मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटक: एनआईए को जाँच सौंपने पर शुरू हुई राजनीति

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- Author, प्रवीण शर्मा
- पदनाम, बीबीसी हिंदी के लिए
मुंबई में मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटकों से भरी हुई एसयूवी मिलने के मामले में अब महाराष्ट्र की राजनीति में बवाल मच गया है.
दरअसल, रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के चेयरमैन मुकेश अंबानी के घर के पास मिली स्कॉर्पियो के मालिक मनसुख हिरेन से पूछताछ की थी. उनकी लाश शुक्रवार सुबह मुंब्रा खाड़ी में पाई गई थी.
मनसुख हिरेन की मौत का मामला मर्डर के तौर पर महाराष्ट्र पुलिस ने दर्ज किया था. बाद में इस पूरे मामले को महाराष्ट्र एंटी टेररिज्म स्क्वॉड (एटीएस) को सौंप दिया गया. सोमवार को केंद्र सरकार ने इस मामले को नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) के सौंप दिया.
इसके बाद ही पूरे मामले ने सियासत का रंग ले लिया. कुछ दिन पहले मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया के पास एक लावारिस एसयूवी खड़ी मिली थी. इस एसयूवी में जिलेटिन की छड़ें मिली थीं.
बताया जा रहा था कि मनसुख हिरेन ही इस गाड़ी के मालिक थे और पुलिस ने उनसे पूछताछ भी की थी. बाद में मुंब्रा खाड़ी से हिरेन की लाश मिली थी.
उद्धव ठाकरे और अनिल देशमुख ने उठाए सवाल
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को इसमें "दाल में कुछ काला" नजर आया. ठाकरे ने कहा, "एटीएस इस मामले की जांच कर रही थी, लेकिन इसके बावजूद केंद्र ने इसे एनआईए को सौंप दिया. इसका मतलब है कि दाल में कुछ काला है. हम तब तक हार नहीं मानेंगे जब तक कि इसका खुलासा नहीं कर देते."
महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने केंद्र की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा, "हमारी नजर में यह एक गलत फैसला है. खासतौर पर तब जबकि राज्य की एजेंसियां सही दिशा में आगे बढ़ रही थीं. मुंबई पुलिस बेहद सक्षम और प्रोफेशनल है. लेकिन, चूंकि यह केस एनआईए को दे दिया गया है, ऐसे में हम उनके साथ सहयोग करेंगे."
देशमुख ने कहा कि हालांकि, एनआईए विस्फोटक से जुड़े मामले की जांच करेगी लेकिन, मनसुख हिरेन की मौत से जुड़ा मामला एटीएस के पास ही रहेगा.
दरअसल, 5 मार्च को बीजेपी के नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विधानसभा में मांग की थी कि मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटकों से लदी एसयूवी मिलने वाले मामले की जांच नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) को सौंपी जानी चाहिए.
उन्होंने ये भी कहा था कि इस गाड़ी के मालिक और एक पुलिस अधिकारी के बीच फोन पर बात भी हुई थी.
महाराष्ट्र टाइम्स के सीनियर असिस्टेंट एडिटर विजय चोरमारे कहते हैं, "इस मसले पर राजनीति चल रही है. हम यह चीज भीमा कोरेगांव के मामले के वक्त से देख रहे हैं. उस वक्त फडणवीस सरकार ने पुलिस का इस्तेमाल अपने तरीके से किया और पूरी जांच को मोड़ दिया. उस हिसाब से एल्गार परिषद के लोगों को अरेस्ट किया गया."
"बाद में महाविकास अघाड़ी की सरकार आई और शरद पवार ने इस मामले को लेकर बयान दिया. जब राज्य के गृहमंत्री ने इस मामले की जांच दोबारा कराने की बात की तो केंद्र ने इस मामले को एनआईए को सौंप दिया. बाद में ऐसा ही सुशांत सिंह राजपूत के मामले में हुआ. केंद्र की तमाम एजेंसियों को इसमें लगा दिया गया."
