भीमा कोरेगांवः आनंद तेलतुंबड़े, स्टेन स्वामी माओवादियों के इशारे पर काम करते थे - NIA सप्लीमेंट्री चार्जशीट

भीमा कोरेगांव मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने दूसरी सप्लीमेंट्री चार्टशीट दाखिल की है.

इसमें इसी सप्ताह झारखंड से गिरफ़्तार किए गए सोशल एक्टिविस्ट फ़ादर स्टेन स्वामी, प्रोफ़ेसर आनंद तेलतुंबड़े, दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर हनी बाबू, गौतम नवलखा और क्लचरल ग्रुप कबीर कला मंच के तीन सदस्य ज्योति जगतप, सागर गोरखे और रमेश गायचोर सहित आठ लोगों के नाम शामिल हैं.

10 हज़ार पन्नों के इस सप्लीमेंट्री चार्जशीट के अनुसार आनंद तेलतुंबड़े, गौतम नवलखा, हनी बाबू, सागर गोरखे, रमेश गायचोर, ज्योति जगतप और स्टेन स्वामी ने प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) की विचारधारा का प्रचार प्रसार करने की साज़िश रची और सरकार के ख़िलाफ़ लोगों में नफ़रत और असंतोष पैदा किया.

इस मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार से सवाल पूछा है.

उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "83 वर्षीय वृद्ध 'स्टेन स्वामी' को गिरफ्तार कर केंद्र की भाजपा सरकार क्या संदेश देना चाहती है? अपने विरोध की हर आवाज़ को दबाने की ये कैसी जिद्द?"

इससे पहले गुरुवार की देर शाम एनआईए की टीम फ़ादर स्टेन स्वामी के राँची स्थित दफ्तर पहुंची थी. करीब आधे घंटे तक पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया.

उनकी गिरफ्तारी के विरोध में शुक्रवार को राँची में क़रीब दो हज़ार लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया और मुख्यमंत्री से इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की. इस विरोध प्रदर्शन में मशहूर अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ भी शामिल थे.

ज्यां द्रेज़ ने कहा, "उन्हें बिना कोई सबूत जेल में बंद किया जा रहा है. हमें लगता है कि ये ताकत के प्रदर्शन के तौर पर देखा जाना चाहिए. हम न केवल उनकी गिरफ्तारी का विरोध करते हैं बल्कि यूएपीए क़ानून का भी विरोध करते हैं."

स्टेन स्वामी पर भीमा कोरेगांव मामले में संलिप्तता का आरोप है. एनआईए ने उन पर आतंकवाद निरोधक क़ानून (यूएपीए) की धाराएं भी लगाई हैं.

केंद्र की मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार ने साल 1967 में बने इस क़ानून (यूएपीए) में पिछले साल संशोधन किया था. इस संशोधन के ज़रिये न केवल संस्थाओं बल्कि व्यक्तियों को भी आतंकवादी घोषित किया जा सकता है.

क्या कहती है एनआईए की चार्जशीट?

एनआईए ने अपने बयान में कहा है कि, "जाँच के दौरान ये पाया गया है कि आनंद तेलतुंबड़े, गौतम नवलखा, हनी बाबू, सागर गोरखे, रमेश गायचोर, ज्योति जगतप और स्टेन स्वामी ने अन्य अभियुक्तों के साथ मिलकर प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) की विचारधारा का प्रचार प्रसार करने की साज़िश रची, हिंसा भड़काई, लोगों में सरकार के ख़िलाफ़ नफ़रत और असंतोष पैदा किया. धार्मिक और जातीय समूहों के बीच वैमन्यस्य पैदा किया. फ़रार अभियुक्त मिलिंद तेलतुंबड़े ने अभियुक्तों को हथियारों की ट्रेनिंग देने के लिए ट्रेनिंग कैंप का आयोजन किया."

चार्जशीट कहती है, "आनंद तेलतुंबड़े जो गोवा में रहते हैं वो भीमा कोरगांव शौर्य दिन प्रेरणा अभियान के मौक़े पर 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवार वाड़ा में मौजूद थे. जहां एल्गार परिषद के कार्यक्रम का आयोजन किया गया. उन्होंने अन्य माओवादी कैडर्स के साथ मिलकर फ़ंड पाने से लेकर गतिविधियों को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाई."

"जाँच में गौतम नवलखा के भी माओवादियों के संपर्क में होने की भूमिका सामने आई है. उन्हें बुद्धिजीवियों को सरकार के ख़िलाफ़ जुटाने का काम सौंपा गया था. वह किसी फ़ैक्ट फ़ाइडिंग कमेटी का हिस्सा थे और उन्हें सीपीआई (माओवादी) की ओर से गोरिल्ला युद्ध के लिए भर्ती करने का काम सौंपा गया था. नवलखा के तार इंटर-सर्विसेज़ इंटेलिजेंस यानी आईएसआई (पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी) के साथ भी जुड़े हुए पाए गए हैं."

"हनी बाबू, दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफ़ेसर विदेशी पत्रकारों के दौरे सीपीआई (माओवादी) के इलाक़े में कराने का काम करते थे. उन्हें रिवॉल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ़ंड ( आंध्र प्रदेश की प्रतिबंधित संस्था) के कुछ कार्य सौंपे गए थे. यह सीपीआई (माओवादी) के इशारे पर दोषी और सज़ा काट रहे जी.एन साईंबाबा को छुड़ाने का प्रयास कर रहे थे."

