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योगी का मिशन शक्ति, सिर्फ़ काग़ज़ी है या ज़मीन पर भी दिखेगा
- Author, सुशीला सिंह
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
याद कीजिए साल 2017, योगी आदित्यानाथ उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे. सत्ता में आने के बाद उन्होंने कहा था कि उनकी सरकार महिलाओं की सुरक्षा, उनके सशक्तीकरण और कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है और इसी के तहत उन्होंने कई घोषणाएं भी की थीं.
इनमें महिलाओं के लिए 181 हेल्पलाइन का दायरा 11 ज़िलों से बढ़ा कर 75 ज़िलों तक करना, लिंगानुपात सुधार, घर से ही भेदभाव को कम करने, 'पुलिस सूचना कार्यक्रम' की शुरुआत करने के साथ-साथ एंटी-रोमियो स्क्वैड का गठन शामिल था.
महिलाओं के सशक्तीकरण और सुरक्षा को लेकर उठाए गए इन क़दमों की काफ़ी सराहना भी हुई. लेकिन उनका एंटी-रोमियो स्क्वैड कार्यक्रम विवादों में आ गया और कहां ग़ायब हो गया, पता नहीं चला.
अब हाल ही में हाथरस, बलरामपुर और अन्य इलाक़ों में हुई कथित बलात्कार की घटनाओं के बाद योगी आदित्यनाथ ने 'मिशन-शक्ति' अभियान की घोषणा की है.
इस अभियान के तहत 1535 पुलिस थानों में एक अलग कमरे का प्रावधान किया गया है जिसमें पीड़िता, महिला पुलिसकर्मी के समक्ष शिकायत दर्ज करा सकती है, ताकि तुरंत कार्रवाई हो सके और अपराधी को सज़ा दी जा सके. साथ ही उन्होंने पुलिस भर्ती में 20 प्रतिशत महिलाओं की भर्ती की भी घोषणा की थी.
मिशन-शक्ति अभियान यूपी सरकार की तरफ़ से नवरात्रों में शुरू किया गया है जो छह महीने तक जारी रहेगा. और इस अभियान में भी नारी सशक्तीकरण और सुरक्षा के लिए कई और एलान किए गए जिसकी शुरुआत लखनऊ से राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने की तो बलरामपुर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने.
लेकिन क्या ये सारी योजनाएं तभी लाई जाती हैं जब बड़ी घटनाएं घटती हैं?
हाथरस और उसके बाद अन्य इलाक़ों से आईं कथित बलात्कार की घटनाओं के बाद योगी सरकार की काफ़ी आलोचना हुई. विपक्ष भी इन घटनाओं पर राज्य सरकार को घेरने की कोशिश में लगा है.
हालांकि जानकार मानते हैं कि यूपी में चाहे किसी की भी सरकार आई हो बलात्कार या महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के मामले सामने आते रहे हैं और ये देखा गया है कि जब भी कोई घटना घटती है सरकारें सक्रिय हो जाती हैं.
वरिष्ठ पत्रकार सुनीता एरॉन कहती हैं कि मिशन-शक्ति एक अच्छा अभियान है लेकिन थानों में जिन महिला पुलिसकर्मी की बात की जा रही है, क्या वे इतनी संख्या में हैं?
उनके अनुसार, ''पहले हमें ये देखना होगा कि क्या महिला पुलिसकर्मी इतनी संख्या में राज्य के थानों में हैं. क्या वो इस काम के लिए प्रशिक्षित हैं, संवेदनशील हैं. सबसे अहम हैं फ़ोर्स को सेंसेटाइज़ करना. और ये भी देखना होगा कि क्या महिला किसी थाने में जाने के लिए तैयार है, चाहे उसकी बात सुनने के लिए महिला ही क्यों न बैठी हो. सरकार को अपराध पर लगाम लगाने के लिए अभियानों के ज़रिए कार्यशैली में निरंतरता लानी होगी. क्योंकि ये देखा जाता है कि एक्शन होने का रिएक्शन होता है और फिर चीज़ें खो सी जाती हैं.''
सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर कहती हैं कि मिशन-शक्ति के हमने बड़े-बड़े विज्ञापन देखे हैं जिसमें जागरूकता की बात है. "ये दावें सुनने में अच्छे लगते हैं कि महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तीकरण के लिए चीज़ें की जा रही हैं लेकिन महिलाओं की सुरक्षा के लिए ही लाया गया एंटी-रोमियो स्क्वैड कहां है?"
