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भारत में कोविड-19 महामारी की विज़ुअल गाइड
- Author, लुसी रॉजर्स, डोमिनिक बेली, एना लूसिया गोंजालेज, शादाब नज़्मी और बेकी डेल
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
भारत में कोरोना वायरस की दूसरी घातक लहर के दौरान अस्पतालों और श्मशान में भारी भीड़ और ऑक्सीजन और दवाओं की भारी कमी देखी जा रही है.
यह एक विज़ुअल गाइड है, जिसमें बताया जा रहा है कि भारत में क्या हो रहा है और इस संकट से निपटने के लिए अधिकारी क्या कर रहे हैं.
कोरोना मरीज़ों की संख्या और मौत ने रिकॉर्ड बना दिया है
नए वैरिएंट्स के चलते भारत में कोरोना के मरीज़ों की संख्या और मौतों में तेज़ी से वृद्धि हो रही है.
देश में सोमवार को लगातार पाँचवें दिन कोरोना के रिकॉर्ड मामले और मौतें दर्ज की गईं.
हालांकि मरीज़ों और मौतों की असल संख्या अधिकारियों द्वारा बताई गई संख्या से कहीं अधिक होने की आशंका जताई जा रही है. कई लोग कोरोना की जाँच से बचने या इसे कराने के लिए जूझ रहे हैं. वहीं गांवों में इससे होने वाली अधिकतर मौतें रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हो पा रही.
देश की राजधानी दिल्ली में डॉक्टरों ने बताया कि किस तरह लोग अस्पतालों के बाहर इलाज के बिना सड़कों पर मर रहे हैं.
भारत में अब तक कुल क़रीब 1.7 करोड़ मामलों और दो लाख से ज़्यादा मौतों की पुष्टि हुई है. वायरोलॉजिस्ट का मानना है कि संक्रमण की दर अगले दो से तीन सप्ताह तक और बढ़ने की उम्मीद है.
क्रिटिकल केयर बेडों की संख्या बहुत कम हैं
देश में इंटेसिव केयर वार्डों में ख़ाली बेडों की काफ़ी कमी है. कई लोग अपने प्रियजनों को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए मीलों तक दौड़ने को मजबूर हो गए हैं.
क़रीब दो करोड़ लोगों की आबादी वाली दिल्ली के अस्पताल खचाखच भरे हुए हैं. ये अस्पताल नए रोगियों को एडमिट करने में लाचार हैं, लिहाज़ा उन्हें लौटा रहे हैं.
अस्पतालों के बाहर सड़कों पर गंभीर रूप से बीमार मरीज़ों के साथ लोग जुटे हैं. परिजन उनके लिए स्ट्रेचर और ऑक्सीजन के इंतज़ाम में जुटे हैं. इसके लिए वे अस्पताल से एक अदद बिस्तर की गुहार लगा रहे हैं.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स को एक शख़्स ने बताया, ''हम तीन दिनों से अपनी पत्नी के लिए एक बेड पाने के लिए दौड़ रहे हैं'' उनकी पत्नी पास में फ़ुटपाथ पर बैठीं थीं.
सरकार ने सोमवार को घोषणा की कि सेना की मेडिकल सुविधाओं को अब आम नागरिकों और रिटायर्ड सैन्य कर्मियों के लिए खोला जाएगा. इससे कोरोना संकट से निपटने में लोगों को मदद मिल सकेगी.
प्राणवायु ऑक्सीजन की घोर कमी
देश भर के अस्पतालों को ऑक्सीजन की कमी का भी सामना करना पड़ रहा है. इन्हें ऑक्सीजन की सख़्त ज़रूरत है. कई अस्पतालों को इसकी सप्लाई में कमी के संकेत देने को मजबूर होना पड़ा है.
स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए वैश्विक संस्थानों और कंपनियों के साथ काम करने वाली संस्था 'पाथ ऑक्सीजन नीड्स ट्रैकर' के अनुसार, इस समय भारत को हर तरह के आय वर्ग वाले देशों में सबसे ज़्यादा ऑक्सीजन की ज़रूरत है. संस्था का मानना है कि हर रोज़ ऑक्सीजन की माँग में छह से आठ फ़ीसद की बढ़त देखी जा रही है.
दिल्ली के मणिपाल अस्पताल के कोविड वार्ड में काम करने वाले डॉ. हरजीत सिंह भट्टी ने बताया कि सड़कों पर लोग ऑक्सीजन के लिए पानी से बाहर रह रही मछली की तरह तड़प रहे हैं. वे कहते हैं, ''उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिल रही है और वे सड़कों पर मर जा रहे हैं.''
आमतौर पर, भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए ऑक्सीजन की कुल खपत के 15 फ़ीसद की ज़रूरत होती है. बाक़ी 85 फ़ीसद ऑक्सीजन का इस्तेमाल उद्योगों में होता है.
लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण के अनुसार, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान, देश की ऑक्सीजन की कुल आपूर्ति का लगभग 90 फ़ीसद यानी 7,500 टन रोज़ाना, मेडिकल क्षेत्र में इस्तेमाल हो रहा है.
ऑक्सीजन की ज़रूरत को पूरा करने के लिए सरकार ने अब 'ऑक्सीजन एक्सप्रेस' नाम की ट्रेन शुरू की है. इस पर ऑक्सीजन के टैंकर लदे होते हैं. भारतीय वायु सेना भी सैन्य ठिकानों से ऑक्सीजन ढो रही है.
