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बांग्लादेश: भारत की सक्रियता क्या बताती है कि सब ठीक नहीं है?
- Author, सरोज सिंह
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
कहते हैं संकट की घड़ी में ही दोस्त की असली पहचान होती है. ये बात दो लोगों के बीच की दोस्ती पर भी लागू होती है और दो देशों के बीच की दोस्ती पर भी.
कोरोना के इस संकट की घड़ी में मीडिया में कई जगहें ख़बरें आईं कि भारत और बांग्लादेश की दोस्ती के बीच पाकिस्तान और चीन आ रहे हैं. लेकिन भारत की ट्रेन डिप्लोमैसी क्या बांग्लादेश से संबंधों में गर्माहट लाएगी?
भारत की 'ट्रेन डिप्लोमैसी'
12 जुलाई को आंध्र प्रदेश के गुंटूर से भारत ने बांग्लादेश को पार्सल ट्रेन से सूखी मिर्च की पहली सप्लाई भेजी. फिर 18 जुलाई को महाराष्ट्र के नासिक से प्याज़ भर कर स्पेशल ट्रेन रवाना किया.
और 10 दिन बाद यानी 27 जुलाई को भारत एक बार फिर 10 डीज़ल लोको बंग्लादेश भेज रहा है.
इसका क़रार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के 2019 में हुए भारत दौरे पर हुआ था. भारतीय रेलवे के मुताबिक़ ये ट्रेन दोस्ती की सौग़ात के तौर पर बांग्लादेश को सौंप रहा है, ताकि दोनों देशों के रेल के ज़रिए व्यापार में विस्तार हो सके.
वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए हुए इस इवेंट में दोनों देशों के रेल मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधि मौजूद रहे.
बीबीसी से रेलवे के प्रवक्ता राजेश वाजपेयी ने कहा कि ये नई बात नहीं है.
उनके मुताबिक़, "1996 में भारतीय रेलवे ने 10 मीटर गेज लोकोमोटिव दिए थे. इसके बाद 2001 से 2014 के बीच में 40 और ब्रॉड गेज लोकोमोटिव्स दिए गए थे. इसके बाद 2016-17 में पसेंजर कोच भी भारत ने बांग्लादेश को दिए थे."
राजेश वाजपेयी के मुताबिक़ आज जो लोको भारत ने बांग्लादेश को दिया है वो अपने आप में ख़ास है. इन लोको का इस्तेमाल पैसेंजर ट्रेन और माल गाड़ी दोनों ही तरीक़ों से किया जा सकता है.''
केन्द्र सरकार तो दावा कर रही है कि भारत-बांग्लादेश के बीच अच्छे रिश्ते पहले से हैं और ट्रेन देना दोस्ती को आगे ले जाने जैसा है.
पश्चिम बंगाल सरकार की आपत्ति
दोनों देशों के रिश्तों और व्यापार पर क़रीब से नज़र रखने वाले जानकार इसे केन्द्र सरकार की नई पहल ज़रूर मानते हैं और इसके पीछे की वजह भी बताते हैं.
प्रोफ़ेसर प्रबीर डे इंटरनेशनल ट्रेड के जानकार हैं. भारत में रिसर्च एंड इंफ़ोर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्री (आरआईएस) में प्रोफ़ेसर हैं.
उनका मानना है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने पिछले तीन महीने से सड़क मार्ग से दोनों देशों के बीच होने वाले व्यापार पर पाबंदी लगा दी थी. पश्चिम बंगाल सरकार ने अपने फ़ैसले के पीछे कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकना एक वजह बताई थी. राज्य सरकार केन्द्र सरकार से कोविड-19 महामारी के दौरान दोनों देशों के व्यापार से जुड़ी एक अलग SOP बनाने की माँग कर रही थी. प्रोफेसर प्रबीर कहते हैं कि मार्च से मई महीने तक दोनों देशों के बीच सड़क मार्ग से होने वाला व्यापार बिल्कुल ठप था और इसलिए केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार की पाबंदियों का तोड़ इस तरह से निकाला. चूंकि रेलवे और जहाज़रानी दोनों मंत्रालय भारत सरकार के अधीन आते हैं, इसलिए केन्द्र सरकार ने अपनी तरह से एक नई पहल शुरू ज़रूर की है.
