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मोदी सरकार के जिस क़दम पर किसान सड़कों पर उतर आए
- Author, सलमान रावी
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
कृषि सुधार के दावों के साथ केंद्र सरकार ने जो तीन नए विधेयक पेश किए हैं, उनका देश भर के किसान विरोध कर रहे हैं. किसान संगठनों का आरोप है कि नए क़ानून के लागू होते ही कृषि क्षेत्र भी पूँजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुक़सान किसानों को होगा.
तीन नए विधेयकों में आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन के प्रस्ताव के साथ-साथ ठेके पर खेती को बढ़ावा दिए जाने की बात कही गई है और साथ ही प्रस्ताव है कि राज्यों की कृषि उपज और पशुधन बाज़ार समितियों के लिए गए अब तक चल रहे क़ानून में भी संशोधन किया जाएगा.
पंजाब के सीएम की अपील
कोरोना महामारी को लेकर पूरे देश में सीआरपीसी की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू होने के बावजूद किसान संगठन इन तीनों विधेयकों का विरोध कर रहे हैं. किसानों का सबसे ज़्यादा विरोध तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में देखने को मिला है.
पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने बुधवार को किसानों से अपील की कि वो अपने विरोध के क्रम में वाहनों की आवाजाही ना रोकें और रास्तों को ब्लॉक ना करें.
इसी बीच निषेधाज्ञा के उल्लंघन के आरोप में जिन किसानों के ख़िलाफ़ मामले दर्ज हुए हैं, उन्हें मुख्यमंत्री ने वापस लेने की भी घोषणा की है.
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों के उत्पाद, व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक, किसानों (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता विधेयक और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक को लोकसभा में पेश किया, जो इससे संबंधित अध्यादेशों की जगह लेंगे.
मंगलवार को आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक लोकसभा से पारित भी हो गया है.
विधेयक किसानों के लिए लाभकारी: जेपी नड्डा
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बुधवार को एक संवाददाता सम्मलेन में तीनों विधेयकों को "महत्वपूर्ण, क्रांतिकारी और किसानों के लिए लाभकारी" की संज्ञा दी.
उन्होंने आरोप लगाया कि विधेयकों को लेकर कांग्रेस सिर्फ़ राजनीति कर रही है. हालांकि राष्ट्रिय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए के प्रमुख घटक- शिरोमणि अकाली दल ने भी इन विधेयकों को लेकर चिंता जताई है. लेकिन, नड्डा का कहना था कि शिरोमणि अकाली दल से सरकार ने इस पर बात की है.
लेकिन अकाली दल ने इस मामले में अपने सांसदों को इन विधेयकों के ख़िलाफ़ वोट करने को कहा है. अकाली दल के सांसद और पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने भी इन विधेयकों का विरोध किया है.
उन्होंने कहा कि राज्यों की पशुधन बाज़ार समितियाँ भी पहले की ही तरह काम करेंगी और किसानों को उनका न्यूनतम समर्थन मूल्य भी उसी तरह मिलता रहेगा.
जहाँ तक रही बात ठेके पर खेती की, तो उनका कहना था कि ठेका सिर्फ़ उत्पाद पर होगा ना कि ज़मीन पर जिसका मालिकाना हक़ किसानों के पास ही रहेगा.
बंधुआ मज़दूर बन जाएँगे किसान: किसान संगठन
सीटू के उपाध्यक्ष ज्ञान शंकर मजूमदार ने बीबीसी से बात करते हुए आरोप लगाया कि तीनों विधेयक एक बार फिर से किसानों को बंधुआ मज़दूरी में धकेल देंगे.
उनका कहना था कि अब पशुधन और बाज़ार समितियाँ किसी इलाक़े तक सीमित नहीं रहेंगी. अगर किसान अपना उत्पाद मंडी में बेचने जाएगा, तो दूसरी जगहों से भी लोग आकर उस मंडी में अपना माल डाल देंगे और किसान को उनकी निर्धारित रक़म नहीं मिल पाएगी.
उनका कहना था कि नए विधेयक की वजह से इन समितियों के निजीकरण का मार्ग भी प्रशस्त हो जाएगा.
ठेके पर खेती के मामले में किसान संगठनों का कहना है कि जो कंपनी या व्यक्ति ठेके पर कृषि उत्पाद लेगा, उसे प्राकृतिक आपदा या कृषि में हुआ नुक़सान से कोई लेना देना नहीं होगा. इसका ख़मियाज़ा सिर्फ़ किसान को उठाना पड़ेगा.
इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस के सचिव के राजीव आरोड़ा कहते हैं कि अगर किसी भी कारण से फसल का नुक़सान हो जाता है, तो सिर्फ़ किसान को ही उस नुक़सान को झेलना पड़ेगा, क्योंकि ठेके पर खेत लेने वाले को उससे कोई मतलब नहीं होगा.
किसान संगठनों का ये भी कहना है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम में पहले किसानों पर खाद्य सामग्री को एक जगह जमा कर रखने पर कोई पाबंदी नहीं थी.
ये पाबंदी सिर्फ़ कृषि उत्पाद से जुडी व्यावसायिक कंपनियों पर ही थी. अब संशोधन के बाद जमाख़ोरी को रोकने की कोई व्यवस्था नहीं रह जाएगी, जिससे बड़े पूँजीपतियों को तो फ़ायदा होगा, लेकिन किसानों को इसका नुक़सान झेलना पड़ेगा.
जहाँ तक भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा के आश्वासन की बात है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर तीनों विधेयकों का असर नहीं पड़ेगा, तो अखिल भारतीय किसान सभा का कहना है कि उन्हें इस आश्वासन पर विश्वास नहीं है. इसलिए किसानों का आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक इन विधेयकों को सरकार वापस नहीं ले लेती.
किसान सभा के विजू कृष्णन ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि वे आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन विधेयक को किसान "जमाख़ोरी और कालाबाज़ारी की आज़ादी" का विधेयक मानते हैं.
इन विधेयकों को किसान "मंडी तोड़ो, न्यूनतम समर्थन मूल्य को ख़त्म करने वाले और कॉरपोरेट ठेका खेती को बढ़ावा देने वाले" विधेयक के रूप में देख रहे हैं.
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