जम्मू-कश्मीर में अब कोई भी ख़रीद सकता है ज़मीन, उमर अब्दुल्लाह का लद्दाख़ पर सवाल

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- Author, माजिद जहांगीर
- पदनाम, बीबीसी हिंदी के लिए, श्रीनगर से
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के पुराने 11 क़ानूनों को निरस्त कर दिया है. इसके साथ ही यहां कोई भी भारतीय बिना डोमिसाइल के कृषि भूमि को छोड़कर ज़मीन ख़रीद सकता है.
बीते वर्ष 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद गृह मंत्रालय से आए इस आदेश को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों ने इस अधिसूचना पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह 'कश्मीर को सेल' पर लगाने जैसा है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने श्रीनगर में इस अधिसूचना पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि कृषि भूमि को किसानों के लिए आरक्षित रखा गया है और कोई भी इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा.
गृह मंत्रालय ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (केंद्रीय क़ानूनों के अनुरूप) के तीसरे आदेश 2020 के तहत 11 क़ानूनों को निरस्त किया. अधिसूचना के मुताबिक़, यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है.

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किन क़ानूनों को किया गया निरस्त
जिन क़ानूनों को पूरे तौर पर निरस्त किया जा रहा है, उनमें जम्मू-कश्मीर एलिनेशन ऑफ़ लैंड एक्ट, जम्मू ऐंड कश्मीर बिग लैंडेड इस्टेट्स एबोलिशन एक्ट, जम्मू ऐंड कश्मीर कॉमन लैंड्स (रेगूलेशन) एक्ट, 1956 आदि शामिल है.
गृह मंत्रालय ने पहले के अधिकांश भूमि क़ानूनों को निरस्त कर दिया है, जिसमें जम्मू ऐंड कश्मीर ऑफ़ प्रीवेंशन ऑफ़ फ्रैग्मेंटेशन ऑफ़ एग्रीकल्चर होल्डिंग एक्ट, 1960 शामिल है.
इसके अलावा इसमें जम्मू ऐंड कश्मीर ऑन कन्वर्सन ऑफ़ लैंड ऐंड एलिनेशन ऑफ़ आर्चार्ड एक्ट, 1975; जम्मू कश्मीर राइट ऑफ़ प्रायर पर्चेज़ एक्ट, 1936; जम्मू कश्मीर टिनेंसी (स्टे ऑफ़ इजेक्टमेंट प्रोसिडिंग्स) एक्ट 1966 का खंड 3; द जम्मू ऐंड कश्मीर यूटिलाइज़ेशन ऑफ़ लैंड एक्ट 2010; और द जम्मू ऐंड कश्मीर अंडरग्राउंड यूटिलिटिज़ एक्ट शामिल हैं.
बीते वर्ष 5 अगस्त को भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करते हुए इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) में विभाजित कर दिया था. अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था.
बीते वर्ष अनुच्छेद 370 को हटाने से पहले, जम्मू और कश्मीर के स्थायी निवासियों को छोड़कर कोई भी यहां ज़मीन नहीं ख़रीद सकता था.
हाल ही में, भारत सरकार ने कहा था कि केवल डोमिसाइल प्रमाणपत्र धारक या यहां के स्थायी निवासी ही इन केंद्र शासित प्रदेशों में ज़मीन या संपत्ति ख़रीद सकते हैं.