जहाज रानी मंत्रालय की तरफ़ से ऐसी ही कोशिश हाल के दिनों में की गई है, ताकि दोनों देशों के व्यापरिक रिश्तों में कोई दीवार ना आए.
अब तक भारत और बांग्लादेश और भारत के बीच लगभग 80 फ़ीसदी व्यापार सड़क मार्ग से ही होता रहा है और वो पेट्रापोल-बेनापोल लैंड बॉर्डर की तरफ से.
प्रोफेसर प्रबीर कहते हैं कि पश्चिम बंगाल के उस इलाक़े में कोविड19 महामारी का प्रकोप ज़्यादा है. इतना ही नहीं जितना भी सामान भारत बांग्लादेश को भेजता है, वो सिर्फ़ पश्चिम बंगाल से नहीं जाता बल्कि देश के दूसरे राज्यों से भी जाता है. ऐसे में ट्रकों की आवाजाही दूसरे राज्यों से भी होती. पश्चिम बंगाल की ममता सरकार इसके ख़िलाफ़ थी. राज्य सरकार के मुताबिक़ ऐसे में कोरोना संक्रमण का ख़तरा ज्यादा बढ़ जाता. इसके लिए स्थानीय लोगों ने भी विरोध किया. पेट्रापोल-बेनापोल भारत बांग्लादेश सीमा पर स्थिति है, लेकिन वाघा-अटारी बॉडर जैसा इलाक़ा नहीं है. यहां रहने वालों की आबादी बहुत ज्यादा है. कुछ कुछ नेपाल की सीमा से सटे बिहार के रक्सौल जैसा.
इस वजह से भारत और बांग्लादेश के बीच सामान भेजने में भारत सरकार को दिक्क़त आ रही थी.
प्रबीर कहते हैं कि ईद के त्यौहार के क़रीब तो ऐसी दिक्क़त आई कि भारत ने हरी मिर्च जो भेजनी चाही वो बांग्लादेश पहुँचते-पहुँचते लाल हो गए और फिर बांग्लादेश ने लेने से भी इनकार कर दिया. चूंकि कई ऐसे सामान भारत बांग्लादेश को बेचता है जो जल्दी ख़राब हो जाते हैं. इस वजह से फिर वैकल्पिक रास्ते की तलाश शुरू हुई.
वो आगे कहते हैं, "लैंड पोर्ट अथोरिटी ऑफ़ इंडिया ने फिर दोनों देशों के व्यापार के लिए नया रास्ता ढूंढा - घोजाडांगा सीमा. लेकिन यहाँ जानवरों के तस्करी काफ़ी होती है और ये इलाक़ा पूरी तरह से व्यापार के लिए विकसित भी नहीं हैं. पश्चिम बंगाल सरकार ने वहाँ भी आपत्ति जताई जिसके बाद केन्द्र सरकार ने ट्रेन का रास्ता चुना."
पाकिस्तान और चीन से बढ़ती नज़दीकियाँ
लेकिन ढाका विश्विद्यालय में इंटरनेशनल रिलेशन के प्रोफ़ेसर इम्तियाज़ अहमद कहते हैं कि इस 'ट्रेन डिप्लोमैसी' में कुछ ज़्यादा पढ़ने की ज़रूरत नहीं है. दोनों देशों के बीच दशकों से अच्छा रिश्ता रहा है और ये नई ट्रेन चलाना और नए लोकोमोटिव बांग्लादेश को देना इसी का हिस्सा है. उनके मुताबिक़ ट्रकों से ज्यादा सामान एक बार में ट्रेन से लाए जा सकते हैं. इसलिए भी भारत सरकार इस तरह की पहल कर रही है.