राज्य में शिवसेना की अगुवाई वाली कांग्रेस और एनसीपी की मिलीजुली महा विकास अघाड़ी सरकार बनने के बाद से ही महाराष्ट्र सरकार और केंद्र के बीच तनातनी का दौर जारी है.
इस बीच कई मसले ऐसे आए हैं जबकि दोनों के बीच राजनीतिक टकराव चरम पर पहुंच गया. इनमें भीमा कोरेगांव हिंसा, सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या मामला, रिया चक्रवर्ती ड्रग्स केस जैसे मामले शामिल हैं. इन मामलों में महाराष्ट्र में हुए मामलों की जांच केंद्रीय एजेंसियों को सौंपे जाने को लेकर सियासी संग्राम छिड़ गया था.
किस मकसद से सौंपी गई एनआईए को जांच?
वरिष्ठ पत्रकार वेंकटेश केसरी कहते हैं कि भीमा कोरेगांव वाला मामला जब एनआईए को सौंपा गया तो बात समझ में आ रही थी. लेकिन, अब अंबानी के घर के पास विस्फोटकों से लदी एसयूवी मिलने की जांच एनआईए को सौंपना समझ नहीं आता.
वे कहते हैं, "क्या ये लीपापोती वाला मामला है या केंद्र को राज्य की जांच पर पूरा भरोसा नहीं है. ये एक हाईप्रोफाइल केस है. इससे एक चीज तो दिख ही रही है कि राज्य और केंद्र के बीच टकराव के हालात हैं."
वेंकटेश केसरी कहते हैं, "राज्य सरकार ने एनआईए जांच की मांग नहीं थी. फिर केंद्र ने अपनी तरफ से इसका फैसला क्यों किया? इसका मकसद क्या है? क्या इसमें कुछ खोजना है या कुछ दबाना है?"
भीमा कोरेगांव की जांच के वक्त शरद पवार ने एक स्टैंड लिया था. उन्होंने कहा था कि पुलिस ने इसकी जांच निष्पक्ष तरीके से नहीं की है. जब नई सरकार आई तो उन्होंने इसकी जांच फिर से कराने की बात की. लेकिन, तब केंद्र ने इसे एनआईए को सौंप दिया.
तब मसला ये था कि उन्हें लग रहा था कि उद्धव सरकार इस जांच में कुछ नए खुलासे कर सकती है और उन्हें उससे रोकना था. लेकिन, अभी ऐसा नहीं है. दोनों सरकारें आपस में तालमेल करके इसकी जांच कर सकती थीं.
केसरी कहते हैं कि अभी इस मामले में चीजें बदल रही हैं और ऐसे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता है. लेकिन, इस पूरे मामले में संदेह जरूर बना हुआ है.
पिछले साल जनवरी में केंद्र ने 2018 में भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के मामले को एनआईए को सौंप दिया था. केंद्र के इस फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने केंद्र पर हमला बोलते हुए कहा था कि राज्य सरकार से पूछे बिना केंद्र ने इस मामले को एनआईए को सौंप दिया.
सुशांत सिंह राजपूत, रिया चक्रवर्ती मामले में भी आपस में ठनी
इसके बाद जून 2020 में अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या वाले मामले में भी केंद्र ने जांच को सीबीआई को सौंप दिया था. इसे लेकर दोनों बीजेपी की केंद्र सरकार और शिवसेना की महाराष्ट्र सरकार आमने-सामने आ गए थे.
इसी मामले में रिया चक्रवर्ती और अन्य लोगों पर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने कार्रवाई करते हुए ड्रग्स की तलाश में छापे मारे थे. इसके बाद के घटनाक्रम में रिया, उनके भाई समेत कई लोगों को जेल भी भेजा गया.
इसके अलावा, सुशांत सिंह राजपूत के कथित 15 करोड़ रुपये के हेरफेर के मामले में रिया की जांच ईडी ने शुरू कर दी. सुशांत की आत्महत्या को लेकर चले तमाम नाटकीय घटनाक्रमों पर जमकर सियासत चली. इस सब में महाराष्ट्र सरकार और केंद्र सरकार के बीच लगातार टकराव के हालात बने रहे.
