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पुरुष कर्मचारियों को चाइल्ड केयर लीव, क्या महिलाओं के साथ चलना सिखाएगा
- Author, सुशीला सिंह
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
बच्चे की देखरेख करने वाले अकेले पुरुष सरकारी कर्मचारियों के लिए सरकार ने चाइल्ड केयर लीव का प्रावधान किया है.
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह का कहना है कि अकेले बच्चे की देखरेख करने वाले पुरुष सरकारी कर्मचारी चाइल्ड केयर या बच्चे की देखरेख के लिए छुट्टी (सीसीएल) के हक़दार हैं. साथ ही उन्होंने ये भी स्पष्ट किया कि इन अकेले अभिभावक या सिंगल पेरेंट में वे सरकारी पुरुष शामिल हैं जो ग़ैर-शादीशुदा, विधुर और तलाक़शुदा हैं.
सीसीएल पर लिए गए फ़ैसले को एक दूरदर्शी और प्रगतिशील क़दम बताते हुए उन्होंने कहा कि इससे सरकारी कर्मचारियों की ज़िंदगी आसान हो पाएगी.
एक कर्मचारी अपने अधिकारियों की स्वीकृति के बाद इस छुट्टी का लाभ उठा सकता है साथ ही कर्मचारी सीसीएल पर होने के बावजूद वो लीव ट्रैवल कॉन्सेशन(एलटीसी) का भी फ़ायदा उठा सकता है.
'स्पेशल बच्चे' के लिए उम्र की सीमा हटी
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने सिंगल मेल पेरेंट के लिए किए गए इन प्रावधानों के बारे में बताते हुए कहा कि कर्मचारी पहले साल यानि 365 दिन की छुट्टी ले सकते हैं जो कि पेड लीव होगी और उसके दूसरे साल 80 फ़ीसद ही सीसीए के तौर पर इस्तेमाल की जा सकेगी.
साथ ही 'स्पेशल बच्चे' की देखभाल के लिए बच्चे की उम्र की सीमा को हटा दिया गया है. इससे पहले एक सरकारी कर्मचारी 'स्पेशल बच्चे' की देखरेख के लिए उसके 22 साल की उम्र तक सीसीएल ले सकता था.
इस फ़ैसले पर महिला और बाल कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी ने ट्वीट के ज़रिए नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह को भारत सरकार की लैंगिक समानता की प्रतिबद्धता के लिए बधाई दी है.
जामिया मिलिया इस्लामिया में प्रोफ़ेसर, डॉ. बुलबुल धर-जेम्स इसे एक सकारात्मक क़दम बताती हैं.
वे मानती हैं कि मैटरनिटी और पैटरनिटी लीव के बाद चाइल्ड केयर लीव दिया जाना ऑउट ऑफ़ दि बॉक्स थींगकिंग हैं.
ऑर्ग्रेनाइज़ेशन फ़ॉर इकोनोमिक कॉऑपोरेशन एंड डेवेलपमेंट(ओइसीडी) की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 41 देशों में नए अभिभावकों के लिए पेड लीव का प्रावधान है जिसमें सबसे ऊपर एस्टोनिया है, जो बच्चा पैदा होने पर माता-पिता को डेढ़ साल की पेड लीव देता है.
इसके अलावा बुलग़ारिया, हंगरी, जापान, लिथुएनिया, ऑस्ट्रिया, नॉर्वे जैसे देश क़रीब एक साल की पेड लीव देते हैं.
वहीं भारत सरकार ने मैटरनिटी बेनिफ़िट्स ऐक्ट में 2017 में संशोधन कर महिलाओं को 12 की जगह 26 सप्ताह के पेड मैटरनिटी लीव का प्रावधान लागू कर दिया है. साथ ही सरकारी पुरुष कर्मचारियों को 15 दिन की पैटरनीटि लीव का प्रावधान किया गया है.
कांग्रेस के सासंद राजीव सातव ने संसद में पैटरनीटि बेनिफ़िट बिल 2017 पेश किया था जो एक प्राइवेट मेंबर बिल था जिसमें उन्होंने कहा था कि बच्चे की देखरेख करना माता और पिता की सामुहिक ज़िम्मेदारी होती है और बच्चे की बेहतर देखरेख के लिए नवजात के साथ दोनों का समय बिताना ज़रूरी है. इस बिल में पैटरनिटी लीव का दायरा तीन महीने तक बढ़ाने का प्रस्ताव दिया गया था.
ध्यान भटकाने की कोशिश?
लेकिन सरकार की इस ताज़ा घोषणा पर ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की अमरजीत कौर कहती हैं कि ये कोई नई बात नहीं है. चुनाव के दौरान सरकारी नौकरियां एक मुद्दा बना हुआ है और सरकार इससे ध्यान भटकाने के लिए ये सब कर रही है.
उनके अनुसार, ''भारत में पैटरनिटी लीव के लिए ट्रेड यूनियन ने आवाज़ उठाई थी ताकि पिता भी महिलाओं की मदद कर सकें. पैटरनिटी लीव के नाम इसे स्वीकृति मिली थी और सिंगल पेरेंट में मां या पिता को चाइल्ड केयर लीव मिले इसकी माँग कर चुके हैं. सरकार सैद्धांतिक तौर पर सहमत भी दिखी और इसे काग़ज़ पर लाने की अलग-अलग तरह से बातें होती रही हैं. ये एक तरह से सांकेतिक है. सरकार मूल मुद्दों से ध्यान भटकाना चाहती है. वो सरकारी नौकरियों में भर्ती नहीं कर रही है, नौकरी की माँग उठ रही है और अब बिहार चुनाव को देखते हुए ये शगूफ़ा सरकार की ओर से छोड़ा जा रहा है."
अमरजीत कौर कहती हैं कि अगर सरकार को कुछ करना ही है तो उसे असंगठित क्षेत्र या कॉन्ट्रेक्ट पर काम करने वाली महिलाओं के लिए कुछ करना चाहिए. 95 फ़ीसद महिलाएं इस क्षेत्र मे काम कर रहीं हैं.
प्रोफ़ेसर बुलबुल धर-जेम्स कहती हैं कि ये क़दम सोच में बदलाव को दिखाता है क्योंकि एक मां का बाहर काम करना पेड वर्क में गिना जाता है और घर का काम अनपेड में आता है.
ऐसे में पुरुष को इस वर्गीकरण में शामिल करना बड़ी बात है. साथ ही ये पुरुष के पेरेंटहुड के अधिकार को स्वीकार करना भी दर्शाता है. बच्चे के विकास में पिता की भूमिका भी अहम होती है.
उनके अनुसार कई पश्चिमी देशों में बच्चे की देखरेख को मां के बदले परिवार की ज़िम्मेदारी के तौर पर देखा जाता है.
ऐसे में सिंगल मेल पेरेंट को सीसीएल देना एक सही क़दम है लेकिन इसका दायरा बढ़ाना चाहिए ताकि आम पुरुषों को भी बच्चे के लिए ज़्यादा ज़िम्मेदार बनाया जा सके और पिता के साथ रहने का अनुभव हर बच्चे को मिल सके.
प्रोफ़ेसर धर कहती हैं कि महिलाओं का तो सशक्तिकरण हो रहा है, लेकिन पुरुषों को महिलाओं के साथ चलने के लिए सश्क्त नहीं बनाया जा रहा है.
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