केंद्र सरकार ने कहा है कि वह सशस्त्र बलों के भंडार से ऑक्सीजन की आपूर्ति करेगी. साथ ही इसका उत्पादन बढ़ाने के लिए देश भर में 500 से अधिक ऑक्सीजन प्लांटों को मंज़ूरी दी गई है.
ट्रेन के कोचों को मेडिकल वार्ड बनाया गया
बिस्तरों की कमी से निपटने के लिए, सरकार ने ट्रेन के कोचों को ही आइसोलेशन वार्ड में बदल दिया है.
लगभग 4,000 रेलवे कोचों को हल्के से मध्यम लक्षणों वाले कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए फिर से शुरू किया जा रहा है. पिछले साल मार्च में इन्हें इसके लिए तैयार किया गया था. रेल मंत्री पीयूष गोयल ने इस बारे में मंगलवार को एक ट्वीट कर यह जानकारी दी.
केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता गोपाल अग्रवाल के अनुसार, पिछले साल ट्रेनों में ऐसे 64,000 अस्थायी बेडों का इंतज़ाम किया गया था. हालांकि सख़्त लॉकडाउन के बाद मामलों के घटने पर इन सुविधाओं को हटा दिया गया था. इन ट्रेनों को ज़रूरत वाले शहरों और क़स्बों के स्टेशनों तक ले जाया जा सकता है. इन ट्रेनों में रोगियों के लिए बेड, बाथरूम, ऑक्सीजन की सप्लाई और मेडिकल उपकरणों के लिए पॉवर पॉइंट्स का भी इंतज़ाम है.
भारतीय रेलवे को पहले से ही ट्रेनों में अस्पताल चलाने का अनुभव हासिल है. 1991 में शुरू की गई 'लाइफ़लाइन एक्सप्रेस' मरीज़ों की जाँच, मेडिकल और सर्जिकल सुविधा देने के लिए देश भर में घूमती है.
स्पोर्ट्स हॉल और स्टेडियम अस्पताल बन गए हैं
अस्पतालों पर दबाव को कम करने के लिए स्पोर्ट्स हॉल, स्टेडियम और आश्रमों को भी अस्थायी इलाज केंद्रों में बदल दिया गया है.
बेंगलुरू के कोरमंगला इंडोर स्टेडियम, गुवाहाटी के इंदिरा गांधी एथलेटिक स्टेडियम और दिल्ली के राधा स्वामी सत्संग ब्यास परिसर जैसे स्थानों को क्वारंटीन सेंटर में बदल दिया गया है.
कई बिस्तरों को कार्डबोर्ड से बनाया गया है
पिछले साल कोरोना के मामले बढ़ने के बाद, राधा स्वामी सत्संग ब्यास संस्था के दिल्ली परिसर को 10 हज़ार बिस्तरों वाले सरदार पटेल कोविड केयर सेंटर में बदल दिया गया था. यहां ऑक्सीजन की सप्लाई वाले 1,000 बेड भी बनाए गए थे. फ़रवरी में इसके बंद होने से पहले यहां 11,000 से अधिक लोगों का इलाज किया गया था.
फ़ुटबॉल के 20 मैदानों के बराबर आकार वाले इस केंद्र में इस बार शुरू में 2,500 बिस्तर लगने की उम्मीद है. बाद में इसे बढ़ाकर 5,000 तक ले जाया जाएगा.
बिस्तरों के लिए कार्डबोर्ड बेस बनाने वाली कंपनी आर्यन पेपर ने बताया है कि इमरजेंसी बेड को मज़बूत बोर्ड से बनाया गया है.
मौजूदा संकट में ये ख़ास तौर पर उपयोगी हैं. ये सस्ते तो हैं ही इसके अलावा इन्हें फिर से उपयोग में लाया जा सकता है. इनकी ढुलाई करना भी आसान है. और इन्हें पाँच मिनट में ही लगाया जा सकता है.
सामूहिक अंतिम संस्कार को मजबूर परिजन
मृतकों की भारी तादाद को देखते हुए उनके परिजन सामूहिक अंतिम संस्कार को मजबूर हैं.
दिल्ली में कम से कम एक अस्पताल को तो मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए अपनी पार्किंग में ही चिताओं को लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
कई शहरों के श्मशानों में सामूहिक अंतिम संस्कार हो रहे हैं और वहां के कर्मचारी दिन-रात काम करने को मजबूर हैं.
एक ग़ैर-लाभकारी मेडिकल संस्था के प्रमुख जितेन्द्र सिंह शंटी ने उत्तरी-पूर्वी दिल्ली में कार पार्किंग को ही श्मशान बना दिया है. उन्होंने कहा कि ऐसा होते देखना काफ़ी मुश्किल है.
कई स्थानों से चिताओं के लिए लकड़ी न मिलने की ख़बर भी मिली है.
दिल्ली के एक श्मशान में मदद कर रहे जयंत मल्होत्रा ने बीबीसी को बताया कि उन्होंने ऐसे भयानक हालात कभी नहीं देखे.
वे कहते हैं, ''मैं विश्वास नहीं कर सकता हूं कि हम भारत की राजधानी में हैं. लोगों को ऑक्सीजन नहीं मिल रही है. वे जानवरों की तरह मर रहे हैं.''
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