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श्रीलंका ने क़रार रद्द करने के बाद भारत को फिर चौंकाया- प्रेस रिव्यू
श्रीलंका ने मंगलवार को कहा है कि कोलंबो पोर्ट पर वेस्ट कंटेनर टर्मिनल (WCT) भारत और जापान के साथ मिलकर बनाएगा.
इससे पहले श्रीलंका की राजपक्षे सरकार ने 2019 के त्रिपक्षीय क़रार से भारत और जापान को बाहर कर दिया था. यह क़रार ईस्ट कंटेनर टर्मिनल के लिए था. अब एक महीने बाद श्रीलंका ने भारत और जापान के साथ वेस्ट कंटेनर टर्मिनल बनाने का फ़ैसला किया है.
अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू ने इस ख़बर को पहले पन्ने की दूसरी लीड बनाई है. अख़बार ने लिखा है कि सोमवार को हुई कैबिनेट बैठक में यह फ़ैसला लिया गया. सरकार के प्रवक्ता केहेलिया रामबुकवेला ने कहा कि WCT को बनाने के लिए निवेशक के तौर पर भारत और जापान के नामांकन को मंज़ूरी दे दी गई है.
श्रीलंका में भारतीय उच्चायोग ने ईस्ट कंटेनर टर्मिनल के लिए अडाणी पोर्ट को मंज़ूरी दी थी. इस मामले में न तो भारत ने और न ही जापान ने कोई आधिकारिक टिप्पणी की है.
द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका इस मामले में अडाणी पोर्ट से सीधे बात कर रहा है और इसमें भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं है. 2019 के त्रिपक्षीय क़रार रद्ध होने पर जापान और भारत दोनों ने नाराज़गी जताई थी.
श्रीलंका ने अचानक से एकतरफ़ा क़रार रद्द करने के फ़ैसला ले लिया था. क़रार तत्कालीन मैत्रिपाला सिरीसेना-रनिल विक्रमसिंघे सरकार में हुआ था. इस क़रार को लेकर श्रीलंका के भीतर विरोध हो रहा था.
द हिन्दू ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि राजपक्षे सरकार ने भारत और जापान को वेस्ट कंटेनर टर्मिनल विकल्प के रूप में दिया है लेकिन ये बहुत जोखिम भरा है.
ईस्ट कंटेनर टर्मिनल प्रोजेक्ट को लेकर पहले श्रीलंका पोर्ट्स अथॉरिटी से समझौता हुआ था और इसमें उसका शेयर 51 फ़ीसदी था. लेकिन इस बार वेस्ट कंटेनर टर्मिनल में भारत और जापान का हिस्सा 85 फ़ीसदी है.
रामबुकवेला से पूछा गया कि इस बार कैसे सहमति बनी तो उन्होंने कहा कि विरोध ईसीटी को लेकर था. यह 70 करोड़ डॉलर का प्रोजेक्ट है.
वेस्ट कंटेन टर्मिनल चीन संचालित कोलंबो इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल के पास में ही है. चीन के इस टर्मिनल को लेकर भारत की चिंताएं थीं. श्रीलंका में चीन की बढ़ती मौजूदगी भारत के लिए सामरिक लिहाज से चिंतित करने वाला है.
श्रीलंका ने भारत और जापान को यह विकल्प तब मुहैया काराया है जब श्रीलंका को यूएन मानवाधिकार काउंसिल के सत्र में भारत के समर्थन की ज़रूरत है. यहाँ श्रीलंका में मानवाधिकार के ख़राब रिकॉर्ड पर एक वोटिंग होने वाली है. श्रीलंका ने इस मामले में भारत से पहले ही सहयोग की अपील की है.
इसके अलावा श्रीलंका आर्थिक संकट से भी जूझ रहा है. कोविड-19 महामारी के कारण श्रीलंका का पर्यटन उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हुआ है और विदेशी क़र्ज़ भी लगातार बढ़ रहा है.
पिछले साल जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी ने प्रस्तावित लाइट रेल ट्रांजिट के लिए फंड रोक दी थी. स्थानीय मीडिया के अनुसार जापान ने श्रीलंका पर बढ़ते विदेशी क़र्ज़ के कारण यह फ़ैसला किया था.
श्रीलंका पर कुल विदेशी क़र्ज़ क़रीब 55 अरब डॉलर है और यह श्रीलंका की जीडीपी का 80 फ़ीसदी है. इस क़र्ज़ में चीन और एशियन डेवेलपमेंट बैंक का 14 फ़ीसदी हिस्सा है. जापान का 12 फ़ीसदी, विश्व बैंक का 11 फ़ीसदी और भारत का दो फ़ीसदी हिस्सा है.
बीजेपी के ख़िलाफ़ प्रचार करेगा संयुक्त किसान मोर्चा
किसान संगठनों ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर दबाव बनाने के लिए फ़ैसला किया है कि जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं, वहाँ संयुक्त किसान मोर्चा बीजेपी का विरोध करेगा. मंगलवार को संयुक्त किसान मोर्च ने फ़ैसला किया कि चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में वो अपनी टीम भेजेगा. द हिन्दू में ये ख़बर पेज संख्या नौ पर छपी है.
इस मामले में प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर जानकारी देते हुए पंजाब के किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा, ''हम किसी पार्टी को समर्थन करने के लिए नहीं कहेंगे लेकिन हम ये ज़रूरत कहेंगे कि बीजेपी को वोट ना करें. हम लोगों से कहेंगे कि मोदी सरकार किसानों को लेकर असंवेशनशील है और हम बीजेपी के प्रॉपेगैंडा के ख़िलाफ़ लड़ेंगे. यह सरकार केवल चुनाव, वोट और सीट की भाषा समझती है. ऐसे में हम चुनाव वाले राज्यों में जाएंगे.''
गुजरात में कांग्रेस फिर हुई किनारे
गुजरात में बीजेपी ने शहरों के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में पकड़ मज़बूत करते हुए 31 ज़िला पंचायतों में जीत दर्ज की है. हिन्दी अख़बार दैनिक जागरण ने बीजेपी की इस जीत की ख़बर पहले पन्ने पर प्रकाशित की है. अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी ने तहसील पंचायत और नगरपालिका में भी प्रचंड जीत दर्ज की है.
हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष ने अपने पदों से इस्तीफ़ा दे दिया है. गुजरात में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं और बीजेपी अपनी इस जीत को विधानसभा में जीत से जोड़ रही है.
वहीं कांग्रेस खेमे में ख़ामोशी है. हार्दिक पटेल पर भी सवाल उठ रहे हैं कि उनके होने का पार्टी को कोई फ़ायदा नहीं हुआ. वहीं आम आदमी पार्टी ने सूरत के बाद गाँवों में भी सफलता हासिल की है. आम आदमी पार्टी को कुल 47 सीटों पर जीत मिली है.
गुजरात में शहरों के बाद अब ग्रामीण इलाक़ों में भी कांग्रेस जनसमर्थन खोती दिख रही है. गुजरात की 33 में से 31 ज़िला पंचायतों, 231 तहसील पंचायतों और 81 नगरपालिकाओं के लिए रविवार को मतदान हुआ था.
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