"स्टेन स्वामी सीपीआई (माओवादी) के कैडर हैं और इसकी गतिविधियों में शामिल थे. वह पीपीएससी के संयोजक हैं जो कि सीपीआई (माओवादी) की फ्रंटल आर्गनाइजेशन है."

एल्गार परिषद केस में सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत, वरवर राव, वरनॉन गोंज़ाल्विस, अरुण फ़रेरा, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, आनंद तेलतुंबडे, हनी बाबू एमटी जैसे बुद्धिजीवी और समाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है.

दो दिन पहले स्टेन स्वामी ने दिया था बयान

स्टेन स्वामी ने छह अक्टूबर को कहा था कि एनआईए ने 27-30 जुलाई और 6 अगस्त को उनसे करीब 15 घंटे तक पूछताछ की थी. इसके बाद भी वे मुझे मुंबई बुलाना चाहते थे.

यूट्यूब पर झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा जारी किए गए इस वीडियो में स्टेन स्वामी ने कहा था, "एनआईए के अधिकारियों ने पूछताछ के दौरान मेरे सामने कई वैसे दस्तावेज रखे, जो कथित तौर पर मेरे संबंध माओवादियों से होने का खुलासा करते हैं."

उन्होंने कहा था, "उन लोगों ने दावा किया कि ये दस्तावेज और जानकारियां एनआईए को मेरे कंप्यूटर से मिली हैं. तब मैंने उन्हें कहा कि यह साजिश है और ऐसे दस्तावेज चोरी से मेरे कंप्यूटर में डाले गए हैं. इसलिए मैं इन्हें खारिज करता हूं."

"एनआईए की ताज़ा जांच का उस भीमा कोरेगांव मामले से कोई संबंध नहीं है, जिसमें मुझे आरोपी माना गया है. एनआईए मेरा संबंध माओवादियों से होने का झूठा आरोप साबित करना चाहती है. मैंने इसका खंडन भी किया है."

"मेरा सिर्फ इतना कहना है कि जो आज मेरे साथ हो रहा है वैसा कई और लोगों के साथ भी हो रहा है. सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, लेखक, पत्रकार, छात्र नेता, कवि, बुद्धिजीवी और अन्य अनेक लोग, जो आदिवासियों, दलितों और वंचितों के लिए आवाज उठाते हैं और देश की वर्तमान सत्तारुढ़ ताकतों की विचारधाराओं से असहमति जताते हैं, उन्हें विभिन्न तरीकों से परेशान किया जा रहा है."

भीमा कोरेगांव मामला

भीमा-कोरेगांव वो जगह है जहाँ एक जनवरी 1818 को मराठा और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच ऐतिहासिक युद्ध हुआ था.

इस युद्ध में महार समुदाय ने अंग्रेजों की ओर से पेशवा की सेना के ख़िलाफ़ लड़ाई की और महार रेजिमेंट की बदौलत पेशवा की सेना को हार का सामना करना पड़ा. महार समुदाय उस वक्त महाराष्ट्र में अछूत समझा जाता था.

महारों की विजय की याद में यहां 'विजय स्तंभ' की स्थापना की गई. हर साल एक जनवरी को दलित समुदाय के लोग, अपने पूर्वजों के शौर्य को याद करने के लिए यहां जुटते हैं.

यहां होने वाला 2018 का आयोजन बेहद ख़ास था क्योंकि उस दिन भीमा कोरेगांव की लड़ाई के दो सौ साल पूरे हो रहे थे.

पहली जनवरी को जब लोग मेमोरियल के पास अपने नायकों को श्रद्धांजलि देने इकट्ठा हो रहे थे तभी हिंसा भड़की, पत्थरबाज़ी हुई और भीड़ ने खुले में खड़ी गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया.

इससे एक दिन पहले वहां एल्गार परिषद नाम से एक रैली हुई थी. पुलिस मानती है कि इसी रैली में हिंसा भड़काने की भूमिका बनाई गई. शनिवारवाड़ा के मैदान पर हुई इस रैली में 'लोकतंत्र, संविधान और देश बचाने' की बात कही गई थी.

इस मामले में वामपंथ की ओर रुझान रखने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की देशभर से हुई गिरफ़्तारियां हुईं.

इसी मामले में पिंपरी चिंचवाड़ की अनीता सावले ने पिंपरी पुलिस स्टेशन में शिक़ायत दर्ज कराई थी. इस शिक़ायत में शिव प्रतिष्ठान के संभाजी भिड़े और समस्त हिंदू अघाड़ी के मिलिंद एकबोटे को अभियुक्त बनाया गया था.

शिक़ायत दर्ज किए जाने के साढ़े तीन महीने बाद 14 मार्च को मिलिंद एकबोटे को गिरफ़्तार कर लिया गया था. इसके बाद अगले महीने यानी अप्रैल में उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया गया था. वहीं, संभाजी भिड़े को इस मामले में अब तक गिरफ़्तार नहीं किया गया है.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूबर फ़ॉलो भी कर सकतेहैं.)