सुशांत सिंह की आत्महत्या के मामले को लेकर ही रिपब्लिक टीवी और महाराष्ट्र सरकार के बीच खींचतान चलती रही. इन सब मसलों को देखते हुए पिछले साल अक्तूबर में महाराष्ट्र ने राज्य में सीबीआई की जांच के लिए दी जाने वाली आम सहमति वापस ले ली थी.
दरअसल, उत्तर प्रदेश पुलिस ने टीआरपी मामले में अज्ञात चैनलों और लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था और बाद में इसे सीबीआई को सौंप दिया था. इसके बाद लगने लगा था कि सीबीआई जांच के लिए महाराष्ट्र में दर्ज हुए टीआरपी के केस को भी टेकओवर कर सकती है.
इसे देखते हुए ही महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में सीबीआई की जांच को मिली हुई आम सहमति वापस ले ली थी.
टीआरपी मामले में ही ईडी को भी जांच सौंपी गई थी
चोरमारे कहते हैं कि महाराष्ट्र ने भले ही सीबीआई को राज्य में जांच करने की इजाजत नहीं दी है. लेकिन, वे एनआईए को मना नहीं कर सकते हैं.
चोरमारे कहते हैं कि इस मामले में शिवसेना के नजदीकी पुलिस अफसर सचिन वाजे इस पूरे मामले में शक के घेरे में हैं. वे कहते हैं, "केंद्र सरकार को लग रहा है कि वह शिवसेना सरकार को मुश्किल में डाल सकती है."
वे कहते हैं कि भले ही गृह मंत्री अनिल देशमुख कह रहे हैं कि मनसुख हरेन की मौत की जांच एटीएस करेगी, और एनआईए एंटीलिया के बाहर विस्फोटकों से भरी एसयूवी मिलने के मामले की जांच करेगी. लेकिन, जब एनआईए इसकी जांच करेगी तो उसके दायरे में एसयूवी के मालिक, उनकी मौत और दूसरी सभी अहम चीजें अपने आप आ जाएंगी.
चोरमारे कहते हैं कि इस मामले में राजनीति और गहराने के आसार हैं.
महाराष्ट्र बीजेपी की एनआईए जांच की मांग करने की वजह यह है कि वे साबित करना चाहते हैं कि राज्य सरकार काम नहीं करती और इस मामले की जांच नहीं कर सकती है. वे इस बहाने से राज्य सरकार को घेरना चाहते हैं.
पुलिस अफसर सचिन वाजे की भूमिका पर सवाल
एसयूवी के मालिक बताए जाने वाले हिरेन मनसुख की रहस्यमयी मौत को लेकर विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने मुंबई पुलिस के एक अफसर को अरेस्ट किए जाने की मांग की है. पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस ने एफआईआर में मनसुख की पत्नी के बयान को पढ़ा, जिसमें उनकी मौत के पहले के घटनाक्रमों का जिक्र किया गया है.
असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वाजे फिलहाल क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट में तैनात हैं और वे मुकेश अंबानी के घर के पास पाई गई एसयूवी के मामले की जांच कर रहे थे. बाद में उन्हें हटाकर एक अन्य अफसर को इसकी जांच सौंप दी गई.
फडणवीस ने कहा, "सचिन वाजे को दंड दिया जाना चाहिए. आप उन्हें सबूत नष्ट करने का मौका दे रहे हैं. केवल इस वजह से कि वे एक खास राजनीतिक पार्टी में आए थे, उन्हें बचाया जा रहा है. उन्हें पुलिस में वापस लिया ही नहीं जाना चाहिए था. सबसे पहले उन्हें निलंबित किया जाना चाहिए."
विजय चोरमारे कहते हैं कि सचिन वाजे शिवसेना में शामिल हुए थे और बाद में फिर से पुलिस सेवा में वापस आ गए. वे कहते हैं कि इस पूरे मामले में उनकी भूमिका निश्चित तौर पर संदिग्ध जान पड़ती है.
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