पश्चिम बंगाल चुनाव: ममता बनर्जी क्या निराशा में विपक्षी एकता की बात कर रही हैं?

ममता बनर्जी

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    • Author, ज़ुबैर अहमद
    • पदनाम, बीबीसी संवाददाता दिल्ली

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने विपक्ष के 15 नेताओं को तीन पन्नों की एक चिट्ठी लिखी है जिसमें उन्होंने कहा है कि बीजेपी देश भर में एक पक्षीय सत्तावादी शासन स्थापित करना चाहती है.

उनका कहना है कि लोकतंत्र और संविधान पर बीजेपी के कथित हमले के ख़िलाफ़ एकजुट और प्रभावी संघर्ष का समय आ गया है.

28 मार्च को लिखी गयी ये चिट्ठी कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार, शिवसेना नेता और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के नेता और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, वाईएसआर कांग्रेस के जगन रेड्डी, नेशनल कांफ्रेंस के फ़ारूक़ अब्दुल्लाह, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और राष्ट्रीय जनता दल नेता तेजस्वी यादव और पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती को भेजी गयी.

बंगाल में विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के शुरू होने से ठीक पहले भेजी गयी इस चिट्ठी में ममता बनर्जी ने कहा, "बीजेपी ग़ैर-बीजेपी पार्टियों के लिए उनके संवैधानिक अधिकारों और स्वतंत्रता को इस्तेमाल करना असंभव बनाना चाहती है. ये राज्य सरकारों की शक्तियों को कम करना और उन्हें नगरपालिकाओं तक सीमित करना चाहती है. उन्होंने इस चिट्ठी में बीजेपी द्वारा लोकतंत्र और कोआपरेटिव फ़ेडेरलिज़्म पर कथित हमले के सात उदाहरण दिए.

नरेंद्र मोदी

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बीजेपी का जवाब

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दावा है कि ममता बनर्जी ने हार के डर से ये चिट्ठी लिखी है. पश्चिम बंगाल की एक रैली में उन्होंने कहा, "चुनाव हारने के डर से बनर्जी ने दूसरी पार्टियों के नेताओं से मदद की अपील की है".

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बुधवार को पलटवार करके कहा कि ममता की चिट्ठी "उनके डूबती नाव को बचाने" का एक प्रयास है. नड्डा ने कहा कि इस चिट्ठी का मतलब ये हुआ कि ममता बनर्जी स्वीकार करती हैं कि वो इस चुनाव में परेशानी में हैं."

सियासी विश्लेषक प्रदीप सिंह के अनुसार चिट्ठी लिखना ममता बनर्जी की निराशा को दर्शाता है.

उन्होंने कहा, "अगर ये चिट्ठी चुनाव से पहले या चुनाव के बाद लिखी जाती तो उसका अर्थ अलग होता क्योंकि उससे ये लगता कि वो विपक्ष की पार्टियों का पुनर्निर्माण चाहती हैं. बीजेपी को हराने के लिए जब तक हम सब इकट्ठा नहीं होंगे तब तक बात बनेगी नहीं, अलग-अलग राज्यों में लड़ते रहगें और हारते रहेंगे लेकिन जिस समय उन्होंने ये चिट्ठी लिखी है, हम चुनाव के बीच में हैं, दूसरे चरण के चुनाव में एक दिन बचा है, तो उससे उनकी निराशा नज़र आती है"

ममता बनर्जी

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'कांटे का मुक़ाबला'

कोलकाता में बंगाल की राजनीति पर गहरी नज़र रखने वाली अरुंधति मुखर्जी के विचार में ममता बनर्जी की चिट्ठी इस हक़ीक़त को दर्शाती है कि विधानसभा के जारी चुनाव में बीजेपी और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के बीच मुक़ाबला कांटे का हो गया है.

उनका तर्क है कि ममता बनर्जी की चिट्ठी का निशाना बंगाल कांग्रेस है. उनके अनुसार आल-इंडिया स्तर पर विपक्ष की एकता की अपील केवल एक ढोंग है.

अरुणधती मुख़र्जी कहती हैं, "ममता बनर्जी कांग्रेस का समर्थन चाहती हैं. वामपंथी दल और कांग्रेस साथ मिल कर चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन वो वाम दलों से तो समर्थन माँग नहीं सकतीं. कांग्रेस से ही माँग सकती हैं. मेरा मानना है कि चुनाव के नतीजों के बाद अगर तृणमूल कांग्रेस को 148 से कम (साधारण बहुमत के लिए दरकार नंबर) सीटें मिलेंगीं तो वो कांग्रेस का समर्थन चाहेंगी"

लेकिन आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता और पत्रकार आशुतोष कहते हैं कि ये तर्क सही नहीं है. वो अपने एक कॉलम में लिखते हैं कि बंगाल में ममता बनर्जी कमज़ोर पड़ गयी हैं, ये मान लेना समय से पहले और आधारहीन है. दूसरे, बंगाल चुनाव के लिए, उनके पास पहले से ही कई पार्टियों का समर्थन है, जिनमें अखिलेश यादव, शरद पवार और अरविंद केजरीवाल की पार्टियां शामिल हैं.

बीजेपी समर्थक

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ममता बनर्जी संकट में?

ममता बनर्जी की चिट्ठी से लगता है कि वो संकट में हैं. कांग्रेस पार्टी की इस चिट्ठी पर कोई प्रतिक्रिया अब तक सामने नहीं आयी है लेकिन प्रदीप सिंह कहते हैं ममता बनर्जी के लिए अब देर हो चुकी है.

