गायों पर ज्ञान बढ़ाने के लिए देशभर में होगा एग्ज़ाम

कामधेनु गौ विज्ञान प्रचार प्रसार परीक्षा

इमेज स्रोत, ANI

    • Author, प्रवीण शर्मा
    • पदनाम, बीबीसी हिंदी के लिए

केंद्रीय पशुपालन विभाग गायों को लेकर देशव्यापी परीक्षा कराने जा रहा है. दरअसल, केंद्र के पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत एक आयोग बनाया गया है जिसका नाम है 'राष्ट्रीय कामधेनु आयोग.'

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग अपनी तरह की पहली कामधेनु गौ विज्ञान प्रचार प्रसार परीक्षा आयोजित करने जा रहा है. राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के चेयरमैन वल्लभभाई कथीरिया ने बताया है कि यह परीक्षा हर साल कराई जाएगी. केंद्रीय पशुपालन और डेयरी मंत्रालय की ज़िम्मेदारी गिरिराज सिंह संभाल रहे हैं.

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, "हम 25 फ़रवरी 2021 से राष्ट्रीय स्तर पर कामधेनु गौ विज्ञान प्रचार प्रसार परीक्षा कराने जा रहे हैं. गाय में एक पूरा विज्ञान है जिसे खंगाला जाना ज़रूरी है. देश की अर्थव्यवस्था को पाँच लाख करोड़ रुपये पर पहुँचाने में यह एक अहम भूमिका निभाएगा."

लेकिन, डेयरी सेक्टर के जानकार गौ विज्ञान परीक्षा को एक परसेप्शन बनाने की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं. डेयरी एक्सपर्ट कुलदीप शर्मा कहते हैं, "ये एक तरह की सोच बनाने की कोशिश हो रही है. हालांकि, देसी गायों के प्रति लोगों की जानकारी बढ़ाने के लिहाज़ से यह ठीक है."

वे कहते हैं, "लेकिन, अगर किसानों से पूछा जाए तो वे इनसे होने वाली कमाई का पैसे-पैसे का हिसाब बता देंगे. जानकारी बढ़ाने के लिहाज़ से ये क्विज़ ठीक हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर गायों से किसानों की कमाई कितनी है और कैसे बढ़ेगी इसके लिए नीतियां बनाना ज़्यादा महत्वपूर्ण है. गायों के संबंध में सरकारी नीतियां समझ से परे हैं. किसान अपनी गायें बेच नहीं पाते हैं और वे उन पर बोझ बनी रहती हैं. गायों के ट्रांसपोर्टेशन की भी एक बड़ी समस्या है."

कामधेनु गौ विज्ञान प्रचार प्रसार परीक्षा

इमेज स्रोत, ANI

परीक्षा का ब्योरा

यह परीक्षा हिंदी और अंग्रेज़ी के अलावा 12 क्षेत्रीय भाषाओं में कराई जाएगी. कथीरिया ने कहा, "कामधेनु गौ विज्ञान प्रचार प्रसार परीक्षा एक ऑनलाइन एग्ज़ाम होगा जिसमें हिंदी, अंग्रेज़ी और 12 क्षेत्रीय भाषाओं में 75 बहुविकल्पीय सवाल होंगे."

यह परीक्षा एक घंटे की होगी और इसमें चार कैटेगरीज़ होंगी. यह परीक्षा प्राइमरी लेवल (8वीं कक्षा तक के), सेकेंडरी लेवल (कक्षा 9 से 12 तक), कॉलेज लेवल (12वीं के बाद) और आम लोगों के लिए होगी. इस परीक्षा के लिए कोई रजिस्ट्रेशन शुल्क नहीं लिया जाएगा.

इस परीक्षा से संबंधित संदर्भ किताबों और दूसरे स्टडी मैटेरियल को कामधेनु आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध कराया गया है. परीक्षा के नतीजे 26 फ़रवरी 2021 को घोषित कर दिए जाएंगे. इसमें सफल होने वाले प्रतिभागियों को नक़द पुरुस्कार/सर्टिफ़िकेट दिए जाएंगे.

कामधेनु गौ विज्ञान प्रचार प्रसार परीक्षा

इमेज स्रोत, ANI

क्या है कामधेनु आयोग?

2019 के अंतरिम बजट में वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने कामधेनु आयोग बनाने का ऐलान किया था. बजट भाषण में उन्होंने कहा था, "मुझे राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के गठन का ऐलान करते हुए गर्व हो रहा है ताकि गौ संसाधन के स्थायित्व भरे जेनेटिक अपग्रेडेशन को किया जा सके. साथ ही गायों के उत्पादन और उत्पादकता को भी बढ़ाया जा सके."

उन्होंने कहा था कि यह आयोग गायों से संबंधित क़ानूनों और वेल्फ़ेयर स्कीमों को प्रभावी तौर पर लागू करने का भी काम करेगा. गोयल ने अपने बजट भाषण में कहा था, "गोमाता के सम्मान में और गोमाता के लिए यह सरकार कभी पीछे नहीं हटेगी और इसके लिए जो भी ज़रूरी होगा किया जाएगा."

इसी बजट में राष्ट्रीय गोकुल मिशन के लिए बजट आवंटन को भी बढ़ाकर 750 करोड़ रुपये करने का ऐलान किया गया था.