भारतीय रेल ने भी अपनी प्रेस रिलीज़ में इस बात का ज़िक्र किया है कि इस तरह से सामान भेजने में ख़र्च कम आता है और सामान भेजना ज़्यादा किफायती होता है.
पिछले कुछ समय से दोनों देशों के मीडिया में ऐसी ख़बरें आ रही है कि बांग्लादेश के साथ पाकिस्तान और चीन की नज़दीकियाँ ज्यादा बढ़ रही है.
22 जुलाई को ही पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को फ़ोन कर बात की थी. हाल के दिनों में बांग्लादेश के अरबों डॉलर के प्रोजेक्ट्स चीन को भी मिले हैं और चीन ने बांग्लादेश के माल को कई तरह के करों से छुट देकर दोनों देशों के साझा व्यापार को भी बढ़ाया है.
क्या भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में कड़वाहट आ गई है?
इस सवाल के जवाब में प्रोफेसर इम्तियाज़ अहमद कहते हैं, "ये बांग्लादेश की विदेश नीति का हमेशा से हिस्सा रहा है कि दो देशों के झगड़े में बांग्लादेश किसी का पक्ष नहीं लेता और यही वजह है कि बांग्लादेश ने गलवान में भारतीय सैनिकों की मौत पर कोई बयान नहीं दिया.''
कोरोना के दौर में मदद
हाल ही में कोरोना वैक्सीन जो चीन में तैयार की जा रही है, उसके बांग्लादेश में ट्रायल के लिए इजाज़त भी दी गई है. प्रोफेसर इम्तियाज़ इसे दोनों देशों की बढ़ती नज़दीकी के तौर पर नहीं देखते. उनके मुताबिक़ चीन में कोरोना के मरीज़ कम हैं और इस लिहाज़ से बांग्लादेश से चीन ने मदद माँगी और वो मदद के लिए तैयार हो गया. इससे ज्यादा हमें इसमें मायने नहीं खोजना चाहिए.
ग़ौरतलब है कि पिछले महीने भारत का पुराना दोस्त माना जाने वाला नेपाल भी भारत के साथ कई मुद्दों पर उलझता दिखा.
भारत सरकार के सीएए के फ़ैसले पर पिछले साल दिसंबर में बांग्लादेश की तरफ़ से कड़ी प्रतिक्रिया आई थी. बांग्लादेश के विदेश मंत्री अब्दुल मोमिन और गृह मंत्री असदुज़्ज़मान ख़ान ने अपना भारत दौरा रद्द भी कर दिया था.
10 लोकोमोटिव बांग्लादेश को देने के फ़ैसले को भारत के विदेश मंत्री एस जय शंकर ने 'नेबरहुड फ़र्स्ट' पॉलिसी का हिस्सा बताया. भारत के रेल मंत्री पीयूष गोयल ने इस मौक़े पर कहा, "फ़िलहाल दोनों देशों के बीच ट्रेन के 8 इंटरनेटचेंज प्वाइंट हैं, जिसमें से केवल 4 ही इस वक्त़ काम कर रहे हैं. दोनों देशों के बीच बाकी दो प्वाइंट्स जल्द ही चालू हो जाएंगी. हम रेल के अपने रिश्ते को 1965 के पहले वाले दौर में वापस ले जाना चाहते हैं जब ये आठ प्वाइंट काम कर रहे थे."
इतना ही नहीं कोरोना के दौर में ही पिछले सप्ताह पहली बार भारतीय रेल ने 50 कंटेनर की मदद से साबुन तेल जैसे रोज़मर्रा के ज़रूरत के सामान भी बांग्लादेश को भेजा है.
2019 में बांग्लादेश ने भारत को 1 अरब डॉलर से ज्यादा का निर्यात किया था, जो अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा है. (बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)