उनके अनुसार, ''हमने एंटी-रोमियो स्क्वैड के भी बड़े-बड़े विज्ञापन देखे. उसे बड़ी उपलब्धी बताते हुए पेश किया गया कि सरकार लड़कियों, महिलाओं को मनचलों से, छेड़ख़ानी से बचाने, उनकी सुरक्षा के लिए कितने बड़े काम कर रही है. और क़रीब दो महीने बाद ही वो ग़ायब हो गया. फिर कुलदीप सेंगर का मामला आया फिर तमाम तरह की घोषणाएं की गईं. इसके बाद हाथरस जैसे मामले सामने आए तो मिशन- शक्ति ले आए लेकिन ये भी छह महीने के लिए. तो ऐसे में उसके बाद महिला की सुरक्षा का क्या होगा. साथ ही ये देखा जाना चाहिए कि पिछली जो योजनाएं और अभियान चलाए गए वो कितने सफल रहे और आगे क्या किया जाना चाहिए. और जो एंटी-रोमियो स्क्वैड के साथ हुआ वो इसके साथ नहीं होगा.''
नेशनल क्राइम ब्यूरो रिकॉर्ड (2019) के आंकड़ो के मुताबिक़, महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ बलात्कार के मामलों में राजस्थान(5997) पहले और यूपी (3065) दूसरे स्थान पर है.
यूपी राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष विमला बाथम महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रहे अपराधों पर चिंता तो ज़ाहिर करती हैं लेकिन इस बात पर ज़ोर देती हैं कि योगी सरकार के इस अभियान से गांव देहात में रहने वाली औरतों को काफ़ी मदद मिलेगी.
वे कहती हैं, ''इस अभियान के तहत वैन गांव और सुदूर इलाक़ों तक जाएगी और बताएगी कि महिलाओं को क्या करना चाहिए, उन्हें सशक्त बनाने और जागरूक करने में मदद करेगी और उसमें एक महिला पुलिस अधिकारी भी होगी. साथ ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए महिलाएं सीधा अधिकारी से भी बात कर सकेंगी. साथ ही हेल्प डेस्क से भी महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रहे अपराधों का निपटारा जल्द होने में मदद मिलेगी."
नूतन ठाकुर बताती हैं कि चाहे मायावती, मुलायम सिंह और अखिलेश यादव की सरकार रही हो, महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध हर सत्ता में रहे हैं और ये देखा गया है कि अधिकारी ऐसे मामले इसलिए भी दर्ज नहीं करते हैं क्योंकि अगर आंकड़ा बढ़ जाता है तो उनके ख़िलाफ़ ही कार्रवाई होने का डर रहता है.
वहीं ऑपरेशन मजनू भी शुरू किया गया और अगर कोई लड़का छेड़छाड़ करता पाया जाता था तो साधारण कपड़ों में तैनात महिला पुलिसकर्मी उनकी पिटाई भी करती थीं. और ये काफ़ी वायरल भी हुआ लेकिन फिर इसमें मोरल पुलिसिंग शुरू हो गई.
सुनीता एरॉन बताती हैं कि पिछली तीन सरकारों की बात की जाए तो मायावती के कार्यकाल में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले स्ट्रीट क्राइम में कमी आई थी और अखिलेश यादव के दौरान लड़कियों के साथ फ़ोन पर परेशान करने वाली हरकतों में कमी आई थी लेकिन ये भी देखा गया कि हर सरकार अपनी जाति के आधार पर चलती है. मायावती में जहां दलितों का बोलबाला रहा तो मुलायम और अखिलेश की सरकार में यादव और बीजेपी की सरकार में पंडितों और राजपूतों का बोलबोला दिखता है. हर सरकार के अपने फेवरेट होते हैं और वो वैसे ही काम करती है.
वहीं वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान ऐसे अभियानों को पब्लिसिटी के लिए उठाया गया क़दम बताते हैं और कहते हैं कि इनका उद्देश्य समस्या का हल नहीं होता. वे कहते हैं कि पहले ये देखा जाना चाहिए कि क्या महिला अपने ख़िलाफ़ हो रहे अपराध को थाने में जाकर कहना पसंद करेगी, क्या उसे वैसा वातावरण वहां मिलेगा. बलिया वाले मामले में बीजेपी के नेता खुलकर अभियुक्त का पक्ष लेते दिखे.
वे कहते हैं कि जब योगी आदित्यनाथ सत्ता में आए थे तो सुना था ईमानदार आदमी हैं, मेहनती हैं और उम्मीद जगी थी कि यूपी की कुर्सी पर ऐसा आदमी बैठ रहा है जिसे पैसा बनाने में कोई रूचि नहीं है, युवा हैं और प्रतिबद्ध हैं. लेकिन अब लोग जहां ये कहते हैं कि भ्रष्टाचार कम हो गया लेकिन रेप तो बढ़ रहे हैं.
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