कामधेनु गौ विज्ञान प्रचार प्रसार परीक्षा

इमेज स्रोत, ANI

देसी नस्लों पर ज़ोर

कामधेनु आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर लिखा गया है कि आधुनिक और वैज्ञानिक तर्ज़ पर गायों का पशुपालन करने और नस्लों को संरक्षित करने और उनमें सुधार करने, गायों, बछड़ों के कटान को रोकने के लिए राष्ट्रीय कामधेनु आयोग का गठन किया गया है.

पशुपालन मंत्रालय के मुताबिक़, भारत में गायों की 43 नस्लें पाई जाती हैं. गोवंश की प्रजातियों के लिहाज़ से देश में बड़ी विविधता है. लंबे वक़्त से भारत कोशिश कर रहा है कि गायों की घरेलू नस्लों को प्रोत्साहित किया जाए और उनकी उत्पादकता बढ़ाई जाए.

कामधेनु आयोग की वेबसाइट पर परीक्षा की तैयारी के लिए डाले गए मैटेरियल में भी विदेशी जर्सी गायों के मुक़ाबले भारतीय गायों की श्रेष्ठता को बताया गया है. हालांकि, एक्सपर्ट सरकार के देसी गायों पर ज़ोर दिए जाने और जर्सी गाय पालने को हतोत्साहित करने पर भी सवाल उठा रहे हैं.

कामधेनु गौ विज्ञान प्रचार प्रसार परीक्षा

इमेज स्रोत, ANI

कुलदीप शर्मा कहते हैं कि मुझे पशुओं में भेदभाव करने की बात समझ नहीं आती है. भारत में डेयरी सेक्टर मोटे तौर पर तीन हिस्सों में बंटा हुआ है. इसमें 50 फ़ीसद हिस्सा तो भैंसों का है, इसके बाद 30-35 फ़ीसद देसी गायें हैं, बाक़ी 10-15 फ़ीसद एचएफ़ या जर्सी गायें हैं.

शर्मा कहते हैं, "आप देसी गायों की सुरक्षा करें, यह अच्छी बात है. लेकिन, क्या पूरे देश में केवल देसी गायों का दूध रखा जाए और बाक़ी को ख़त्म कर दिया जाए तो यह चीज़ समझ नहीं आती. किसी भी चीज़ के बदलाव के लिए किसी भी दूसरी चीज़ को ख़त्म करना क्यों ज़रूरी है."

"जो स्कीमें आ रही हैं उनमें भी देसी गायों से जुड़ी शर्तें लगा दी जाती हैं. देसी गायों वाली स्कीमों को ज़्यादा ज़ोरशोर से बढ़ावा दिया जाता है. ये दिशा ठीक नहीं है. जिस तरह से देसी गायों और जर्सी गायों की तुलना की जा रही है और उसमें देसी गायों के दूध को अच्छा बताया जा रहा है, ये जानकारियां वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित नहीं हैं और ना ही प्रामाणिक हैं."

कामधेनु गौ विज्ञान प्रचार प्रसार परीक्षा

इमेज स्रोत, ANI

नीतियों पर सवाल

शर्मा कहते हैं कि पहले से ही सरकार गोकुल मिशन चला रही है और उसके पीछे मक़सद ये था कि जब आप गायों के स्लॉटर को बैन करेंगे तो उसमें बड़े पैमाने पर गोशालाओं को बनाना पड़ेगा.

वे कहते हैं, "लेकिन, क्या ये गोशालाएं सभी आवारा गायों को रख पा रही हैं? इनका कामकाज कैसे चल रहा है, ये सब जानते हैं."

कुलदीप शर्मा कहते हैं, "अगर 20 साल बाद जाकर भी इस तरह के आयोग कुछ नतीजा दे पाते हैं तो बड़ी बात होगी. उस वक़्त यही कहा जाएगा कि फ़लां सरकार के वक़्त बने आयोग ने यह काम कर दिखाया है."

कामधेनु गौ विज्ञान प्रचार प्रसार परीक्षा

इमेज स्रोत, ANI

53 करोड़ से ज़्यादा पशुधन

साल 2012 की पशुओं की गणना के मुताबिक़, भारत में क़रीब 30 करोड़ गाय और भैंस हैं. इसमें से 19.1 करोड़ गायें हैं और 10.87 करोड़ भैंसें हैं. पशुओं की इस संख्या में 21.6 करोड़ मादा गाय-भैंस हैं, जबकि 8.4 करोड़ नर पशु हैं.

2012 की गणना के मुताबिक़, क़रीब 52 लाख गाय-भैंस ऐसे हैं जिन्हें कोई नहीं पाल रहा है. हालांकि, 2019 के आख़िर में 20वीं पशुधन गणना रिपोर्ट भी आ गई है. इसके मुताबिक़, देश की कुल पशुधन आबादी 53.57 करोड़ है जो पशुधन गणना- 2012 की तुलना में 4.6 फ़ीसद ज़्यादा हैं.

कुल गोजातीय आबादी (मवेशी, भैंस, मिथुन एवं याक) वर्ष 2019 में 30.79 करोड़ आंकी गई जो पिछली गणना की तुलना में लगभग एक फ़ीसद ज़्यादा है.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूबपर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)