ऑक्सीजन सिलिंडर 35 हज़ार रुपए में ख़रीदने पर मजबूर लखनऊ के लोग

ऑक्सीजन की कमी

इमेज स्रोत, Getty Images

    • Author, दिलनवाज़ पाशा
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

अमित कुमार गुरुवार रात दस बजे ऑक्सीजन की लाइन में लगे थे, किसी तरह शुक्रवार सुबह नौ बजे वो अपना सिलिंडर भरवा सके, अब उनके पास अपने मरीज़ के लिए चौबीस घंटों की ऑक्सीजन है, उसके बाद क्या होगा, मालूम नहीं.

लेकिन लखनऊ में सब उनके जैसे ख़ुशनसीब नहीं हैं, मिसाल के तौर पर सीमा श्रीवास्तव और उनके पति राकेश श्रीवास्तव की साँसें गुरुवार शाम से उखड़ रही थीं, उनकी मदद के लिए सोशल मीडिया पर मैसेज वायरल किए गए, लोगों ने आला अधिकारियों को फ़ोन किया. 112 सेवा ने उन तक मदद पहुँचाने का भरोसा भी दिया, लेकिन कोई मदद नहीं पहुँच सकी.

गुरुवार देर रात सीमा श्रीवास्तव ने दम तोड़ दिया, उनके पति घर में ही बिस्तर पर हैं. न उनके लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था हो सकी, और न ही अस्पताल में बिस्तर की, उनके बेटे ने रोते हुए बीबीसी से कहा, "माँ चली गई, किसी तरह पापा को बचा लीजिए. कोई हमारी मदद नहीं कर रहा है."

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कोरोना महामारी ने हाहाकार मचा दिया है, न अस्पतालों में पर्याप्त बिस्तर हैं, और ना ही ऑक्सीजन.

क्या कर रही है सरकार?

समस्या काफ़ी बड़ी और गंभीर है, इस अफ़रा-तफ़री के माहौल में सरकार कुछ कोशिशें कर रही है लेकिन निकट भविष्य में पूरा समाधान संभव नहीं लगता.

राजधानी लखनऊ में ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए एक विशेष ट्रेन को झारखंड के बोकारो भेजा गया है. ये ट्रेन शनिवार शाम तक ऑक्सीजन लेकर लखनऊ पहुँचेगी, तब तक लखनऊ में बहुत सारे लोगों की जान जोखिम में है.

लखनऊ में ऑक्सीजन की उपलब्धता को लेकर इस संवाददाता ने सीएमओ, डीएम समेत कई शीर्ष अधिकारियों से बात की लेकिन कहीं से भी ठोस जानकारी नहीं मिल सकी.

ऑक्सीजन की कमी

इमेज स्रोत, Getty Images

उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह के मुताबिक़, "प्रदेश में 90 मध्यम और लघु उद्योगों के पास ऑक्सीजन उत्पादन की क्षमता है, उन्हें 280 अस्पतालों से जोड़ दिया गया है. इन अस्पतालों को यहां से ऑक्सीजन आपूर्ति की जा रही है."

प्रदेश में जारी ऑक्सीजन संकट पर उन्होंने इससे अधिक और कोई बात नहीं की.

उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में ऑक्सीजन आपूर्ति की ज़िम्मेदारी कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना को दी है. उनसे कई बार बात करने की कोशिश की गई लेकिन कोई जवाब नहीं मिल सका.

क़िस्मत और जान-पहचान के सहारे

श्रद्धा श्रीवास्तव ने अपने पिता डॉ. योगेश श्रीवास्तव के लिए किसी तरह ऑक्सीजन की व्यवस्था तो कर ली लेकिन अस्पताल में वेंटीलेटर सपोर्ट वाला बिस्तर नहीं मिल सका और गुरुवार को उनका देहांत हो गया.

श्रद्धा के भाई ने बीबीसी को बताया, "हमें एक ऑक्सीजन सिलेंडर 35 हज़ार का ख़रीदना पड़ा, दूसरा तो किसी भी दाम पर नहीं मिल रहा था."