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तीखी प्रतिक्रिया
इस अधिसूचना पर जम्मू कश्मीर के राजनीतिक हलकों से तीखी प्रतिक्रियाएं आई हैं.
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने ट्विटर पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की. केंद्र के इस क़दम की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि यह जम्मू और कश्मीर को 'सेल' पर लगाने जैसा है.
उमर अब्दुल्लाह ने ट्वीट किया, ''जम्मू-कश्मीर के भू-स्वामित्व क़ानून में जो संशोधन किया गया है, वह अस्वीकार्य है. यहां तक कि ग़ैर कृषि भूमि की ख़रीद और कृषि भूमि के ट्रांसफ़र के लिए डोमिसाइल की अनिवार्यता को हटाकर और आसान कर दिया गया है. जम्मू-कश्मीर अब सेल के लिए तैयार है और इससे ग़रीबों और छोटे भू मालिकों को इसका नुक़सान होगा."
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इसके अलावा उमर अब्दुल्लाह ने अगला ट्वीट किया है कि इस बात को लेकर भ्रम की स्थिति है कि यह क़ानून केवल जम्मू-कश्मीर पर ही लागू होगा या लद्दाख़ पर भी लागू होगा.
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जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के प्रमुख सैयद मोहम्मद अल्ताफ़ बुखारी ने अपनी पार्टी के रुख़ को दोहराते हुए राज्य की पूर्व स्थिति बहाल करने के साथ-साथ यहां की ज़मीन और नौकरियों पर यहां के निवासियों के लिए अधिवासी अधिकार की मांग को दोहराया है.
बुखारी ने कहा, "पार्टी केंद्र सरकार से जारी गज़ट अधिसूचना को विस्तार से पढ़ने के बाद देश के शीर्ष नेतृत्व के सामने अपनी आपत्तियों को जताएगी.
उन्होंने कहा, "पहले दिन से ही इन अहम मुद्दों पर हमारी पार्टी का रुख़ बिल्कुल स्पष्ट है. लोगों को समझना चाहिए कि संविधान में लंबे समय से हमें मिली गारंटी को वापस ले लिया गया और जो कुछ बचा था उसे 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 और 35-ए को निरस्त करने के साथ हमसे छीन लिया गया. अपनी पार्टी लोगों के अधिकारों के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेगी और जम्मू-कश्मीर के लोगों के हितों के ख़िलाफ़ किसी भी क़दम का विरोध जारी रखेगी."
बुखारी को केंद्र की सत्ताधारी पार्टी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का क़रीबी माना जाता है.

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मार्च के महीने में बुखारी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की थी और तब उन्हें यह आश्वासन मिला था कि जम्मू और कश्मीर की डेमोग्राफ़ी को संरक्षित रखा जाएगा.
जम्मू कश्मीर की अन्य राजनीतिक पार्टियों ने भी डेमोग्राफ़ी में बदलाव के बीच भूमि क़ानून को निरस्त किए जाने पर अपनी नाराज़गी व्यक्त की है.
सीपीएम के पूर्व विधायक और राज्य सचिव मोहम्मद यूसुफ़ तारिगामी ने बीबीसी से फ़ोन पर कहा, "हर दिन गृह मंत्रालय नए आदेश जारी करता है और अब इस अधिसूचना से जम्मू और कश्मीर में किसी के भी ज़मीन ख़रीदने के मार्ग को प्रशस्त कर दिया है. यह नई अधिसूचना जम्मू और कश्मीर के लोगों पर नए हमले के रूप में देखा जा सकता है. जो क़ानून लागू किए गए हैं वो स्थानीय आबादी को कमज़ोर बनाएगा और सरकार ने कॉरपोरेट के साथियों के लिए यहां ज़मीन ख़रीदने का रास्ता आसान कर दिया है. यह हमारी डेमोग्राफ़ी को बदलने की बहुत गहरी योजना है."
पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती का कहना है कि यह हमारे प्राकृतिक संसाधनों की लूट है.
उन्होंने ट्वीट किया, "फिर एक क़दम जो जम्मू-कश्मीर के लोगों को कमज़ोर करने और उन्हें कहीं का न छोड़ने के भारत सरकार के नापाक मंसूबों से जुड़ा है. असंवैधानिक तरीक़े से अनुच्छेद 370 हटाने से साथ हमारे प्राकृतिक संसाधनों की लूट की इजाज़त की जो शुरुआत की गई थी उसके अनुसार अब जम्मू-कश्मीर की ज़मीन बिक्री के लिए रख दी गई है."
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आम कश्मीर इस क़दम को भारत सरकार के खुले हमले के रूप में देखते हैं.
ख़ुर्शीद अहमद कहते हैं, "जैसा कि हम बीते वर्ष से ही देखते आए हैं कि क़ानून कैसे बदले जा रहे हैं. मैं कह सकता हूं कि यह भारत सरकार का खुला हमला है. पहले उन्होंने हमसे अनुच्छेद 370 छीन लिया, फिर क़ानून बदल दिया. और अब भूमि क़ानूनों को निरस्त किया जा रहा है. अमीर लोग अब कश्मीर में ज़मीन ख़रीदेंगे और ग़रीब मरेंगे. हम सभी कश्मीरी पहले ही मर चुके हैं. मरे हुए लोगों के साथ कुछ भी कर सकते हैं. हमारी अर्थव्यवस्था पहले ही मर गई है, तो हम क्या कर सकते हैं."
तारिगामी गुपकार पीपल्स अलायंस के एक हस्ताक्षरकर्ता हैं. पीपल्स अलायंस मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों का एक समूह है, जिसने हाल ही में यह संकल्प लिया है कि यह मोर्चा अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए लड़ेगा.
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