वो कहते हैं, "मुझे नहीं लगता है कि कांग्रेस मानेगी क्योंकि कई मौक़ों पर ममता बनर्जी राहुल गाँधी की लीडरशिप को नकारती रही हैं. सोनिया गांधी की प्रशंसा करती हैं, राहुल गांधी की आलोचना करती हैं. लेकिन अभी कांग्रेस में वही होगा जो राहुल गांधी चाहेंगे. राजनीति में कुछ भी हो सकता है लेकिन अभी ये संभव नहीं है. अभी आप चुनाव अभियान में शामिल हैं, दूसरे दौर का चुनाव हो रहा है. इस समय इस तरह की बातें नहीं हो सकतीं"

राहुल गांधी

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इसके अलावा अरुंधति चटर्जी के अनुसार बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी इस समय बिल्कुल नहीं चाहेंगे कि तृणमूल कांग्रेस की मदद की जाए.

उन्होंने चिट्ठी के बारे में प्रतिक्रिया देते समय ज़ोर से हँसते हुए कहा कि उनकी पार्टी और लेफ़्ट मोर्चा गठबंधन बनाकर, एक साथ मिलकर, चुनाव जीतने की कोशिश कर रहे हैं. ममता बनर्जी पर ये इलज़ाम है कि जिस बात के लिए वो बीजेपी का विरोध कर रही हैं वही काम उन्होंने बंगाल में किया, यानी लेफ्ट फ्रंट और कांग्रेस को राज्य में ख़त्म करने के लिए ज़रुरत से अधिक कोशिश करती रहीं जिसके नतीजे में वहां एक सियासी वैक्यूम पैदा हो गया जिसे बीजेपी ने भर दिया.

प्रदीप सिंह के विचार में ममता बनर्जी विपक्ष की एकता की बात करती हैं लेकिन वो ख़ुद "पिक एंड चूज़" करती रही हैं कि किस पार्टी के साथ जाएंगी और किसके साथ नाहीं जाएंगी. वो कहते हैं, "शर्तों पर तो एकता नहीं होती."

सोनिया गांधी- राहुल गांधी

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विपक्ष की एकता संभव है?

ममता बनर्जी विपक्ष की एकता की बात करने वाली अकेली नेता नहीं हैं. तमिलनाडु में डीएमके के नेता एम.के. स्टालिन ने कुछ दिन पहले राहुल गांधी के साथ एक चुनावी अभियान के दौरान विपक्ष की एकता की बात की और राहुल गांधी से इसका नेतृत्व करने की अपील की.

तमिलनाडु में छह अप्रैल के विधानसभा चुनावों के लिए सलेम में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित करते हुए एमके स्टालिन ने आरोप लगाया कि भारत "सांप्रदायिक, फासीवादी" ताक़तों के कारण घुट रहा है और राहुल गांधी के पास राष्ट्र की रक्षा करने की एक बड़ी ज़िम्मेदारी है."

सियासी विश्लेषक प्रदीप सिंह के मुताबिक़ विपक्ष की एकता एक जायज़ लक्ष्य है. "किसी एक पार्टी का वर्चस्व नहीं होना चाहिए. एक मज़बूत विपक्ष लोकतंत्र के लिए बहुत ज़रूरी है". लेकिन विपक्ष में फूट को ख़त्म करने के लिए पहले भी कई बार क़दम उठाये गए हैं लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली है.

स्वतंत्र भारत के इतिहास में सत्तारूढ़ बड़ी पार्टी के ख़िलाफ़ विपक्ष की एकता का रिकॉर्ड मिला जुला रहा है.

1977 में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ कई द्विपक्षीय पार्टियां इकट्ठा हुईं, सरकार भी बनाई लेकिन ये दो साल में फूट का शिकार हो गयी.

"इंदिरा हटाओ" के नारे में दम न रहा और 1980 में इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हुई. हाल के सालों में विपक्षी दलों ने "मोदी हटाओ या बीजेपी हटाओ" के नारे के तहत एकत्रित होने की कई बार कोशिश की लेकिन किसी बड़ी सफलता के बग़ैर.

26 जून 2018 के दिन बेंगलुरु में मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष का हर अहम नेता मौजूद था. ऐसा लग रहा था कि 2019 के आम चुनाव में विपक्ष बीजेपी को सही मायने में चुनौती दे सकती है. लेकिन बीजेपी चुनाव के बाद और भी मज़बूत बन कर उभरी.

अमित शाह

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बीजेपी विरोध में कैसे बनेगा मोर्चा?

सियासी विश्लेषक अरुंधति मुखर्जी कहती हैं कि विपक्ष की एकता ज़रूरी है लेकिन मोदी के विरुद्ध विपक्ष में कोई क़द्दावर नेता नज़र नहीं आता. स्टालिन ने राहुल गाँधी से विपक्ष की एकता का नेतृत्व की अपील की है लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि पहले वो अपनी पार्टी की कमान तो संभालें, फिर विपक्ष के नेतृत्व के लिए आगे बढ़ें. वैसे भी इस में कोई संदेह नहीं कि विपक्ष का लीडर कौन होगा ये एकता की राह में सब से बड़ी रुकावट है.

बंगाल चुनाव के बाद विपक्ष के बीच एकता की कोशिश की जा सकती है लेकिन तब तक ममता बनर्जी की इसमें दिलचस्पी बाक़ी रहेगी या नहीं, ये कहना अभी मुश्किल है.

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