डॉ. योगेश की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव थी, बावजूद इसके उन्हें कहीं बिस्तर नहीं मिल सका क्योंकि लखनऊ के अधिकतर अस्पतालों में ऑक्सीजन की क़िल्लत है.

अनु अपने 33 वर्षीय भाई की घर पर ही देखभाल कर रही हैं, उन्होंने बड़ी मशक़्क़त से अब तक अपने भाई के लिए चार ऑक्सीजन सिलिंडर की व्यवस्था की है, एक छोटा सिलिंडर उन्होंने 35 हज़ार देकर ब्लैक मार्केट से ख़रीदा है.

अनु कहती हैं, 'भाई का ऑक्सीजन लेवल गिर रहा है. अभी कल तक के लिए तो ऑक्सीजन है, आगे का पता नहीं. एक ख़ाली सिलिंडर रखा है उसे भरवा नहीं पा रहे हैं."

डॉ. अबु सूफ़ियान 'यूनिवर्स हॉस्पिटल' के नाम से एक छोटा अस्पताल चलाते हैं जिसमें दो वेंटीलेटर और पाँच ऑक्सीजन सपोर्टेड बेड हैं. गुरुवार को उनके अस्पताल में ऑक्सीजन ख़त्म हो गई तो उन्हें मरीज़ों को डिस्चार्ज करना पड़ा.

सूफ़ियान ने बीबीसी से कहा, "लखनऊ में कहीं भी ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं है. गाड़ी से सिलिंडर आसपास के ज़िलों में भेजे हैं. देखते हैं कहां ऑक्सीजन का इंतज़ाम हो पाता है."

लखनऊ के बड़े अस्पतालों में भी हालात बहुत अच्छे नहीं है. सहारा अस्पताल में प्रबंधन के प्रभारी ने बीबीसी से बस इतना ही कहा, "हम जैसे-तैसे करके ऑक्सीजन की व्यवस्था करने में लगे हैं, यदि ऑक्सीजन मिली तो मरीज़ भर्ती होंगे."

ऑक्सीजन की कमी

इमेज स्रोत, Getty Images

कितनी ऑक्सीजन चाहिए

मेदांता अस्पताल में कोविड के मरीज़ों की ज़िम्मेदारी संभालने वाली डॉक्टर सुशीला कटारिया कहती हैं, "80 फ़ीसदी कोविड मरीज़ों को अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत नहीं होती लेकिन जो बीस प्रतिशत अस्पताल में भर्ती होते हैं उनमें से 15 फ़ीसदी को किसी न किसी तरह से ऑक्सीजन सपोर्ट की ज़रूरत पड़ती है. उनके लिए पहली दवाई ऑक्सीजन ही होती है."

डॉ. कटारिया कहती हैं, "ब्लड थिनर, रेमडेसिविर या कोई भी दवा देने से पहले हम ऑक्सीजन ही देते हैं. सामान्यतः आक्सीजन 97-98 प्रतिशत होती है. शरीर में ऑक्सीजन कुछ देर के लिए 90-88 भी है तो व्यक्ति कुछ समय तक तो बर्दाश्त कर सकता है लेकिन अगर ऑक्सीजन लेवल इससे नीचे जाता है तो जान बचने की संभावना कम होती जाती है. ऐसे में ऑक्सीजन सबसे पहली दवा है."

डॉ. कटारिया कहती हैं, "निश्चित तौर पर गंभीर मरीज़ों को ऑक्सीजन देने पर राहत मिलती है. हर मरीज़ की ऑक्सीजन की ज़रूरत अलग होती है. कई मरीज़ों को एक सप्ताह तक ऑक्सीजन पर रखना पड़ता है."

डॉ. कटारिया कहती हैं, "यदि कोई मरीज़ गंभीर स्थिति में है तो एक बड़ा जंबो सिलिंडर चार घंटे में भी ख़त्म हो सकता है लेकिन यदि ज़रूरत सामान्य है तो वही सिलिंडर पूरा एक दिन भी चल सकता है."

