे नीला आसमान और नीचे क़तार में जल रही चिताओं से उठता हुआ धुआं आसमान में मिलता हुआ.
गुरुवार को कानपुर के भैरव घाट श्मशान स्थल पर खींची गईं ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं और इन्हें देखकर लोग मानवीय त्रासदी का अंदाज़ा लगाकर सिहर रहे हैं.
इस लेख में X से मिली सामग्री शामिल है. कुछ भी लोड होने से पहले हम आपकी इजाज़त मांगते हैं क्योंकि उनमें कुकीज़ और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया हो सकता है. आप स्वीकार करने से पहले X cookie policy और को पढ़ना चाहेंगे. इस सामग्री को देखने के लिए 'अनुमति देंऔर जारी रखें' को चुनें.
पोस्ट X समाप्त, 1
ये तस्वीरें पीटीआई के फ़ोटोग्राफ़र अरुण शर्मा ने खींची हैं. शर्मा ने मौक़े से एक वीडियो भी शेयर किया है जो ट्विटर और इंस्टाग्राम पर वायरल हुआ है.
अरुण शर्मा कहते हैं, "जब ये तस्वीरें मैंने खींची तब घाट पर 38 चिताएं जल रहीं थीं. कुछ चिताओं को पानी डालकर ठंडा किया जा रहा था."
इस लेख में X से मिली सामग्री शामिल है. कुछ भी लोड होने से पहले हम आपकी इजाज़त मांगते हैं क्योंकि उनमें कुकीज़ और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया हो सकता है. आप स्वीकार करने से पहले X cookie policy और को पढ़ना चाहेंगे. इस सामग्री को देखने के लिए 'अनुमति देंऔर जारी रखें' को चुनें.
पोस्ट X समाप्त, 2
इस घाट पर सिर्फ़ कोविड मरीज़ों की ही लाशें जलाई जा रही हैं. यहां लगातार जल रही चिताओं की गर्मी से पास में लगे पेड़ भी झुलस गए हैं.
पंद्रह साल से फ़ोटो पत्रकारिता कर रहे अरुण शर्मा कहते हैं, "मैंने बड़ी से बड़ी त्रासदियाँ कवर की हैं, लेकिन ऐसा कभी महसूस नहीं किया. ये दृश्य दिलो-दिमाग़ में बैठ जाने वाला था."
इस लेख में Instagram से मिली सामग्री शामिल है. कुछ भी लोड होने से पहले हम आपकी इजाज़त मांगते हैं क्योंकि उनमें कुकीज़ और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया हो सकता है. आप स्वीकार करने से पहले Instagram cookie policy और को पढ़ना चाहेंगे. इस सामग्री को देखने के लिए 'अनुमति देंऔर जारी रखें' को चुनें.
पोस्ट Instagram समाप्त, 1
16 अप्रैल को दिल्ली से कानपुर पहुँचे अरुण शर्मा अस्पतालों से, श्मशान घाटों से तस्वीरें खींच रहे थे. वो शहर में अलग-अलग स्थानों पर जाकर कोरोना महामारी की व्यापकता का अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहे थे.
अरुण कहते हैं, "मैं दिन में भी श्मशान घाट गया था. मुझे लगा कि स्थिति ठीक नहीं है. तब तक लाशें दिन में ही जलाई जा रहीं थीं लेकिन फिर प्रशासन ने रात में भी लाशें जलाने का फ़ैसला लिया. मेरे पास एक स्थानीय पत्रकार ने शाम को लाशें जलाने का वीडियो भेजा था."
इस लेख में Instagram से मिली सामग्री शामिल है. कुछ भी लोड होने से पहले हम आपकी इजाज़त मांगते हैं क्योंकि उनमें कुकीज़ और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया हो सकता है. आप स्वीकार करने से पहले Instagram cookie policy और को पढ़ना चाहेंगे. इस सामग्री को देखने के लिए 'अनुमति देंऔर जारी रखें' को चुनें.
पोस्ट Instagram समाप्त, 2
अरुण बताते हैं, "उस दिन मैंने शाम को श्मशान घाट पहुँचने का फ़ैसला किया. वहां दस-बारह लाशें बाहर पड़ीं थीं और 38 चिताएं जल रहीं थीं. चिताओं से उठता धुआं पीछे नीले आसमान में मिल रहा था. ये डराने वाला दृश्य था."
अरुण कहते हैं, "वहां इतनी ज़्यादा गर्मी थी कि खड़ा होना असंभव-सा था. चिताओं की गर्माहट शरीर को तपा रही थी. ऐसा लग रहा था कि हमारे भीतर भी कुछ जल रहा है. शरीर में कैल्शियम होता है जिसके जलने पर बहुत दुर्गंध आती है और सफ़ेद धुआं निकलता है."
इस लेख में Instagram से मिली सामग्री शामिल है. कुछ भी लोड होने से पहले हम आपकी इजाज़त मांगते हैं क्योंकि उनमें कुकीज़ और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया हो सकता है. आप स्वीकार करने से पहले Instagram cookie policy और को पढ़ना चाहेंगे. इस सामग्री को देखने के लिए 'अनुमति देंऔर जारी रखें' को चुनें.
