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किसान नेताओं और सरकार के बीच 15 जनवरी को फिर होगी बातचीत
दिल्ली की सीमाओं पर लगभग डेढ महीने से जुटे प्रदर्शकारी किसान के नेताओं और सरकार के बीच विज्ञान भवन में शुक्रवार को आठवें दौर की बातचीत हुई, जो किसी नतीजे पर नहीं पहुँची.
दोनों पक्ष फ़िलहाल इस पर राज़ी हुए हैं कि 15 जनवरी को फिर से बातचीत की जाएगी.
विज्ञान भवन के बाहर मौजूद बीबीसी संवाददाता अरविंद छाबड़ा के मुताबिक़, शुक्रवार को किसान नेताओं का कहना था कि ''सरकार क़ानूनों में संशोधन की बात कर रही है, परन्तु हम क़ानून वापस लेने के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे. सरकार ने हमें कहा कि कोर्ट में चलो. हम ये नहीं कह रहे कि ये नए कृषि क़ानून ग़ैर-क़ानूनी हैं. हम इसके ख़िलाफ़ हैं. इन्हें सरकार वापस ले. हम कोर्ट में नहीं जाएंगे. अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे.''
संवाददाताओं ने जब ये पूछा कि क्या किसान नेता इस मामले में कोर्ट का रूख़ करेंगे, तो उन्होंने इससे इंकार किया और कहा कि ''किसान का सीधा सवाल सरकार के साथ है, हम कोर्ट नहीं जाएंगे. सरकार के क़ानूनी अधिकार को चुनौती नहीं दी जा रही है, लेकिन ये क़ानून ग़लत हैं जिन्हें हम ख़त्म कराकर ही पीछे हटेंगे.''
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक़, ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव हन्नान मुल्लाह ने कहा कि ''बातचीत के दौरान, गरम बहस हुई और हमने कह दिया कि हम क़ानूनों को हटाने के सिवा कुछ नहीं चाहते. ऐसा नहीं होगा तो लड़ाई जारी रहेगी. 26 जनवरी को हमारी प्रस्तावित ट्रैक्टर परेड पूर्व योजना के मुताबिक़ होगी.''
शुक्रवार की बातचीत के बारे में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैट ने कहा, ''तारीख़ पर तारीख़ चल रही है. बैठक में सभी किसान नेताओं ने एक आवाज़ में बिल रद्द करने की माँग की. हम चाहते हैं बिल वापस हो, सरकार चाहती है संशोधन हो, सरकार ने हमारी बात नहीं मानी तो हमने भी सरकार की बात नहीं मानी.''
वहीं केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने संवाददाताओं से कहा, ''किसान यूनियन और सरकार दोनों ने 15 जनवरी को दोपहर 12 बजे बैठक का निर्णय लिया है. मुझे आशा है कि 15 जनवरी को कोई समाधान निकलेगा. आज किसान यूनियन के साथ तीनों कृषि क़ानूनों पर चर्चा होती रही परन्तु कोई समाधान नहीं निकला. सरकार की तरफ़ से कहा गया कि क़ानूनों को वापस लेने के अलावा कोई विकल्प दिया जाए, परन्तु कोई विकल्प नहीं मिला.''
केंद्रीय मंत्री ने कहा, ''सरकार ने बार-बार कहा है कि किसान यूनियन अगर क़ानून वापस लेने के अलावा कोई विकल्प देंगी तो हम बात करने को तैयार हैं. आंदोलन कर रहे लोगों का मानना है कि इन क़ानूनों को वापस लिया जाए. लेकिन देश में बहुत से लोग इन क़ानूनों के पक्ष में हैं.''
किसान यूनियनों और सरकार की बैठक पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने संवाददाताओं से कहा, ''केवल इन तीन क़ानूनों को ख़त्म करने, न करने का विषय नहीं है, उसके अंदर कई प्रावधान हैं जिस पर बात चल रही है. अगर सिर्फ कृषि क़ानूनों को वापस लेने तक की बात होती तो अब तक ये बातचीत समाप्त हो चुकी होती.''
इससे पहले, सोमवार को दोनों पक्षों के बीच सातवें दौर की बातचीत हुई थी जिसका कोई नतीजा नहीं निकला था.
प्रदर्शनकारी किसानों की दो प्रमुख माँगे हैं. वो चाहते हैं कि नए कृषि क़ानूनों को हटाया जाए और न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए क़ानूनी गारंटी का प्रावधान किया जाए.
आठवें दौर की बातचीत से एक दिन पहले गुरुवार को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सिखों के धार्मिक नेता बाबा लक्खा सिंह से मुलाक़ात की थी जो प्रदर्शन वाली जगहों पर लंगरों का आयोजन कर रहे हैं.
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