कई लोग किसी भी क़ीमत पर सिलिंडर ख़रीद रहे हैं. क्या एक सिलिंडर ख़रीद लेने से जान बच सकती है?

वीडियो कैप्शन, बुखार खांसी कोरोना है, कैसे पता चलेगा?

डॉ. कटारिया कहती हैं, "ऑक्सीजन से निश्चित तौर पर संभावना बनती है. लेकिन सबसे ज़रूरी होती है निरंतर आपूर्ति जो अस्पतालों में ही मिल पाती है. घर पर सिलिंडर आपात स्थिति में जान बचा सकता है. लेकिन इस तरीक़े को चलाए रखना आसान नहीं है."

ऑक्सीजन की क़िल्लत की वजह से बहुत से लोग घर में सिलिंडर इकट्ठा करके रख रहे हैं.

डॉ. कटारिया कहती हैं, "यदि किसी के घर में गंभीर मरीज़ हैं वो ऑक्सीजन सिलिंडर ख़रीद रहा है तो समझ में आता है. लेकिन जो लोग घर में सिलिंडर रख रहे हैं वो उन मरीज़ों की संभावनाएं कम कर रहे हैं जिन्हें तुरंत ऑक्सीजन की ज़रूरत है."

कटारिया के मुताबिक़ मेदांता भी ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए बाहरी स्रोतों पर ही निर्भर है. उत्तर भारत में अधिकतर ऑक्सीजन झारखंड और ओडीशा से सप्लाई होती है.

वीडियो कैप्शन, दिल्ली समेत पीएम मोदी के चुनाव क्षेत्र का भी हाल बुरा क्यों है?

आगे आए मददगार

ऐसे समय में कई निजी संस्थान भी मदद के लिए आगे आए हैं. उत्तर प्रदेश के हमीरपुर की एक इस्पात कंपनी ने अपना ऑक्सीजन प्लांट आम लोगों के लिए खोल दिया है.

स्टील प्लांट के मालिक योगेश अग्रवाल कहते हैं, "हम ज़रूरत की ऑक्सीजन लोगों को मुफ़्त में दे रहे हैं. हम रोज़ाना 1200 सिलिंडर भर रहे थे. लेकिन ये भी नाकाफ़ी हैं. हम अब अपनी क्षमता को 1800 सिलिंडर प्रतिदिन कर रहे हैं. कोई भी ख़ाली सिलिंडर लाकर ऑक्सीजन भरवा सकता है."

स्टील प्लांट के मालिक योगेश अग्रवाल

इमेज स्रोत, Yogesh Aggarwal

इमेज कैप्शन, स्टील प्लांट के मालिक योगेश अग्रवाल

योगेश अग्रवाल कहते हैं, "उत्तर प्रदेश ऑक्सीजन की ज़रूरत पूरा करने के लिए बाहरी राज्यों पर निर्भर है. हमनें स्टील उत्पादन के लिए ये प्लांट लगाया था. हम अपना काम रोककर लोगों को ऑक्सीजन दे रहे हैं क्योंकि जान बचाना सबसे ज्यादा ज़रूरी है."

योगेश अग्रवाल मदद तो कर पा रहे हैं लेकिन संतुष्ट नहीं हैं.

वो कहते हैं, "ख़ाली ऑक्सीजन सिलिंडर कहीं उपलब्ध नहीं हैं. मैंने अपनी टीम को एक हज़ार सिलिंडर ख़रीदकर बांटने के लिए कहा है लेकिन कहीं से भी ख़ाली सिलेंडर की व्यवस्था नहीं हो पा रही है."

ऑक्सीजन की कमी

इमेज स्रोत, Getty Images

क़िल्लत की वजह क्या है?