पोस्ट Instagram समाप्त, 3
अरुण के मुताबिक़ उस समय श्मशान स्थल पर सिर्फ़ वही लोग थे जो शवों को लेकर आए थे. उनके अलावा वहां कोई नहीं था. इस श्मशान में 12 लोग काम करते हैं जिनमें से चार लोग उस समय चिताएं जला रहे थे.
अरुण शर्मा और कई अन्य पत्रकार तमाम ख़तरों के बावजूद बाहर निकल रहे हैं और ज़मीनी तस्वीरें लोगों के सामने ला रहे हैं. क्या उन्हें कोविड के दौरान पत्रकारिता करते हुए डर लग रहा है?
इस लेख में Instagram से मिली सामग्री शामिल है. कुछ भी लोड होने से पहले हम आपकी इजाज़त मांगते हैं क्योंकि उनमें कुकीज़ और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया हो सकता है. आप स्वीकार करने से पहले Instagram cookie policy और को पढ़ना चाहेंगे. इस सामग्री को देखने के लिए 'अनुमति देंऔर जारी रखें' को चुनें.
पोस्ट Instagram समाप्त, 4
इस पर वो कहते हैं, "मेरे सामने दो ही विकल्प हैं कि या तो मैं भाग लूँ या फिर यहाँ से भाग लूँ. मैं भागने के बजाए भाग ले रहा हूं. लाशों की तस्वीर लेना एक अलग अनुभव था. आम तौर पर ऐसा नहीं होता है. इतने लोगों की मौत एक साथ नहीं होती है. उस समय तस्वीरें लेते वक़्त जो दिलो-दिमाग़ में चल रहा था उसे बताना आसान नहीं है."
अरुण कहते हैं, "आम तौर पर हम प्रदर्शन कवर करते हैं, प्रेस कॉन्फ्रेंस कवर करते हैं, इतनी लाशें एक साथ नहीं देखते हैं. ज़ाहिर तौर पर इस सबका दिलो-दिमाग़ पर असर हो रहा है. एक ही दिन में जब ढाई सौ लोगों की लाशें देखते हैं तो उसका असर दिमाग़ पर रह ही जाता है."
इस लेख में Instagram से मिली सामग्री शामिल है. कुछ भी लोड होने से पहले हम आपकी इजाज़त मांगते हैं क्योंकि उनमें कुकीज़ और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया हो सकता है. आप स्वीकार करने से पहले Instagram cookie policy और को पढ़ना चाहेंगे. इस सामग्री को देखने के लिए 'अनुमति देंऔर जारी रखें' को चुनें.
पोस्ट Instagram समाप्त, 5
कानपुर की इन तस्वीरों के वायरल होने के बाद सरकारी आंकड़ों पर भी सवाल उठे हैं. स्थानीय अख़बारों के मुताबिक़ जिस दिन कानपुर के श्मशान घाटों पर 476 चिताएं जलीं, उस दिन प्रशासन ने अधिकारिक आंकड़ा सिर्फ़ छह लोगों की मौत का ही दिया था.
क्या असल आंकड़े जनता से छुपाए जा रहे हैं? एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बीबीसी को बताया, "असल तस्वीर इतनी भयावह है कि लोग डर जाएंगे."

इमेज स्रोत, Reuters
अरुण शर्मा कहते हैं, "सच्चाई चाहे कितनी भी विभत्स क्यों ना हो हमारा काम उसे दिखाना है. हम अपनी तस्वीरों के ज़रिए इस दौर को इतिहास में दर्ज कर रहे हैं. हमारी तस्वीरों को आंकड़ों के बरअक्स रखकर देखा जा सकेगा और लोग सच जान पाएंगे."
वो कहते हैं, "जब तक हम परिस्थिति की गंभीरता और भयावहता को स्वीकार नहीं करेंगे तब तक उसका मुक़ाबला नहीं कर पाएंगे. मुझे लगता है कि हमारी तस्वीरों ने सच को लोगों को सामने रखा है."
इस महामारी की एक त्रासदी ये भी है कि लोग सिर्फ़ अपने को गंवा ही नहीं रहे हैं बल्कि उन्हें ऐसे अनुभव भी हो रहे हैं जो इंसानियत से भरोसा उठा रहे हैं.
अरुण कहते हैं, "अस्पतालों के बाहर हमें कई ऐसे लोग मिल रहे हैं जो ये शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें सिर्फ़ परिजनों की लाश मिल रही है. उनका सामान नहीं. कुछ का तो ये भी कहना है कि गहने-ज़ेवर-अंगूठी वग़ैरह मरीज़ों ने पहनी होती है वो भी शवों पर नहीं मिल रही हैं."
अरुण पिछले एक सप्ताह से कानपुर में अस्पतालों, गैस रिफ़िल स्टेशनों और अंत्योष्टि स्थलों के चक्कर काट रहे हैं.
अरुण कहते हैं, "मुझे लगता है कि इस महामारी का पूरा सच अब भी सामने नहीं आ रहा है. अस्पताल के बाहर लोग मर रहे हैं. लोगों को ऑक्सीजन नहीं मिल रही है."
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)