योगेश अग्रवाल बताते हैं, "मोदीनगर के प्लांट को छोड़कर बीते तीन दशकों में यूपी में कोई नया ऑक्सीजन प्लांट नहीं लगा है. हमने एक बड़ा प्लांट लगाने की तैयारी की थी. हम सौ करोड़ रुपए का निवेश करने जा रहे थे. एक साल में ये प्लांट बन जाता लेकिन यूपी सरकार ने बिजली के रेट बढ़ा दिए और हमें अपनी योजना को रोकना पड़ा."

योगेश अग्रवाल के मुताबिक़, "ऑक्सीजन के उत्पादन में बिजली ही कच्चा माल है. प्लांट चलाने में बिजली का ख़र्च बहुत आता है. यूपी में बिजली की दरे महंगी हैं जिसकी वजह से यहां ऑक्सीजन का उत्पादन महंगा होता है और ये प्लांट चलाने में नुक़सान होता है. ओडीशा, झारखंड और दक्षिणी राज्यों में बिजली सस्ती है ऐसे में बड़े ऑक्सीजन प्लांट वहीं हैं. अगर यूपी में ऑक्सीजन प्लांट को बिजली सस्ती मिले तो यहां भी बड़े प्लांट लगाए जा सकते हैं."

वीडियो कैप्शन, कोरोना की दूसरी लहर ने उत्तर प्रदेश को कैसे तबाह कर दिया?

ऑक्सीजन माँगने वालों की अपील से सोशल मीडिया मीडिया भरा पड़ा है, लोग घबराहट में इधर-उधर फ़ोन कर रहे हैं ताकि पता चल सके कि ऑक्सीजन कहाँ से मिल सकती है. ऐसे बहुत सारे मरीज़ों ने दम तोड़ दिया जिन्हें समय पर ऑक्सीजन नहीं मिल सका, अगर उन्हें अस्पताल में बिस्तर और ऑक्सीजन मिल पाता तो उनकी जान बच सकती थी.

योगेश कहते हैं, "अभी आपदा के समय ऑक्सीजन का महत्व समझ आ रहा है, यदि पहले से इस बारे में सोचा गया होता तो आज हमें ऑक्सीजन लेने के लिए दूसरे राज्यों में नहीं भागना पड़ता. जो प्लांट हम लगाने जा रहे थे वो पूरे उत्तर प्रदेश को आपूर्ति करने में सक्षम होता."

संघर्ष जारी है

ऑक्सीजन की कमी

38 साल की आशी सिंह की साँसें टूट रही हैं. उनका ऑक्सीजन लेवल 50 के आसपास है. उनके पिता ने तम तोड़ दिया है. मां की हालत और भी ख़राब है. उनके पास ऑक्सीजन सिलिंडर उपलब्ध नहीं है.

आशी ने हर स्तर पर मदद की गुहार लगाई है लेकिन कोई उनके पास नहीं पहुँचा हैं. इस संवाददाता ने भी कई अस्पतालों से बिस्तर की उपलब्धता को लेकर संपर्क किया लेकिन कहीं बिस्तर उपलब्ध नहीं हो सका.

वीडियो कैप्शन, कोरोना के लिए रेमेडिसविर को ‘रामबाण’ न समझा जाए: डॉ. नरेश त्रेहान

एक अस्पताल के कर्मचारी का कहना था, "बिस्तर मिल भी गया तो क्या होगा, ऑक्सीजन ही नहीं मिल पा रही है."

लोगों की इस ज़रूरत ने ऑक्सीजन का ब्लैक मार्केट खड़ा कर दिया है. एक व्यक्ति ने एक सिलिंडर 58 हज़ार रुपए में बेचने की पेशकश की.

उसका कहना था, "मैंने अपने मरीज़ के लिए ये सिलिंडर इसी दाम पर ख़रीदा. वो बच नहीं सके, अब जितने में ख़रीदा है उतने में ही बेचूंगा."

इस व्यक्ति के मुताबिक़ दर्जनों लोग उससे सिलिंडर ख़रीदने के लिए संपर्क कर चुके थे लेकिन उनमें से किसी के पास इतने पैसे नहीं थे कि इस भारी दाम पर ये सिलिंडर ख़रीद लें.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)